हैदराबाद : हर साल 12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है. यह दिन विश्वभर की नर्सों को समर्पित है. नर्सेज दुनियाभर में अलग-अलग बीमारियों से पीड़ित लोगों की मदद करती हैं और उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूती देती हैं. दिन-रात काम करने वाली यह नर्सेज मरीजों को जल्द ठीक करने और उनकी हर तरह से देखभाल करने का काम करती हैं.
बता दें इन्हें नाइटिंगल ऑफ प्लोरेंस (nightingale of florence) कहा जाता है.
नर्सिंग का इतिहास
17वीं शताब्दी तक हर गांव में माताओं और शिशुओं की देखभाल के लिए एक दाई हुआ करती थी. बात अगर सैन्य नर्सिंग की करें, तो यह पुर्तगालियों द्वारा पेश किया गया था. यह आधुनिक तरह की सबसे पुरानी नर्सिंग थी.
1871 में, मद्रास के सरकारी जनरल अस्पताल को चार छात्रों के साथ दाइयों के लिए नर्सिंग के पहले स्कूल के साथ शुरू किया गया था.18वीं और 19वीं शताब्दी के बीच भारत के विभिन्न राज्यों में कई नर्सिंग स्कूल शुरू किए गए थे.
कोरोना : एक बड़ी चुनौती
इस बार नर्सेज के लिए चुनौती बड़ी है. घर परिवार से दूर रहकर यह नर्सें दुनिया के कोने-कोने में आम बीमारियों के अलावा कोरोना जैसी महामारी से पीड़ित मरीजों की सेवा में जुटी हुई हैं. दुनियाभर में फैली कोरोना महामारी के इस दौर में नर्सों की भूमिका और भी बढ़ गई है.
नाइटिंगल ऑफ प्लोरेंस का इतिहास
दरअसल नाइटिंगल ऑफ प्लोरेंस मॉर्डन नर्सिंग की फाउंडर थीं. उन्होंने क्रीमिया के युद्ध के दौरान कई महिलाओं को नर्स की ट्रेनिंग दी थी और कई सैनिकों का इलाज भी किया था. उन्होंने नर्सिंग को एक पेशा बनाया और वह विक्टोरियन संस्कृति का एक चेहरा बनीं. विशेष रूप से वह 'लेडी विद द लैंप' (Lady With the Lamp) के नाम से जानी गईं क्योंकि वह रात के वक्त कई सैनिकों का इलाज किया करती थीं. इन्हीं को याद करते हुए नर्सेज को नाइटिंगल ऑफ प्लोरेंस कहा जाता है.
क्या कहता है ड्ब्ल्यूएचओ
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी नर्सों की भूमिका को अहम बताते हुए कहा है कि कुल मिलाकर एक मरीज को दी जाने वाली देखभाल की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने, संक्रमण को रोकने इसे नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाती हैं.