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झारखंड : अर्थव्यवस्था की रीढ़ है यह औद्योगिक क्षेत्र, झेल रहा कोरोना की मार - msme in jharkhand

झारखंड के सरायकेला जिले स्थित आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र, एशिया महादेश के लघु, सूक्ष्म और मध्यम दर्जे के उद्योगों के लिए प्रसिद्ध है. सरायकेला के औद्योगिक क्षेत्र से केंद्र और राज्य सरकार को राजस्व का एक बड़ा हिस्सा प्राप्त होता है. इससे लाखों लोगों को रोजगार भी मिलता है, लेकिन पिछले तीन महीने लॉकडाउन के कारण राज्य के अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले इन लघु, सूक्ष्म और मध्यम दर्जे के उद्योगों को तोड़ दिया है. पढे़ं खबर विस्तार से...

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अर्थव्यवस्था की रीढ़ है आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र
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Published : Jun 27, 2020, 11:27 AM IST

रांची : खनिज संपदा से भरा झारखंड पूरे विश्व में अलग पहचान रखता है. झारखंड से निकलने वाले खनिज संपदा आज न सिर्फ देश बल्कि विदेश के उद्योगों को भी आपूर्ति किए जाते हैं. ऐसे में भारतीय अर्थव्यवस्था में झारखंड के उद्योगों का एक अलग स्थान है.

झारखंड के अर्थव्यवस्था में भी स्थानीय उद्योगों की महती भूमिका है. झारखंड के सरायकेला जिले में स्थित आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र, एशिया महादेश के लघु, सूक्ष्म और मध्यम दर्जे के उद्योगों के लिए प्रसिद्ध है, सरायकेला के औद्योगिक क्षेत्र से केंद्र और राज्य सरकार को राजस्व का एक बड़ा हिस्सा प्राप्त होता है, तो वहीं यहां लाखों लोगों को रोजगार भी मिलता है, लेकिन पिछले तीन महीने लॉकडाउन के कारण राज्य के अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले इन लघु, सूक्ष्म और मध्यम दर्जे के उद्योगों को तोड़ दिया है.

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औद्योगिक क्षेत्र की कंपनियां

1397 उद्योगों में केवल 378 उद्योग ही खुले
सरायकेला के आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र में शुरुआती दौर में तकरीबन डेढ़ हजार से भी अधिक कल-कारखाने और उद्योग संचालित होते थे, लेकिन समय के साथ इनकी संख्या भी घटती गई है. आज औद्योगिक क्षेत्र में कुल 1397 उद्योग जीवित अवस्था में है. जबकि कोरोना के संकट काल और लॉकडाउन के बाद इन उद्योगों में काम करने वाले लाखों कर्मचारी और कामगार बेरोजगार हो गए थे. लंबे अरसे तक लॉकडाउन लेने के कारण सभी उद्योग बंद थे, लेकिन 20 अप्रैल के बाद केंद्र और राज्य सरकार की पहल पर स्थानीय उद्योग खुलने शुरू हुए हैं और इनमें काम भी शुरू हुआ, लेकिन आज उद्योग खुलने का सिलसिला दो महीने चलने के बाद भी उद्योगों की स्थिति कुछ ठीक नहीं है. आज 1397 उद्योगों में केवल 378 उद्योग ही पूरी तरह खुल पाए हैं और यह काम शुरू हुआ है, लेकिन अभी उद्योग चलाने में कई अड़चनें हैं.

