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चीन से आयात के बहिष्कार का निर्णय जल्दबाजी में लेना सही नहीं - ban on china

गलवान घाटी में हिंसक झड़प के बाद दिसंबर 2021 तक सरकार चीन में निर्मित वस्तुओं के आयात में एक लाख करोड़ रुपये की कटौती करना चाहती है. हर ओर चीनी सामान के बहिष्कार की मांग जोरों पर है. लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि इसके लिए लॉग टर्म योजना बनाने की जरूरत है. पढ़े स्पेशल रिपोर्ट...

चीन से आयात के बहिष्कार
चीन से आयात के बहिष्कार
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Published : Jun 25, 2020, 6:45 AM IST

हैदराबाद : गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प से पूरे देश में जबरदस्त आक्रोश फैला हुआ है. इस हिंसा में भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे. इसके बाद हर ओर चीन से आयात होने वाली वस्तुओं के बहिष्कार की मांग की जा रही है.

कोरोना संकट को एक अवसर के रूप में परिवर्तित करने की दृष्टि से प्रधानमंत्री मोदी ने घरेलू निर्माण क्षेत्र का समर्थन करने और विदेशी निवेशों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की, ताकि भारतीय अपनी खुद की चीन की महत्वाकांक्षा की जांच कर सकें.

इतिहास गवाह है कि चीन द्वारा जापानी सामान और अमेरिका, फ्रांसीसी सामानों के बहिष्कार के लिए किए गए प्रयास सफल नहीं हो सके हैं. उद्योग जगत को धीरे-धीरे आयात कम करने के लिए लॉग टर्म योजना बनाने की जरूरत है. ऐसे में जल्दबाजी और भावनात्मक निर्णय लेना सही नहीं है. यह हमारी दूर-दृष्टि से विवेकपूर्ण ढंग से आगे बढ़ने का समय है.

चीन के सामानों का बहिष्कार
चीन की इस हरकत से केंद्र ने भारी आयात शुल्क लगाने के साथ चीन को रेलवे, बीएसएनएल जैसे सरकारी अनुबंधों में भाग लेने से मना करने का निर्णय लिया है. देश में सात करोड़ छोटे व्यापारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले 40 हजार व्यापार संघों का परिसंघ भी इसका बहिष्कार करना चाहता है, जिसमें 450 श्रेणियों के तहत भारत में आने वाले तीन हजार चीनी उत्पाद भी शामिल हैं.

इस हिंसक झड़प के बाद दिसंबर 2021 तक सरकार चीन में निर्मित वस्तुओं के आयात में एक लाख करोड़ रुपये की कटौती करना चाहती है. 5.25 लाख करोड़ की चौंका देने वाली राशि, जिसका वर्तमान में आयात बिल बना रही है. यह बताएगी कि चीन ने हमारी अर्थव्यवस्था में किस हद तक अतिक्रमण किया है.

पढ़ें-भारत-चीन तनाव : पूर्वी लद्दाख का जायजा लेकर सेना प्रमुख ने सैनिकों को सराहा

संसदीय स्थाई समिति ने दो साल पहले यह स्पष्ट किया था कि भारी आयात-छोटे खिलौनों से लेकर जूट उत्पादों, थोक दवाओं से लेकर साइकिल तक का चीन में बनी एमएसएमई उद्यमों के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है.

हालांकि, एमएसएमई को इस बात की चिंता है कि कोरोना संकट के वर्तमान समय में चीन से आयात का अचानक बहिष्कार करना ठीक नहीं है. यह उनकी आर्थिक स्थिति को और खराब कर देगा.

आयात न करने से होने वाले नुकसान
यह भारत-चीन द्विपक्षीय राजनयिक संबंध का 70वां वर्ष है. पिछले अप्रैल में जब शी जिनपिंग को उम्मीद थी कि दोनों देश नए अवसरों को देख रहे हैं, तब भारत चीन के साथ 60 प्रतिशत द्विपक्षीय व्यापार घाटे को देख रहा था.

भारत चीन सीमा झड़प के बाद 'ग्लोबल टाइम्स' चाहता था कि भारत चीनी सामानों के बहिष्कार की मांग को नियंत्रित करे. हालांकि यह विश्वास है कि भारत चीन के सस्ते उत्पादों को खोने का जोखिम नहीं उठा सकता.

एमएसएमई महासंघ का कहना है कि अगर हम चीन के सामान को अस्वीकार करते हैं, तो रसायन, डाई, इलेक्ट्रॉनिक सामान और कच्चे माल का आयात करने वाले प्रतिष्ठान बुरी तरह प्रभावित होंगे. इन सब चीजों का आयात उन्हें दक्षिण कोरिया, जापान और यूरोप जैसे देशों से करना होगा, जिसमें 25-40 प्रतिशत की वृद्धि होगी.

भारत में चीन से 14 फीसदी सामान आयात होता है, जबकि चीन को भारत केवल दो फीसदी निर्यात करता है. यह इस बात को साफ करता है कि कौन सा देश किसपर निर्भर है. भारत 1990 तक सक्रिय दवा सामग्री (एपीआई) का अग्रणी निर्माता था. वह आज इसका 80 प्रतिशत चीन से आयात करता है.

