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बीजेपी में जाने के बाद अकेले पड़े सिंधिया, दांव पर लगी साख

28 सीटों पर होने वाले विधानसभा उपचुनाव में भाजपा की राह में उसके अपने कांटा न बन जाएं. खासकर सिंधिया समर्थक मंत्रियों वाली सीटों पर ऐसे हालात दिख रहे हैं. बीजेपी इस आशंका के साथ डैमेज कंट्रोल में जुट गई है. इनमें से कुछ नेताओं को भाजपा फौरी तौर पर साध चुकी है, तो कुछ अब भी रूठे हुए हैं. माना जा रहा है कि सिंधिया बीजेपी में जाने के बाद अकेले पड़ गए हैं. देखिए ये स्पेशल रिपोर्ट..

अकेले पड़े सिंधिया
अकेले पड़े सिंधिया
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Published : Oct 6, 2020, 10:42 PM IST

भोपाल : मध्य प्रदेश की सभी 28 सीटों पर होने वाले उपचुनाव की तारीखों का एलान कर दिया गया है. प्रदेश की इन सीटों पर 3 नवंबर को वोटिंग होगी और 10 नवंबर को नतीजे आएंगे. 28 विधानसभा सीटों में से ज्यादातर सीटों पर बीजेपी को अपनों की बगावत का डर सता रहा है. खासकर सिंधिया समर्थक मंत्रियों वाली सीटों पर ऐसे हालात दिख रहे हैं.

माना जा रहा है कि सिंधिया बीजेपी में जाने के बाद अकेले पड़ गए हैं. लिहाजा ग्वालियर चंबल अंचल में उन्हें अपना वजूद कामय रखने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है. सियासी गलियारों में चर्चा जोरों पर है कि बीजेपी में जाने के बाद सिंधिया को बीजेपी को स्थानीय स्तर के बड़े नेता स्वीकार नहीं कर रहे हैं. यही वजह है कि चुनाव प्रचार के दौरान भी सिंधिया को बीजेपी के बड़े नेताओं का साथ नहीं मिला. केवल सीएम शिवराज और नरेंद्र सिंह तोमर उनके साथ चुनावी सभा के मंचों पर नजर आए हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि सिंधिया अकेले पड़ गए हैं और उन्हें अपने समर्थक मंत्रियों और नेताओं को जिताना किसी चुनौती से कम नहीं है.

बीजेपी में जाने के बाद अकेले पड़े सिंधिया.

चंबल अंचल में सिंधिया की साख दांव पर

मध्य प्रदेश का यह उपचुनाव सबसे खास है, क्योंकि इस बार एक साथ 28 सीटों पर उपचुनाव होंगे. 28 में से 16 सीटें ग्वालियर चबंल अंचल की हैं. इन सीटों पर कांग्रेस से बीजेपी में गए ज्योतिरादित्य सिंधिया की साख दांव पर लगी है. चंबल की 7 विधानसभा सीटों पर सिंधिया समर्थक तीन मंत्री चुनावी मैदान में उतरने जा रहे हैं, बीजेपी के कुछ वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री इन मंत्रियों का खेल बिगाड़ सकते हैं.

डैमेज कंट्रोल में जुटी पार्टी

2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के जिन नेताओं ने बीजेपी के दिग्गज नेताओं को पटखनी देते हुए विजय हासिल की थी. ऐसे में इस बार ये सभी नेता बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं और बीजेपी के पूर्व मंत्रियों का उन्हें साथ नहीं मिल रहा है. यही वजह है कि बीजेपी को भीतरघात का डर भी सता रहा है. हालांकि, पार्टी डैमेज कंट्रोल में जुटी है.

बीजेपी-कांग्रेस के अपने-अपने दावे

बीजेपी का कहना है कि पार्टी के लिए हर एक चुनाव महत्वपूर्ण होता है, कठिन होता है और पार्टी की साख भी लगी होती है. ऐसे में आने वाले विधानसभा उपचुनाव में भी पार्टी की साख का सवाल है और स्वाभाविक है. ज्योतिरादित्य सिंधिया के क्षेत्र में चुनाव है तो ऐसे में कहीं ना कहीं मेहनत सभी को मिलकर करनी पड़ेगी, पार्टी अपने स्तर से मेहनत करेगी और ज्योतिरादित्य सिंधिया भी अपने स्तर पर मेहनत करेंगे. कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी को उनके लोग नुकसान करें या न करें, लेकिन इस बार क्षेत्र की जनता के साथ जिस तरीके से इन नेताओं ने छलावा किया है, जनता जरूर आइना दिखा देगी.

