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डिजिटल पढ़ाई के लिए बिहार में इस कॉलेज के प्रधानाध्यापक ने की अनूठी पहल - ऑनलाइन क्लाइज

कोरोना संकट ने इंसानी जीवन के हर पक्ष को प्रभावित किया है. मानवीय जीवन के कुछ हिस्से ज्यादा प्रभावित और कुछ कम प्रभावित हो सकते हैं, लेकिन हर किसी पक्ष पर इसका कुछ न कुछ असर तो हो ही रहा है. शिक्षा जगत भी एक ऐसा क्षेत्र है जहां इस असर देखा जा सकता है. हालात बिगड़े तो सरकार और स्कूल प्रबंधन ने ऑनलाइन क्लासेज शुरू करने का फैसला किया. लेकिन शायद ये प्रक्रिया सभी बच्चों के लिए सहज,सरल और सुगम नहीं रही.

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डिजिटल पढ़ाई
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Published : Jul 27, 2020, 10:35 AM IST

पूर्णिया : कोरोना वायरस ने आम जनजीवन पर गहरा असर डाला है. रोजगार, उद्योग-धंधे, कल-कारखाने हर एक क्षेत्र इसकी जद में आया. वहीं शिक्षा जगत भी इससे अछुता नहीं रह सका. हालात बिगड़े तो सरकार और स्कूल प्रबंधन ने ऑनलाइन क्लासेज शुरू करने का फैसला किया. लेकिन शायद ये प्रक्रिया सभी बच्चों के लिए सहज,सरल और सुगम नहीं रही.

झुग्गियों से जल रही शिक्षा की अनूठी अलख
दरअसल जिले के पंचमुखी मंदिर टोले में रोजाना खाने-कमाने वाले गरीब और पिछड़े तबके के 50 परिवार बसे हैं. बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले टोले की एक खासियत ये है कि यहां रहने वाले परिवार अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाने की जद्दोजहद में जुटे हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट.

50-60 के करीब भंगी परिवारों का इलाका
राजधानी पटना से 372 किमी दूर पूर्णिया जिला मुख्यालय से सटे सदर विधानसभा क्षेत्र के पंचमुखी मंदिर स्थित भंगी टोले के ये परिवार कड़ी मशक्कत से अपने बच्चों की शिक्षा की मांग पूरी कर पाते हैं. इस इलाके में 50-60 के करीब भंगी परिवार रहते हैं, जिनकी आबादी 350 के करीब है. यहां के 70 फीसद बच्चे स्कूल जाते हैं जिनमें से 50 फीसद से अधिक प्राइवेट स्कूल में पढ़ते है और बाकी सरकारी स्कूलों के जरिए अपनी शिक्षा हासिल करते हैं.

बच्चों की शिक्षा पूरी करवा पाना टेढ़ी खीर
इन परिवारों के लिए अपने बच्चों की शिक्षा पूरी करवा पाना टेढ़ी खीर साबित होता है. ज्यादातर लोग अनुकंपा पर बहाल सफाई कर्मी हैं. जो नगरनिगम क्षेत्र या फिर सरकारी दफ्तर और सदर अस्पताल में काम करते हैं. 7-8 हजार के मामूली मानदेय पर ही इन्हें रखा गया है. यहां की कुछ महिलाएं भी सफाईकर्मी हैं, तो लोगों के घरों में सहयोगी के तौर पर काम करती हैं.

बच्चों के सामने दोहरी समस्या
कोरोना काल में बंद हुए स्कूलों के साथ ही चलन में आए ऑनलाइन क्लासेज और डिजिटल स्टडी इस इलाके के बच्चों के सामने दोहरी समस्या लेकर आई. दो वक्त के निवाले की जुगत के बीच अपने बच्चों के लिए डिजिटल स्टडी को सार्थक बनाना इन परिवारों के लिए भारी चुनौतियों भरा रहा.

भाड़े पर मोबाइल लेकर ऑनलाइन पढ़ाई
इन चुनौतियों को पूरा कर डिजिटल पढ़ाई तक की मंजिल तक पहुंचने के लिए ही यहां के बच्चे भाड़े पर मोबाइल लेकर पढ़ाई कर रहे हैं. भाड़े पर मोबाइल लेकर पढ़ाई करना सुनने में जितना अजरच भरा है, इन परिवारों के लिए उसकी प्रक्रिया भी उतनी ही परेशानी का सबब रही.

