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कोरोना वायरस महामारी के बीच भुखमरी से कैसे बचें

लॉकडाउन के दौरान लोगों को भोजन कैसे मुहैया हो और कृषि उत्पादन किस प्रकार बरकरार रहे, यह बहुत बड़ी चुनौती है. महंगाई से लेकर सामानों की जमाखोरी और कालाबाजारी तक बढ़ गई है. ऐसे में सरकार को कृषि क्षेत्र की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए. इस विषय पर इंद्रशेखर सिंह का एक खास आलेख पढ़ें...

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Published : Apr 15, 2020, 4:59 PM IST

Updated : Apr 15, 2020, 7:59 PM IST

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कोरोना वायरस और अधिक न फैले, इसके लिए सरकार ने लॉकडाउन बढ़ा दिया है. लेकिन इस दौरान लोगों को भोजन कैसे मुहैया हो और कृषि उत्पादन किस प्रकार बरकरार रहे, यह बहुत बड़ी चुनौती है. कीमतें बेतहाशा बढ़ गईं हैं. जमाखोरी और कालाबाजारी की खबरें भी आ रही हैं. इनकी वजह से बाजारों में काफी उथल-पुथल है. ऐसे में सरकार को कृषि क्षेत्र की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए. उसे ऐसे सारे कदम उठाने चाहिए, जिससे कहीं पर भी पैनिक की स्थिति न बने. इस विषय पर इंद्रशेखर सिंह का एक खास आलेख पढ़ें...

कोरोना वायरस के बीच भुखमरी से कैसे बचें -

'हम तीन अब कब मिलेंगे?' महामारी, अराजकता और भूखमरी ये तीनों एक देश को एक साथ दबोचती हैं. कोरोना वायरस महामारी ने हमारी दुनिया को अराजकता में धकेल दिया है. संयुक्त राष्ट्र (यूएन), विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और विश्व व्यापार संगठन ने हमें चेतावनी दे दी है कि यदि कोरोना वायरस को काबू में नहीं लाया गया, तो दुनिया को खाद्यान्न के भारी संकट का सामना करना पड़ेगा. दुनिया के दो महत्वपूर्ण खाद्यान्न गेहूं और धान की कीमतें बेतहाशा बढ़ गईं हैं. वहीं जमाखोरी और कालाबाजारी की खबरें भी आ रही हैं जिनकी वजह से बाजारों में काफी उथल-पुथल है.

कृषि उत्पादन न केवल चीन में गिर रहा है, बल्कि इसका असर पूरे विश्व में दिखाई दे रहा है. भारत में भी, हमारी सरकार सावधानी बरत रही है और यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रही है कि फसल की कटाई और खेत की आपूर्ति बाधित न हो. लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि कृषि व्यवस्था चरमरा गई है.

अन्नानास से लेकर चाय तक और बीज से लेकर तमाम कृषि में काम आने वाली सामग्रियों पर गहरी चोट लगी है. इस समस्या के निराकरण के लिए सरकार को अल्पावधि और दीर्घकालीन राहत मुहैया करानी होगी, ताकि देश आने वाले दिनों में अन्य महामारियों का ठीक से सामना कर सके.

अल्पावधि के उपाय

1. अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न और हिंसा को रोकना :

स्पष्ट निर्देशों के बावजूद, पुलिस बीज, उर्वरक आदि की दुकानों को बंद करवा रही है. पुलिस को ऐसा न करने के लिए सख्त अधिसूचना तुरंत जारी की जानी चाहिए, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में. प्रधानमंत्री मोदी को किसानों के समर्थन में और पुलिस को सावधानी से बर्ताव करने के लिए बयान जारी करना चाहिए.

कृषि क्षेत्र के लिए कोविड-19 हेल्पलाइन शुरू की जानी चाहिए. हमें कृषि मंत्रालय के किसान कॉल सेंटर 1800 180 1551 को संसाधन केंद्र में बदलने की आवश्यकता है. आईसीएआर और राज्य के कृषि विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों को इस समय के लिए, सामाजिक सहायता और आईसीएआर दिशानिर्देशों के बारे में किसानों की सहायता करने और सूचित करने के लिए इस हेल्पलाइन से जुड़ा होना चाहिए.

