लखनऊ : उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के डॉ. कफील खान ने योगी आदित्यनाथ सरकार के खिलाफ अपनी लड़ाई को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा दिया है. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सीएए के विरोध में देश विरोधी भाषण देने के मामले में रासुका के तहत छह महीने तक जेल में बंद रहे डॉ. कफील खान को हाल ही में जेल से रिहा किया गया है और वह जयपुर में रह रहे हैं.
खान ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (यूएनएसआरसी) को एक पत्र लिखकर भारत में अंतरराष्ट्रीय मानव सुरक्षा मानकों के व्यापक उल्लंघन और असहमति की आवाज को दबाने के लिए एनएसए और यूएपीए जैसे सख्त कानूनों के दुरुपयोग किए जाने की बात कही है.
अपने पत्र में खान ने संयुक्त राष्ट्र के इस निकाय को शांतिपूर्ण तरीके से सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने वाले कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किए जाने के बाद उनके मानवाधिकारों की रक्षा करने के लिए भारत सरकार से आग्रह करने के मसले पर धन्यवाद दिया और यह भी कहा कि सरकार ने उनकी अपील नहीं सुनी.
खान ने लिखा मानव अधिकार के रक्षकों के खिलाफ पुलिस शक्तियों का उपयोग करते हुए आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा कानूनों के तहत आरोप लगाए जा रहे हैं. इससे भारत का गरीब और हाशिए पर रहने वाला समुदाय प्रभावित होगा.
बता दें कि 26 जून को संयुक्त राष्ट्र के निकाय ने कफील खान और शरजील इमाम समेत अन्य लोगों पर लगाए गए 11 मामलों का उल्लेख करते हुए भारत सरकार को लिखा था मानवाधिकारों के उल्लंघन के गंभीर आरोप, जिनमें से कई गिरफ्तारी के दौरान यातना और दुर्व्यवहार करने के हैं.
जेल में बिताए दिनों के बारे में खान ने लिखा मुझे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया और कई दिनों तक भोजन-पानी से भी वंचित रखा गया और क्षमता से अधिक कैदियों वाली मथुरा जेल में सात महीने की कैद के दौरान मुझसे अमानवीय व्यवहार किया गया. सौभाग्य से, हाई कोर्ट ने मुझ पर लगाए गए एनएसए और तीन एक्सटेंशन को खारिज कर दिया.
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इसके अलावा खान ने अपने पत्र में 10 अगस्त, 2017 को गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी के कारण कई बच्चों की जान जाने के मामले का भी उल्लेख किया.
उच्च न्यायालय ने 25 अप्रैल, 2018 के अपने आदेश में कहा था कि उसके खिलाफ चिकित्सा लापरवाही का कोई सबूत नहीं मिला और वह ऑक्सीजन की टेंडर प्रक्रिया में भी शामिल नहीं था, हालांकि खान अपनी नौकरी से अब भी निलंबित हैं.