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इस चुनाव की प्रमुख बातें, कल आखिरी चरण का मतदान

भारत में पहली बार मतदान करने वाले मतदाताओं की संख्या रूस की आबादी से ज्यादा है. जनता दल यू जैसी पार्टियों ने अपना मैनिफेस्टो जारी नहीं किया. ऐसी ही कई रोचक जानकारी के पढ़ें पूरी खबर.

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Published : May 18, 2019, 6:38 PM IST

नई दिल्ली: आखिरी चरण का मतदान रविवार को होगा. इसके साथ ही लोकसभा के लिए सातवें चरण का चुनाव संपन्न हो जाएगा. आइए जानते हैं कि इस बार चुनाव में कौन-कौन से प्रमुख विषय रहे, जो हमेशा सुर्खियां बटोरता रहा.

क्या हैं प्रमुख बिंदु

  • यह देश का 17वां आम चुनाव है.
  • कल होने वाले आखिरी चरण के चुनाव में करीब 10 करोड़ मतदाता हिस्सा लेंगे. इस बार सात चरणों में चुनाव कराए गए हैं.
  • अभी तक छह चरणों के चुनाव में औसतन 66.34 फीसदी मतदान हुए हैं.
  • अगर आखिरी चरण में भी ऐसा ही मतदान हुआ, तो यह अपने आप में एक रिकॉर्ड होगा. यानि पिछले सभी चुनावों के मुकाबले इस बार सबसे अधिक मतदाता इस चुनाव में अपनी भागीदारी करेंगे.
  • भाजपा के वरिष्ठ लाल कृष्ण आडवाणी ने एक बार कहा था कि चुनाव लोगों के बीच राजनीतिक जागरूकता बढ़ाने का सबसे अच्छा अवसर होता है. लेकिन राजनीतिक पार्टियां इस सोच पर पूरी तरह से खरा नहीं उतर पाई है.
  • राजनीतिक पार्टियां अगले पांच सालों में आम लोगों की जिंदगी में किस तरह के बदलाव लाएंगी, इसे समझाने में लगभग नाकायाब रहीं हैं.
  • जनता दल यू जैसी पार्टी ने इस चुनाव के लिए अपना मैनिफेस्टो जारी भी नहीं किया. दूसरी पार्टियों ने इसे जारी तो अवश्य किया. लेकिन उनका मुख्य जोर दूसरी पार्टियों के मैनिफेस्टो की आलोचना करना ही रहा. इनमें देश के विकास का रचनात्मक एजेंडा नहीं दिखा.
  • चुनाव प्रचार में आरोप-प्रत्यारोप ज्यादा रहा. इसमें कर्कशता दिखाई दी.
  • राजनीतिक पार्टियों के नेताओं की जुबान वैसी ही थी, मानो किसी कारखाने की चिमनी से प्रदूषण बढ़ाने वाला धुआं निकल रहा हो.
  • हद तो ये है कि कुछ नेताओं ने गांधी को पाकिस्तान का राष्ट्रपिता तक बता डाला.
  • इस चुनाव में पहली बार भाजपा कांग्रेस के मुकाबले उससे अधिक सीटों पर चुनाव लड़ी. भाजपा ने अबकी बार तीन सौ पार का नारा दिया है.
  • कांग्रेस पार्टी इस चुनाव के दौरान अपनी खोई हुई जमीन को दोबारा हासिल करने के प्रयास के रूप में लड़ी. क्षेत्रीय पार्टियों के सामने पहचान बचाने का संकट दिखाई देता रहा.
  • प्रचार के दौरान हरेक हरेक पार्टी हताश दिखी. आचार संहिता पर कोई भी पार्टी गंभीर नहीं दिखी.
  • बुद्धिजीवी वर्ग का मानना है कि चुनाव आयोग की साख इस बार निचले स्तर तक चला गया.