कई चुनौतियों का करना पड़ता है सामना
मोबाइल भाड़े पर लेने को शॉप्स दर शॉप भटकने के साथ ही रिचार्ज तक के पैसों के लिए उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ती है. कई दफे बेहतर मोबाइल और बेहतर कनेक्टिविटी न होने से कम्युनिकेशन डिस्कनेक्ट भी हो जाता है.

रिपेयर शॉप से भाड़े पर लेते हैं मोबाइल
दरअसल मोबाइल रिपेयर शॉप में रिपेयरिंग के लिए आने वाले कई मोबाइल जिन्हें उनके मालिकों ने वापस नहीं लिया, वैसे मोबाइल ही शॉप वाले इन बच्चों और उनके परिवारों को भाड़े पर देते हैं. लेकिन उसके एवज में इन्हें अपना आधार कार्ड या कोई दूसरा पहचान पत्र जमा करना पड़ता है, साथ ही भाड़े के तौर पर कुछ रुपये भी देने पड़ते हैं, तब जाकर ये बच्चे ऑनलाइन क्लासेज का हिस्सा बन पाते हैं.

मौलिक अधिकार शिक्षा के लिए जूझते बच्चे
शिक्षा किसी भी बच्चे का मौलिक अधिकार है. लेकिन हैरानी की बात है कि देश में एक श्रेणी के बच्चों को अपने इसी मौलिक अधिकार के लिए हर पल, हर घड़ी, हर क्षेत्र में जूझना पड़ता है. वहीं दूसरी श्रेणी के बच्चों को ये अधिकार बिना किसी परेशानी के मिल जाते हैं.

निजी स्कूल के प्रिंसिपल की कवायद
बहरहाल पूर्णिया में इस डिजिटल पढ़ाई का फायदा निजी और सरकारी दोनों ही स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को मिल रहा है. पैरेंट्स के एफर्ट और बच्चों की लगन देखकर जिले का सरस्वती विद्या मंदिर स्कूल प्रिंसिपल ने अनूठी पहल की है.

सरकारी स्कूलों के स्टूडेंट्स को भी मिल रहा फायदा
खास बात यह है कि एसएसएम प्रिंसिपल भोला प्रसाद की विशेष तैयारियों की वजह से इस अनूठी पहल का फायदा उनके स्कूल में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स के साथ ही सरकारी स्कूलों के स्टूडेंट्स को भी मिल रहा है. अलग-अलग क्लासेज के लगभग 20 बच्चे डिजिटल स्टडी से होनहार बन रहे हैं.

व्हाट्सएप जैसे डिजिटल माध्यम का सहारा
दरअसल प्रिंसिपल बस्ती के बच्चों को व्हाट्सएप जैसे डिजिटल माध्यम से डिजिटल क्लासेज की सुविधा दे रहे हैं. बच्चे क्लास वर्क की तरह ही ऑनलाइन स्टडी के दौरान भी उन पाठ्य सामग्रियों को नोट करते हैं. भोला प्रसाद कहते हैं कि व्हाट्सएप से सभी बच्चे जुड़ते हैं.

औपचारिक मुलाकात से डिजिटल पढ़ाई की शुरुआत
पढ़ाई की शुरुआत औपचारिक मुलाकात से होती है. इससे बच्चों की मौजूदगी का पता लगता है. इस दौरान कोरोना से सुरक्षा का ख्याल रखा जाए, इसके लिए बच्चे सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क के साथ पढ़ने बैठते हैं. सभी बच्चों को तीन की संख्या में ग्रुप में बांटा गया है. इनसे बारी-बारी से कम्युनिकेट किया जाता है.

ऑडियो-विजुअल तरीके से सीखने की गति तेज
बस्ती में पढ़ने वाले बच्चे कहते हैं कि इससे उन्हें काफी फायदा हुआ है. ऑनलाइन क्लाइज के दौरान जो बाते नहीं समझ आती उसे वीडियो के जरिए कई बार देख सकते है, साथ ही शिक्षिका भी प्रॉब्लम सॉल्व करने में मदद करती हैं. टीचर पुतल कुमारी कहती हैं कि ऑडियो-विजुअल तरीके से बच्चों ने काफी तेजी से सीखना शुरू किया है.

