हैदराबाद : भारत अमेरिका का रिश्ता लंबे समय से उतार-चढ़ाव भरा रहा है. 1950 के दशक में भारत-विरोधी होने से लेकर 2005 में भारत-समर्थक होने तक, भारत अब अमेरिका का एक अपरिहार्य साझेदार है.
सॉफ्टवेयर, अनुसंधान और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के क्षेत्र में भारत के योगदान को अमेरिका ने भी स्वीकार किया है. वाशिंगटन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता, परमाणु सहयोग और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को लेकर भारत का समर्थन किया है.
भारत ने 1998 में दूसरी बार परमाणु परीक्षण किया था. इसकी पृष्ठभूमि पर अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन सन 2000 में भारत दौरे पर आए थे.
परीक्षण को लेकर दोनों देशों के बीच मनमुटाव था और क्लिंट्न प्रशासन ने भारत पर व्यापक परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) पर हस्ताक्षर करने का दबाव बनाया, लेकिन वे सफल नहीं हुए.
जैसे-जैसे भारत की अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ती गई अमेरिका का झुकाव शीत युद्ध के साथी पाकिस्तान से हटकर भारत की ओर बढ़ने लगा.
2006 में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश भारत आए. इस दौरान दोनों देशों ने मिलकर असैन्य परमाणु समझौते को अंतिम रूप देने के साथ सुरक्षा और आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य किया.
2006 में दोनों देशों के बीच 45 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ, जो 2010 में बढ़कर 70 बिलियन डॉलर हो गया.
अप्रैल 27, 2007 को भारत अमेरिका के बीच हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिल को लेकर समझौता हुआ.
सन 2010 में भारत का एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल अमेरिका पहुंचा और दोनों देशों ने पहली बार रणनीतिक बैठक की.
नवंबर 2010 में तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत आए और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन किया. 2015 में गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में ओबामा दोबारा भारत आए.
इस दौरान उन्होंने कहा कि अमेरिका भारत का सबसे अच्छा साथी हो सकता है. ओबामा और भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने परमाणु-संबंधी मुद्दों पर सफलता की घोषणा की.
इस दौरे के चलते दस साल के अमेरिका-भारत के रक्षा ढांचे को नवीनीकृत करने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किया गया.
आगामी 24 फरवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे से भारत अमेरिका के रिश्तों को नई ऊर्जा मिलने की उम्मीद है.
विदेश नीति के विशेषज्ञों का मानना है कि लंबे समय में दोनों देशों को एक दूसरे से फायदा है.
अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत दौरे ने दोनों देशों के रिश्तों को मजबूत किया है.
भारत के दुश्मन को हथियार बेचने से लेकर सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता के समर्थन तक दोनों देशों ने लंबा सफर तय किया है.