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कारगिल विजय दिवस: शहीदों की शौर्य गाथा का दिन - उत्तराखंड न्यूज

कारगिल में उत्तराखंड के 75 रणबांकुरों ने अपनी आहुति देकर तिरंगे की ताकत को पूरी दुनिया में कायम रखा था. आज से 20 साल पहले भारत के वीरों ने विजय की एक ऐसी गाथा लिखी, जिसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता. देवभूमि के 75 रणबांकुरों ने पाकिस्तान की ईंट से ईंट बजाई थी. देखें ईटीवी भारत की खास पेशकश...

कारगिल विजय दिवस
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Published : Jul 25, 2019, 8:20 AM IST

देहरादून: 26 जुलाई 1999 की वो तारीख कोई भुलाए नहीं भूल सकता, जब भारत ने दुश्मन देश के छक्के छुड़ा दिये थे. इस दिन भारतीय सेना के जांबाज सिपाहियों ने 18 हजार फीट की ऊंचाई पर पाकिस्तानी सैनिकों के दांत खट्टे कर दिये थे. दो महीनों से ज्यादा चले इस युद्ध में 527 से ज्यादा वीर शहीद हुए थे. देखें कारगिल विजय दिवस पर ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.

कारगिल विजय दिवस पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

आज से 20 साल पहले मां भारती के वीरों ने विजय की एक ऐसी गाथा लिखी, जिसने दुश्मन देश के छक्के छुड़ा दिये थे. साथ ही इन वीरों ने इतिहास के पन्नों में ऐसी गाथाएं दर्ज की जो कभी हमारे रोंगटे खड़े कर देती हैं, तो कभी आंखो में आंसू ले आती हैं. 26 जुलाई 1999 की वो तारीख कोई भुलाये नहीं भूल सकता. इस दिन भारतीय सेना के जांबाज सिपाहियों ने 18 हजार फीट की ऊंचाई पर पाकिस्तानी सैनिकों के दांत खट्टे कर दिये थे.

दो महीने चले इस युद्ध में देश के 527 से ज्यादा वीर योद्धा शहीद हुए थे, जबकि 1300 से ज्यादा जवान घायल हुए थे. इन्हीं जवानों की वीरता और शहादत को याद करते हुए हर साल 26 जुलाई को कारगिल दिवस के रूप में मनाया जाता है.

पढ़ें: कारगिल युद्ध में रहे सैनिक कैलाश क्षेत्री की कुछ ऐसी है कहानी...

वहीं बात अगर देवभूमि उत्तराखंड की करें तो यहां के 75 रणबांकुरों ने इस युद्ध में अपनी आहुति देकर तिरंगे की ताकत को पूरी दुनिया में कायम रखा. इस दौरान एक समय ऐसा भी आया जब एक साथ 9 जवानों के पार्थिव शरीर को देवभूमि लाया गया, तब हर किसी की आंखें भर आई थी.

कारगिल युद्ध में गढ़वाल राइफल के 47 जवान शहीद हुए थे, इनमें से 41 जांबाज उत्तराखंड के थे, वहीं कुमाऊं रेजीमेंट के 16 जवानों ने कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी थी. देश के इतिहास में उत्तराखंड के बेटों का बलिदान स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है.

देहरादून: 26 जुलाई 1999 की वो तारीख कोई भुलाए नहीं भूल सकता, जब भारत ने दुश्मन देश के छक्के छुड़ा दिये थे. इस दिन भारतीय सेना के जांबाज सिपाहियों ने 18 हजार फीट की ऊंचाई पर पाकिस्तानी सैनिकों के दांत खट्टे कर दिये थे. दो महीनों से ज्यादा चले इस युद्ध में 527 से ज्यादा वीर शहीद हुए थे. देखें कारगिल विजय दिवस पर ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.

कारगिल विजय दिवस पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

आज से 20 साल पहले मां भारती के वीरों ने विजय की एक ऐसी गाथा लिखी, जिसने दुश्मन देश के छक्के छुड़ा दिये थे. साथ ही इन वीरों ने इतिहास के पन्नों में ऐसी गाथाएं दर्ज की जो कभी हमारे रोंगटे खड़े कर देती हैं, तो कभी आंखो में आंसू ले आती हैं. 26 जुलाई 1999 की वो तारीख कोई भुलाये नहीं भूल सकता. इस दिन भारतीय सेना के जांबाज सिपाहियों ने 18 हजार फीट की ऊंचाई पर पाकिस्तानी सैनिकों के दांत खट्टे कर दिये थे.

दो महीने चले इस युद्ध में देश के 527 से ज्यादा वीर योद्धा शहीद हुए थे, जबकि 1300 से ज्यादा जवान घायल हुए थे. इन्हीं जवानों की वीरता और शहादत को याद करते हुए हर साल 26 जुलाई को कारगिल दिवस के रूप में मनाया जाता है.

पढ़ें: कारगिल युद्ध में रहे सैनिक कैलाश क्षेत्री की कुछ ऐसी है कहानी...

वहीं बात अगर देवभूमि उत्तराखंड की करें तो यहां के 75 रणबांकुरों ने इस युद्ध में अपनी आहुति देकर तिरंगे की ताकत को पूरी दुनिया में कायम रखा. इस दौरान एक समय ऐसा भी आया जब एक साथ 9 जवानों के पार्थिव शरीर को देवभूमि लाया गया, तब हर किसी की आंखें भर आई थी.

कारगिल युद्ध में गढ़वाल राइफल के 47 जवान शहीद हुए थे, इनमें से 41 जांबाज उत्तराखंड के थे, वहीं कुमाऊं रेजीमेंट के 16 जवानों ने कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी थी. देश के इतिहास में उत्तराखंड के बेटों का बलिदान स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है.

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देहरादून: आज से 20 साल पहले मां भारती के वीरों ने विजय की एक ऐसी गाथा लिखी जिसने दुश्मन देश के छक्के छुड़ा दिये थे . साथ ही इन वीरों ने इतिहास के पन्नों में ऐेसी गाथाएं दर्ज कीं जो कभी हमारे रोंगटे खड़े कर देती हैं, तो कभी आंखो में  आंसू ले आती हैं.  26 जुलाई 1999 की वो तारीख कोई भुलाये नहीं भूल सकता. इस दिन भारतीय सेना के जांबाज सिपाहियों ने 18 हजार फीट की ऊंचाई पर पाकिस्तानी सैनिकों के दांत खट्टे कर दिये थे. दो महीने चले इस युद्ध में मां भारती के  527 से ज्यादा वीर योद्धा शहीद हुए थे. जबकि 1300 से ज्यादा जवान घायल हुए थे. इन्हीं जवानों की वीरता और शहादत को याद करते हुए हर साल 26 जुलाई को कारगिल दिवस के रूप में मनाया जाता है.

वहीं बात अगर देवभूमि उत्तराखंड की करें तो यहां के 75 रणबांकुरों ने इस युद्ध में अपनी आहुति देकर तिरंगे की ताकत को पूरी दुनिया में कायम रखा. इस दौरान एक समय ऐसा भी आया जब एक साथ 9 जवानों के पार्थिव शरीर को देवभूमि लाया गया. तब हर किसी की आंखें भर आई थी.

कारगिल युद्ध में गढ़वाल राइफल के 47 जवान शहीद हुए थे. जिनमें से 41 जांबाज उत्तराखंड के थे, वहीं कुमाऊं रेजीमेंट के 16 जवानों ने कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी थी. देश के इतिहास में उत्तराखंड के बेटों का बलिदान स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है.

 


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