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हल्दी में मौजूद कई गुण, कैंसर की उपचार थेरेपी में कर सकती है मदद

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Published : Jul 13, 2020, 10:35 PM IST

आईआईटी मद्रास के शोधकर्ता बताते हैं कि हल्दी के गुण कैंसर के उपचार में मदद कर सकते हैं. टीम ने पाया कि ल्यूकेमिया सेल्स को जब करक्यूमिन के द्वारा ट्रीट किया गया तो वह सेल्स ज्यादा संवेदनशील बन गया और बेहतर तरीके से उसे खत्म किया जा सका.

आईआईटी मद्रास
आईआईटी मद्रास

चेन्नईः भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास के शोधकर्ताओं ने दिखाया है कि हल्दी में मौजूद करक्यूमिन के गुण कैंसर सेल्स को बेहतर तरीके से खत्म कर सकते हैं. इनमें मौजूद प्रोटीन तत्व जिसे ट्रेल कहते हैं वह कैंसर सेल्स पर तेजी से प्रभाव डालता है.

बहुत से खोज किए जा रहे हैं ऐसे तत्वों की तलाश में जो कैंसर सेल्स को मार सके. एक ऐसा प्रोटीन तत्व मिला है जिसका नाम TNF-Related Apoptosis-Inducing Ligand (TRAIL) दिया गया है. इसकी खासियत यह है कि यह एपोप्टोसिस द्वारा कैंसर सेल्स को चुनकर मारता है. इसकी वजह से पूरी दुनिया में इसपर प्री क्लीनिकल स्टडी की जा रही है.

कैंसर के उपचार में यह जरूरी होता है कि कैंसर से ग्रस्त सेल्स को ही मारा जाए और कम से कम सेहतमंद सेल्स को हानि पहुंचाया जाए. एपोप्टोसिस या प्रोग्राम्ड सेल डेथ को तवज्जो दी जाती है क्योंकि यह कम सेलुलर घटकों को छोड़ता है जो बाद में कैंसर ग्रसित सेल्स पर प्रभाव डालता है.

इस शोध का नेतृत्व आईआईटी मद्रास के अंतर्गत भूपत और ज्योति मेहता स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज जैव प्रौद्योगिकी विभाग के प्रोफेसर राम शंकर वर्मा ने किया. इस रिसर्च के परिणाम हाल ही में प्रतिष्ठित पीयर-रिव्यू जर्नल फार्माकोलॉजिकल रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुआ है. इस पेपर की सह-लेखक सुश्री श्रीदेवी सुरपल्ली, सुश्री मधुमति जयप्रकाशम और प्रो वर्मा हैं.

इस शोध और इसके प्रभाव पर प्रोफेसर राम शंकर वर्मा ने कहा कि पूर्व-क्लीनिकल ​​अध्ययनों में ट्रेल के मजबूत एंटी-ट्यूमर गतिविधि के बावजूद, क्लीनिकल ​​परीक्षण संतोषपूर्ण नहीं थे क्योंकि यह देखा गया कि दीर्घकालीन समय तक अगर कैंसर कोशिकाओं को ट्रेल से ट्रीट किया जाता है तो कैंसर कोशिकाएं ट्रायल के खिलाफ प्रतिरोध हासिल करने लगती हैं. इसलिए अगले दौर में अनुसंधान रसायनों को खोजने के लिए किया गया है जो प्रतिरोध को उलट सकते हैं और कैंसर की संवेदनशीलता को बढ़ा सकते हैं.

आईआईटी मद्रास टीम ने करक्यूमिन को चुना जो सामान्य हल्दी का पीला हिस्सा है जिसे दैनिक खाना पकाने में इस्तेमाल किया जाता है, जिसे ट्रोपिल प्रतिरोधी कैंसर कोशिकाओं के एपोप्टोसिस के एक संवेदी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

करक्यूमिन पहले से ही एक शक्तिशाली कैंसर-रोधी एजेंट के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यह कार्सिनोजेनेसिस को रोकने और विभिन्न कैंसर कोशिकाओं में एपोप्टोसिस को प्रेरित करने की क्षमता के कारण है. इसका उपयोग प्रोस्टेट कैंसर, स्तन कैंसर, पेट के कैंसर और घातक ग्लियोमा के मामलों में दिखाया गया है.

आईआईटी मद्रास के शोधकर्ता बताते हैं कि हल्दी के गुण कैंसर के उपचार में मदद कर सकता है. टीम ने पाया कि ल्यूकेमिया सेल्स को जब करक्यूमिन के द्वारा ट्रीट किया तो वह सेल्स ज्यादा संवेदनशील बन गया और बेहतर तरीके से उसे खत्म किया जा सका.

हालांकि, आईआईटी मद्रास के शोधकर्ता इसे लेकर बेहद सावधानी बरत रहे हैं. उन्होंने अभीतक सारे टेस्ट शरीर से बाहर यानि कैंसर कोशिकाओं को अलग कर उनपर टेस्ट किया है. वो अभी विश्वासपूर्वक यह नहीं कह सकते कि यही रिजल्ट एक कैंसर रोगी पर टेस्ट करने पर मिलेगा. यह संदेह इसलिए पैदा होता है क्योंकि करक्यूमिन खून में अच्छे से नहीं मिल पाता और इसका चिकित्सीय उद्देश्यों के लिए इसकी जैव उपलब्धता आमतौर पर खराब रिजल्ट देती है.