सरकारी पहल जरूरी
बच्चे किसी भी देश के सुनहरे भविष्य की नींव होते हैं. लेकिन अगर नींव कमजोर हुई तो उसपर खड़ा भवन मजबूती के साथ खड़ा नहीं रह सकता. ठीक उसी तरह अगर बच्चों की शिक्षा में कमी रह गई तो उसका खामियाजा पूरा देश भुगतेगा. संपन्न बच्चों और आर्थिक रुप से अक्षम बच्चों की शिक्षा के बीच की इस खाई को पाटना बेहद जरूरी है और चुनौतियों से भरा भी. इसीलिए जरुरी है कि सरकार इन बच्चों और अभिभावकों की गुहार सुने और इस ओर कोई कारगर कदम उठाए.

पूर्णिया : कोरोना वायरस ने आम जनजीवन पर गहरा असर डाला है. रोजगार, उद्योग-धंधे, कल-कारखाने हर एक क्षेत्र इसकी जद में आया. वहीं शिक्षा जगत भी इससे अछुता नहीं रह सका. हालात बिगड़े तो सरकार और स्कूल प्रबंधन ने ऑनलाइन क्लासेज शुरू करने का फैसला किया. लेकिन शायद ये प्रक्रिया सभी बच्चों के लिए सहज,सरल और सुगम नहीं रही.

झुग्गियों से जल रही शिक्षा की अनूठी अलख
दरअसल जिले के पंचमुखी मंदिर टोले में रोजाना खाने-कमाने वाले गरीब और पिछड़े तबके के 50 परिवार बसे हैं. बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले टोले की एक खासियत ये है कि यहां रहने वाले परिवार अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाने की जद्दोजहद में जुटे हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट.

50-60 के करीब भंगी परिवारों का इलाका
राजधानी पटना से 372 किमी दूर पूर्णिया जिला मुख्यालय से सटे सदर विधानसभा क्षेत्र के पंचमुखी मंदिर स्थित भंगी टोले के ये परिवार कड़ी मशक्कत से अपने बच्चों की शिक्षा की मांग पूरी कर पाते हैं. इस इलाके में 50-60 के करीब भंगी परिवार रहते हैं, जिनकी आबादी 350 के करीब है. यहां के 70 फीसद बच्चे स्कूल जाते हैं जिनमें से 50 फीसद से अधिक प्राइवेट स्कूल में पढ़ते है और बाकी सरकारी स्कूलों के जरिए अपनी शिक्षा हासिल करते हैं.

बच्चों की शिक्षा पूरी करवा पाना टेढ़ी खीर
इन परिवारों के लिए अपने बच्चों की शिक्षा पूरी करवा पाना टेढ़ी खीर साबित होता है. ज्यादातर लोग अनुकंपा पर बहाल सफाई कर्मी हैं. जो नगरनिगम क्षेत्र या फिर सरकारी दफ्तर और सदर अस्पताल में काम करते हैं. 7-8 हजार के मामूली मानदेय पर ही इन्हें रखा गया है. यहां की कुछ महिलाएं भी सफाईकर्मी हैं, तो लोगों के घरों में सहयोगी के तौर पर काम करती हैं.

बच्चों के सामने दोहरी समस्या
कोरोना काल में बंद हुए स्कूलों के साथ ही चलन में आए ऑनलाइन क्लासेज और डिजिटल स्टडी इस इलाके के बच्चों के सामने दोहरी समस्या लेकर आई. दो वक्त के निवाले की जुगत के बीच अपने बच्चों के लिए डिजिटल स्टडी को सार्थक बनाना इन परिवारों के लिए भारी चुनौतियों भरा रहा.

भाड़े पर मोबाइल लेकर ऑनलाइन पढ़ाई
इन चुनौतियों को पूरा कर डिजिटल पढ़ाई तक की मंजिल तक पहुंचने के लिए ही यहां के बच्चे भाड़े पर मोबाइल लेकर पढ़ाई कर रहे हैं. भाड़े पर मोबाइल लेकर पढ़ाई करना सुनने में जितना अजरच भरा है, इन परिवारों के लिए उसकी प्रक्रिया भी उतनी ही परेशानी का सबब रही.

कई चुनौतियों का करना पड़ता है सामना
मोबाइल भाड़े पर लेने को शॉप्स दर शॉप भटकने के साथ ही रिचार्ज तक के पैसों के लिए उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ती है. कई दफे बेहतर मोबाइल और बेहतर कनेक्टिविटी न होने से कम्युनिकेशन डिस्कनेक्ट भी हो जाता है.