2. सोशल मीडिया द्वारा जागरूकता :

आईसीएआर द्वारा सामाजिक दूरियों और खेत की स्वच्छता पर एक विशेष वीडियो सोशल मीडिया और व्हाट्सऐप के जरिये जारी किया जाना चाहिए. पंजीकृत किसानों से एसएमएस के माध्यम से संपर्क किया जाना चाहिए.

3. रेलवे :

रेलवे की बड़ी भूमिका है. सबसे पहले, उन्हें सक्रिय रूप से खेत उत्पादन संबंधी वस्तुओं जैसे कि बीज इत्यादि के वहन का काम करना चाहिए. बीज हब से सभी राज्यों और अनाज और शहरों के लिए गांव से ताजा उपज लाने ले जाने के लिए रेलवे का उपयोग किया जाना चाहिए. यात्री डिब्बों - एसी और गैर-एसी का उपयोग छोटी मात्रा में परिवहन के लिए किया जाना चाहिए और संभवतः जल्दी खराब हो जाने वाली सब्जी और फल को ढोने का काम करना चाहिए. यह रेलवे के लिए अतिरिक्त राजस्व लाएगा और खाद्य सुरक्षा चिंताओं से निपटने में भी मदद करेगा. फार्म मशीनरी को रेलवे द्वारा भी ले जाया जा सकता है.

4. रेलवे के माल एजेंट :

रेलवे के मान्यता प्राप्त माल एजेंटों को छूट दी जानी चाहिए और इस प्रक्रिया में सक्रिय भाग लेना चाहिए ताकि वे रेलवे यार्ड में लोडिंग/अनलोडिंग में मदद कर सकें.

5. रेलवे बोर्ड :

रेलवे बोर्ड एक निश्चित समय अवधि के लिए छोटी और मध्यम बीज कंपनियों और कृषि-इनपुट कंपनियों के लिए रियायती दरों पर भी विचार कर सकता है.

6. बीज उत्पादन को प्रोत्साहन :

बीज उत्पादन के लिए विशेष रूप से छोटी और मध्यम कंपनियों को स्थापित और प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. ब्याज मुक्त ऋण या कम ब्याज ऋण इस प्रोत्साहन योजना में शामिल किए जा सकते हैं.

7. कृषि अनुषांगिक उद्योगों का कायाकल्प :

कृषि संबंधी अनुषांगिक उद्योग इस समय रुके हुए हैं. इन्हें पुनर्जीवित करने की तत्काल जरूरत है. सभी उप-ट्रेडों और विनिर्माण इकाइयों को फिर से अनुमति देनी चाहिए. उदाहरण के लिए, बीज उद्योग पैकेजिंग और कागज इकाइयों पर भी निर्भर करता है, उन्हें कार्य करने की अनुमति दी जानी चाहिए. इसके अलावा, बीज उद्योग पैकेजिंग और कागज इकाइयों पर भी निर्भर करता है, उन्हें कार्य करने की अनुमति दी जानी चाहिए. श्रमिकों के लिए विशेष बीमा नियोक्ताओं द्वारा वहन किया जाना चाहिए और सभी सुरक्षा नियमों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए. यदि संभव हो तो कर्मचारियों को विशेष भत्ता भी दिया जाना चाहिए.

8. खोले जाए मंडी-बाजार :

सभी बाजारों और मंडियों को कार्यात्मक बनाया जाना चाहिए, यदि संभव हो तो न्यूनतम कर्मचारियों के साथ. ई-नाम इस समय एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.

9. पुख्ता परिवहन :

कृषि क्षेत्रों और किसानों के विकास के लिए परिवहन सेवाएं महत्वपूर्ण हैं, इसलिए सभी जिलाधिकारियों को ट्रक और परिवहन कंपनियों के साथ परामर्श करना चाहिए और तुरंत आंतर राज्य अंतरराज्यीय परिवहन सेवा शुरू कर देना चाहिए.