  • आयोग की कार्रवाई के बावजूद लोगों का उनके प्रति विश्वास घटा.
  • हमारे यहां पहली बार मतदान करने वाले मतदाताओं की संख्या रूस की आबादी से ज्यादा है. यह भारत को पूरी दुनिया में सबसे अनूठा बनाता है.
  • देश में करीब 90 करोड़ वोटर्स हैं. भारत के सामने अनेकों चुनौतियां हैं.
  • 2014 में यूपीए सरकार हार गई थी. तब उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे थे.
  • लोगों ने मोदी के विकास के एजेंडे पर यकीन कर वोट किया.
  • इस बार मोदी सरकार को अपने कामकाज के आधार पर चुनाव लड़ना था. उसे जनता को यह बताना था कि उन्होंने क्या काम किया है और अगले पांच सालों में वह क्या करेंगे.
  • ऐसा नहीं हो सका. पार्टी ने प्रचार की ऐसी रणनीति चुनी, इससे अनावश्यक विवाद बढ़ा. चुनावी शोर में बेवजह तर्क-वितर्क होते रहे.
  • मायावती ने पीएम मोदी की पत्नी का मुद्दा उठा दिया. मोदी ने राजीव गांधी और उनके परिवार की छुट्टियों को मुद्दा बनाया. यह तीस साल पुराना वाकया है.
  • यह तरीका अपने आप में बताता है कि प्रचार किस हद तक गिर चुका है. चौकीदार चोर है नारे को लेकर राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उससे जोड़ दिया. बाद में उन्हें माफी मांगनी पड़ी.
  • चुनाव आयोग को लेकर विपक्षी पार्टियों ने सवाल उठाए. शिकायत पर कोई भी कार्रवाई नहीं होने पर विपक्षी पार्टियों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
  • विपक्षी पार्टियों का आरोप था कि पीएम मोदी और अमित शाह के प्रति चुनाव आयोग कठोर कदम नहीं उठा रहा है.
  • क्या पिछले 68 सालों में चुनाव आयोग ने कभी भी इस तरह की स्थितियों का सामना किया.
  • चुनाव आयोग ने कई फैसले किए, जिससे यह संदेश गया कि आयोग सत्ताधारी दल से मिला हुआ है. जबकि आयोग से यह उम्मीद की जाती है कि किसी का भी पक्ष नहीं लिया जाए.
  • पीएम मोदी को क्लीन चिट देने पर सबसे ज्यादा विवाद हुआ. आंध्र प्रदेश में चुनाव आयोग पर्याप्त संख्या में सुरक्षा बलों की तैनाती नहीं करवा सका. परिणाम स्वरूप राज्य में चुनाव के दौरान हिंसा की घटनाएं हुईं.
  • प. बंगाल में पर्याप्त संख्या में सुरक्षा बलों के इंतजाम किए गए, फिर भी वहां हिंसा की घटना हो गई.
  • आरोप ये भी लगा कि इस फैसले के जरिए पीएम मोदी की रैली को फायदा पहुंचाया गया.
  • 66 पूर्व अधिकारियों ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता को लेकर राष्ट्रपति को पत्र लिखा है.
  • अधिकारियों के तबादले को लेकर भी चुनाव आयोग ने एकतरफा फैसला किया. 23 मई को परिणाम आएगा. कोई भी सरकार बने, उनके सामने यह चुनौती होगी, कि चुनाव आयोग में सुधार लगाए.