क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार

राजनैतिक विश्लेषक शिव अनुराग पटेरिया कहते हैं कि चंबल की सात सीटों पर तीन मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. कल तक वो जिनके साथ थे अब वो उनके खिलाफ हैं. गिर्राज दंडोतिया, एंदल सिंह कंसाना, ओपी एस भदौरिया ये नेता शिवराज सरकार में मंत्री हैं. इसलिए ये सिर्फ विधायकी के लिए चुनाव नहीं लड़ रहे ये मंत्री पद बचाने के लिए मैदान में होंगे. ऐसे में बीजेपी नेताओं की नाराजगी और कांग्रेस प्रत्याशी को चुनाव में मात देने की चुनौती इनके सामने रहेगी और सिंधिया की साख भी दांव पर रहेगी.

क्यों बनी अंदरूनी विवाद की स्थिति

कमलनाथ सरकार गिराकर बीजेपी भले ही सत्ता में वापसी कर चुकी हो, लेकिन उपचुनाव की राह बीजेपी के लिए बहुत कठिन नजर आ रही है. इसकी सबसे बड़ी वजह अंदरूनी विरोध बतायी जा रही है, विरोध भी उन नेताओं में है, जो सालों से अपनी-अपनी विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, लेकिन अब जिन नेताओं से ये नेता 2018 विधानसभा चुनाव में मात खा चुके हैं आज उन्हीं के लिए इन नेताओं को वोट मांगने के लिए जाना पड़ रहा है. ऐसे में कई नेता खुलकर विरोध नहीं कर पा रहे है, लेकिन बीजेपी के ये पुराने नेता नहीं चाहते कि उनके नए साथी चुनावी खेल में अपना जीत का परचम लहराएं.

सिंधिया कर रहे कड़ी मेहनत

3 नवंबर को इन विधानसभा सीटों पर मतदान होना है और इन विधानसभा उपचुनाव में सबसे बड़ी भूमिका राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की होगी. सिंधिया के साथ ही सभी 22 विधायक कांग्रेस का दामन छोड़ बीजेपी में शामिल हुए थे. ऐसे में इन सीटों पर ज्योतिरादित्य पूरा दम लगा रहे हैं, हाल ही में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के साथ सिंधिया इन विधानसभा क्षेत्रों के दौरे कर चुके हैं और बीजेपी के उम्मीदवारों के पक्ष में वोट मांग चुके हैं, क्योंकि तीन मंत्रियों के साथ सिंधिया की साख भी दांव पर है.

