हैदराबाद : अयोध्या में बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराए जाने के बाद लंबे समय तक राजनीतिक और कानूनी लड़ाई हुई. इतिहास में इसे सबसे विवादित घटनाओं में से एक माना गया. अंततः बीते वर्ष नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने भूमि विवाद पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया. तमाम उतार-चढ़ाव के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में अयोध्या में अब राम मंदिर निर्माण की तैयारी है. मंदिर बनाने के लिए आगामी पांच अगस्त को भूमि पूजन किया जाना है, जिसमें पीएम मोदी समेत कई दिग्गज शामिल होंगे.
बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराए जाने के दौरान कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. पिछले 27 वर्षों में इस मामले पर खूब सियासत भी हुई है. राम मंदिर निर्माण के दृष्टिकोण से वर्तमान हालात और 1990 के दशक की राजनीति को लेकर ईटीवी भारत के न्यूज एडिटर निशांत शर्मा और रीजनल एडिटर ब्रज मोहन सिंह ने कल्याण सिंह से विशेष बात की. देखें साक्षात्कार के प्रमुख अंश :-
दरअसल, अयोध्या आंदोलन के दौर में राष्ट्रीय परिदृश्य पर एक ऐसा नेता उभरा, जिसने भारतीय जनता पार्टी को न सिर्फ नई पहचान दी बल्कि पार्टी को नई ताकत और नए जोश से भी भर दिया.
लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती, विनय कटियार जैसे नेता जहां अयोध्या आंदोलन की अगुआई कर रहे थे, वहीं अलीगढ में जन्मे कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए राजनीतिक जमीन भी तैयार कर रहे थे.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ने के बाद वह 1967 में पहली बार अतरौली से चुनाव जीतकर उत्तर प्रदेश विधान विधानसभा पहुंचे, उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. कल्याण सिंह की बदौलत पहली बार उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार भी बनी.
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह आज अपनी भूमिका को किस रूप में याद करते हैं, जब 5 अगस्त को अयोध्या में राम मंदिर का भूमिपूजन हो रहा है. ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह कहते हैं कि अब जब मंदिर बनने जा रहा है और वह अपनी जिंदगी के आखिरी पड़ाव में हैं, अब कोई मलाल नहीं रह गया है.
सबको पता है कि 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद कल्याण सिंह को अपनी सरकार भी कुर्बान करनी पड़ी थी, और उनपर यह भी आरोप लगा था कि उन्होंने संवैधानिक पद पर रहते हुए भी अपनी जिम्मेदारी को ठीक से नहीं निभाया, यहां तक कि कल्याण सिंह को एक दिन के लिए तोहाद जेल भी जाना पड़ा. लेकिन कल्याण सिंह कहते हैं कि वह राम सेवा के लिए खुशी-खुशी जेल भी गए और 2000 रुपये का जुर्माना भी भरा.
कल्याण सिंह कहते हैं कि कुछ बातें है, जो इतिहास के पन्नों में समा जाएंगी, जैसे कि 1528 में मस्जिद का टूटना और 500 वर्ष बाद मंदिर बनने का मौका.
आखिर कल्याण सिंह ने कार सेवकों को मस्जिद गिराने से क्यों नहीं रोका, इस मुद्दे पर अपना बचाव करते हुए कल्याण सिंह कहते हैं कि जिला प्रशासन ने जो रिपोर्ट मेरे सामने पेश की, उसमें बताया गया कि केंद्रीय सुरक्षा बल की चार बटालियन मंगाई गई थी, वहीं हमारे सामने यह भी रिपोर्ट थी कि 6 दिसम्बर,1992 को 3 लाख से ज्यादा कर सेवक अयोध्या नगरी पहुंच चुके थे. उनको रोकने के लिए गोली चलाना कोई विकल्प नहीं था. फिर मैंने खुद गोली नहीं चलाने का आदेश दिया. मैं नरसंहार के पक्ष में नहीं था. कितने लोग मरते, इसका अंदाजा नहीं था. पूरे देश में हिंसा की आग उठती.
इसलिए आज मेरी भूमिका पर जब सवाल उठाए जाते हैं तो मैंने इतना ही कहता हूं कि कार सेवकों पर गोली नहीं चलाने का आदेश देने का मलाल मुझे न कल था, न आज है.
ढांचा गिरने के साथ ही राम मंदिर के निर्माण कि भूमिका तैयार हो गई थी. मुझे सरकार जाने का मलाल न तो पहले था, न आज है. मेरी ही नहीं, आज देश के करोड़ों लोगों की आकांक्षा पूरी हो गई.
अब जब राम मंदिर बन रहा है, मैं यही चाहता हूं कि अब राम मंदिर के साथ साथ राष्ट्रमंदिर भी बने, देश की आर्थिक स्थिति भी सुधरे और एक मजबूत भारत बने.