इस बारे में विश्लेषकों का कहना है कि एपीआई आयात को रोकना न केवल दवा उद्योग के लिए एक खतरा है, बल्कि इससे कीमतों में 40 फीसदी की बढ़ोतरी भी होगी. चीन से होने वाले आयत से बचना मुश्किल है. डब्ल्यूटीओ के नियमों के अनुसार, हमें उत्पाद की अधिक कीमतों के अलावा अन्य देशों के समान करों का भी भुगतान करना होगा.

हैदराबाद : गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प से पूरे देश में जबरदस्त आक्रोश फैला हुआ है. इस हिंसा में भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे. इसके बाद हर ओर चीन से आयात होने वाली वस्तुओं के बहिष्कार की मांग की जा रही है.

कोरोना संकट को एक अवसर के रूप में परिवर्तित करने की दृष्टि से प्रधानमंत्री मोदी ने घरेलू निर्माण क्षेत्र का समर्थन करने और विदेशी निवेशों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की, ताकि भारतीय अपनी खुद की चीन की महत्वाकांक्षा की जांच कर सकें.

इतिहास गवाह है कि चीन द्वारा जापानी सामान और अमेरिका, फ्रांसीसी सामानों के बहिष्कार के लिए किए गए प्रयास सफल नहीं हो सके हैं. उद्योग जगत को धीरे-धीरे आयात कम करने के लिए लॉग टर्म योजना बनाने की जरूरत है. ऐसे में जल्दबाजी और भावनात्मक निर्णय लेना सही नहीं है. यह हमारी दूर-दृष्टि से विवेकपूर्ण ढंग से आगे बढ़ने का समय है.

चीन के सामानों का बहिष्कार
चीन की इस हरकत से केंद्र ने भारी आयात शुल्क लगाने के साथ चीन को रेलवे, बीएसएनएल जैसे सरकारी अनुबंधों में भाग लेने से मना करने का निर्णय लिया है. देश में सात करोड़ छोटे व्यापारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले 40 हजार व्यापार संघों का परिसंघ भी इसका बहिष्कार करना चाहता है, जिसमें 450 श्रेणियों के तहत भारत में आने वाले तीन हजार चीनी उत्पाद भी शामिल हैं.

इस हिंसक झड़प के बाद दिसंबर 2021 तक सरकार चीन में निर्मित वस्तुओं के आयात में एक लाख करोड़ रुपये की कटौती करना चाहती है. 5.25 लाख करोड़ की चौंका देने वाली राशि, जिसका वर्तमान में आयात बिल बना रही है. यह बताएगी कि चीन ने हमारी अर्थव्यवस्था में किस हद तक अतिक्रमण किया है.

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संसदीय स्थाई समिति ने दो साल पहले यह स्पष्ट किया था कि भारी आयात-छोटे खिलौनों से लेकर जूट उत्पादों, थोक दवाओं से लेकर साइकिल तक का चीन में बनी एमएसएमई उद्यमों के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है.

हालांकि, एमएसएमई को इस बात की चिंता है कि कोरोना संकट के वर्तमान समय में चीन से आयात का अचानक बहिष्कार करना ठीक नहीं है. यह उनकी आर्थिक स्थिति को और खराब कर देगा.

आयात न करने से होने वाले नुकसान
यह भारत-चीन द्विपक्षीय राजनयिक संबंध का 70वां वर्ष है. पिछले अप्रैल में जब शी जिनपिंग को उम्मीद थी कि दोनों देश नए अवसरों को देख रहे हैं, तब भारत चीन के साथ 60 प्रतिशत द्विपक्षीय व्यापार घाटे को देख रहा था.

भारत चीन सीमा झड़प के बाद 'ग्लोबल टाइम्स' चाहता था कि भारत चीनी सामानों के बहिष्कार की मांग को नियंत्रित करे. हालांकि यह विश्वास है कि भारत चीन के सस्ते उत्पादों को खोने का जोखिम नहीं उठा सकता.

एमएसएमई महासंघ का कहना है कि अगर हम चीन के सामान को अस्वीकार करते हैं, तो रसायन, डाई, इलेक्ट्रॉनिक सामान और कच्चे माल का आयात करने वाले प्रतिष्ठान बुरी तरह प्रभावित होंगे. इन सब चीजों का आयात उन्हें दक्षिण कोरिया, जापान और यूरोप जैसे देशों से करना होगा, जिसमें 25-40 प्रतिशत की वृद्धि होगी.

भारत में चीन से 14 फीसदी सामान आयात होता है, जबकि चीन को भारत केवल दो फीसदी निर्यात करता है. यह इस बात को साफ करता है कि कौन सा देश किसपर निर्भर है. भारत 1990 तक सक्रिय दवा सामग्री (एपीआई) का अग्रणी निर्माता था. वह आज इसका 80 प्रतिशत चीन से आयात करता है.

इस बारे में विश्लेषकों का कहना है कि एपीआई आयात को रोकना न केवल दवा उद्योग के लिए एक खतरा है, बल्कि इससे कीमतों में 40 फीसदी की बढ़ोतरी भी होगी. चीन से होने वाले आयत से बचना मुश्किल है. डब्ल्यूटीओ के नियमों के अनुसार, हमें उत्पाद की अधिक कीमतों के अलावा अन्य देशों के समान करों का भी भुगतान करना होगा.

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