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आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र

औद्योगिक क्षेत्र पर एक नजर

  • कुल उद्योग- 1397
  • बड़े दर्जे के उद्योग- लगभग - 100
  • मध्यम दर्जे के उद्योग - लगभग - 400
  • लघु उद्योग- लगभग 550
  • सूक्ष्म उद्योग- लगभग- 347।

रोजगार की स्थिति कुछ इस प्रकार है: ( अनुमानित आंकड़ा)

  • बड़े उद्योग से जुड़े लोग- 7 हजार
  • मध्यम उद्योग से जुड़े लोग- 15 हजार
  • लघु उद्योग से जुड़े लोग- 10 हजार
  • सूक्ष्मा उद्योग से जुड़े लोग- 30 हजार
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    अर्थव्यवस्था की रीढ़ है आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र

इसके अलावा आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भी हजारों लोग जुड़े हैं. जिनमें मुख्य रुप से चार पहिया वाहन मालिक, मिनी टैक्सी मालिक, होटल ढाबा संचालक और वहां काम करने वाले लोग, मैकेनिकल दुकानें, मालवाहक गाड़ियां और इनसे जुड़े लोगों को भी यहां रोजगार मिलता है.

टाटा मोटर्स पर आधारित है लगभग उद्योग
सरायकेला के आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र के लघु, सूक्ष्म और मध्यम दर्जे के तमाम उद्योग टाटा एंनसिलियरी, यानी टाटा मोटर्स पर निर्भर है. जमशेदपुर के टाटा मोटर्स प्लांट में गाड़ियां खासकर मालवाहक ट्रकों का जो निर्माण होता है. उससे संबंधित छोटे कल-पुर्जे औद्योगिक क्षेत्र के छोटी-बड़ी कंपनियां तैयार करती हैं. औद्योगिक क्षेत्र में वर्षों पुरानी एक कहावत प्रचलित है कि "जब टाटा मोटर्स को छींक आती है तो आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र को बुखार लग जाता है" कहने का तात्पर्य यह है कि यदि टाटा मोटर्स में बड़े पैमाने पर मालवाहक गाड़ियों का निर्माण होता है तो औद्योगिक क्षेत्र बूम पर रहता है और टाटा मोटर्स में जब ब्लॉक क्लोजर आता है तो औद्योगिक क्षेत्र के तमाम उद्योगों पर ताला लटक जाता है.

देखें स्पेशल स्टोरी

रेलवे और डिफेंस से भी जुड़े हैं स्थानीय उद्योग
ऐसा नहीं है कि औद्योगिक क्षेत्र की सभी कंपनियां टाटा मोटर्स पर ही आश्रित हैं. औद्योगिक क्षेत्र के विकास की गति को पूर्व में रेलवे और डिफेंस से जुड़ कर भी गति प्राप्त हुई है. आज यहां दर्जनों ऐसे उद्योग हैं, जो रेलवे और डिफेंस के लिए उपकरण और छोटे कल-पुर्जे भी तैयार कर रहे हैं. सरकार भी प्रयासरत है कि टाटा मोटर्स जैसे बड़े और नए उद्योग औद्योगिक क्षेत्र के अलावा राज्य में स्थापित हो ताकि एक ही उद्योग पर छोटे उद्योगों की निर्भरता समाप्त हो सके.

कोविड-19 में बैंकों को मिले तीन लाख करोड़ रुपए
कोविड-19 संक्रमण को लेकर सरकार ने पिछले दिनों लगाए गए लॉकडाउन के कारण बेपटरी हुए औद्योगिक अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए कोविड-19 रूप में बैंकों को केवल एमएसएमई सेक्टर के उद्योग के लिए तीन लाख करोड़ रुपए दिए गए हैं, जिसमें से झारखंड के हिस्से 689 करोड सैंक्शन हुए हैं, ताकि उद्यमी इस ऋण को ले सके. उद्यमियों को इस ऋण को लेने के लिए भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. जबकि इस कोविड-19 फंड को सभी उद्यमियों को बांटना है. चाहे किसी उद्यमी का खाता नन परफॉर्मिंग असेट्स यानी एनपीए ही क्यों ना हो. ऋण बांटने की प्रक्रिया में इस बात का ध्यान रखना है कि उद्यमी के कुल सीसी अमाउंट का 20% ऋण देना है.

