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जानें क्या है अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस का ऐतिहासिक महत्व

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 23 सितंबर 2018 को सांकेतिक भाषा दिवस घोषित किया था. सांकेतिक भाषाओं (Sign Languages) के अंतर्राष्ट्रीय दिवस का उद्देश्य सभी बधिर और सांकेतिक भाषा के सहारे आगे बढ़ने वाले लोगों की भाषाई पहचान और सांस्कृतिक विविधता का समर्थन करना और उनकी रक्षा करना है. इससे जुड़ी सेवाओं को जल्द मूक-बधिर लोगों तक पहुंचाने पर भी जोर दिया गया.

Sign Languages
सांकेतिक भाषा
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Published : Sep 23, 2020, 12:54 PM IST

Updated : Sep 23, 2020, 1:03 PM IST

हैदराबाद : अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस, जो लोग सुन नहीं सकते उन लोगों के मानवाधिकारों की पूर्ण प्राप्ति में सांकेतिक भाषा के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने का इरादा रखता है. सांकेतिक भाषा के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 23 सितंबर 2018 को सांकेतिक भाषा दिवस घोषित किया था. 2018 में ही पहली बार ही सांकेतिक भाषा दिवस मनाया गया. इस दिन को मनाए जाने का प्रस्ताव वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ डेफ (डब्ल्यूआरडी) ने रखा था.

2020

2020 में वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ डेफ एक ग्लोबल लीडर्स चैलेंज जारी कर रहा है. इसका उद्देश्य स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक नेताओं द्वारा प्रत्येक देश में बधिर लोगों के राष्ट्रीय संघों के साथ-साथ अन्य बधिरों के नेतृत्व वाले संगठनों के साथ सांकेतिक भाषाओं के उपयोग को बढ़ावा देना होगा.

पृष्ठभूमि

23 सितंबर 1951 में विश्व बधिर संघ (डब्ल्यूआरडी) की स्थापना की गई थी इसलिए भी अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस 23 सितंबर को मनाया जाता है. संकल्प ए/आरईएस/72/161 संयुक्त राष्ट्र में एंटीगुआ और बारबुडा के स्थायी मिशन द्वारा प्रायोजित किया गया था. यह संयुक्त राष्ट्र के 97 सदस्य राज्यों द्वारा सह-प्रायोजित था और 19 दिसंबर 2017 को इसे अपनाया गया था.

सांकेतिक भाषाएं (Sign Languages)

सांकेतिक भाषा पूरी तरह से प्राकृतिक भाषा है, संरचनात्मक रूप से बोली जाने वाली भाषाओं से अलग है. एक अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा भी है, जिसका उपयोग अंतरराष्ट्रीय बैठकों में, अनौपचारिक रूप से यात्रा और समाजीकरण करते समय बधिर लोगों द्वारा किया जाता है. इसे सांकेतिक भाषा का एक प्रकार माना जाता है, जो प्राकृतिक सांकेतिक भाषाओं की तरह जटिल नहीं है और इसमें सीमित शब्द होते हैं.

कन्वेंशन ऑन राइट्स ऑफ पर्सन विथ डिसेबिलिटी सांकेतिक भाषाओं के उपयोग को मान्यता और बढ़ावा देता है. यह स्पष्ट करता है कि सांकेतिक भाषाएं बोली जाने वाली भाषाओं के बराबर हैं. साथ ही संकेत भाषा की शिक्षा को सुविधाजनक बनाने और बधिर समुदाय की इस भाषा को पहचान दिलाने काम करता है.

सांकेतिक भाषा की मान्यता

संयुक्त राष्ट्र ने इस बात पर जोर दिया कि सांकेतिक भाषा पूरी तरह से विकसित भाषा हैं और इसका प्रयोग करने वाले लोगों को भाषाई अल्पसंख्यकों के रूप में माना जा सकता है, जहां वे एक राज्य की पूरी आबादी के आधे से कम हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं.

सांकेतिक भाषा का उपयोग करने वाले लोग अन्य अल्पसंख्यकों के समान ही बहिष्कर का अनुभव करते हैं क्योंकि उनकी भाषा को भाषा के रूप में उपयोग नहीं किया जाता है. बधिर लोगों की शैक्षिक आवश्यकताएं और सांकेतिक भाषाओं की मान्यता पर ध्यान केंद्रित होना चाहिए.

