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सैन्य उपकरणों के निर्यात के लिए भारत ने तैयार की 14 देशों की सूची

भारत ने 2025 तक खुद को दुनिया के शीर्ष पांच हथियार निर्यातकों में शामिल करने का लक्षय रखा है. भारत में निर्मित हथियारों और सैन्य उपकरणों के निर्यात की क्षमता के आधार पर यह लक्ष्य तैयार किया गया है. पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार संजीब कुमार बरुआ की यह रिपोर्ट...

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Published : Aug 28, 2020, 5:13 PM IST

नई दिल्ली : भारत ने 2025 तक दूसरे देशों को सैन्य उपकरण बेचकर 35,000 करोड़ रुपये कमाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है. इसके लिए भारत ने 14 एशियाई और मध्यपूर्वी देशों को लक्षित करते हुए हथियार निर्यातक सूची में शामिल किया है.

इसका उद्देश्य अगले पांच वर्षों में दुनिया के शीर्ष पांच हथियार निर्यातक देशों की सूची में शामिल होना है.

इस मामले में ईटीवी भारत से बात करते हुए एक अधिकारी ने बताया कि हमने लगभग 14 देशों के प्रोफाइल तैयार किए हैं, जहां हम अपने सैन्य उपकरण बेच सकते हैं. यह सभी एशिया और मध्य पूर्व के मित्र देश हैं.

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, भारत मेक इन इंडिया के तहत, सऊदी अरब के बाद दूसरे सबसे बड़े हथियार आयातक की अपनी छवि को बदलने का प्रयास कर रहा है.

हथियारों के निर्यात के मामले में भारत अपने प्रमुख ग्राहकों मॉरीशस, म्यांमार और श्रीलंका के साथ 23वें स्थान पर है.

गुरुवार को रक्षा सचिव (उत्पादन) राज कुमार ने रक्षा उत्पादन में भारत की आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के विषय पर आयोजित एक वेबिनार में बताया कि भारत रक्षा संलग्नकों की मदद से मित्र देशों की प्रोफाइल विकसित कर रहा है.

कुमार ने कहा, 'यह 'मेक इन इंडिया' से 'मेक फॉर वर्ल्ड' बनाने का हमारा रास्ता है.'

ब्रह्मोस मिसाइल, जिसे रूस की मदद से बनाया गया है, के साथ-साथ अन्य सैन्य उपकरणों जैसे भारतीय रडार, बंदूकें, गोला-बारूद आदि की काफी मांग है.

भारत संयुक्त उद्यम के माध्यम से सह-उत्पादन मार्ग के लिए देश में उत्पाद के निर्माण के लिए ऑरिजिनल इक्विपमेंट मेकर्स (OEM) से उत्पादन लाइसेंस प्राप्त करने की प्रणाली से हटने का प्रयास कर रहा है.

रक्षा मंत्रालय ने पहले ही अपनी वेबसाइट पर डिफेंस प्रोडक्शन एंड एक्सपोर्ट प्रमोशन पॉलिसी (DPEPP) 2020 का एक मसौदा अपलोड किया है, जिसमें सार्वजनिक टिप्पणियां मांगी गई हैं.

पढ़ें- निर्यात के लिए तैयार है ब्रह्मोस मिसाइल, कई देश दिखा रहे रुचि : डीआरडीओ प्रमुख

भारतीय रक्षा उत्पादन बड़े पैमाने पर आयुध कारखानों और रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (DPSU) के हाथों में था, लेकिन 2001 से निजी क्षेत्र की कंपनियों को भी रक्षा उपकरण बनाने के लिए लाइसेंस दिया गया है.

इसके नतीजे में हथियारों और गोला-बारूद, टैंक, बख्तरबंद वाहन, भारी वाहन, लड़ाकू विमान और हेलीकॉप्टर, युद्धपोत, पनडुब्बी, मिसाइल, गोला-बारूद, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, पृथ्वी पर चलने वाले उपकरण आदि जैसे विविध उत्पादों का विकास हुआ है.