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टाटा मोटर्स प्लांट

यह भी पढ़ें- दिल्ली के कोविड अस्पतालों में अब मरीजों के साथ रह सकेंगे परिजन

बैंक अधिकारियों और विभिन्न इंडस्ट्री की हुई थी बैठक
18 जून को उद्योग विभाग ने बैंक अधिकारियों और राज्य के विभिन्न इंडस्ट्री एसोसिएशन की एक बैठक बुलाई थी. बैठक उद्योग सचिव प्रवीण टोप्पो की अध्यक्षता में आयोजित हुई थी. जिसमें उद्योग निदेशक केएन झा और राज्यस्तरीय बैंक कमेटी के चेयरमैन और अन्य बैंक के पदाधिकारी भी शामिल हुए थे. बैठक का मुख्य उद्देश्य उद्योगों के लिए अलग से वित्त विभाग के प्रयास से उद्योगों को लोन के तौर पर यह राशि दी जाए, लेकिन स्थानीय बैंकों ने ऋण आवंटन प्रक्रिया को जटिल बना दिया है. जिससे उद्यमियों में भी सरकार के इस महत्वकांक्षी योजना को लेकर असमंजस की स्थिति बनी है.

झारखंड के एमएसएमई को 689 करोड़ मिले
तकरीबन एक साल पहले ऑटोमोबाइल सेक्टर में छाई मंदी से जूझ रहे औद्योगिक क्षेत्र को 3 माह तक कोविड-19 लॉकडाउन का भी सामना करना पड़ा है. ऐसे में औद्योगिक क्षेत्र में बंदी मंदी के साथ आर्थिक विकट परिस्थिति भी सामने उभर कर आ रही है. तीन लाख करोड़ फंड के एवज में झारखंड के एमएसएमई को महज 689 करोड़ आवंटित होना उद्यमी ऊंट के मुंह में जीरा मानते हैं.

स्थाई और अस्थाई मजदूर होते हैं प्रभावित
जब भी औद्योगिक क्षेत्र में मंदी का दौर शुरू होता है, तो ऐसे में उद्योग इसे चलाने वाले उद्योगपतियों के साथ साथ कर्मचारी और मजदूर भी प्रभावित होते हैं. सबसे ज्यादा मजदूर वर्ग को ही परेशानियों का सबब झेलना पड़ता है. अधिकांश कंपनियों में स्थाई मजदूरों की संख्या कम है, जबकि अस्थाई और ठेकेदार के मजदूरों की संख्या सभी उद्योगों में अधिक है. ऐसे में अस्थाई मजदूर ही सबसे अधिक प्रभावित होते हैं. कोरोना के इस संकट काल में आज भी सैकड़ों ऐसे छोटे कंपनियां हैं. जहां के कर्मचारी और मजदूरों को 3 महीने से वेतन का भुगतान नहीं किया गया हैं, हालांकि लॉकडाउन खुलने के बाद अब मजदूरों के चेहरे पर आस जगी है और काम मिलने से इनमें एक विश्वास भी जगा है, लेकिन मजदूर वर्ग मानता है कि काम लगातार होना चाहिए ताकि घर गृहस्थी चल सकें.

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टाटा मोटर्स प्लांट

ये भी पढ़ें- कोरोना काल : दुनिया भर के देशों में यह हैं परीक्षाओं के नियम

औद्योगिक क्षेत्र से जुड़ रहे प्रवासी मजदूर
कोरोना काल के इस दौर में जिले के प्रवासी मजदूर भी स्थानीय उद्योगों से जुड़ रहे हैं, जिला प्रशासन और औद्योगिक समूहों के प्रयास से प्रवासी मजदूरों को अब उद्योगों से भी जुड़े जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. अधिकांश स्किल मजदूरों को काम मिलने लगे हैं. इसके अलावा जिला प्रशासन ने प्रवासी मजदूरों को भी उनके क्षमता के अनुरूप स्थानीय उद्योगों में ही रोजगार उपलब्ध कराए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं.