रिपेयर शॉप से भाड़े पर लेते हैं मोबाइल
दरअसल मोबाइल रिपेयर शॉप में रिपेयरिंग के लिए आने वाले कई मोबाइल जिन्हें उनके मालिकों ने वापस नहीं लिया, वैसे मोबाइल ही शॉप वाले इन बच्चों और उनके परिवारों को भाड़े पर देते हैं. लेकिन उसके एवज में इन्हें अपना आधार कार्ड या कोई दूसरा पहचान पत्र जमा करना पड़ता है, साथ ही भाड़े के तौर पर कुछ रुपये भी देने पड़ते हैं, तब जाकर ये बच्चे ऑनलाइन क्लासेज का हिस्सा बन पाते हैं.

मौलिक अधिकार शिक्षा के लिए जूझते बच्चे
शिक्षा किसी भी बच्चे का मौलिक अधिकार है. लेकिन हैरानी की बात है कि देश में एक श्रेणी के बच्चों को अपने इसी मौलिक अधिकार के लिए हर पल, हर घड़ी, हर क्षेत्र में जूझना पड़ता है. वहीं दूसरी श्रेणी के बच्चों को ये अधिकार बिना किसी परेशानी के मिल जाते हैं.

निजी स्कूल के प्रिंसिपल की कवायद
बहरहाल पूर्णिया में इस डिजिटल पढ़ाई का फायदा निजी और सरकारी दोनों ही स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को मिल रहा है. पैरेंट्स के एफर्ट और बच्चों की लगन देखकर जिले का सरस्वती विद्या मंदिर स्कूल प्रिंसिपल ने अनूठी पहल की है.

सरकारी स्कूलों के स्टूडेंट्स को भी मिल रहा फायदा
खास बात यह है कि एसएसएम प्रिंसिपल भोला प्रसाद की विशेष तैयारियों की वजह से इस अनूठी पहल का फायदा उनके स्कूल में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स के साथ ही सरकारी स्कूलों के स्टूडेंट्स को भी मिल रहा है. अलग-अलग क्लासेज के लगभग 20 बच्चे डिजिटल स्टडी से होनहार बन रहे हैं.

व्हाट्सएप जैसे डिजिटल माध्यम का सहारा
दरअसल प्रिंसिपल बस्ती के बच्चों को व्हाट्सएप जैसे डिजिटल माध्यम से डिजिटल क्लासेज की सुविधा दे रहे हैं. बच्चे क्लास वर्क की तरह ही ऑनलाइन स्टडी के दौरान भी उन पाठ्य सामग्रियों को नोट करते हैं. भोला प्रसाद कहते हैं कि व्हाट्सएप से सभी बच्चे जुड़ते हैं.

औपचारिक मुलाकात से डिजिटल पढ़ाई की शुरुआत
पढ़ाई की शुरुआत औपचारिक मुलाकात से होती है. इससे बच्चों की मौजूदगी का पता लगता है. इस दौरान कोरोना से सुरक्षा का ख्याल रखा जाए, इसके लिए बच्चे सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क के साथ पढ़ने बैठते हैं. सभी बच्चों को तीन की संख्या में ग्रुप में बांटा गया है. इनसे बारी-बारी से कम्युनिकेट किया जाता है.

ऑडियो-विजुअल तरीके से सीखने की गति तेज
बस्ती में पढ़ने वाले बच्चे कहते हैं कि इससे उन्हें काफी फायदा हुआ है. ऑनलाइन क्लाइज के दौरान जो बाते नहीं समझ आती उसे वीडियो के जरिए कई बार देख सकते है, साथ ही शिक्षिका भी प्रॉब्लम सॉल्व करने में मदद करती हैं. टीचर पुतल कुमारी कहती हैं कि ऑडियो-विजुअल तरीके से बच्चों ने काफी तेजी से सीखना शुरू किया है.

सरकारी पहल जरूरी
बच्चे किसी भी देश के सुनहरे भविष्य की नींव होते हैं. लेकिन अगर नींव कमजोर हुई तो उसपर खड़ा भवन मजबूती के साथ खड़ा नहीं रह सकता. ठीक उसी तरह अगर बच्चों की शिक्षा में कमी रह गई तो उसका खामियाजा पूरा देश भुगतेगा. संपन्न बच्चों और आर्थिक रुप से अक्षम बच्चों की शिक्षा के बीच की इस खाई को पाटना बेहद जरूरी है और चुनौतियों से भरा भी. इसीलिए जरुरी है कि सरकार इन बच्चों और अभिभावकों की गुहार सुने और इस ओर कोई कारगर कदम उठाए.

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