सांकेतिक भाषाओं का इतिहास

  • मूल अमेरिकियों ने अन्य जनजातियों के साथ बात करने और यूरोपीय लोगों के साथ व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए हाथों के इशारों का इस्तेमाल किया.
  • बेनेडिक्टाइन भिक्षुओं ने अपने दैनिक समय के मौन के दौरान संदेश देने के लिए हाथों के इशारों उपयोग किया.
  • औपचारिक सांकेतिक भाषा के निर्माण का श्रेय 16 वीं शताब्दी के स्पेनिश व्यक्ति बेनेडिक्टाइन भिक्षु पेड्रो पॉन्स डि लियोन को जाता है.
  • 1620 में जुआन पाब्लो बोनेट ने बधिर लोगों की शिक्षा पर पहला लेख प्रकाशित किया.
  • 1755 में फ्रांसीसी कैथोलिक पादरी चार्ल्स-मिशेल डी-एलपी ने बधिरों को शिक्षित करने के लिए एक नया तरीका निकाला. इसी साल पेरिस में बधिर बच्चों के लिए पहले पब्लिक स्कूल नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेफ-म्यूट्स की स्थापना हुई.

विश्व के आंकड़े

  • वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ डेफ के अनुसार दुनिया भर में लगभग 72 मिलियन लोग बधिर हैं. उनमें से 80% से अधिक विकासशील देशों में रहते हैं.
  • सामूहिक रूप से वे 300 से अधिक विभिन्न सांकेतिक भाषाओं का उपयोग करते हैं.

कोरोना काल में सांकेतिक भाषाओं का महत्व

संयुक्त राष्ट्र ने जोर दिया कि वर्तमान में महामारी के दौरान अधिकारियों को विकलांग लोगों को सार्वजनिक स्वास्थ्य जानकारी प्रदान करने के लिए साइन लैंग्वेज, कैप्शनिंग, टेक्स्ट मैसेज और रिले सेवाओं का उपयोग करना चाहिए.

भारत

2000 के दशक में भारतीय बधिर समुदाय ने इंडियन साइन लैंग्वेज (आईएसएल) शिक्षण और अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करने का सुझाव दिया. 11 वीं पंचवर्षीय योजना (2007-2012) ने स्वीकार किया कि सुनने की अक्षमता वाले लोगों की जरूरतों को अपेक्षाकृत उपेक्षित किया गया है और इसकी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक सांकेतिक भाषा अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र के विकास की परिकल्पना की गई है. वित्त मंत्री ने 2010-11 के केंद्रीय बजट भाषण में आईएसएलआरटीसी की स्थापना की घोषणा की.

2011 में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) दिल्ली के एक स्वायत्त केंद्र के रूप में भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र (ISLRTC) की स्थापना को मंजूरी दी. केंद्र की आधारशिला इग्नू परिसर में 4 अक्टूबर 2011 को रखी गई थी. 2013 में इग्नू में इस केंद्र को बंद कर दिया गया था.

20 अप्रैल 2015 के एक आदेश में मंत्रालय ने दिल्ली में अली यावर जंग नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हियरिंग हैंडीकैप्ड (AYJNIHH) के क्षेत्रीय केंद्र के साथ ISLRTC को एकीकृत करने का निर्णय लिया. हालांकि, बधिर समुदाय ने ISLRTC और AYJNIHH के अलग-अलग दृष्टिकोण और लक्ष्यों के कारण इस फैसले का विरोध किया.

मंत्रियों के साथ बैठकों और विरोध प्रदर्शन के परिणामस्वरूप केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 22 सितंबर 2015 को आयोजित एक बैठक में ISLRTC को डिपार्टमेंट ऑफ एंपावरमेंट ऑफ पर्सन्स विथ डिसएबलिटीज के तहत एक सोसायटी के रूप में स्थापित करने का अनुमोदन किया.

2011 की जनगणना के अनुसार भारत में बधिरों की कुल आबादी लगभग 50 लाख थी. बधिर समुदाय की जरूरतों को लंबे समय से नजरअंदाज किया गया है. इनके लिए प्रशिक्षण पद्धति और शिक्षण प्रणालियों पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है.