एशिया महादेश में एक अलग पहचान रखने वाला सरायकेला का यह आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र जो कभी सरपट दौड़ लगाता था. आज रेंगने को विवश है, एक साल पहले ऑटोमोबाइल सेक्टर में आए ग्लोबल मंदी और अब वैश्विक महामारी कोरोना काल ने मानो इन छोटे, मझोले और सूक्ष्म उद्योगों के पैरों में बेड़ियां डाल दी है, लेकिन इन उद्योगों से जुड़े लोगों में एक आशा की किरण है कि जल्द ही परिस्थितियां बदलेगी और इन उद्योगों के चिमनी से निकलने वाले धुंए सफलता के साथ एक बार फिर आसमान को छू लेगी.

रांची : खनिज संपदा से भरा झारखंड पूरे विश्व में अलग पहचान रखता है. झारखंड से निकलने वाले खनिज संपदा आज न सिर्फ देश बल्कि विदेश के उद्योगों को भी आपूर्ति किए जाते हैं. ऐसे में भारतीय अर्थव्यवस्था में झारखंड के उद्योगों का एक अलग स्थान है.

झारखंड के अर्थव्यवस्था में भी स्थानीय उद्योगों की महती भूमिका है. झारखंड के सरायकेला जिले में स्थित आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र, एशिया महादेश के लघु, सूक्ष्म और मध्यम दर्जे के उद्योगों के लिए प्रसिद्ध है, सरायकेला के औद्योगिक क्षेत्र से केंद्र और राज्य सरकार को राजस्व का एक बड़ा हिस्सा प्राप्त होता है, तो वहीं यहां लाखों लोगों को रोजगार भी मिलता है, लेकिन पिछले तीन महीने लॉकडाउन के कारण राज्य के अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले इन लघु, सूक्ष्म और मध्यम दर्जे के उद्योगों को तोड़ दिया है.

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औद्योगिक क्षेत्र की कंपनियां

1397 उद्योगों में केवल 378 उद्योग ही खुले
सरायकेला के आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र में शुरुआती दौर में तकरीबन डेढ़ हजार से भी अधिक कल-कारखाने और उद्योग संचालित होते थे, लेकिन समय के साथ इनकी संख्या भी घटती गई है. आज औद्योगिक क्षेत्र में कुल 1397 उद्योग जीवित अवस्था में है. जबकि कोरोना के संकट काल और लॉकडाउन के बाद इन उद्योगों में काम करने वाले लाखों कर्मचारी और कामगार बेरोजगार हो गए थे. लंबे अरसे तक लॉकडाउन लेने के कारण सभी उद्योग बंद थे, लेकिन 20 अप्रैल के बाद केंद्र और राज्य सरकार की पहल पर स्थानीय उद्योग खुलने शुरू हुए हैं और इनमें काम भी शुरू हुआ, लेकिन आज उद्योग खुलने का सिलसिला दो महीने चलने के बाद भी उद्योगों की स्थिति कुछ ठीक नहीं है. आज 1397 उद्योगों में केवल 378 उद्योग ही पूरी तरह खुल पाए हैं और यह काम शुरू हुआ है, लेकिन अभी उद्योग चलाने में कई अड़चनें हैं.

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आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र

औद्योगिक क्षेत्र पर एक नजर

  • कुल उद्योग- 1397
  • बड़े दर्जे के उद्योग- लगभग - 100
  • मध्यम दर्जे के उद्योग - लगभग - 400
  • लघु उद्योग- लगभग 550
  • सूक्ष्म उद्योग- लगभग- 347।

रोजगार की स्थिति कुछ इस प्रकार है: ( अनुमानित आंकड़ा)

  • बड़े उद्योग से जुड़े लोग- 7 हजार
  • मध्यम उद्योग से जुड़े लोग- 15 हजार
  • लघु उद्योग से जुड़े लोग- 10 हजार
  • सूक्ष्मा उद्योग से जुड़े लोग- 30 हजार
    impact-of-lockdown-on-industrial-sector-in-seraikela
    अर्थव्यवस्था की रीढ़ है आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र

इसके अलावा आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भी हजारों लोग जुड़े हैं. जिनमें मुख्य रुप से चार पहिया वाहन मालिक, मिनी टैक्सी मालिक, होटल ढाबा संचालक और वहां काम करने वाले लोग, मैकेनिकल दुकानें, मालवाहक गाड़ियां और इनसे जुड़े लोगों को भी यहां रोजगार मिलता है.

