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विशेष लेख : क्या नल का पानी जहरीला है?

लगभग 10 दशक पहले, एक जैन भिक्षु, बुद्धिसागर ने भविष्य की ओर दृष्टि कर यह भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि भविष्य में किराने की दुकानों में पानी बेचा जाएगा. आज वह सच होती दिखाई दे रही है. आज हम अपने घर के पास की दुकानों से ताजे पानी के नाम पर पानी के डिब्बे खरीद रहे हैं.

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Published : Dec 9, 2019, 12:08 AM IST

लगभग 10 दशक पहले, एक जैन भिक्षु, बुद्धिसागर ने भविष्य की ओर दृष्टि कर यह भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि भविष्य में किराने की दुकानों में पानी बेचा जाएगा, और अब हम अपने घर के पास की दुकानों से ताजे पानी के नाम पर पानी के डिब्बे खरीद रहे हैं.

हम इस स्थिति तक आखिर कैसे पहुंच गए? यह इस संदेह के कारण है कि घरों में आने वाला ताजा पानी सीधे तौर पर पीने के काबिल नहीं है. नल के पानी में लगातार मल के अंश पाया जाना देश के सभी लोगों का भयावह अनुभव है. ज़रा सोचिए अगर केंद्रीय मंत्री खुद को कभी ऐसी ही स्थिति में पाएं तो!

हाल ही में, देश की राजधानी, नई दिल्ली में, गुणवत्ता मानकों के लिए नल से प्राप्त पीने के पानी की स्वच्छता का परीक्षण किया गया. इसके लिए, विभिन्न रिहायशी इलाकों से पानी के 11 नमूने एकत्र किए गए थे. इन आवासों में से एक, 10 जनपथ, कृष्णभवन में केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान का कार्यालय भी था. इस पानी को उनकी गुणवत्ता के लिए चुनिंदा 19 मापदंडों में परखा गया था. दुर्भाग्यवश लगभग सभी 11 नमूने इन मापदंडों द्वारा निर्धारित मानकों पर खरा उतरने में विफल रहे.

पानी के नमूने घुलित ठोस पदार्थ, अशुद्धियों, कठोरता, क्षारीयता, खनिज, धातु सामग्री, मल-जल के अंश और रोगाणुओ जैसे मापदंडों पर स्वच्छ साबित करने में नाकामियाब रहे. यह परिणाम सचमुच एक राजनीतिक आपदा के तौर पर देखे गए.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 'हमारी सरकार के लिए अपमान है' का नारा दिया और उन्होंने दिल्ली में मौजूद अस्वच्छ पेयजल के आरोप को साबित करने की चुनौती उन्होंने आनन-फानन में दे डाली.

पढ़ें- सबरीमाला मंदिर को मिला 66 करोड़ रुपये से ज्यादा का राजस्व

पासवान, ने जब यह स्पष्ट किया कि यह अध्ययन केवल राज्य सरकारों को, लोगों को स्वच्छ पेयजल प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए किया गया था, तब जाकर कहीं यह विवाद शांत हुआ. पासवान ने आश्वासन दिया कि यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए जाएंगे कि देश में शहरों में दिया जाने वाला पानी भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) द्वारा निर्धारित गुणवत्ता मानकों को पूरा करे. सभी जल आपूर्ति कम्पनियों को बीआईएस अनिवार्य मानकों का पालन करने के लिए कहा गया है. संभवतः एक बेहतर स्थिति की उम्मीद की जा सकती है, इस घटना के कारण जहां मंत्री ने बीआईएस मानकों को एक अंतरराष्ट्रीय स्तर तक बढ़ाने और नागरिकों को अंतरराष्ट्रीय मानक का पानी उपलब्ध कराने की ज़िम्मेदारी खुद अपने कंधों पर ले ली है.

