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पितृपक्ष 2020 : मोक्षस्थली बोधगया में इस बार नहीं लगेगा मेला - gaya ji

गया में पिंडदान का आज चौथा दिन है. कोरोना काल के चलते इस बार विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला रद्द कर दिया गया है. यहां मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए पुरोहित और पंडा पिंडदान कर रहे हैं. पढ़ें पूरी खबर...

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मोक्षस्थली गया में इस बार नहीं लगेगा पितृ पक्ष मेला
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Published : Sep 5, 2020, 1:12 PM IST

गया : बिहार के गया में पहले जहां महाबोधि मंदिर परिसर में 'बुद्धं शरणं गच्छामि' के स्वर गूंजा करते थे, वहीं दूसरी ओर पिंडवेदियों पर मोक्ष के मंत्रों का उच्चारण होता था. इस बार कोरोना वायरस महामारी के चलते सब शांत है. पितृपक्ष 2020 का आज चौथा दिन है. ऐसे में यहां होने वाले पिंडदान के महत्व को जानना बेहद जरूरी हो जाता है.

गया में पिंडदान का आज चौथा दिन

महात्मा बुद्ध की ज्ञानस्थली बोधगया क्षेत्र में ऐसे तो पांच पिंडवेदियां हैं, परंतु तीन पिंडवेदियां धर्मारण्य, मातंगवापी और सरस्वती प्रमुख हैं. पुरखों के मोक्ष की कामना लेकर आने वाले श्रद्धालु भगवान बुद्ध को विष्णु का अवतार मानते हुए महाबोधि मंदिर में भी पिंडदान के विधान को कालांतर से निभाते आए हैं. इसी पौराणिक मान्यता के चलते यहां पिंडदान किया जाता है.

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पिंडदान के महत्व को जानना बेहद जरूरी

कूप में किया जाता है पिंड विसर्जित
सरस्वती (मुहाने नदी) में तर्पण के पश्चात धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान के दौरान वहां स्थित अष्टकमल आकार के कूप में पिंड विसर्जित किया जाता है.

gaya ji
कोरोना के कारण गया का पितृपक्ष मेला रद

इसके बाद मातंगवापी पिंडवेदी में पिंडदान होता है. यहां पिंडदानी पिंड मातंगेश शिवलिंग पर अर्पित करते हैं.

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कालांतर से निभाया जा रहा है पिंडदान

पढ़ें : विशेष : रूबी की वैदिक पद्धति से पढ़ाने की कला को पूरे देश ने सराहा

पिंडदान, त्रिपिंडी श्राद्ध का विशेष महत्व
स्कंद पुराण के अनुसार, एक कथा है कि महाभारत युद्ध के दौरान मारे गए लोगों की आत्मा की शांति और पश्चाताप के लिए धर्मराज युधिष्ठिर ने धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान किया था. धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान और त्रिपिंडी श्राद्ध का विशेष महत्व है. यहां किए गए पिंडदान और त्रिकपंडी श्राद्ध से प्रेतबाधा से मुक्ति मिलती है.

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पुरोहित और पंडा पिंडदान करते

गया : बिहार के गया में पहले जहां महाबोधि मंदिर परिसर में 'बुद्धं शरणं गच्छामि' के स्वर गूंजा करते थे, वहीं दूसरी ओर पिंडवेदियों पर मोक्ष के मंत्रों का उच्चारण होता था. इस बार कोरोना वायरस महामारी के चलते सब शांत है. पितृपक्ष 2020 का आज चौथा दिन है. ऐसे में यहां होने वाले पिंडदान के महत्व को जानना बेहद जरूरी हो जाता है.

गया में पिंडदान का आज चौथा दिन

महात्मा बुद्ध की ज्ञानस्थली बोधगया क्षेत्र में ऐसे तो पांच पिंडवेदियां हैं, परंतु तीन पिंडवेदियां धर्मारण्य, मातंगवापी और सरस्वती प्रमुख हैं. पुरखों के मोक्ष की कामना लेकर आने वाले श्रद्धालु भगवान बुद्ध को विष्णु का अवतार मानते हुए महाबोधि मंदिर में भी पिंडदान के विधान को कालांतर से निभाते आए हैं. इसी पौराणिक मान्यता के चलते यहां पिंडदान किया जाता है.

gaya ji
पिंडदान के महत्व को जानना बेहद जरूरी

कूप में किया जाता है पिंड विसर्जित
सरस्वती (मुहाने नदी) में तर्पण के पश्चात धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान के दौरान वहां स्थित अष्टकमल आकार के कूप में पिंड विसर्जित किया जाता है.

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कोरोना के कारण गया का पितृपक्ष मेला रद

इसके बाद मातंगवापी पिंडवेदी में पिंडदान होता है. यहां पिंडदानी पिंड मातंगेश शिवलिंग पर अर्पित करते हैं.

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कालांतर से निभाया जा रहा है पिंडदान

पढ़ें : विशेष : रूबी की वैदिक पद्धति से पढ़ाने की कला को पूरे देश ने सराहा

पिंडदान, त्रिपिंडी श्राद्ध का विशेष महत्व
स्कंद पुराण के अनुसार, एक कथा है कि महाभारत युद्ध के दौरान मारे गए लोगों की आत्मा की शांति और पश्चाताप के लिए धर्मराज युधिष्ठिर ने धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान किया था. धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान और त्रिपिंडी श्राद्ध का विशेष महत्व है. यहां किए गए पिंडदान और त्रिकपंडी श्राद्ध से प्रेतबाधा से मुक्ति मिलती है.

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पुरोहित और पंडा पिंडदान करते
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