10. अनाज भंडारण के लिए गांव का बुनियादी ढांचा :

जहां आवश्यक हो गांव के स्कूल और ब्लॉक स्तर की इमारत का उपयोग अनाज और अन्य उपज स्टोर करने के लिए किया जाना चाहिए जिन्हें छोटे और सीमांत किसानों के लिए बारी-बारी से इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

दूरगामी उपाय -

'हर गांव को आत्मनिर्भर होना चाहिए और पूरी दुनिया के खिलाफ अपने बचाव के लिए भी अपने मामलों का प्रबंधन करने में सक्षम होना चाहिए', मोहनदास करमचंद गांधी, हरिजन 28-7-1946.

1. विकेन्द्रित कृषि उत्पादन –

स्वदेशी 2.0. गांधी ने कहा था, 'केंद्रीयकरण का पर्याप्त बल के बिना निरंतर बचाव नहीं किया जा सकता है.' यह हमारे वर्तमान कृषि परिदृश्य पर भी लागू होता है. एक सक्रिय परिवहन प्रणाली के बिना, अकाल हमारे राष्ट्र की प्रतीक्षा करता है. इसलिए यह समय है कि हम कृषि के विकेंद्रीकरण की दिशा में अपनी कृषि नीति को पुन: पेश करें. समूहों और एक जिला एक फसल योजनाओं के बजाय, हमें कृषि के यूरोपीय या स्वदेशी डिजाइन का पालन करने और विशेष रूप से प्रमुख शहरी केंद्रों के आसपास बहु-फसल के लिए विकल्प चुनने की आवश्यकता है.

हमें जिलों के भीतर जहां संभव हो उप-समूह बनाने की आवश्यकता है, जो जिले की मुख्य आवश्यकताओं - चावल, गेहूं, तिलहन, दाल, सब्जियां, आदि का उत्पादन कर सकता है. प्रत्येक जिले या 100 किलोमीटर से कम के जिलों में पर्याप्त भंडारण और कोल्ड स्टोरेज की सुविधा होनी चाहिए. यह गांव और ब्लॉक स्तर पर भी किया जाना चाहिए. एक सर्कल के रूप में जिला शहरी केंद्र की कल्पना करें, कई अन्य क्षेत्रों से घिरा हुआ है और जो एक साथ कम परिवहन सेवाओं के साथ, कम से कम पांच महीने के बफर और खाद्य आपूर्ति को बनाए रख सकते हों. हमें गांव स्वराज के गांधी के विचारों को आगे ले जाना होगा और आधुनिक साधनों का उपयोग करके इसे बनाने में मदद करना होगा.

2. बीज हब और जोन -

प्रत्येक जिले में बीज उत्पादन होना चाहिए और पर्याप्त बीज रखने के लिए ब्लॉक में एनएससी बीज गोदाम होने चाहिए. यह पीपीपी मॉडल के साथ भी किया जा सकता है. यदि हर जिले में नहीं है, तो राज्य के भीतर प्रत्येक उप-क्षेत्रों में पर्याप्त बीज उत्पादन क्षेत्र होने चाहिए. यह बीज उत्पादन एफपीओ के माध्यम से किया जा सकता है.

3. ग्रीन जोन -

कानून द्वारा सभी प्रमुख शहरों में उनके आस-पास ग्रीन जोन होना चाहिए, जहां किसान स्थायी कृषि और कृषि वानिकी कर रहे हों. किसानों को उनकी इको-सिस्टम सेवाओं के लिए मुआवजा दिया जाना चाहिए और जब भी जरूरत हो, उनकी उपज को शहरों में जल्दी पहुंचाया जाए.

4. खाद्य स्वाश्रयी शहर -

जरूरी है कि हम शहरों को खाद्यान्न के मामले में उनके पास के ग्रामीण क्षेत्रों के आधार पर स्वाश्रयी बनाएं ताकि संकट काल में या यातायात के अभाव में भी खाद्यान्न शीघ्र शहर पहुंच सकें. सामान्य समय में किसान अपने पास के शहर की कृषि उत्पाद आवश्यकता की पूर्ती कर अपनी आय में वृद्धि कर सकता है.

