नई दिल्ली : गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के चलते बीजिंग के साथ भारत के संबंधों में आई और अधिक तल्खी के बीच विदेश मंत्री एस जयशंकर मंगलवार को अपने चीनी और रूसी समकक्षों के साथ रूस-भारत-चीन (आरआईसी) त्रिपक्षीय डिजिटल सम्मेलन में शामिल होंगे.
पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून को भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुए हिंसक संघर्ष के बाद टकराव और बढ़ने की आशंकाओं के बीच माना जाता है कि रूस ने दोनों देशों से संपर्क किया है और सीमा विवाद का समाधान वार्ता के जरिए करने का आग्रह किया है.
घटनाक्रमों की जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि भारत पहले इस त्रिपक्षीय आरआईसी बैठक में शामिल होने को लेकर अनिच्छुक था, लेकिन सम्मेलन के मेजबान रूस के आग्रह के बाद वह इसमें शामिल होने पर सहमत हो गया.
इस बीच, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वितीय विश्वयुद्ध में रूसी लोगों की विजय की 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में मॉस्को में हो रही सैन्य परेड में शामिल होने के लिए सोमवार को रूस की तीन दिवसीय यात्रा पर रवाना हो गए.
अधिकारियों ने कहा कि सिंह रूस के शीर्ष सैन्य नेतृत्व के साथ सिलसिलेवार बैठकें करेंगे. चीन के एक वरिष्ठ नेता के भी मॉस्को में परेड में शामिल होने की संभावना है.
गलवान घाटी में 15 जून को चीनी सैनिकों के साथ हुए हिंसक संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए थे. दोनों देशों के बीच 45 साल के बाद यह सबसे बड़ी झड़प थी.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 17 जून को चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ टेलीफोन पर हुई बातचीत में कहा था कि यह चीनी सेना की पूर्व नियोजित कार्रवाई थी और इसका द्विपक्षीय संबंधों पर गंभीर असर पड़ेगा.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने बृहस्पतिवार को पुष्टि की थी कि जयशंकर आरआईसी बैठक में शामिल होंगे.
उन्होंने कहा था कि बैठक में कोविड-19 महामारी तथा वैश्विक सुरक्षा और वित्तीय स्थिरता संबंधी चुनौतियों से जुड़े मुद्दों पर चर्चा होगी.
सूत्रों ने संधि का हवाला देते हुए कहा कि ऐसी संभावना नहीं है कि बैठक में भारत और चीन के बीच गतिरोध से जुड़ा मुद्दा उठेगा क्योंकि त्रिपक्षीय बैठक में आम तौर पर द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा नहीं होती.
पिछले सप्ताह एक वरिष्ठ राजनयिक ने पीटीआई-भाषा से कहा था, 'तीनों देशों के लिए यह एक अच्छा अवसर होगा कि वे क्षेत्रीय स्थिरिता के लिए योगदान और समर्थन देने के लिए हमारे विचारों में तालमेल बनाने के क्रम में एक साथ आएंगे और क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा करेंगे.'
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रूस पहले ही कह चुका है कि भारत और चीन को सीमा विवाद का समाधान वार्ता के माध्यम से करना चाहिए और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए दोनों देशों के बीच रचनात्मक संबंध महत्वपूर्ण हैं.
उम्मीद है कि तीनों विदेश मंत्री अमेरिका द्वारा फरवरी में तालिबान के साथ शांति समझौता किए जाने के बाद अफगानिस्तान में उत्पन्न हो रही राजनीतिक स्थिति पर भी गहन चर्चा करेंगे.
आरआईसी विदेश मंत्रियों की बैठक में भारत, ईरान, अफगानिस्तान और मध्य एशिया को यूरोप से जोड़ने वाले 7,200 किलोमीटर लंबे अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (आईएनएसटीसी) के क्रियान्वयन सहित क्षेत्र की महत्वपूर्ण कनेक्टिविटी परियोजनाओं पर भी चर्चा होने की उम्मीद है.