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स्वतंत्रता के बाद वर्तमान खाद्य संकट सबसे बुरा : भारतीय अर्थशास्त्री

जीन ड्रेज (Jean Drèze) बेल्जियम में जन्मे भारतीय अर्थशास्त्री हैं. पिछले चार दशकों में उन्होंने भारत के सामने खड़े भूख, अकाल और सामाजिक असमानता जैसे कई विकास के मुद्दों पर काम किया है. उनका मानना है कि केंद्र और राज्यों की मुख्य जिम्मेदारी प्रवासी श्रमिकों को खाद्य और वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करना है. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : May 24, 2020, 8:00 PM IST

Updated : May 25, 2020, 12:27 AM IST

हैदराबाद : जीन ड्रेज (Jean Drèze) बेल्जियम में जन्मे भारतीय अर्थशास्त्री हैं. पिछले चार दशकों में उन्होंने भारत के सामने खड़े भूख, अकाल और सामाजिक असमानता जैसे कई विकास के मुद्दों पर काम किया है. उनका मानना है कि केंद्र और राज्यों की मुख्य जिम्मेदारी प्रवासी श्रमिकों को खाद्य और वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करना है.

ड्रेज वर्तमान में दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में मानद प्रोफेसर और रांची विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग में विजिटिंग प्रोफेसर हैं. उन्होंने गरीबों को खाद्यान्न वितरित करने, सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत करने और रोजगार गारंटी योजनाओं को लागू करने जैसे कई उपाय सुझाए हैं.

जीन ड्रेज ने ईटीवी भारत के विशेष संवाददाता एमएल नरसिम्हा रेड्डी के साथ अपने साक्षात्कार में प्रवासी श्रमिकों से संबंधित कई मुद्दों पर बातचीत की.

सवाल - लॉकडाउन के बाद भारत में खाद्य संकट का प्रभाव कब तक दिख सकता है?

जवाब - सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) काफी हद तक भूख को रोक सकती है. तीन महीने के लिए खाद्यान्न सब्सिडी वाले अनाज को दोगुना करने का केंद्र का निर्णय एक अच्छा कदम है, लेकिन 50 करोड़ से ज्यादा लोग पीडीएस के बाहर हैं. इसमें से ज्यादातर गरीब हैं. इस महामारी के बीच इनमें से अधिकांश गरीबी रेखा से नीचे जा सकते हैं. झारखंड में बिना राशन कार्ड के हजारों गरीब हैं.

खाद्य संकट की मात्रा को निर्धारित करना मुश्किल है, लेकिन हम एक महत्वपूर्ण मोड़ की ओर जा रहे हैं. इसे दूर करने के लिए इन सभी परिवारों को पीडीएस के तहत शामिल किया जाना चाहिए. भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के पास भारी मात्रा में खाद्य भंडार है. सरकार को इन खाद्यान्नों को तुरंत जारी करना चाहिए.

सवाल - क्या केंद्र और राज्य सरकारें प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक उपाय कर रही हैं?

जवाब - राज्य सरकारों द्वारा किए गए पुनर्वास गतिविधियों का समर्थन करके केंद्र और भी बहुत बेहतर कर सकता है. केंद्र राज्यों को खाद्य स्टॉक की आपूर्ति करे और गैर-राशन कार्ड धारकों को भी खाद्यान्न वितरित करे. राजस्व में गिरावट आई है, इसलिए केंद्र सरकार को राज्यों को वित्तीय सहायता बढ़ानी चाहिए. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को समन्वय करना चाहिए.

पीडीएस, पेंशन, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा योजनाएं गरीबों को मौजूदा संकट से उबारने में मदद करेंगी. सार्वजनिक रसोई स्थापित करने और लाभार्थियों के खातों में धन हस्तांतरित करने जैसी कल्याणकारी गतिविधियां सहायक होंगी. मौजूदा कल्याणकारी योजनाओं को अधिक प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिए.

सवाल - क्या आधुनिक भारत में खाद्य संकट इतना गंभीर है?