वो सीटें, जहां अपनों की नाराजगी पड़ सकती है भारी

  • दिमनीः इस सीट से पिछले चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर गिर्राज दंडोतिया चुनाव जीते थे, जो वर्तमान में प्रदेश सरकार में मंत्री हैं. इस सीट से बीजेपी के दूसरे प्रवल दावेदार शिवमंगल सिंह तोमर हैं, जिनका क्षेत्र में अपना प्रभाव है और अब उपचुनाव में कहीं ना कहीं वो गिर्राज दंडोतिया को अंदरूनी तौर से कमजोर करेंगे. यदि पार्टी स्थिति को नहीं संभाल पाती तो गिर्राज दंडोतिया की नाव भी डूब सकती है.
  • सुमावलीः इस सीट की बात करें तो यहां से पिछला चुनाव कांग्रेस की तरफ से एंदल सिंह कंसाना चुनाव जीते थे, जो अब भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के बाद मंत्री हैं, इस बार उनकी राह भी कठिन नजर आ रही है, क्योंकि बीजेपी के ही पूर्व विधायक गजराज सिंह यहां से अपनी दावेदारी जता रहे हैं. ऐसे में मंत्री एंदल सिंह कंसाना की नैया भी डगमगा सकती है.
  • मेहगांवः इस सीट की बात करें पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ से ओपी एस भदौरिया मैदान में थे और और बीजेपी के मुकेश चतुर्वेदी को चुनाव हराया था. अब ओपी एस भदौरिया बीजेपी में है और सरकार में मंत्री भी, तो ऐसे जाहिर ओपीएस भदौरिया यहां से प्रत्याशी होंगे. हालांकि ओपीएस भदौरिया का ये सफर आसान नहीं होगा, क्योंकि बीजेपी के पूर्व विधायक मुकेश चतुर्वेदी भी अंदरुनी रूप से नाराज हैं और उनके भाई चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी वापस कांग्रेस में जा चुके हैं. ऐसे में यदि कांग्रेस चौधरी राकेश सिंह को अपना उम्मीदवार बनाती है तो इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि मुकेश चतुर्वेदी भी अपने भाई के लिए काम करेंगे. ऐसे में मंत्री ओएस भदौरिया की नाव भी उपचुनाव में डगमगा सकती है.
  • मुरैनाः 2013 में पूर्व आईपीएस अधिकारी रुस्तम सिंह इस सीट से विधायक थे और शिवराज सरकार में मंत्री भी रहे, लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में रघुराज सिंह कंसाना ने उन्हें हरा दिया. अब रघुराज कंसाना भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो चुके हैं और मुरैना से सीट से संभावित प्रत्याशी के तौर पर उनका नाम है. ऐसे में रुस्तम सिंह का राजनीतिक भविष्य खतरे में है और उनकी नाराजगी भी जगजाहिर है. ऐसे में देखना यह होगा कि बीजेपी रुस्तम सिंह के विरोध को कैसे संभाल पाती है.
  • अंबाहःअंबाह सीट की बात करें तो 2018 के विधानसभा चुनाव में कमलेश जाटव इस सीट से जीते थे और फिलहाल उनके सामने कांग्रेस की तरफ से सत्यप्रकाश सखरवार हैं, जो पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार थे.
  • जौरा सीटः इस सीट पर 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बनवारी लाल शर्मा ने जीत हासिल की थी. हालांकि, उनके निधन के बाद अभी सीट खाली हुई है. ऐसे में इस बीजेपी की तरफ से इस सीट पर अलग-अलग दावेदार सामने आ रहे हैं, जिसमें गिरिराज त्यागी और सोहनलाल शामिल हैं तो वहीं पिछला चुनाव हारे सूबेदार सिंह भी प्रमुख दावेदार के तौर पर हैं. हालांकि इस क्षेत्र के कई कार्यकर्ताओं ने भोपाल आकर सूबेदार सिंह को टिकट नहीं देने की मांग की थी.

भोपाल : मध्य प्रदेश की सभी 28 सीटों पर होने वाले उपचुनाव की तारीखों का एलान कर दिया गया है. प्रदेश की इन सीटों पर 3 नवंबर को वोटिंग होगी और 10 नवंबर को नतीजे आएंगे. 28 विधानसभा सीटों में से ज्यादातर सीटों पर बीजेपी को अपनों की बगावत का डर सता रहा है. खासकर सिंधिया समर्थक मंत्रियों वाली सीटों पर ऐसे हालात दिख रहे हैं.

माना जा रहा है कि सिंधिया बीजेपी में जाने के बाद अकेले पड़ गए हैं. लिहाजा ग्वालियर चंबल अंचल में उन्हें अपना वजूद कामय रखने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है. सियासी गलियारों में चर्चा जोरों पर है कि बीजेपी में जाने के बाद सिंधिया को बीजेपी को स्थानीय स्तर के बड़े नेता स्वीकार नहीं कर रहे हैं. यही वजह है कि चुनाव प्रचार के दौरान भी सिंधिया को बीजेपी के बड़े नेताओं का साथ नहीं मिला. केवल सीएम शिवराज और नरेंद्र सिंह तोमर उनके साथ चुनावी सभा के मंचों पर नजर आए हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि सिंधिया अकेले पड़ गए हैं और उन्हें अपने समर्थक मंत्रियों और नेताओं को जिताना किसी चुनौती से कम नहीं है.

बीजेपी में जाने के बाद अकेले पड़े सिंधिया.