क्या देशभर में परीक्षण संभव है?
वर्तमान में, यह अनिवार्य है कि अधिकतर उत्पाद जैसे पानी के डिब्बे और लगभग 140 अन्य उत्पाद बीआईएस मानक मापदंडों से मेल खाते हों. केंद्र को यह अनिवार्य बनाने का अधिकार सुरक्षित है कि हर उत्पाद/सेवा को गुणवत्ता मानक परीक्षण पास करना होगा. पेयजल की गुणवत्ता से संबंधित, हाल में हुए घटनाक्रमों के मद्देनजर, बीआईएस अधिकारी जल परीक्षण के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे पर चर्चा करने के लिए राज्यों के सरकारी स्वास्थ्य विभागों और नगर पालिकाओं के साथ चर्चा कर रहे हैं, जो कि पीने के पानी की आपूर्ति के लिए महत्वपूर्ण है.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने हाल ही में एक नल से सीधे पीने के पानी का उपयोग करने के लिए स्पष्ट तौर पर मना नहीं किया है. एक अध्ययन से पता चला है कि यमुना नदी ने प्रदूषण नियंत्रण सीमाओं को पार कर चुका है. इस पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए... बड़ा सवाल यह है कि क्या यह घोषणा करना संभव है कि नल से दिया जाने वाला पानी बीआईएस मानकों पर खरा उतरता है.

वास्तव में, 2024 तक सभी लोगों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के अपने मिशन के तहत, केंद्रीय उपभोक्ता विभाग ने बीआईएस की मदद से देशभर में आपूर्ति किए जा रहे नल के पानी की गुणवत्ता का परीक्षण करने का निर्णय लिया है.

राज्यों, स्मार्ट शहरों और जिलों को गुणवत्ता मापदंडों के परीक्षण के आधार पर श्रेणीबद्ध करने की उम्मीद है. इसके तहत, हाल ही में स्थापित 'भारतीय मानक 10500 : 2012' पीने के पानी के उद्देश्य से, घोषणा की कि अधिकतर नमूनों का परीक्षण जो भौतिक, रासायनिक और विषाक्तता के मापदंडों पर किए थे. इनमें से ज़्यादातर मॉडल विफल रहे. मुंबई दुनिया के सबसे साफ पानी की आपूर्ति करने वाले शहरों में से नंबर एक रूप में उभरा, क्योंकि परीक्षण के लिए मुंबई से एकत्र किए गए 10 नमूनों में से कोई भी विफल नहीं हुआ.

हैदराबाद और भुवनेश्वर में एकत्र किए गए 10 नमूनों में से केवल 1 नमूने के साथ मुंबई के बाद आने वाले शहरों में हैं. अमरावती में दस में से छह नमूने फेल हो गए. दिल्ली, चंडीगढ़, तिरुवनंतपुरम, पटना, भोपाल, गुवाहाटी, बेंगलुरु, गांधीनगर, लखनऊ, जम्मू,, जयपुर, देहरादून और कोलकाता में सभी नमूने विफल रहे. पूर्वोत्तर राज्यों की राजधानियों और अन्य राजधानियों में पीने के पानी के परीक्षण के बाद 15 जनवरी 2020 तक रिपोर्ट जारी की जाएगी.

योजना है कि सभी जिला केंद्रों से नमूने एकत्र करने और परीक्षण करने ने बाद 15 अगस्त, 2020 तक रिपोर्ट जारी की जाए.

भारत के कई शहरों के साथ-साथ देश के 256 जिलों में पानी की कमी का सामना करना पड़ रहा है, जबकि बाकी जगहों पर लगभग 70 प्रतिशत पानी दूषित है.

सतही जल स्रोत प्रदूषण की जकड़ में हैं. कुछ जल के स्रोत सूख गए हैं और कुछ कूड़ेदान में तब्दील गए हैं. नदियों की स्थिति कोई अपवाद नहीं है.

यह तथ्य जल प्रबंधन हमारी सरकारों के चेहरे पर एक व्यंग हैं. यह जल विज्ञान की बुनियादी बातों की उपेक्षा का परिणाम है. देश में लगभग 18 करोड़ ग्रामीण परिवार हैं और केवल 3.3 करोड़ परिवारों के पास नल से प्राप्त होने वाला जल है.

जबकि 14.5 करोड़ घर आज भी इस सुविधा से दूर हैं. आज भी, लाखों लोगों के पास साफ पानी तक पहुंच नहीं है. कुछ समय पहले, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने यह सुनिश्चित करने के लिए एक कड़ा लक्ष्य निर्धारित किया कि 2024 तक जलजीवन मिशन (जेजेएम) के माध्यम से हर गांव और हर घर के लिए सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराया जाना चाहिए.

जलजीवन मिशन केवल एक सरकारी कार्यक्रम नहीं है, यह एक सार्वजनिक कार्यक्रम है जिसमें जनता को भी हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित किया गया है.

इसके लिए, केंद्र की योजना 2024 तक ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रतिदिन 43 से 55 लीटर सुरक्षित पेयजल प्राप्त करने की है. इस काम के लिए 3.5 लाख करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया गया है. राष्ट्रीय जलजीवन कोष की स्थापना देश में स्वच्छता कार्यक्रमों के रखरखाव के लिए स्वच्छ भारत कोष के नाम से भी की जाएगी.