भारत में शहरों में शहरी खाद्य उद्यान नीति या शहरी खाद्य उद्यान होना चाहिए. आरडब्ल्यूए इसमें बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. इसी तरह के मॉडल जर्मनी, यूरोप, सिंगापुर इत्यादि में सफल साबित हुए हैं. यह 'फूड मील' को काफी कम कर देगा और शहरों के भीतर कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन में भी मदद करेगा.

5. शहरों के भीतर बागवानी विभाग -

यदि आवश्यक हो तो सार्वजनिक उद्यानों को सब्जियों के बगीचों में बदलने के लिए योजना होनी चाहिए. उन्हें आरक्षित बीज की आपूर्ति और शहर के पार्कों के संरक्षण, मिट्टी की उर्वरता, खाद बनाने आदि पर जोर देना चाहिए.

6. सजीव कृषि -

सरकार को चाहिए कि वह सजीव कृषि पर ज्यादा ध्यान दे और ग्रामीण तथा कम बारिश वाले गांव में बीज बचत पर जोर दे. गांव को बाजरा सहित फसलों की विविधता विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों की मदद से विकासवादी भागीदारी को अपनाने और बाजार पर निर्भरता कम करने के लिए काम करना चाहिए. इन क्षेत्रों से उत्पादन करने के लिए सरकार द्वारा विशेष ब्रांड बनाया जा सकता है.

7. खाद्य पारिस्थितिक तंत्र विकसित करें -

भारत के सभी राज्यों को संपूर्ण खाद्य उत्पादन इको-सिस्टम के विकास पर पूरा ध्यान देना चाहिए, जिसमें बीज उत्पादन क्षेत्र, गोदामों, बाजारों और कृषि विश्वविद्यालयों आदि शामिल हो. इसमें मदर डेयरी या सफल की तर्ज पर गहरी पैठ के साथ वितरण की विकेंद्रीकृत प्रणाली भी होनी चाहिए, ताकि खाद्य आपूर्ति नागरिकों तक आसानी से और उचित तरीके से पहुंच सके. अगले महामारी के समय राज्य एक स्वायत्त निकाय के रूप में कार्य कर सकते हैं, जो जरूरत के समय स्वयं और दूसरों की मदद कर सकते हैं.

(इंद्र शेखर सिंह)

कोरोना वायरस और अधिक न फैले, इसके लिए सरकार ने लॉकडाउन बढ़ा दिया है. लेकिन इस दौरान लोगों को भोजन कैसे मुहैया हो और कृषि उत्पादन किस प्रकार बरकरार रहे, यह बहुत बड़ी चुनौती है. कीमतें बेतहाशा बढ़ गईं हैं. जमाखोरी और कालाबाजारी की खबरें भी आ रही हैं. इनकी वजह से बाजारों में काफी उथल-पुथल है. ऐसे में सरकार को कृषि क्षेत्र की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए. उसे ऐसे सारे कदम उठाने चाहिए, जिससे कहीं पर भी पैनिक की स्थिति न बने. इस विषय पर इंद्रशेखर सिंह का एक खास आलेख पढ़ें...

कोरोना वायरस के बीच भुखमरी से कैसे बचें -

'हम तीन अब कब मिलेंगे?' महामारी, अराजकता और भूखमरी ये तीनों एक देश को एक साथ दबोचती हैं. कोरोना वायरस महामारी ने हमारी दुनिया को अराजकता में धकेल दिया है. संयुक्त राष्ट्र (यूएन), विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और विश्व व्यापार संगठन ने हमें चेतावनी दे दी है कि यदि कोरोना वायरस को काबू में नहीं लाया गया, तो दुनिया को खाद्यान्न के भारी संकट का सामना करना पड़ेगा. दुनिया के दो महत्वपूर्ण खाद्यान्न गेहूं और धान की कीमतें बेतहाशा बढ़ गईं हैं. वहीं जमाखोरी और कालाबाजारी की खबरें भी आ रही हैं जिनकी वजह से बाजारों में काफी उथल-पुथल है.