चंबल अंचल में सिंधिया की साख दांव पर

मध्य प्रदेश का यह उपचुनाव सबसे खास है, क्योंकि इस बार एक साथ 28 सीटों पर उपचुनाव होंगे. 28 में से 16 सीटें ग्वालियर चबंल अंचल की हैं. इन सीटों पर कांग्रेस से बीजेपी में गए ज्योतिरादित्य सिंधिया की साख दांव पर लगी है. चंबल की 7 विधानसभा सीटों पर सिंधिया समर्थक तीन मंत्री चुनावी मैदान में उतरने जा रहे हैं, बीजेपी के कुछ वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री इन मंत्रियों का खेल बिगाड़ सकते हैं.

डैमेज कंट्रोल में जुटी पार्टी

2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के जिन नेताओं ने बीजेपी के दिग्गज नेताओं को पटखनी देते हुए विजय हासिल की थी. ऐसे में इस बार ये सभी नेता बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं और बीजेपी के पूर्व मंत्रियों का उन्हें साथ नहीं मिल रहा है. यही वजह है कि बीजेपी को भीतरघात का डर भी सता रहा है. हालांकि, पार्टी डैमेज कंट्रोल में जुटी है.

बीजेपी-कांग्रेस के अपने-अपने दावे

बीजेपी का कहना है कि पार्टी के लिए हर एक चुनाव महत्वपूर्ण होता है, कठिन होता है और पार्टी की साख भी लगी होती है. ऐसे में आने वाले विधानसभा उपचुनाव में भी पार्टी की साख का सवाल है और स्वाभाविक है. ज्योतिरादित्य सिंधिया के क्षेत्र में चुनाव है तो ऐसे में कहीं ना कहीं मेहनत सभी को मिलकर करनी पड़ेगी, पार्टी अपने स्तर से मेहनत करेगी और ज्योतिरादित्य सिंधिया भी अपने स्तर पर मेहनत करेंगे. कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी को उनके लोग नुकसान करें या न करें, लेकिन इस बार क्षेत्र की जनता के साथ जिस तरीके से इन नेताओं ने छलावा किया है, जनता जरूर आइना दिखा देगी.

क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार

राजनैतिक विश्लेषक शिव अनुराग पटेरिया कहते हैं कि चंबल की सात सीटों पर तीन मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. कल तक वो जिनके साथ थे अब वो उनके खिलाफ हैं. गिर्राज दंडोतिया, एंदल सिंह कंसाना, ओपी एस भदौरिया ये नेता शिवराज सरकार में मंत्री हैं. इसलिए ये सिर्फ विधायकी के लिए चुनाव नहीं लड़ रहे ये मंत्री पद बचाने के लिए मैदान में होंगे. ऐसे में बीजेपी नेताओं की नाराजगी और कांग्रेस प्रत्याशी को चुनाव में मात देने की चुनौती इनके सामने रहेगी और सिंधिया की साख भी दांव पर रहेगी.

क्यों बनी अंदरूनी विवाद की स्थिति

कमलनाथ सरकार गिराकर बीजेपी भले ही सत्ता में वापसी कर चुकी हो, लेकिन उपचुनाव की राह बीजेपी के लिए बहुत कठिन नजर आ रही है. इसकी सबसे बड़ी वजह अंदरूनी विरोध बतायी जा रही है, विरोध भी उन नेताओं में है, जो सालों से अपनी-अपनी विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, लेकिन अब जिन नेताओं से ये नेता 2018 विधानसभा चुनाव में मात खा चुके हैं आज उन्हीं के लिए इन नेताओं को वोट मांगने के लिए जाना पड़ रहा है. ऐसे में कई नेता खुलकर विरोध नहीं कर पा रहे है, लेकिन बीजेपी के ये पुराने नेता नहीं चाहते कि उनके नए साथी चुनावी खेल में अपना जीत का परचम लहराएं.

सिंधिया कर रहे कड़ी मेहनत

3 नवंबर को इन विधानसभा सीटों पर मतदान होना है और इन विधानसभा उपचुनाव में सबसे बड़ी भूमिका राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की होगी. सिंधिया के साथ ही सभी 22 विधायक कांग्रेस का दामन छोड़ बीजेपी में शामिल हुए थे. ऐसे में इन सीटों पर ज्योतिरादित्य पूरा दम लगा रहे हैं, हाल ही में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के साथ सिंधिया इन विधानसभा क्षेत्रों के दौरे कर चुके हैं और बीजेपी के उम्मीदवारों के पक्ष में वोट मांग चुके हैं, क्योंकि तीन मंत्रियों के साथ सिंधिया की साख भी दांव पर है.

