श्रीनगर : केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) प्रशासन ने जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में एक हलफनामा दायर कर 'रोशनी अधिनियम' को रद्द करने के अपने फैसले को संशोधित करने की मांग की है, जिसमें दावा किया गया है कि यह आदेश बड़ी संख्या में आम आबादी को 'अनजाने में' प्रभावित कर सकता है. यूटी प्रशासन ने कहा कि अधिनियम से लाभान्वित होने वाले आम लोगों और प्रभावशाली लोगों के बीच एक अंतर किया जाना चाहिए.
दरअसल, नौ अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने जम्मू और कश्मीर राज्य भूमि व्यवसायियों का स्वामित्व का मामला (Vesting of Ownership to the Occupants) अधिनियम 2001 घोषित किया, जिसे आमतौर पर 2001 में डॉ. फारूक अब्दुल्ला की सरकार द्वारा पारित 'रोशनी अधिनियम' के रूप में जाना जाता है.
राज्य सरकारों ने बढ़ाई थी तारीख
रोशनी अधिनियम के तहत राज्य की भूमि पर अतिक्रमण को नियमित या कानूनी रूप से बाजार की दरों पर भुगतान के खिलाफ रहने वालों को हस्तांतरित किया जाना था. अधिनियम ने अतिक्रमण के लिए 1990 को कट-ऑफ ईयर के रूप में निर्धारित किया था, लेकिन बाद में पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और कांग्रेस के तहत राज्य सरकारों ने कट-ऑफ तारीख को बढ़ाकर 2007 कर दिया था.
इस योजना के पीछे मुख्य विचार बिजली और इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के लिए 25,000 करोड़ रुपये जुटाना था.
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अदालत के फैसले के बाद अक्टूबर में प्रशासन ने विवादास्पद अधिनियम के तहत सभी भूमि हस्तांतरण को रद्द कर दिया और लाभार्थियों की सूची समेत रोशनी और गैर-रोशनी सूची प्रकाशित करना शुरू कर दिया.
अदालत के समक्ष प्रशासन ने पेश किया था ये आंकड़ा
प्रशासन ने अदालत के समक्ष पेश किया था कि कुल 6,04,602 कनाल (75,575 एकड़) राज्य भूमि को नियमित किया गया था और कब्जे में स्थानांतरित कर दिया गया था. इसमें जम्मू में 5,71,210 कनाल (71,401 एकड़) और कश्मीर क्षेत्र में 33,392 कनाल (4,174 एकड़) शामिल थे.
प्रशासन के एक सूत्र ने ईटीवी भारत को दी जानकारी
इस बीच प्रशासन के एक सूत्र ने ईटीवी भारत को बताया कि नियमित रूप से जमीन का अधिकांश हिस्सा जम्मू में था. अधिनियम के परिमार्जन के संबंध में क्षेत्र से प्रतिक्रिया सकारात्मक नहीं थी, लेकिन चिंताजनक थी.
सूत्र ने कहा, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग इस राय के साथ हैं कि अधिनियम को रद्द करने से उन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और वे एकतरफा नुकसान का सामना करेंगे. यह चिंताजनक था. यह विचार केवल उन गलत कामों के लिए जिम्मेदार था, जो उनके गलत कामों के लिए जिम्मेदार थे.
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हलफनामे में ये था खास विषय
सरकार ने हलफनामे में कहा, ऐसे लोगों के बीच अंतर करने की जरूरत है जो या तो भूमिहीन किसान हो या तो एक से अधिक आवास वाले 'व्यक्तिगत उपयोग में सबसे अधिक आवास वाले' और 'भूमि पर कब्जा करने वाले अमीर' समृद्ध अन्य हों.
दायर हलफनामे कही गई ये बात
हम माननीय न्यायालय के उस तरह के नोटिस को इस तथ्य पर लाना चाहेंगे कि बड़ी संख्या में आम लोग (अनजाने में) भुगते होंगे. इसमें भूमिहीन किसान और वे व्यक्ति (जो स्वयं छोटे क्षेत्रों में निवास कर रहे हैं) शामिल हैं, वे दुर्भाग्य से अमीर (भूमि पर कब्जा करने वालों) के साथ जुड़े हुए हैं, जिन्होंने अब प्रावधानों के माध्यम से राज्य की भूमि पर एक वर्चस्व प्राप्त कर लिया है. अब अधिनियम को रद्द कर दिया गया.
हालांकि, इसमें यह भी कहा गया है कि इन (छतों के ऊपर अतिक्रमण करने वालों या सरकारी जमीन पर व्यावसायिक संपत्तियों का निर्माण करने वाले) लोगों को कोई राहत नहीं दी जाएगी.
सीबीआई जांच पर भी जताई चिंता
जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने सीबीआई द्वारा शुरू की गई जांच पर भी चिंता जताई है, जिसमें कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय की मंशा नहीं थी कि वह हजारों सरकारी कर्मचारियों की जांच कर सके, जिन्होंने बिना किसी गलत इरादे के अधिनियम को लागू किया था,
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दावा किया गया है कि जांच में केवल धोखाधड़ी के माध्यम से सरकारी भूमि के अतिक्रमण पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए. सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि सीबीआई को राज्य को धोखा देने वाले प्रभावशाली और शक्तिशाली लोगों पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देने के लिए इसे पेश किया गया है.