कृषि उत्पादन न केवल चीन में गिर रहा है, बल्कि इसका असर पूरे विश्व में दिखाई दे रहा है. भारत में भी, हमारी सरकार सावधानी बरत रही है और यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रही है कि फसल की कटाई और खेत की आपूर्ति बाधित न हो. लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि कृषि व्यवस्था चरमरा गई है.

अन्नानास से लेकर चाय तक और बीज से लेकर तमाम कृषि में काम आने वाली सामग्रियों पर गहरी चोट लगी है. इस समस्या के निराकरण के लिए सरकार को अल्पावधि और दीर्घकालीन राहत मुहैया करानी होगी, ताकि देश आने वाले दिनों में अन्य महामारियों का ठीक से सामना कर सके.

अल्पावधि के उपाय

1. अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न और हिंसा को रोकना :

स्पष्ट निर्देशों के बावजूद, पुलिस बीज, उर्वरक आदि की दुकानों को बंद करवा रही है. पुलिस को ऐसा न करने के लिए सख्त अधिसूचना तुरंत जारी की जानी चाहिए, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में. प्रधानमंत्री मोदी को किसानों के समर्थन में और पुलिस को सावधानी से बर्ताव करने के लिए बयान जारी करना चाहिए.

कृषि क्षेत्र के लिए कोविड-19 हेल्पलाइन शुरू की जानी चाहिए. हमें कृषि मंत्रालय के किसान कॉल सेंटर 1800 180 1551 को संसाधन केंद्र में बदलने की आवश्यकता है. आईसीएआर और राज्य के कृषि विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों को इस समय के लिए, सामाजिक सहायता और आईसीएआर दिशानिर्देशों के बारे में किसानों की सहायता करने और सूचित करने के लिए इस हेल्पलाइन से जुड़ा होना चाहिए.

2. सोशल मीडिया द्वारा जागरूकता :

आईसीएआर द्वारा सामाजिक दूरियों और खेत की स्वच्छता पर एक विशेष वीडियो सोशल मीडिया और व्हाट्सऐप के जरिये जारी किया जाना चाहिए. पंजीकृत किसानों से एसएमएस के माध्यम से संपर्क किया जाना चाहिए.

3. रेलवे :

रेलवे की बड़ी भूमिका है. सबसे पहले, उन्हें सक्रिय रूप से खेत उत्पादन संबंधी वस्तुओं जैसे कि बीज इत्यादि के वहन का काम करना चाहिए. बीज हब से सभी राज्यों और अनाज और शहरों के लिए गांव से ताजा उपज लाने ले जाने के लिए रेलवे का उपयोग किया जाना चाहिए. यात्री डिब्बों - एसी और गैर-एसी का उपयोग छोटी मात्रा में परिवहन के लिए किया जाना चाहिए और संभवतः जल्दी खराब हो जाने वाली सब्जी और फल को ढोने का काम करना चाहिए. यह रेलवे के लिए अतिरिक्त राजस्व लाएगा और खाद्य सुरक्षा चिंताओं से निपटने में भी मदद करेगा. फार्म मशीनरी को रेलवे द्वारा भी ले जाया जा सकता है.

4. रेलवे के माल एजेंट :

रेलवे के मान्यता प्राप्त माल एजेंटों को छूट दी जानी चाहिए और इस प्रक्रिया में सक्रिय भाग लेना चाहिए ताकि वे रेलवे यार्ड में लोडिंग/अनलोडिंग में मदद कर सकें.

5. रेलवे बोर्ड :

रेलवे बोर्ड एक निश्चित समय अवधि के लिए छोटी और मध्यम बीज कंपनियों और कृषि-इनपुट कंपनियों के लिए रियायती दरों पर भी विचार कर सकता है.

6. बीज उत्पादन को प्रोत्साहन :

बीज उत्पादन के लिए विशेष रूप से छोटी और मध्यम कंपनियों को स्थापित और प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. ब्याज मुक्त ऋण या कम ब्याज ऋण इस प्रोत्साहन योजना में शामिल किए जा सकते हैं.