इंडियन साइन लैंग्वेज (ISL) का उपयोग पूरे भारत में बधिर समुदाय में किया जाता है लेकिन बधिर बच्चों को पढ़ाने के लिए बधिर स्कूलों में आईएसएल का उपयोग नहीं किया जाता है. स्कूलों में कोई शिक्षण सामग्री नहीं है जो सांकेतिक भाषा को शामिल करती है. बधिर बच्चों के माता-पिता सांकेतिक भाषा और इससे दूर होने वाली संचार बाधाओं के बारे में जागरूक नहीं हैं. आईएसएल इंटर्प्रेटर की उन संस्थानों और स्थानों पर एक तत्काल आवश्यकता है, जहां बधिर और बोलने वाले लोगों के बीच संचार होता है, लेकिन भारत में केवल 300 से अधिक प्रमाणित इंटर्प्रेटर हैं.

इसलिए, इन सभी जरूरतों को पूरा करने वाले एक संस्थान की आवश्यकता थी. मूक-बधिर समुदाय द्वारा लंबे संघर्ष के बाद मंत्रालय ने 28 सितंबर 2015 को नई दिल्ली में ISLRTC की स्थापना को मंजूरी दी.

एनईपी-2020

  • नई शिक्षा नीति 2020 में कहा गया है कि भारतीय साइन लैंग्वेज (ISL) को देश भर में मानकीकृत किया जाएगा. राष्ट्रीय और राज्य की पाठ्य सामग्री विकसित की जाएगी, जिसका उपयोग बधिर छात्रों द्वारा किया जाएगा.
  • इसके अलावा भारतीय साइन लैंग्वेज सिखाने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन लर्निंग और इंडियन साइन लैंग्वेज का उपयोग करके अन्य बुनियादी विषयों को सिखाने के लिए उच्च-गुणवत्ता वाले मॉड्यूल विकसित किए जाएंगे.
  • स्थानीय सांकेतिक भाषा का सम्मान किया जाएगा और इसे भी पढ़ाया जाएगा.

समस्या

  • भारतीय सांकेतिक भाषा बहुत ही वैज्ञानिक है और इसका अपना व्याकरण है, लेकिन जागरूकता की कमी के चलते कई बधिर लोगों को उन संस्थानों के बारे में भी जानकारी नहीं है, जहां वे इस भाषा को सीख सकते हैं.
  • देश में लगभग 700 स्कूल हैं जहां साइन लैंग्वेज सिखाई और पढ़ाई जाती है.
  • हमारे देश में सांकेतिक भाषा के ज्ञान की कमी के चलते बधिर लोग पढ़ाई छोड़ देते हैं और सरकारी नौकरियों में कोटा होने के बावजूद, वे इनका लाभ नहीं ले पाते हैं.

हैदराबाद : अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस, जो लोग सुन नहीं सकते उन लोगों के मानवाधिकारों की पूर्ण प्राप्ति में सांकेतिक भाषा के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने का इरादा रखता है. सांकेतिक भाषा के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 23 सितंबर 2018 को सांकेतिक भाषा दिवस घोषित किया था. 2018 में ही पहली बार ही सांकेतिक भाषा दिवस मनाया गया. इस दिन को मनाए जाने का प्रस्ताव वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ डेफ (डब्ल्यूआरडी) ने रखा था.

2020

2020 में वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ डेफ एक ग्लोबल लीडर्स चैलेंज जारी कर रहा है. इसका उद्देश्य स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक नेताओं द्वारा प्रत्येक देश में बधिर लोगों के राष्ट्रीय संघों के साथ-साथ अन्य बधिरों के नेतृत्व वाले संगठनों के साथ सांकेतिक भाषाओं के उपयोग को बढ़ावा देना होगा.

पृष्ठभूमि

23 सितंबर 1951 में विश्व बधिर संघ (डब्ल्यूआरडी) की स्थापना की गई थी इसलिए भी अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस 23 सितंबर को मनाया जाता है. संकल्प ए/आरईएस/72/161 संयुक्त राष्ट्र में एंटीगुआ और बारबुडा के स्थायी मिशन द्वारा प्रायोजित किया गया था. यह संयुक्त राष्ट्र के 97 सदस्य राज्यों द्वारा सह-प्रायोजित था और 19 दिसंबर 2017 को इसे अपनाया गया था.

