मुंबई : महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर चल रही सियासी उठापटक पर उस समय विराम लग गया, जब मंगलवार की शाम राष्ट्रपति ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया.
इससे पहले राज्यपाल नें भाजपा और शिवसेना को सरकार बनाने का आमंत्रण दिया, लेकिन दोनों में कोई भी पार्टी बहुमत का आंकड़ा नहीं प्रस्तुत कर सकी. राज्यपाल ने इसके बाद एनसीपी को बुलाया और उसे मंगलवार रात्रि 8.30 बजे तक का समय दिया. हालांकि मंगलवार दोपहर को ही राज्यपाल ने गृह मंत्रालय अपनी रिपोर्ट प्रेषित करते हुए राज्य में राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा कर दी। इस पर मोदी कैबिनेट ने भी अपनी मुहर लगाई और राष्ट्रपति के पास सिफारिश भेज दी. इसके बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राज्य में राष्ट्रपति शासन को मंजूरी दे दी.
बता दें, राष्ट्रपति शासन किसी भी राज्य में उस समय लगता है, जब चुनाव में किसी भी दल या गठबंधन को बहुमत न मिले.
संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार राष्ट्रपति किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं यदि वे इस बात से संतुष्ट हों कि राज्य सरकार संविधान के विभिन्न प्रावधानों के मुताबिक काम नहीं कर रही है.
गौर करने वाली बात यह है कि राष्ट्रपति को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए जरूरी नहीं है कि वह राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर राष्ट्रपति शासन लगाए.
इसके अलावा अशांति से, जिसमें दंगे भी शामिल हैं, निबटने में राज्य सरकार के विफल रहने पर भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है.
राष्ट्रपति शासन 6 महीने के लिए लगाया जाता है, जो अधिकतम तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है.
राष्ट्रपति शासन लगने के बाद राज्य के सभी कामकाज राज्य के मुख्यमंत्री की जगह सीधे राष्ट्रपति के अधीन आ जाते हैं.
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राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद राज्य की कैबिनेट भंग कर दी जाती है. इसके अलावा राज्य का सरकारी कामकाज राष्ट्रपति के हाथ में आ जाता है, जिसे वह राज्यपाल और अन्य अधिकारियों की मदद से करता है.
राष्ट्रपति शासन के दौरान केंद्र सरकार ही राज्य के लिए बजट प्रस्ताव को पारित करती है. इस दौरान राष्ट्रपति राज्य' के लिए कोई अध्यादेश जारी कर सकता है.