7. कृषि अनुषांगिक उद्योगों का कायाकल्प :

कृषि संबंधी अनुषांगिक उद्योग इस समय रुके हुए हैं. इन्हें पुनर्जीवित करने की तत्काल जरूरत है. सभी उप-ट्रेडों और विनिर्माण इकाइयों को फिर से अनुमति देनी चाहिए. उदाहरण के लिए, बीज उद्योग पैकेजिंग और कागज इकाइयों पर भी निर्भर करता है, उन्हें कार्य करने की अनुमति दी जानी चाहिए. इसके अलावा, बीज उद्योग पैकेजिंग और कागज इकाइयों पर भी निर्भर करता है, उन्हें कार्य करने की अनुमति दी जानी चाहिए. श्रमिकों के लिए विशेष बीमा नियोक्ताओं द्वारा वहन किया जाना चाहिए और सभी सुरक्षा नियमों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए. यदि संभव हो तो कर्मचारियों को विशेष भत्ता भी दिया जाना चाहिए.

8. खोले जाए मंडी-बाजार :

सभी बाजारों और मंडियों को कार्यात्मक बनाया जाना चाहिए, यदि संभव हो तो न्यूनतम कर्मचारियों के साथ. ई-नाम इस समय एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.

9. पुख्ता परिवहन :

कृषि क्षेत्रों और किसानों के विकास के लिए परिवहन सेवाएं महत्वपूर्ण हैं, इसलिए सभी जिलाधिकारियों को ट्रक और परिवहन कंपनियों के साथ परामर्श करना चाहिए और तुरंत आंतर राज्य अंतरराज्यीय परिवहन सेवा शुरू कर देना चाहिए.

10. अनाज भंडारण के लिए गांव का बुनियादी ढांचा :

जहां आवश्यक हो गांव के स्कूल और ब्लॉक स्तर की इमारत का उपयोग अनाज और अन्य उपज स्टोर करने के लिए किया जाना चाहिए जिन्हें छोटे और सीमांत किसानों के लिए बारी-बारी से इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

दूरगामी उपाय -

'हर गांव को आत्मनिर्भर होना चाहिए और पूरी दुनिया के खिलाफ अपने बचाव के लिए भी अपने मामलों का प्रबंधन करने में सक्षम होना चाहिए', मोहनदास करमचंद गांधी, हरिजन 28-7-1946.

1. विकेन्द्रित कृषि उत्पादन –

स्वदेशी 2.0. गांधी ने कहा था, 'केंद्रीयकरण का पर्याप्त बल के बिना निरंतर बचाव नहीं किया जा सकता है.' यह हमारे वर्तमान कृषि परिदृश्य पर भी लागू होता है. एक सक्रिय परिवहन प्रणाली के बिना, अकाल हमारे राष्ट्र की प्रतीक्षा करता है. इसलिए यह समय है कि हम कृषि के विकेंद्रीकरण की दिशा में अपनी कृषि नीति को पुन: पेश करें. समूहों और एक जिला एक फसल योजनाओं के बजाय, हमें कृषि के यूरोपीय या स्वदेशी डिजाइन का पालन करने और विशेष रूप से प्रमुख शहरी केंद्रों के आसपास बहु-फसल के लिए विकल्प चुनने की आवश्यकता है.

हमें जिलों के भीतर जहां संभव हो उप-समूह बनाने की आवश्यकता है, जो जिले की मुख्य आवश्यकताओं - चावल, गेहूं, तिलहन, दाल, सब्जियां, आदि का उत्पादन कर सकता है. प्रत्येक जिले या 100 किलोमीटर से कम के जिलों में पर्याप्त भंडारण और कोल्ड स्टोरेज की सुविधा होनी चाहिए. यह गांव और ब्लॉक स्तर पर भी किया जाना चाहिए. एक सर्कल के रूप में जिला शहरी केंद्र की कल्पना करें, कई अन्य क्षेत्रों से घिरा हुआ है और जो एक साथ कम परिवहन सेवाओं के साथ, कम से कम पांच महीने के बफर और खाद्य आपूर्ति को बनाए रख सकते हों. हमें गांव स्वराज के गांधी के विचारों को आगे ले जाना होगा और आधुनिक साधनों का उपयोग करके इसे बनाने में मदद करना होगा.

