नई दिल्ली : वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आर के एस भदौरिया ने शुक्रवार को कहा कि चीन के साथ पूर्वी लद्दाख में गतिरोध के जवाब में भारतीय वायुसेना की 'आक्रामक' क्षमताओं और अतिसक्रिय तैनाती ने उसकी मौजूदा संचालनात्मक तैयारियों का प्रदर्शन किया और इस मजबूत रुख ने शत्रु को काफी हद तक दूर रखने में अहम भूमिका निभाई.
भारतीय वायु सेना प्रमुख कहा कि पाकिस्तान में बालाकोट हवाई हमलों ने स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया कि वायु शक्ति को परिष्कृत इस्तेमाल के लिए रखा जा सकता है और पारंपरिक सीमा से परे कार्रवाई के लिए जगह बनाई जा सकती है.
राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज (एनडीसी) द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन संगोष्ठी के दौरान एयर चीफ मार्शल भदौरिया ने यह बातें कहीं.
उन्होंने कहा, 'बीते कुछ महीनों में, पूर्वी लद्दाख में गतिविधियों की प्रतिक्रिया में हमारी आक्रामक क्षमताओं की अतिसक्रिय तैनाती, वायु संपदा की तैनाती और सेना के युद्धक तत्वों को वायुमार्ग से अग्रिम इलाकों में पहुंचाने के तौर पर, ने आज वायुसेना की संचालनात्मक तैयारियों का प्रदर्शन किया.'
उन्होंने कहा कि तैनाती ने क्षमताओं के प्रदर्शन के साथ ही आवश्यकता पड़ने पर वायु शक्ति के इस्तेमाल के राष्ट्र के संकल्प को भी उजागर किया.
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उन्होंने कहा, 'हमारा मानना है कि हमारी अतिसक्रिय कार्रवाई और कड़े रुख ने दुश्मन को और कोई प्रयास करने से रोकने में अहम भूमिका निभाई…हमें उम्मीद है कि चल रही वार्ता प्रक्रिया से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति और स्थिरता बरकरार हो जाएगी.'
वायुसेना ने पूर्वी लद्दाख और एलएसी पर अहम अग्रिम वायुसैनिक अड्डों पर सुखोई 30 एमकेआई, जगुआर और मिराज 2000 जैसे अपने प्रमुख लड़ाकू विमानों को तैनात कर दिया था.
वायुसेना के बेड़े में हाल में शामिल किए गए राफेल लड़ाकू विमानों ने भी पूर्वी लद्दाख में उड़ान भरी.
बालाकोट हवाई हमले पर उन्होंने कहा कि आतंकवादी संगठनों को और कोई हमला करने से पहले 'काफी' सोचना पड़ेगा.
पुलवामा में हुए आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 40 जवानों के शहीद होने के बाद भारतीय विमानों ने पिछले साल 26 फरवरी को जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी शिविर पर बम बरसाए थे.
भदौरिया ने कहा, 'पिछले साल फरवरी में भारतीय वायुसेना द्वारा हवाई हमले में बालाकोट में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया जाना स्पष्ट रूप से दिखाता है कि वायु शक्ति का इस्तेमाल परिष्कृत इस्तेमाल के लिये किया जा सकता है और इसने परंपरागत सीमा से परे कार्रवाई के लिये जमीन तैयार की है.'
कुल मिलाकर सुरक्षा परिदृश्य के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में सुरक्षा प्रतिमानों में व्यापक बदलाव हुआ है.
उन्होंने कहा, 'राष्ट्रीय सीमाओं की हमारी परिभाषा जमीनी सीमा या तटरेखा आदि की शास्त्रीय परिभाषा से इतर स्थापित हुई है. हम सीमाओं - दो सीमाओं, एक सीमा- की पुरानी परिकल्पनाओं से जकड़े नहीं रह सकते. युद्ध के तौर-तरीकों की प्रकृति और दायरे का भी विस्तार हुआ है.'
भारतीय रक्षा संदर्भों में दो मोर्चे पर विवाद को देश के पश्चिमी और उत्तरी मोर्चों पर विवाद के नजरिए से देखा जाता है.