टाटा मोटर्स पर आधारित है लगभग उद्योग
सरायकेला के आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र के लघु, सूक्ष्म और मध्यम दर्जे के तमाम उद्योग टाटा एंनसिलियरी, यानी टाटा मोटर्स पर निर्भर है. जमशेदपुर के टाटा मोटर्स प्लांट में गाड़ियां खासकर मालवाहक ट्रकों का जो निर्माण होता है. उससे संबंधित छोटे कल-पुर्जे औद्योगिक क्षेत्र के छोटी-बड़ी कंपनियां तैयार करती हैं. औद्योगिक क्षेत्र में वर्षों पुरानी एक कहावत प्रचलित है कि "जब टाटा मोटर्स को छींक आती है तो आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र को बुखार लग जाता है" कहने का तात्पर्य यह है कि यदि टाटा मोटर्स में बड़े पैमाने पर मालवाहक गाड़ियों का निर्माण होता है तो औद्योगिक क्षेत्र बूम पर रहता है और टाटा मोटर्स में जब ब्लॉक क्लोजर आता है तो औद्योगिक क्षेत्र के तमाम उद्योगों पर ताला लटक जाता है.

देखें स्पेशल स्टोरी

रेलवे और डिफेंस से भी जुड़े हैं स्थानीय उद्योग
ऐसा नहीं है कि औद्योगिक क्षेत्र की सभी कंपनियां टाटा मोटर्स पर ही आश्रित हैं. औद्योगिक क्षेत्र के विकास की गति को पूर्व में रेलवे और डिफेंस से जुड़ कर भी गति प्राप्त हुई है. आज यहां दर्जनों ऐसे उद्योग हैं, जो रेलवे और डिफेंस के लिए उपकरण और छोटे कल-पुर्जे भी तैयार कर रहे हैं. सरकार भी प्रयासरत है कि टाटा मोटर्स जैसे बड़े और नए उद्योग औद्योगिक क्षेत्र के अलावा राज्य में स्थापित हो ताकि एक ही उद्योग पर छोटे उद्योगों की निर्भरता समाप्त हो सके.

कोविड-19 में बैंकों को मिले तीन लाख करोड़ रुपए
कोविड-19 संक्रमण को लेकर सरकार ने पिछले दिनों लगाए गए लॉकडाउन के कारण बेपटरी हुए औद्योगिक अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए कोविड-19 रूप में बैंकों को केवल एमएसएमई सेक्टर के उद्योग के लिए तीन लाख करोड़ रुपए दिए गए हैं, जिसमें से झारखंड के हिस्से 689 करोड सैंक्शन हुए हैं, ताकि उद्यमी इस ऋण को ले सके. उद्यमियों को इस ऋण को लेने के लिए भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. जबकि इस कोविड-19 फंड को सभी उद्यमियों को बांटना है. चाहे किसी उद्यमी का खाता नन परफॉर्मिंग असेट्स यानी एनपीए ही क्यों ना हो. ऋण बांटने की प्रक्रिया में इस बात का ध्यान रखना है कि उद्यमी के कुल सीसी अमाउंट का 20% ऋण देना है.

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टाटा मोटर्स प्लांट

यह भी पढ़ें- दिल्ली के कोविड अस्पतालों में अब मरीजों के साथ रह सकेंगे परिजन

बैंक अधिकारियों और विभिन्न इंडस्ट्री की हुई थी बैठक
18 जून को उद्योग विभाग ने बैंक अधिकारियों और राज्य के विभिन्न इंडस्ट्री एसोसिएशन की एक बैठक बुलाई थी. बैठक उद्योग सचिव प्रवीण टोप्पो की अध्यक्षता में आयोजित हुई थी. जिसमें उद्योग निदेशक केएन झा और राज्यस्तरीय बैंक कमेटी के चेयरमैन और अन्य बैंक के पदाधिकारी भी शामिल हुए थे. बैठक का मुख्य उद्देश्य उद्योगों के लिए अलग से वित्त विभाग के प्रयास से उद्योगों को लोन के तौर पर यह राशि दी जाए, लेकिन स्थानीय बैंकों ने ऋण आवंटन प्रक्रिया को जटिल बना दिया है. जिससे उद्यमियों में भी सरकार के इस महत्वकांक्षी योजना को लेकर असमंजस की स्थिति बनी है.