नई दिल्ली: आखिरी चरण का मतदान रविवार को होगा. इसके साथ ही लोकसभा के लिए सातवें चरण का चुनाव संपन्न हो जाएगा. आइए जानते हैं कि इस बार चुनाव में कौन-कौन से प्रमुख विषय रहे, जो हमेशा सुर्खियां बटोरता रहा.

क्या हैं प्रमुख बिंदु

  • यह देश का 17वां आम चुनाव है.
  • कल होने वाले आखिरी चरण के चुनाव में करीब 10 करोड़ मतदाता हिस्सा लेंगे. इस बार सात चरणों में चुनाव कराए गए हैं.
  • अभी तक छह चरणों के चुनाव में औसतन 66.34 फीसदी मतदान हुए हैं.
  • अगर आखिरी चरण में भी ऐसा ही मतदान हुआ, तो यह अपने आप में एक रिकॉर्ड होगा. यानि पिछले सभी चुनावों के मुकाबले इस बार सबसे अधिक मतदाता इस चुनाव में अपनी भागीदारी करेंगे.
  • भाजपा के वरिष्ठ लाल कृष्ण आडवाणी ने एक बार कहा था कि चुनाव लोगों के बीच राजनीतिक जागरूकता बढ़ाने का सबसे अच्छा अवसर होता है. लेकिन राजनीतिक पार्टियां इस सोच पर पूरी तरह से खरा नहीं उतर पाई है.
  • राजनीतिक पार्टियां अगले पांच सालों में आम लोगों की जिंदगी में किस तरह के बदलाव लाएंगी, इसे समझाने में लगभग नाकायाब रहीं हैं.
  • जनता दल यू जैसी पार्टी ने इस चुनाव के लिए अपना मैनिफेस्टो जारी भी नहीं किया. दूसरी पार्टियों ने इसे जारी तो अवश्य किया. लेकिन उनका मुख्य जोर दूसरी पार्टियों के मैनिफेस्टो की आलोचना करना ही रहा. इनमें देश के विकास का रचनात्मक एजेंडा नहीं दिखा.
  • चुनाव प्रचार में आरोप-प्रत्यारोप ज्यादा रहा. इसमें कर्कशता दिखाई दी.
  • राजनीतिक पार्टियों के नेताओं की जुबान वैसी ही थी, मानो किसी कारखाने की चिमनी से प्रदूषण बढ़ाने वाला धुआं निकल रहा हो.
  • हद तो ये है कि कुछ नेताओं ने गांधी को पाकिस्तान का राष्ट्रपिता तक बता डाला.
  • इस चुनाव में पहली बार भाजपा कांग्रेस के मुकाबले उससे अधिक सीटों पर चुनाव लड़ी. भाजपा ने अबकी बार तीन सौ पार का नारा दिया है.
  • कांग्रेस पार्टी इस चुनाव के दौरान अपनी खोई हुई जमीन को दोबारा हासिल करने के प्रयास के रूप में लड़ी. क्षेत्रीय पार्टियों के सामने पहचान बचाने का संकट दिखाई देता रहा.
  • प्रचार के दौरान हरेक हरेक पार्टी हताश दिखी. आचार संहिता पर कोई भी पार्टी गंभीर नहीं दिखी.
  • बुद्धिजीवी वर्ग का मानना है कि चुनाव आयोग की साख इस बार निचले स्तर तक चला गया.
  • आयोग की कार्रवाई के बावजूद लोगों का उनके प्रति विश्वास घटा.
  • हमारे यहां पहली बार मतदान करने वाले मतदाताओं की संख्या रूस की आबादी से ज्यादा है. यह भारत को पूरी दुनिया में सबसे अनूठा बनाता है.
  • देश में करीब 90 करोड़ वोटर्स हैं. भारत के सामने अनेकों चुनौतियां हैं.
  • 2014 में यूपीए सरकार हार गई थी. तब उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे थे.
  • लोगों ने मोदी के विकास के एजेंडे पर यकीन कर वोट किया.
  • इस बार मोदी सरकार को अपने कामकाज के आधार पर चुनाव लड़ना था. उसे जनता को यह बताना था कि उन्होंने क्या काम किया है और अगले पांच सालों में वह क्या करेंगे.
  • ऐसा नहीं हो सका. पार्टी ने प्रचार की ऐसी रणनीति चुनी, इससे अनावश्यक विवाद बढ़ा. चुनावी शोर में बेवजह तर्क-वितर्क होते रहे.
  • मायावती ने पीएम मोदी की पत्नी का मुद्दा उठा दिया. मोदी ने राजीव गांधी और उनके परिवार की छुट्टियों को मुद्दा बनाया. यह तीस साल पुराना वाकया है.
  • यह तरीका अपने आप में बताता है कि प्रचार किस हद तक गिर चुका है. चौकीदार चोर है नारे को लेकर राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उससे जोड़ दिया. बाद में उन्हें माफी मांगनी पड़ी.
  • चुनाव आयोग को लेकर विपक्षी पार्टियों ने सवाल उठाए. शिकायत पर कोई भी कार्रवाई नहीं होने पर विपक्षी पार्टियों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
  • विपक्षी पार्टियों का आरोप था कि पीएम मोदी और अमित शाह के प्रति चुनाव आयोग कठोर कदम नहीं उठा रहा है.
  • क्या पिछले 68 सालों में चुनाव आयोग ने कभी भी इस तरह की स्थितियों का सामना किया.
  • चुनाव आयोग ने कई फैसले किए, जिससे यह संदेश गया कि आयोग सत्ताधारी दल से मिला हुआ है. जबकि आयोग से यह उम्मीद की जाती है कि किसी का भी पक्ष नहीं लिया जाए.
  • पीएम मोदी को क्लीन चिट देने पर सबसे ज्यादा विवाद हुआ. आंध्र प्रदेश में चुनाव आयोग पर्याप्त संख्या में सुरक्षा बलों की तैनाती नहीं करवा सका. परिणाम स्वरूप राज्य में चुनाव के दौरान हिंसा की घटनाएं हुईं.
  • प. बंगाल में पर्याप्त संख्या में सुरक्षा बलों के इंतजाम किए गए, फिर भी वहां हिंसा की घटना हो गई.
  • आरोप ये भी लगा कि इस फैसले के जरिए पीएम मोदी की रैली को फायदा पहुंचाया गया.
  • 66 पूर्व अधिकारियों ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता को लेकर राष्ट्रपति को पत्र लिखा है.
  • अधिकारियों के तबादले को लेकर भी चुनाव आयोग ने एकतरफा फैसला किया. 23 मई को परिणाम आएगा. कोई भी सरकार बने, उनके सामने यह चुनौती होगी, कि चुनाव आयोग में सुधार लगाए.
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भारत में पहली बार मतदान करने वाले मतदाताओं की संख्या रूस की आबादी से ज्यादा है. जनता दल यू जैसी पार्टियों ने अपना मैनिफेस्टो जारी नहीं किया. ऐसी ही कई रोचक जानकारी के पढ़ें  पूरी खबर. 





