नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने आज एक फैसले में कहा कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 के तहत एक आरोपी को केवल इसलिए बरी नहीं किया जा सकता है, क्योंकि जांच अधिकारी और शिकायतकर्ता एक ही हैं.
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी, न्यायमूर्ति विनीत सरन, न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति रवींद्र भट की 5 न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने ये फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि किसी आपराधिक मामले में एक जांच अधिकारी मुखबिर या शिकायतकर्ता भी हो सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सूचना देने वाला जांच अधिकारी है, इससे जांच खत्म नहीं हो जाती और ना ही पक्षपात किया जा सकता है. न्यायाधीशों ने कहा कि स्थिति को मामले के आधार पर तय किया जाना है. इससे अभियुक्त को लाभ नहीं मिल सकता है.
शीर्ष अदालत ने पहले के फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि यदि मुखबिर और आईओ एक ही हैं तो यह पूर्वाग्रह के कारण जांच प्रभावित हो सकती है.
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