स्वच्छ पानी की तलाश में
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के शब्दों में, 'जलजीवन मिशन' को सफल बनाना है तो स्वच्छता बहुत जरूरी है. जल स्रोतों की मल-जल प्रणाली को शुद्ध करने के लिए उपायों की आवश्यकता है. पीने की पानी की जरूरतों के लिए भूजल पर बहुत अधिक निर्भर होने के बजाय नदियों को उपयोगी बनाने के लिए नदियों का कायाकल्प किया जाना चाहिए.

जल स्रोतों को बढ़ाने के लिए जल संरक्षण, मरम्मत और पुन: उपयोग की प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए. वर्षा जल संचयन और सिंचाई के उचित प्रबंधन पर जनता को शिक्षित करना आवश्यक है. घरों में आपूर्ति किए जाने वाले पानी की गुणवत्ता और मात्रा की निगरानी के लिए डिजिटल सेंसर का उपयोग फायदेमंद है. जल संसाधनों की मरम्मत और वितरण को स्थानीय स्तर पर विकेंद्रीकृत करने की आवश्यकता है. जलजीवन मिशन और कौशल विकास मंत्रालय मिलकर गांवों में महिलाओं को नल के पानी की गुणवत्ता का परीक्षण करने के लिए प्रशिक्षित करते हैं. इसमें कोई शक नहीं कि यदि जलजीवन मिशन अपना उद्देश्य परा करने में सफल होता है तो मोदी सरकार देश में पीने के पानी में क्रांति लाने में सक्षम होगी.

गुजरात से सीखा सबक
जल संसाधनों में प्रधानमंत्री मोदी की विशेष रुचि है. अगर हमें नीतिगत मुद्दे के रूप में पानी पर विचार करने में उनकी रुचि के बारे में जानना है... हमें 2002 में दोबारा यात्रा करनी चाहिए. गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान, उत्तरी गुजरात, सौराष्ट्र और कच्छ में पानी की गंभीर कमी हुई. अधिकारियों को ट्रेनों और टैंकरों के माध्यम से पानी लाकर समस्या का सामना करने के लिए संघर्ष करना पड़ा.

मोदी ने अधिकारियों को स्पष्ट कर दिया है कि एक अस्थायी समाधान के बजाय एक स्थायी समाधान किया जाना चाहिए. परिणाम छह साल की अवधि में प्राप्त किए गए थे. 2008 से राज्य में भूजल स्तर में काफी वृद्धि हुई. राज्य के 80% घरों में नल का पानी उपलब्ध कराया गया था. राज्य में जब भी बाढ़ का पानी आता था, दक्षिण गुजरात से सौराष्ट्र और अन्य पानी की कमी वाले इलाकों में ले जाया जाता था. जलाशय भरे हुए थे. खेती के लिए पानी प्रदान किया गया था.

भूजल का कायाकल्प किया गया है. जब 2019 में बारिश बहुत अधिक हुई, तो जलाशय अपनी क्षमता से अधिक भर गये. 'गुजरात वाटरग्रिड' प्रणाली ने राज्य के 18,500 गांवों में से 14 हजार से अधिक गांवों की प्यास बुझाई है. यह जल प्रणाली अपनी प्रचंड सफलता के बाद, इस प्रकार, देश के बाकी हिस्सों में जल संरक्षण और उपयोग का एक आदर्श मॉडल बन गई.

गुणवत्ता में कमी
मई 2009 की गर्मियों के दौरान हैदराबाद के भोलकपुर में दूषित नल का पानी पीने से सात लोगों की मौत हो गई थी. माना जाता है कि यह प्रदूषण चमड़े के उद्योग द्वारा मीठे पानी के पाइपों में छोड़े गए प्रदूषकों के कारण हुआ था. दस्त के कारण दो दिनों में सात लोगों की मौत हो गई, जिसका प्रभाव गर्मी की तेज लहरों के कारण अधिक था. सैकड़ों गरीब लोग अस्पताल में भर्ती हुए थे.

स्थानीय लोगों ने कुछ दिन पहले पीने के पानी के दूषित होने की शिकायत की थी, लेकिन अधिकारी अनदेखी करते रहे, जिससे निर्दोष लोगों की मौत हो गयी. इस घटना ने हमारे पेयजल के मानकों और अधिकारियों की उपेक्षा को भी उजागर किया था. दुर्भाग्य से, हम जब भी रसोई के नल खोलते हैं, दूषित पानी के प्रवाह को देखते हैं!!!