2. बीज हब और जोन -

प्रत्येक जिले में बीज उत्पादन होना चाहिए और पर्याप्त बीज रखने के लिए ब्लॉक में एनएससी बीज गोदाम होने चाहिए. यह पीपीपी मॉडल के साथ भी किया जा सकता है. यदि हर जिले में नहीं है, तो राज्य के भीतर प्रत्येक उप-क्षेत्रों में पर्याप्त बीज उत्पादन क्षेत्र होने चाहिए. यह बीज उत्पादन एफपीओ के माध्यम से किया जा सकता है.

3. ग्रीन जोन -

कानून द्वारा सभी प्रमुख शहरों में उनके आस-पास ग्रीन जोन होना चाहिए, जहां किसान स्थायी कृषि और कृषि वानिकी कर रहे हों. किसानों को उनकी इको-सिस्टम सेवाओं के लिए मुआवजा दिया जाना चाहिए और जब भी जरूरत हो, उनकी उपज को शहरों में जल्दी पहुंचाया जाए.

4. खाद्य स्वाश्रयी शहर -

जरूरी है कि हम शहरों को खाद्यान्न के मामले में उनके पास के ग्रामीण क्षेत्रों के आधार पर स्वाश्रयी बनाएं ताकि संकट काल में या यातायात के अभाव में भी खाद्यान्न शीघ्र शहर पहुंच सकें. सामान्य समय में किसान अपने पास के शहर की कृषि उत्पाद आवश्यकता की पूर्ती कर अपनी आय में वृद्धि कर सकता है.

भारत में शहरों में शहरी खाद्य उद्यान नीति या शहरी खाद्य उद्यान होना चाहिए. आरडब्ल्यूए इसमें बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. इसी तरह के मॉडल जर्मनी, यूरोप, सिंगापुर इत्यादि में सफल साबित हुए हैं. यह 'फूड मील' को काफी कम कर देगा और शहरों के भीतर कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन में भी मदद करेगा.

5. शहरों के भीतर बागवानी विभाग -

यदि आवश्यक हो तो सार्वजनिक उद्यानों को सब्जियों के बगीचों में बदलने के लिए योजना होनी चाहिए. उन्हें आरक्षित बीज की आपूर्ति और शहर के पार्कों के संरक्षण, मिट्टी की उर्वरता, खाद बनाने आदि पर जोर देना चाहिए.

6. सजीव कृषि -

सरकार को चाहिए कि वह सजीव कृषि पर ज्यादा ध्यान दे और ग्रामीण तथा कम बारिश वाले गांव में बीज बचत पर जोर दे. गांव को बाजरा सहित फसलों की विविधता विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों की मदद से विकासवादी भागीदारी को अपनाने और बाजार पर निर्भरता कम करने के लिए काम करना चाहिए. इन क्षेत्रों से उत्पादन करने के लिए सरकार द्वारा विशेष ब्रांड बनाया जा सकता है.

7. खाद्य पारिस्थितिक तंत्र विकसित करें -

भारत के सभी राज्यों को संपूर्ण खाद्य उत्पादन इको-सिस्टम के विकास पर पूरा ध्यान देना चाहिए, जिसमें बीज उत्पादन क्षेत्र, गोदामों, बाजारों और कृषि विश्वविद्यालयों आदि शामिल हो. इसमें मदर डेयरी या सफल की तर्ज पर गहरी पैठ के साथ वितरण की विकेंद्रीकृत प्रणाली भी होनी चाहिए, ताकि खाद्य आपूर्ति नागरिकों तक आसानी से और उचित तरीके से पहुंच सके. अगले महामारी के समय राज्य एक स्वायत्त निकाय के रूप में कार्य कर सकते हैं, जो जरूरत के समय स्वयं और दूसरों की मदद कर सकते हैं.

(इंद्र शेखर सिंह)

Last Updated : Apr 15, 2020, 7:59 PM IST
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