वो सीटें, जहां अपनों की नाराजगी पड़ सकती है भारी

  • दिमनीः इस सीट से पिछले चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर गिर्राज दंडोतिया चुनाव जीते थे, जो वर्तमान में प्रदेश सरकार में मंत्री हैं. इस सीट से बीजेपी के दूसरे प्रवल दावेदार शिवमंगल सिंह तोमर हैं, जिनका क्षेत्र में अपना प्रभाव है और अब उपचुनाव में कहीं ना कहीं वो गिर्राज दंडोतिया को अंदरूनी तौर से कमजोर करेंगे. यदि पार्टी स्थिति को नहीं संभाल पाती तो गिर्राज दंडोतिया की नाव भी डूब सकती है.
  • सुमावलीः इस सीट की बात करें तो यहां से पिछला चुनाव कांग्रेस की तरफ से एंदल सिंह कंसाना चुनाव जीते थे, जो अब भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के बाद मंत्री हैं, इस बार उनकी राह भी कठिन नजर आ रही है, क्योंकि बीजेपी के ही पूर्व विधायक गजराज सिंह यहां से अपनी दावेदारी जता रहे हैं. ऐसे में मंत्री एंदल सिंह कंसाना की नैया भी डगमगा सकती है.
  • मेहगांवः इस सीट की बात करें पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ से ओपी एस भदौरिया मैदान में थे और और बीजेपी के मुकेश चतुर्वेदी को चुनाव हराया था. अब ओपी एस भदौरिया बीजेपी में है और सरकार में मंत्री भी, तो ऐसे जाहिर ओपीएस भदौरिया यहां से प्रत्याशी होंगे. हालांकि ओपीएस भदौरिया का ये सफर आसान नहीं होगा, क्योंकि बीजेपी के पूर्व विधायक मुकेश चतुर्वेदी भी अंदरुनी रूप से नाराज हैं और उनके भाई चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी वापस कांग्रेस में जा चुके हैं. ऐसे में यदि कांग्रेस चौधरी राकेश सिंह को अपना उम्मीदवार बनाती है तो इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि मुकेश चतुर्वेदी भी अपने भाई के लिए काम करेंगे. ऐसे में मंत्री ओएस भदौरिया की नाव भी उपचुनाव में डगमगा सकती है.
  • मुरैनाः 2013 में पूर्व आईपीएस अधिकारी रुस्तम सिंह इस सीट से विधायक थे और शिवराज सरकार में मंत्री भी रहे, लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में रघुराज सिंह कंसाना ने उन्हें हरा दिया. अब रघुराज कंसाना भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो चुके हैं और मुरैना से सीट से संभावित प्रत्याशी के तौर पर उनका नाम है. ऐसे में रुस्तम सिंह का राजनीतिक भविष्य खतरे में है और उनकी नाराजगी भी जगजाहिर है. ऐसे में देखना यह होगा कि बीजेपी रुस्तम सिंह के विरोध को कैसे संभाल पाती है.
  • अंबाहःअंबाह सीट की बात करें तो 2018 के विधानसभा चुनाव में कमलेश जाटव इस सीट से जीते थे और फिलहाल उनके सामने कांग्रेस की तरफ से सत्यप्रकाश सखरवार हैं, जो पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार थे.
  • जौरा सीटः इस सीट पर 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बनवारी लाल शर्मा ने जीत हासिल की थी. हालांकि, उनके निधन के बाद अभी सीट खाली हुई है. ऐसे में इस बीजेपी की तरफ से इस सीट पर अलग-अलग दावेदार सामने आ रहे हैं, जिसमें गिरिराज त्यागी और सोहनलाल शामिल हैं तो वहीं पिछला चुनाव हारे सूबेदार सिंह भी प्रमुख दावेदार के तौर पर हैं. हालांकि इस क्षेत्र के कई कार्यकर्ताओं ने भोपाल आकर सूबेदार सिंह को टिकट नहीं देने की मांग की थी.
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