- श्रीनिवास दरोगोनी

लगभग 10 दशक पहले, एक जैन भिक्षु, बुद्धिसागर ने भविष्य की ओर दृष्टि कर यह भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि भविष्य में किराने की दुकानों में पानी बेचा जाएगा, और अब हम अपने घर के पास की दुकानों से ताजे पानी के नाम पर पानी के डिब्बे खरीद रहे हैं.

हम इस स्थिति तक आखिर कैसे पहुंच गए? यह इस संदेह के कारण है कि घरों में आने वाला ताजा पानी सीधे तौर पर पीने के काबिल नहीं है. नल के पानी में लगातार मल के अंश पाया जाना देश के सभी लोगों का भयावह अनुभव है. ज़रा सोचिए अगर केंद्रीय मंत्री खुद को कभी ऐसी ही स्थिति में पाएं तो!

हाल ही में, देश की राजधानी, नई दिल्ली में, गुणवत्ता मानकों के लिए नल से प्राप्त पीने के पानी की स्वच्छता का परीक्षण किया गया. इसके लिए, विभिन्न रिहायशी इलाकों से पानी के 11 नमूने एकत्र किए गए थे. इन आवासों में से एक, 10 जनपथ, कृष्णभवन में केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान का कार्यालय भी था. इस पानी को उनकी गुणवत्ता के लिए चुनिंदा 19 मापदंडों में परखा गया था. दुर्भाग्यवश लगभग सभी 11 नमूने इन मापदंडों द्वारा निर्धारित मानकों पर खरा उतरने में विफल रहे.

पानी के नमूने घुलित ठोस पदार्थ, अशुद्धियों, कठोरता, क्षारीयता, खनिज, धातु सामग्री, मल-जल के अंश और रोगाणुओ जैसे मापदंडों पर स्वच्छ साबित करने में नाकामियाब रहे. यह परिणाम सचमुच एक राजनीतिक आपदा के तौर पर देखे गए.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 'हमारी सरकार के लिए अपमान है' का नारा दिया और उन्होंने दिल्ली में मौजूद अस्वच्छ पेयजल के आरोप को साबित करने की चुनौती उन्होंने आनन-फानन में दे डाली.

पढ़ें- सबरीमाला मंदिर को मिला 66 करोड़ रुपये से ज्यादा का राजस्व

पासवान, ने जब यह स्पष्ट किया कि यह अध्ययन केवल राज्य सरकारों को, लोगों को स्वच्छ पेयजल प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए किया गया था, तब जाकर कहीं यह विवाद शांत हुआ. पासवान ने आश्वासन दिया कि यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए जाएंगे कि देश में शहरों में दिया जाने वाला पानी भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) द्वारा निर्धारित गुणवत्ता मानकों को पूरा करे. सभी जल आपूर्ति कम्पनियों को बीआईएस अनिवार्य मानकों का पालन करने के लिए कहा गया है. संभवतः एक बेहतर स्थिति की उम्मीद की जा सकती है, इस घटना के कारण जहां मंत्री ने बीआईएस मानकों को एक अंतरराष्ट्रीय स्तर तक बढ़ाने और नागरिकों को अंतरराष्ट्रीय मानक का पानी उपलब्ध कराने की ज़िम्मेदारी खुद अपने कंधों पर ले ली है.

क्या देशभर में परीक्षण संभव है?
वर्तमान में, यह अनिवार्य है कि अधिकतर उत्पाद जैसे पानी के डिब्बे और लगभग 140 अन्य उत्पाद बीआईएस मानक मापदंडों से मेल खाते हों. केंद्र को यह अनिवार्य बनाने का अधिकार सुरक्षित है कि हर उत्पाद/सेवा को गुणवत्ता मानक परीक्षण पास करना होगा. पेयजल की गुणवत्ता से संबंधित, हाल में हुए घटनाक्रमों के मद्देनजर, बीआईएस अधिकारी जल परीक्षण के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे पर चर्चा करने के लिए राज्यों के सरकारी स्वास्थ्य विभागों और नगर पालिकाओं के साथ चर्चा कर रहे हैं, जो कि पीने के पानी की आपूर्ति के लिए महत्वपूर्ण है.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने हाल ही में एक नल से सीधे पीने के पानी का उपयोग करने के लिए स्पष्ट तौर पर मना नहीं किया है. एक अध्ययन से पता चला है कि यमुना नदी ने प्रदूषण नियंत्रण सीमाओं को पार कर चुका है. इस पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए... बड़ा सवाल यह है कि क्या यह घोषणा करना संभव है कि नल से दिया जाने वाला पानी बीआईएस मानकों पर खरा उतरता है.