झारखंड के एमएसएमई को 689 करोड़ मिले
तकरीबन एक साल पहले ऑटोमोबाइल सेक्टर में छाई मंदी से जूझ रहे औद्योगिक क्षेत्र को 3 माह तक कोविड-19 लॉकडाउन का भी सामना करना पड़ा है. ऐसे में औद्योगिक क्षेत्र में बंदी मंदी के साथ आर्थिक विकट परिस्थिति भी सामने उभर कर आ रही है. तीन लाख करोड़ फंड के एवज में झारखंड के एमएसएमई को महज 689 करोड़ आवंटित होना उद्यमी ऊंट के मुंह में जीरा मानते हैं.

स्थाई और अस्थाई मजदूर होते हैं प्रभावित
जब भी औद्योगिक क्षेत्र में मंदी का दौर शुरू होता है, तो ऐसे में उद्योग इसे चलाने वाले उद्योगपतियों के साथ साथ कर्मचारी और मजदूर भी प्रभावित होते हैं. सबसे ज्यादा मजदूर वर्ग को ही परेशानियों का सबब झेलना पड़ता है. अधिकांश कंपनियों में स्थाई मजदूरों की संख्या कम है, जबकि अस्थाई और ठेकेदार के मजदूरों की संख्या सभी उद्योगों में अधिक है. ऐसे में अस्थाई मजदूर ही सबसे अधिक प्रभावित होते हैं. कोरोना के इस संकट काल में आज भी सैकड़ों ऐसे छोटे कंपनियां हैं. जहां के कर्मचारी और मजदूरों को 3 महीने से वेतन का भुगतान नहीं किया गया हैं, हालांकि लॉकडाउन खुलने के बाद अब मजदूरों के चेहरे पर आस जगी है और काम मिलने से इनमें एक विश्वास भी जगा है, लेकिन मजदूर वर्ग मानता है कि काम लगातार होना चाहिए ताकि घर गृहस्थी चल सकें.

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टाटा मोटर्स प्लांट

ये भी पढ़ें- कोरोना काल : दुनिया भर के देशों में यह हैं परीक्षाओं के नियम

औद्योगिक क्षेत्र से जुड़ रहे प्रवासी मजदूर
कोरोना काल के इस दौर में जिले के प्रवासी मजदूर भी स्थानीय उद्योगों से जुड़ रहे हैं, जिला प्रशासन और औद्योगिक समूहों के प्रयास से प्रवासी मजदूरों को अब उद्योगों से भी जुड़े जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. अधिकांश स्किल मजदूरों को काम मिलने लगे हैं. इसके अलावा जिला प्रशासन ने प्रवासी मजदूरों को भी उनके क्षमता के अनुरूप स्थानीय उद्योगों में ही रोजगार उपलब्ध कराए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं.

एशिया महादेश में एक अलग पहचान रखने वाला सरायकेला का यह आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र जो कभी सरपट दौड़ लगाता था. आज रेंगने को विवश है, एक साल पहले ऑटोमोबाइल सेक्टर में आए ग्लोबल मंदी और अब वैश्विक महामारी कोरोना काल ने मानो इन छोटे, मझोले और सूक्ष्म उद्योगों के पैरों में बेड़ियां डाल दी है, लेकिन इन उद्योगों से जुड़े लोगों में एक आशा की किरण है कि जल्द ही परिस्थितियां बदलेगी और इन उद्योगों के चिमनी से निकलने वाले धुंए सफलता के साथ एक बार फिर आसमान को छू लेगी.

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