लेकिन शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि इस कठिनाई को जल्द ही दूर किया जाएगा. करक्यूमिन की जैव उपलब्धता को बढ़ाने के लिए दुनिया भर में कई अध्ययन चल रहे हैं.

चेन्नईः भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास के शोधकर्ताओं ने दिखाया है कि हल्दी में मौजूद करक्यूमिन के गुण कैंसर सेल्स को बेहतर तरीके से खत्म कर सकते हैं. इनमें मौजूद प्रोटीन तत्व जिसे ट्रेल कहते हैं वह कैंसर सेल्स पर तेजी से प्रभाव डालता है.

बहुत से खोज किए जा रहे हैं ऐसे तत्वों की तलाश में जो कैंसर सेल्स को मार सके. एक ऐसा प्रोटीन तत्व मिला है जिसका नाम TNF-Related Apoptosis-Inducing Ligand (TRAIL) दिया गया है. इसकी खासियत यह है कि यह एपोप्टोसिस द्वारा कैंसर सेल्स को चुनकर मारता है. इसकी वजह से पूरी दुनिया में इसपर प्री क्लीनिकल स्टडी की जा रही है.

कैंसर के उपचार में यह जरूरी होता है कि कैंसर से ग्रस्त सेल्स को ही मारा जाए और कम से कम सेहतमंद सेल्स को हानि पहुंचाया जाए. एपोप्टोसिस या प्रोग्राम्ड सेल डेथ को तवज्जो दी जाती है क्योंकि यह कम सेलुलर घटकों को छोड़ता है जो बाद में कैंसर ग्रसित सेल्स पर प्रभाव डालता है.

इस शोध का नेतृत्व आईआईटी मद्रास के अंतर्गत भूपत और ज्योति मेहता स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज जैव प्रौद्योगिकी विभाग के प्रोफेसर राम शंकर वर्मा ने किया. इस रिसर्च के परिणाम हाल ही में प्रतिष्ठित पीयर-रिव्यू जर्नल फार्माकोलॉजिकल रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुआ है. इस पेपर की सह-लेखक सुश्री श्रीदेवी सुरपल्ली, सुश्री मधुमति जयप्रकाशम और प्रो वर्मा हैं.

इस शोध और इसके प्रभाव पर प्रोफेसर राम शंकर वर्मा ने कहा कि पूर्व-क्लीनिकल ​​अध्ययनों में ट्रेल के मजबूत एंटी-ट्यूमर गतिविधि के बावजूद, क्लीनिकल ​​परीक्षण संतोषपूर्ण नहीं थे क्योंकि यह देखा गया कि दीर्घकालीन समय तक अगर कैंसर कोशिकाओं को ट्रेल से ट्रीट किया जाता है तो कैंसर कोशिकाएं ट्रायल के खिलाफ प्रतिरोध हासिल करने लगती हैं. इसलिए अगले दौर में अनुसंधान रसायनों को खोजने के लिए किया गया है जो प्रतिरोध को उलट सकते हैं और कैंसर की संवेदनशीलता को बढ़ा सकते हैं.

आईआईटी मद्रास टीम ने करक्यूमिन को चुना जो सामान्य हल्दी का पीला हिस्सा है जिसे दैनिक खाना पकाने में इस्तेमाल किया जाता है, जिसे ट्रोपिल प्रतिरोधी कैंसर कोशिकाओं के एपोप्टोसिस के एक संवेदी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

करक्यूमिन पहले से ही एक शक्तिशाली कैंसर-रोधी एजेंट के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यह कार्सिनोजेनेसिस को रोकने और विभिन्न कैंसर कोशिकाओं में एपोप्टोसिस को प्रेरित करने की क्षमता के कारण है. इसका उपयोग प्रोस्टेट कैंसर, स्तन कैंसर, पेट के कैंसर और घातक ग्लियोमा के मामलों में दिखाया गया है.

आईआईटी मद्रास के शोधकर्ता बताते हैं कि हल्दी के गुण कैंसर के उपचार में मदद कर सकता है. टीम ने पाया कि ल्यूकेमिया सेल्स को जब करक्यूमिन के द्वारा ट्रीट किया तो वह सेल्स ज्यादा संवेदनशील बन गया और बेहतर तरीके से उसे खत्म किया जा सका.

हालांकि, आईआईटी मद्रास के शोधकर्ता इसे लेकर बेहद सावधानी बरत रहे हैं. उन्होंने अभीतक सारे टेस्ट शरीर से बाहर यानि कैंसर कोशिकाओं को अलग कर उनपर टेस्ट किया है. वो अभी विश्वासपूर्वक यह नहीं कह सकते कि यही रिजल्ट एक कैंसर रोगी पर टेस्ट करने पर मिलेगा. यह संदेह इसलिए पैदा होता है क्योंकि करक्यूमिन खून में अच्छे से नहीं मिल पाता और इसका चिकित्सीय उद्देश्यों के लिए इसकी जैव उपलब्धता आमतौर पर खराब रिजल्ट देती है.

लेकिन शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि इस कठिनाई को जल्द ही दूर किया जाएगा. करक्यूमिन की जैव उपलब्धता को बढ़ाने के लिए दुनिया भर में कई अध्ययन चल रहे हैं.

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