वास्तव में, 2024 तक सभी लोगों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के अपने मिशन के तहत, केंद्रीय उपभोक्ता विभाग ने बीआईएस की मदद से देशभर में आपूर्ति किए जा रहे नल के पानी की गुणवत्ता का परीक्षण करने का निर्णय लिया है.

राज्यों, स्मार्ट शहरों और जिलों को गुणवत्ता मापदंडों के परीक्षण के आधार पर श्रेणीबद्ध करने की उम्मीद है. इसके तहत, हाल ही में स्थापित 'भारतीय मानक 10500 : 2012' पीने के पानी के उद्देश्य से, घोषणा की कि अधिकतर नमूनों का परीक्षण जो भौतिक, रासायनिक और विषाक्तता के मापदंडों पर किए थे. इनमें से ज़्यादातर मॉडल विफल रहे. मुंबई दुनिया के सबसे साफ पानी की आपूर्ति करने वाले शहरों में से नंबर एक रूप में उभरा, क्योंकि परीक्षण के लिए मुंबई से एकत्र किए गए 10 नमूनों में से कोई भी विफल नहीं हुआ.

हैदराबाद और भुवनेश्वर में एकत्र किए गए 10 नमूनों में से केवल 1 नमूने के साथ मुंबई के बाद आने वाले शहरों में हैं. अमरावती में दस में से छह नमूने फेल हो गए. दिल्ली, चंडीगढ़, तिरुवनंतपुरम, पटना, भोपाल, गुवाहाटी, बेंगलुरु, गांधीनगर, लखनऊ, जम्मू,, जयपुर, देहरादून और कोलकाता में सभी नमूने विफल रहे. पूर्वोत्तर राज्यों की राजधानियों और अन्य राजधानियों में पीने के पानी के परीक्षण के बाद 15 जनवरी 2020 तक रिपोर्ट जारी की जाएगी.

योजना है कि सभी जिला केंद्रों से नमूने एकत्र करने और परीक्षण करने ने बाद 15 अगस्त, 2020 तक रिपोर्ट जारी की जाए.

भारत के कई शहरों के साथ-साथ देश के 256 जिलों में पानी की कमी का सामना करना पड़ रहा है, जबकि बाकी जगहों पर लगभग 70 प्रतिशत पानी दूषित है.

सतही जल स्रोत प्रदूषण की जकड़ में हैं. कुछ जल के स्रोत सूख गए हैं और कुछ कूड़ेदान में तब्दील गए हैं. नदियों की स्थिति कोई अपवाद नहीं है.

यह तथ्य जल प्रबंधन हमारी सरकारों के चेहरे पर एक व्यंग हैं. यह जल विज्ञान की बुनियादी बातों की उपेक्षा का परिणाम है. देश में लगभग 18 करोड़ ग्रामीण परिवार हैं और केवल 3.3 करोड़ परिवारों के पास नल से प्राप्त होने वाला जल है.

जबकि 14.5 करोड़ घर आज भी इस सुविधा से दूर हैं. आज भी, लाखों लोगों के पास साफ पानी तक पहुंच नहीं है. कुछ समय पहले, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने यह सुनिश्चित करने के लिए एक कड़ा लक्ष्य निर्धारित किया कि 2024 तक जलजीवन मिशन (जेजेएम) के माध्यम से हर गांव और हर घर के लिए सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराया जाना चाहिए.

जलजीवन मिशन केवल एक सरकारी कार्यक्रम नहीं है, यह एक सार्वजनिक कार्यक्रम है जिसमें जनता को भी हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित किया गया है.

इसके लिए, केंद्र की योजना 2024 तक ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रतिदिन 43 से 55 लीटर सुरक्षित पेयजल प्राप्त करने की है. इस काम के लिए 3.5 लाख करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया गया है. राष्ट्रीय जलजीवन कोष की स्थापना देश में स्वच्छता कार्यक्रमों के रखरखाव के लिए स्वच्छ भारत कोष के नाम से भी की जाएगी.