इस चुनाव की प्रमुख बातें, कल आखिरी चरण का मतदान



नई दिल्ली: आखिरी चरण का मतदान रविवार को होगा. इसके साथ ही लोकसभा के लिए सातवें चरण का चुनाव संपन्न हो जाएगा. आइए जानते हैं कि इस बार चुनाव में कौन-कौन से प्रमुख विषय रहे, जो हमेशा सुर्खियां बटोरता रहा. 



क्या हैं प्रमुख बिंदु

यह देश का 17वां आम चुनाव है.

 

कल होने वाले आखिरी चरण के चुनाव में करीब 10 करोड़ मतदाता हिस्सा लेंगे. इस बार सात चरणों में चुनाव कराए गए हैं. 



अभी तक छह चरणों के चुनाव में औसतन 66.34 फीसदी मतदान हुए हैं.



अगर आखिरी चरण में भी ऐसा ही मतदान हुआ, तो यह अपने आप में एक रिकॉर्ड होगा. यानि पिछले सभी चुनावों के मुकाबले इस बार सबसे अधिक मतदाता इस चुनाव में अपनी भागीदारी करेंगे. 



भाजपा के वरिष्ठ लाल कृष्ण आडवाणी ने एक बार कहा था कि चुनाव लोगों के बीच राजनीतिक जागरूकता बढ़ाने का सबसे अच्छा अवसर होता है. लेकिन राजनीतिक पार्टियां इस सोच पर पूरी तरह से खरा नहीं उतर पाई है. 



राजनीतिक पार्टियां अगले पांच सालों में आम लोगों की जिंदगी में किस तरह के बदलाव लाएंगी, इसे समझाने में लगभग नाकायाब रहीं हैं. 



जनता दल यू जैसी पार्टी ने इस चुनाव के लिए अपना मैनिफेस्टो जारी भी नहीं किया. दूसरी पार्टियों ने इसे जारी तो अवश्य किया. लेकिन उनका मुख्य जोर दूसरी पार्टियों के मैनिफेस्टो की आलोचना करना ही रहा. इनमें देश के विकास का रचनात्मक एजेंडा नहीं दिखा. 



चुनाव प्रचार में आरोप-प्रत्यारोप ज्यादा रहा. इसमें कर्कशता दिखाई दी.



राजनीतिक पार्टियों के नेताओं की जुबान वैसी ही थी, मानो किसी कारखाने की चिमनी से प्रदूषण बढ़ाने वाला धुआं निकल रहा हो. 



हद तो ये है कि कुछ नेताओं ने गांधी को पाकिस्तान का राष्ट्रपिता तक बता डाला. 



इस चुनाव में पहली बार भाजपा कांग्रेस के मुकाबले उससे अधिक सीटों पर चुनाव लड़ी. भाजपा ने अबकी बार तीन सौ पार का नारा दिया है. 