सांकेतिक भाषाएं (Sign Languages)

सांकेतिक भाषा पूरी तरह से प्राकृतिक भाषा है, संरचनात्मक रूप से बोली जाने वाली भाषाओं से अलग है. एक अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा भी है, जिसका उपयोग अंतरराष्ट्रीय बैठकों में, अनौपचारिक रूप से यात्रा और समाजीकरण करते समय बधिर लोगों द्वारा किया जाता है. इसे सांकेतिक भाषा का एक प्रकार माना जाता है, जो प्राकृतिक सांकेतिक भाषाओं की तरह जटिल नहीं है और इसमें सीमित शब्द होते हैं.

कन्वेंशन ऑन राइट्स ऑफ पर्सन विथ डिसेबिलिटी सांकेतिक भाषाओं के उपयोग को मान्यता और बढ़ावा देता है. यह स्पष्ट करता है कि सांकेतिक भाषाएं बोली जाने वाली भाषाओं के बराबर हैं. साथ ही संकेत भाषा की शिक्षा को सुविधाजनक बनाने और बधिर समुदाय की इस भाषा को पहचान दिलाने काम करता है.

सांकेतिक भाषा की मान्यता

संयुक्त राष्ट्र ने इस बात पर जोर दिया कि सांकेतिक भाषा पूरी तरह से विकसित भाषा हैं और इसका प्रयोग करने वाले लोगों को भाषाई अल्पसंख्यकों के रूप में माना जा सकता है, जहां वे एक राज्य की पूरी आबादी के आधे से कम हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं.

सांकेतिक भाषा का उपयोग करने वाले लोग अन्य अल्पसंख्यकों के समान ही बहिष्कर का अनुभव करते हैं क्योंकि उनकी भाषा को भाषा के रूप में उपयोग नहीं किया जाता है. बधिर लोगों की शैक्षिक आवश्यकताएं और सांकेतिक भाषाओं की मान्यता पर ध्यान केंद्रित होना चाहिए.

सांकेतिक भाषाओं का इतिहास

  • मूल अमेरिकियों ने अन्य जनजातियों के साथ बात करने और यूरोपीय लोगों के साथ व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए हाथों के इशारों का इस्तेमाल किया.
  • बेनेडिक्टाइन भिक्षुओं ने अपने दैनिक समय के मौन के दौरान संदेश देने के लिए हाथों के इशारों उपयोग किया.
  • औपचारिक सांकेतिक भाषा के निर्माण का श्रेय 16 वीं शताब्दी के स्पेनिश व्यक्ति बेनेडिक्टाइन भिक्षु पेड्रो पॉन्स डि लियोन को जाता है.
  • 1620 में जुआन पाब्लो बोनेट ने बधिर लोगों की शिक्षा पर पहला लेख प्रकाशित किया.
  • 1755 में फ्रांसीसी कैथोलिक पादरी चार्ल्स-मिशेल डी-एलपी ने बधिरों को शिक्षित करने के लिए एक नया तरीका निकाला. इसी साल पेरिस में बधिर बच्चों के लिए पहले पब्लिक स्कूल नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेफ-म्यूट्स की स्थापना हुई.

विश्व के आंकड़े

  • वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ डेफ के अनुसार दुनिया भर में लगभग 72 मिलियन लोग बधिर हैं. उनमें से 80% से अधिक विकासशील देशों में रहते हैं.
  • सामूहिक रूप से वे 300 से अधिक विभिन्न सांकेतिक भाषाओं का उपयोग करते हैं.

कोरोना काल में सांकेतिक भाषाओं का महत्व

संयुक्त राष्ट्र ने जोर दिया कि वर्तमान में महामारी के दौरान अधिकारियों को विकलांग लोगों को सार्वजनिक स्वास्थ्य जानकारी प्रदान करने के लिए साइन लैंग्वेज, कैप्शनिंग, टेक्स्ट मैसेज और रिले सेवाओं का उपयोग करना चाहिए.

भारत

2000 के दशक में भारतीय बधिर समुदाय ने इंडियन साइन लैंग्वेज (आईएसएल) शिक्षण और अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करने का सुझाव दिया. 11 वीं पंचवर्षीय योजना (2007-2012) ने स्वीकार किया कि सुनने की अक्षमता वाले लोगों की जरूरतों को अपेक्षाकृत उपेक्षित किया गया है और इसकी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक सांकेतिक भाषा अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र के विकास की परिकल्पना की गई है. वित्त मंत्री ने 2010-11 के केंद्रीय बजट भाषण में आईएसएलआरटीसी की स्थापना की घोषणा की.