स्वच्छ पानी की तलाश में
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के शब्दों में, 'जलजीवन मिशन' को सफल बनाना है तो स्वच्छता बहुत जरूरी है. जल स्रोतों की मल-जल प्रणाली को शुद्ध करने के लिए उपायों की आवश्यकता है. पीने की पानी की जरूरतों के लिए भूजल पर बहुत अधिक निर्भर होने के बजाय नदियों को उपयोगी बनाने के लिए नदियों का कायाकल्प किया जाना चाहिए.

जल स्रोतों को बढ़ाने के लिए जल संरक्षण, मरम्मत और पुन: उपयोग की प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए. वर्षा जल संचयन और सिंचाई के उचित प्रबंधन पर जनता को शिक्षित करना आवश्यक है. घरों में आपूर्ति किए जाने वाले पानी की गुणवत्ता और मात्रा की निगरानी के लिए डिजिटल सेंसर का उपयोग फायदेमंद है. जल संसाधनों की मरम्मत और वितरण को स्थानीय स्तर पर विकेंद्रीकृत करने की आवश्यकता है. जलजीवन मिशन और कौशल विकास मंत्रालय मिलकर गांवों में महिलाओं को नल के पानी की गुणवत्ता का परीक्षण करने के लिए प्रशिक्षित करते हैं. इसमें कोई शक नहीं कि यदि जलजीवन मिशन अपना उद्देश्य परा करने में सफल होता है तो मोदी सरकार देश में पीने के पानी में क्रांति लाने में सक्षम होगी.

गुजरात से सीखा सबक
जल संसाधनों में प्रधानमंत्री मोदी की विशेष रुचि है. अगर हमें नीतिगत मुद्दे के रूप में पानी पर विचार करने में उनकी रुचि के बारे में जानना है... हमें 2002 में दोबारा यात्रा करनी चाहिए. गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान, उत्तरी गुजरात, सौराष्ट्र और कच्छ में पानी की गंभीर कमी हुई. अधिकारियों को ट्रेनों और टैंकरों के माध्यम से पानी लाकर समस्या का सामना करने के लिए संघर्ष करना पड़ा.

मोदी ने अधिकारियों को स्पष्ट कर दिया है कि एक अस्थायी समाधान के बजाय एक स्थायी समाधान किया जाना चाहिए. परिणाम छह साल की अवधि में प्राप्त किए गए थे. 2008 से राज्य में भूजल स्तर में काफी वृद्धि हुई. राज्य के 80% घरों में नल का पानी उपलब्ध कराया गया था. राज्य में जब भी बाढ़ का पानी आता था, दक्षिण गुजरात से सौराष्ट्र और अन्य पानी की कमी वाले इलाकों में ले जाया जाता था. जलाशय भरे हुए थे. खेती के लिए पानी प्रदान किया गया था.

भूजल का कायाकल्प किया गया है. जब 2019 में बारिश बहुत अधिक हुई, तो जलाशय अपनी क्षमता से अधिक भर गये. 'गुजरात वाटरग्रिड' प्रणाली ने राज्य के 18,500 गांवों में से 14 हजार से अधिक गांवों की प्यास बुझाई है. यह जल प्रणाली अपनी प्रचंड सफलता के बाद, इस प्रकार, देश के बाकी हिस्सों में जल संरक्षण और उपयोग का एक आदर्श मॉडल बन गई.

गुणवत्ता में कमी
मई 2009 की गर्मियों के दौरान हैदराबाद के भोलकपुर में दूषित नल का पानी पीने से सात लोगों की मौत हो गई थी. माना जाता है कि यह प्रदूषण चमड़े के उद्योग द्वारा मीठे पानी के पाइपों में छोड़े गए प्रदूषकों के कारण हुआ था. दस्त के कारण दो दिनों में सात लोगों की मौत हो गई, जिसका प्रभाव गर्मी की तेज लहरों के कारण अधिक था. सैकड़ों गरीब लोग अस्पताल में भर्ती हुए थे.

स्थानीय लोगों ने कुछ दिन पहले पीने के पानी के दूषित होने की शिकायत की थी, लेकिन अधिकारी अनदेखी करते रहे, जिससे निर्दोष लोगों की मौत हो गयी. इस घटना ने हमारे पेयजल के मानकों और अधिकारियों की उपेक्षा को भी उजागर किया था. दुर्भाग्य से, हम जब भी रसोई के नल खोलते हैं, दूषित पानी के प्रवाह को देखते हैं!!!

- श्रीनिवास दरोगोनी

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