हैदराबाद : क्रिसेल के मुख्य अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी ने कहा है कि रिजर्व बैंक के प्रमुख ब्याज दरों को अपरिवर्तित रखने के लिए गए निर्णय का मकसद मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखना है, क्योंकि मौद्रिक नीति ढांचे के तहत यदि खुदरा मुद्रास्फीति लगातार दो तिमाहियों में छह फीसदी के लक्ष्य से अधिक रहती है, तो इसके लिए वही जवाबदेह है.
ईटीवी भारत के एक सवाल के जवाब में अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी ने कहा कि आरबीआई मौद्रिक नीति ढांचे के तहत काम कर रहा है, जिसके लिए मुद्रास्फीति का लक्ष्य तय करने की आवश्यकता होती है. महंगाई को 2-3 फीसदी के रेंज (लक्ष्य) में रखना उनका काम है. अगर यह दो से अधिक तिमाहियों तक उस सीमा में नहीं रहती है, तो मुझे लगता है कि आरबीआई इसके लिए जवाबदेह है कि उसने इसे नियंत्रण में क्यों नहीं रखा. नोएडा स्थित ईजीआरओडब्ल्यू फाउंडेशन नाम के नीति विचार मंच की ओर से आयोजित एक वर्चुअल मीटिंग को संबोधित करते हुए जोशी ने कहा कि आरबीआई दर में कटौती का सहारा नहीं ले रहा है क्योंकि खुदरा मुद्रास्फीति लक्ष्य से ऊपर है.
रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने अपने प्रस्ताव में उल्लेख किया है कि जुलाई-अगस्त 2020 के दौरान आपूर्ति में बाधा, अधिक लाभ और करों की वजह से खाद्य, ईंधन और मुख्य घटकों पर दबाव बढ़ने से जुलाई-अगस्त 2020 के दौरान हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति बढ़कर 6.7 फीसद हो गई.
रिजर्व बैंक ने कहा कि खरीफ फसल की आवक के साथ प्रमुख सब्जियों जैसे टमाटर, प्याज और आलू की कीमतें तीसरी तिमाही में कम होनी चाहिए. आरबीआई ने यह भी चिंता जताई की कि आयात शुल्क अधिक होने के कारण दलहन, तिलहन की कीमत स्थिर रहेगी और करों में कमी नहीं होने की वजह से पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्य में भी अधिक रहेंगे, भले ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें सितंबर में कम हो गई हों.
आरबीआई के अनुमानों के मुताबिक, जुलाई-सितंबर की अवधि में खुदरा मुद्रास्फीति लगभग 6.8 फीसद रहेगी और यह चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही यानी अक्टूबर से मार्च की अवधि के दौरान 5.4 से 4.5 फीसद तक नीचे आ जाएगी. समिति ने कहा है कि हमारे तथ्यों से संकेत मिलता है कि वित्त वर्ष 2020-21 की चौथी तिमाही तक मुद्रास्फीति लक्ष्य के करीब पहुंच जाएगी.
जोशी ने ईटीवी भारत के सवाल के जवाब में कहा कि स्पष्ट तौर पर उसी वजह से वे दर में कटौती नहीं कर रहे हैं. यदि मुद्रास्फीति स्थायी रूप से छह फीसद से नीचे आ जाती है तब वह दर में कटौती करेंगे. तब तक वह इस साधन का उपयोग नहीं करने जा रहे हैं. शीर्ष अर्थशास्त्री ने समझाते हुए कहा कि वह मौद्रिक नीति ढांचे से बंधे हैं, उन्हें दर में कटौती करना और इसे उचित ठहराना मुश्किल होगा.
आरबीआई का अनुमान है कि अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के दौरान खुदरा मुद्रास्फीति और कम होकर 4.3 फीसद पर आ जाएगी. मौद्रिक नीति समिति ने 7 से 9 अक्टूबर तक चली तीन दिवसीय अपनी बैठक में सर्वसम्मति से दो प्रमुख अल्पकालिक अंतरबैंक ब्याज दरों को अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया.
रेपो दर जिस पर बैंक रिज़र्व बैंक से उधार लेते हैं, उसे 4 फीसद पर अपरिवर्तित रखा गया है. रिवर्स रेपो दर, जिस दर पर बैंक अपने बचे हुए धन को आरबीआई के पास रखते हैं, 3.35 फीसद पर अपरिवर्तित रहता है.
समिति के सभी छह सदस्यों ने सर्वसम्मति से नीतिगत रेपो दर को अपरिवर्तित रखने के पक्ष में मतदान किया और अर्थव्यवस्था पर कोविड -19 के प्रभाव को कम करने के लिए जब तक जरूरी है उदार रुख के साथ जारी रखने का निर्णय लिया, केवल जयंत राम ने ही अगले वित्तीय वर्ष में समायोजित रुख बनाए रखने के खिलाफ मतदान किया. यह लगातार दूसरी मौद्रिक नीति समिति की बैठक है जिसने वास्तविक जीडीपी पर भारी दबाव के बावजूद दरों को यथावत रखने का फैसला किया है.
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चालू वित्त वर्ष के पहले तीन महीनों में भारत की जीडीपी 23.9 फीसद गिरावट थी और रिज़र्व बैंक के अपने अनुमान के अनुसार, वित्त वर्ष 2020-21 के लिए गिरावट 9.5 से 9.8 फीसद की सीमा में रहेगी. वित्तीय उद्योग के लोगों को लगता है कि रिज़र्व बैंक यथास्थिति बनाए रखना चाहता है क्योंकि यह अर्थव्यवस्था में कुछ क्षेत्रों को ठंडा करने की उम्मीद कर रहा है.
ईटीवी भारत के एक सवाल के जवाब में ओरिजिन लीज फाइनेंस के सीईओ श्रीरंग तांबे ने कहा कि मुझे लगता है कि आरबीआई के पास कुछ विकल्प हैं और वे यथास्थिति को बदलना नहीं चाहते हैं. मुंबई स्थित फिनटेक और एटीएम मैनेजमेंट फर्म ईपीएस इंडिया की ओर से आयोजित बिजनेस एंड बैंकिंग संवाद में कहा गया है कि अगर आप कुछ चीजें शांत होने की उम्मीद कर रहे हैं तो आप यथास्थिति नहीं बदलेंगे.