2011 में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) दिल्ली के एक स्वायत्त केंद्र के रूप में भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र (ISLRTC) की स्थापना को मंजूरी दी. केंद्र की आधारशिला इग्नू परिसर में 4 अक्टूबर 2011 को रखी गई थी. 2013 में इग्नू में इस केंद्र को बंद कर दिया गया था.

20 अप्रैल 2015 के एक आदेश में मंत्रालय ने दिल्ली में अली यावर जंग नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हियरिंग हैंडीकैप्ड (AYJNIHH) के क्षेत्रीय केंद्र के साथ ISLRTC को एकीकृत करने का निर्णय लिया. हालांकि, बधिर समुदाय ने ISLRTC और AYJNIHH के अलग-अलग दृष्टिकोण और लक्ष्यों के कारण इस फैसले का विरोध किया.

मंत्रियों के साथ बैठकों और विरोध प्रदर्शन के परिणामस्वरूप केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 22 सितंबर 2015 को आयोजित एक बैठक में ISLRTC को डिपार्टमेंट ऑफ एंपावरमेंट ऑफ पर्सन्स विथ डिसएबलिटीज के तहत एक सोसायटी के रूप में स्थापित करने का अनुमोदन किया.

2011 की जनगणना के अनुसार भारत में बधिरों की कुल आबादी लगभग 50 लाख थी. बधिर समुदाय की जरूरतों को लंबे समय से नजरअंदाज किया गया है. इनके लिए प्रशिक्षण पद्धति और शिक्षण प्रणालियों पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है.

इंडियन साइन लैंग्वेज (ISL) का उपयोग पूरे भारत में बधिर समुदाय में किया जाता है लेकिन बधिर बच्चों को पढ़ाने के लिए बधिर स्कूलों में आईएसएल का उपयोग नहीं किया जाता है. स्कूलों में कोई शिक्षण सामग्री नहीं है जो सांकेतिक भाषा को शामिल करती है. बधिर बच्चों के माता-पिता सांकेतिक भाषा और इससे दूर होने वाली संचार बाधाओं के बारे में जागरूक नहीं हैं. आईएसएल इंटर्प्रेटर की उन संस्थानों और स्थानों पर एक तत्काल आवश्यकता है, जहां बधिर और बोलने वाले लोगों के बीच संचार होता है, लेकिन भारत में केवल 300 से अधिक प्रमाणित इंटर्प्रेटर हैं.

इसलिए, इन सभी जरूरतों को पूरा करने वाले एक संस्थान की आवश्यकता थी. मूक-बधिर समुदाय द्वारा लंबे संघर्ष के बाद मंत्रालय ने 28 सितंबर 2015 को नई दिल्ली में ISLRTC की स्थापना को मंजूरी दी.

एनईपी-2020

  • नई शिक्षा नीति 2020 में कहा गया है कि भारतीय साइन लैंग्वेज (ISL) को देश भर में मानकीकृत किया जाएगा. राष्ट्रीय और राज्य की पाठ्य सामग्री विकसित की जाएगी, जिसका उपयोग बधिर छात्रों द्वारा किया जाएगा.
  • इसके अलावा भारतीय साइन लैंग्वेज सिखाने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन लर्निंग और इंडियन साइन लैंग्वेज का उपयोग करके अन्य बुनियादी विषयों को सिखाने के लिए उच्च-गुणवत्ता वाले मॉड्यूल विकसित किए जाएंगे.
  • स्थानीय सांकेतिक भाषा का सम्मान किया जाएगा और इसे भी पढ़ाया जाएगा.

समस्या

  • भारतीय सांकेतिक भाषा बहुत ही वैज्ञानिक है और इसका अपना व्याकरण है, लेकिन जागरूकता की कमी के चलते कई बधिर लोगों को उन संस्थानों के बारे में भी जानकारी नहीं है, जहां वे इस भाषा को सीख सकते हैं.
  • देश में लगभग 700 स्कूल हैं जहां साइन लैंग्वेज सिखाई और पढ़ाई जाती है.
  • हमारे देश में सांकेतिक भाषा के ज्ञान की कमी के चलते बधिर लोग पढ़ाई छोड़ देते हैं और सरकारी नौकरियों में कोटा होने के बावजूद, वे इनका लाभ नहीं ले पाते हैं.
Last Updated : Sep 23, 2020, 1:03 PM IST
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