नई दिल्ली : नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 के कानून बनने के बाद कई देशों के नागरिकों को भारतीय नागरिकता दी जा सकेगी.
इन लोगों में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भाग कर आने वाले हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों की संख्या हो सकती है.
भारत की नागरिकता उन लोगों को भी मिल सकती है, जिनके वैध दस्तावेजों की हाल ही में समयावधि समाप्त हुई है. कानून बनने के बाद नागरिकता संशोधन विधेयक (CAB) इन लोगों को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने में सक्षम बनाएगा.
गौरतलब है कि CAB गत आठ जनवरी, 2019 को लोकसभा से पारित किया गया था. इसके बाद विधेयक के खिलाफ पूर्वोत्तर राज्यों में कई विरोध प्रदर्शन हुए हैं. अब जबकि केंद्र सरकार इस बिल को राज्यसभा से पारित कराने की योजना बना रही है, असम के छात्र संगठन AASU के अलावा कई अन्य लोग भी इसका विरोध कर रहे हैं.
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इस विधेयक को 19 जुलाई, 2016 को लोकसभा में पेश किया गया था और 12 अगस्त, 2016 को इसे संयुक्त संसदीय कमिटी के पास भेजा गया था. कमिटी ने 7 जनवरी, 2019 को अपनी रिपोर्ट सौंपी. उसके बाद अगले दिन यानी 8 जनवरी, 2019 को विधेयक को लोकसभा में पास किया गया, लेकिन उस समय राज्यसभा में यह विधेयक पेश नहीं हो पाया था. इस विधेयक को शीतकालीन सत्र में सरकार की फिर से नए सिरे पेश करने की तैयारी है. अब फिर से संसद के दोनों सदनों से पास होने के बाद ही यह कानून बन पाएगा.
मणिपुरी फिल्म निर्माता अरिबम श्याम शर्मा ने इस विधेयक के खिलाफ पद्मश्री सम्मान लौटाने की घोषणा की थी. बता दें कि शर्मा को 15 बार राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है.
शर्मा ने कहा था, 'यह विधेयक पूर्वोत्तर और मणिपुर के स्थानीय लोगों के खिलाफ है. यहां (मणिपुर) कई लोगों ने इस विधेयक का विरोध किया है, लेकिन लग रहा है कि वे (केंद्र सरकार) इसे पारित करने का निश्चय कर चुके हैं.' उन्होंने कहा, 'पद्मश्री एक सम्मान है. यह भारत में सबसे बड़े सम्मानों में से एक है. इसलिए मुझे विरोध प्रदर्शन के लिए इसे वापस करने से बेहतर और कोई तरीका नहीं लगा.'
बता दें कि 'इशानाओ', 'इमाजी निंग्थेम' और 'लीपक्लेई' जैसी फिल्में बना चुके फिल्मकार को 2006 में पद्मश्री सम्मान दिया गया था.
जनवरी 2019 में राजनाथ सिंह ने बतौर गृह मंत्री (एनडीए-1 में) राज्यसभा में नागरिकता संशोधन बिल पर जबाव दिया था.
राजनाथ ने कहा था, मैं यह बताना चाहूंगा कि हम Citizenship Amendment Bill इसलिए लेकर आए हैं ताकि हमारे तीन पड़ोसी देशों के छह अल्पसंख्यक समुदायों के migrants की संकटपूर्ण परिस्थितियों का निवारण किया जा सके। ये वैसे लोग हैं जो धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत में shelter लेने के लिए बाध्य हुए हैं.
इसको लेकर असम और पूर्वोत्तर के कुछ अन्य राज्यों में भी कुछ लोगों के मन में शायद कुछ आशंकाएं हैं. मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि यह विधेयक सिर्फ असम में रह रहे Migrants के लिए नहीं है. न ही यह किसी एक देश से भारत आने वाले migrants की भलाई के लिए है. हजारों- हजारों की संख्या में migrants देश की पश्चिमी सीमाओं से होकर भी गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में रह रहे हैं. यह कानून उनके लिए भी है.
मैं फिर स्पष्ट करना चाहता हूं कि यह विधेयक देश के सभी States और UTs के लिए लागू होगा. यह किसी एक राज्य या क्षेत्र के लिए नहीं है. इसके पीछे सोच यह है कि उत्पीड़न के शिकार ऐसे migrants देश में कहीं भी हैं, वहां भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकें और उसके बाद किसी भी भारतीय नागरिक की तरह देश के किसी भी राज्य में रह सकेंगे. उनकी जिम्मेवारी पूरे देश की है न कि किसी एक राज्य की. जिम्मेवारी केवल असम की नहीं होगी. या केवल North-East की नहीं होगी.
लोकसभा से पारित नागरिकता संशोधन विधेयक की पूरी प्रति