2019-20 में एयरोस्पेस और नौसैनिक जहाज निर्माण उद्योग सहित भारतीय रक्षा उद्योग का आकार लगभग 80,000 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया गया है, जिनमें से सार्वजनिक क्षेत्र का आयुध कारखानों और रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (DPSS) के नेतृत्व में लगभग 63,000 करोड़ रुपये का योगदान है, जबकि निजी क्षेत्र ने लगभग 17,000 करोड़ रुपये का निवेश किया है.

नई दिल्ली : भारत ने 2025 तक दूसरे देशों को सैन्य उपकरण बेचकर 35,000 करोड़ रुपये कमाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है. इसके लिए भारत ने 14 एशियाई और मध्यपूर्वी देशों को लक्षित करते हुए हथियार निर्यातक सूची में शामिल किया है.

इसका उद्देश्य अगले पांच वर्षों में दुनिया के शीर्ष पांच हथियार निर्यातक देशों की सूची में शामिल होना है.

इस मामले में ईटीवी भारत से बात करते हुए एक अधिकारी ने बताया कि हमने लगभग 14 देशों के प्रोफाइल तैयार किए हैं, जहां हम अपने सैन्य उपकरण बेच सकते हैं. यह सभी एशिया और मध्य पूर्व के मित्र देश हैं.

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, भारत मेक इन इंडिया के तहत, सऊदी अरब के बाद दूसरे सबसे बड़े हथियार आयातक की अपनी छवि को बदलने का प्रयास कर रहा है.

हथियारों के निर्यात के मामले में भारत अपने प्रमुख ग्राहकों मॉरीशस, म्यांमार और श्रीलंका के साथ 23वें स्थान पर है.

गुरुवार को रक्षा सचिव (उत्पादन) राज कुमार ने रक्षा उत्पादन में भारत की आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के विषय पर आयोजित एक वेबिनार में बताया कि भारत रक्षा संलग्नकों की मदद से मित्र देशों की प्रोफाइल विकसित कर रहा है.

कुमार ने कहा, 'यह 'मेक इन इंडिया' से 'मेक फॉर वर्ल्ड' बनाने का हमारा रास्ता है.'

ब्रह्मोस मिसाइल, जिसे रूस की मदद से बनाया गया है, के साथ-साथ अन्य सैन्य उपकरणों जैसे भारतीय रडार, बंदूकें, गोला-बारूद आदि की काफी मांग है.

भारत संयुक्त उद्यम के माध्यम से सह-उत्पादन मार्ग के लिए देश में उत्पाद के निर्माण के लिए ऑरिजिनल इक्विपमेंट मेकर्स (OEM) से उत्पादन लाइसेंस प्राप्त करने की प्रणाली से हटने का प्रयास कर रहा है.

रक्षा मंत्रालय ने पहले ही अपनी वेबसाइट पर डिफेंस प्रोडक्शन एंड एक्सपोर्ट प्रमोशन पॉलिसी (DPEPP) 2020 का एक मसौदा अपलोड किया है, जिसमें सार्वजनिक टिप्पणियां मांगी गई हैं.

पढ़ें- निर्यात के लिए तैयार है ब्रह्मोस मिसाइल, कई देश दिखा रहे रुचि : डीआरडीओ प्रमुख

भारतीय रक्षा उत्पादन बड़े पैमाने पर आयुध कारखानों और रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (DPSU) के हाथों में था, लेकिन 2001 से निजी क्षेत्र की कंपनियों को भी रक्षा उपकरण बनाने के लिए लाइसेंस दिया गया है.

इसके नतीजे में हथियारों और गोला-बारूद, टैंक, बख्तरबंद वाहन, भारी वाहन, लड़ाकू विमान और हेलीकॉप्टर, युद्धपोत, पनडुब्बी, मिसाइल, गोला-बारूद, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, पृथ्वी पर चलने वाले उपकरण आदि जैसे विविध उत्पादों का विकास हुआ है.

2019-20 में एयरोस्पेस और नौसैनिक जहाज निर्माण उद्योग सहित भारतीय रक्षा उद्योग का आकार लगभग 80,000 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया गया है, जिनमें से सार्वजनिक क्षेत्र का आयुध कारखानों और रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (DPSS) के नेतृत्व में लगभग 63,000 करोड़ रुपये का योगदान है, जबकि निजी क्षेत्र ने लगभग 17,000 करोड़ रुपये का निवेश किया है.

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