कांग्रेस पार्टी इस चुनाव के दौरान अपनी खोई हुई जमीन को दोबारा हासिल करने के प्रयास के रूप में लड़ी. क्षेत्रीय पार्टियों के सामने पहचान बचाने का संकट दिखाई देता रहा. 



प्रचार के दौरान हरेक हरेक पार्टी हताश दिखी. आचार संहिता पर कोई भी पार्टी गंभीर नहीं दिखी. 



बुद्धिजीवी वर्ग का मानना है कि चुनाव आयोग की साख इस बार निचले स्तर तक चला गया. 



आयोग की कार्रवाई के बावजूद लोगों का उनके प्रति विश्वास घटा. 



हमारे यहां पहली बार मतदान करने वाले मतदाताओं की संख्या रूस की आबादी से ज्यादा है. यह भारत को पूरी दुनिया में सबसे अनूठा बनाता है. 



देश में करीब 90 करोड़ वोटर्स हैं. भारत के सामने अनेकों चुनौतियां हैं. 



2014 में यूपीए सरकार हार गई थी. तब उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे थे. 



लोगों ने मोदी के विकास के एजेंडे पर यकीन कर वोट किया. 



इस बार मोदी सरकार को अपने कामकाज के आधार पर चुनाव लड़ना था. उसे जनता को यह बताना था कि उन्होंने क्या काम किया है और अगले पांच सालों में वह क्या करेंगे. 



ऐसा नहीं हो सका. पार्टी ने प्रचार की ऐसी रणनीति चुनी, इससे अनावश्यक विवाद बढ़ा. चुनावी शोर में बेवजह तर्क-वितर्क होते रहे. 



मायावती ने पीएम मोदी की पत्नी का मुद्दा उठा दिया. मोदी ने राजीव गांधी और उनके परिवार की छुट्टियों को मुद्दा बनाया. यह तीस साल पुराना वाकया है. 



यह तरीका अपने आप में बताता है कि प्रचार किस हद तक गिर चुका है. चौकीदार चोर है नारे को लेकर राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उससे जोड़ दिया. बाद में उन्हें माफी मांगनी पड़ी. 



चुनाव आयोग को लेकर विपक्षी पार्टियों ने सवाल उठाए. शिकायत पर कोई भी कार्रवाई नहीं होने पर विपक्षी पार्टियों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.  



विपक्षी पार्टियों का आरोप था कि पीएम मोदी और अमित शाह के प्रति चुनाव आयोग कठोर कदम नहीं उठा रहा है. 



क्या पिछले 68 सालों में चुनाव आयोग ने कभी भी इस तरह की स्थितियों का सामना किया. 



चुनाव आयोग ने कई फैसले किए, जिससे यह संदेश गया कि आयोग सत्ताधारी दल से मिला हुआ है. जबकि आयोग से यह उम्मीद की जाती है कि किसी का भी पक्ष नहीं लिया जाए.



पीएम मोदी को क्लीन चिट देने पर सबसे ज्यादा विवाद हुआ. आंध्र प्रदेश में चुनाव आयोग पर्याप्त संख्या में सुरक्षा बलों की तैनाती नहीं करवा सका. परिणाम स्वरूप राज्य में चुनाव के दौरान हिंसा की घटनाएं हुईं. 



प. बंगाल में पर्याप्त संख्या में सुरक्षा बलों के इंतजाम किए गए, फिर भी वहां हिंसा की घटना हो गई. 



अमित शाह ने कोलकाता में जिस दिन रोड शो किया, उसके अगले दिन ही आयोग ने चुनाव प्रचार को लेकर बड़ा फैसला किया. प्रचार की तारीख एक दिन पहले ही खत्म कर दी गई. 



आरोप ये भी लगा कि इस फैसले के जरिए पीएम मोदी की रैली को फायदा पहुंचाया गया. 



66 पूर्व अधिकारियों ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता को लेकर राष्ट्रपति को पत्र लिखा है. 



अधिकारियों के तबादले को लेकर भी चुनाव आयोग ने एकतरफा फैसला किया. 23 मई को परिणाम आएगा. कोई भी सरकार बने, उनके सामने यह चुनौती होगी, कि चुनाव आयोग में सुधार लगाए. 


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