जवाब - आजादी से पहले भारत ने बंगाल के अकाल को देखा. जो अभी हम देख रहे हैं, उससे कहीं ज्यादा खराब था. उसके बाद अकाल के परिणामस्वरूप भोजन की कमी के कुछ और उदाहरण सामने आए हैं. साल 1966-67 के दौरान हमने बिहार का सूखा देखा. स्वतंत्रता के बाद वर्तमान खाद्य संकट सबसे बुरा है.

सवाल - प्रवासी श्रमिकों के पलायन से निपटने में सरकार की अक्षमता के पीछे क्या कारण है?

जवाब - आमतौर पर प्रवासी श्रमिकों के प्रति सरकारों का कठोर रवैया होता है. इस बार टीवी और इंटरनेट के जरिए सभी ने सरकार के रवैया को देखा. पिछले कुछ हफ्तों में केंद्र और राज्य प्रवासी श्रमिकों के साथ अपने व्यवहार में क्रूर थे. सरकार की तरफ से काम और भोजन की मदद न मिलने के कारण श्रमिकों ने अपने घरों तक पहुंचने के लिए हजारों किलोमीटर का सफर पैदल ही तय कर डाला. यह गरीबों के प्रति हमारे दृष्टिकोण को दर्शाता है. इस संकट में उनकी मदद करने के बजाए हमने उन्हें रसातल में धकेल दिया है.

सवाल - क्या भारत गंभीर पोषण संकट का सामना करने जा रहा है?

जवाब - निश्चित रूप से.. भारत में कुपोषित आबादी का प्रतिशत सबसे अधिक है. अधिकांश लोगों को कल्याणकारी योजनाओं और पीडीएस के बावजूद भूख से कोई सुरक्षा नहीं है. पेट भरा होना पोषण के लिए एकमात्र मानदंड नहीं है. अच्छे पोषण में उचित आहार व्यवस्था, स्वच्छ भोजन और पानी शामिल हैं. भारतीय गरीबों की इनमें से किसी तक भी पहुंच नहीं है. वर्तमान लॉकडाउन ने केवल उनके संकटों को बढ़ाया है. सरकार से वित्तीय सहायता के बिना उनकी स्थिति बदतर हो सकती है.

सवाल - आने वाले दिनों में राज्यों को प्रवासी श्रमिकों के मुद्दों पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए? क्या कोई प्रयास चल रहा है?

जवाब - गरीब राज्यों, विशेष रूप से पूर्वोत्तर भारत में अधिक सहायता की आवश्यकता है. वह गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गए हैं. सस्ते पूर्वोत्तर श्रामिकों से कंपनियों को लाभ हुआ है, लेकिन संकट के समय में श्रमिकों को छोड़ दिया. केंद्र के समर्थन के बिना यह राज्य अपने श्रमिकों की मदद नहीं कर सकते. वास्तव में केंद्र को प्रवासी श्रमिकों की मदद करने के लिए अधिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए.

सवाल - राज्य सरकारों को श्रमिकों की कमी हो सकती है, क्योंकि ज्यादार श्रामिक अपने गांव लौट चुके हैं, जो जल्द वापस नहीं आएंगे. इस पर आप क्या कहेंगे?

जवाब - प्रवासी मजदूर एक दिन वापस आएंगे. कुछ अवधि के लिए वह अपने मूल स्थानों के करीब काम कर सकते हैं. बिहार और झारखंड राज्यों में श्रम के अधिशेष के कारण श्रमिकों के वेतन में गिरावट देखी जा सकती है. उद्योगों के मालिक इस स्थिति का अनुचित लाभ उठा सकते हैं. हमने पहले ही कुछ राज्यों को श्रम कानूनों में बदलाव करते देखा है. रोजगार के अवसरों की कमी और खाद्य संकट ने श्रमिकों को गंभीर परिस्थितियों में धकेल दिया है, उन्हें बदले हुए श्रम कानूनों के खिलाफ बोलने से रोक दिया है.

हैदराबाद : जीन ड्रेज (Jean Drèze) बेल्जियम में जन्मे भारतीय अर्थशास्त्री हैं. पिछले चार दशकों में उन्होंने भारत के सामने खड़े भूख, अकाल और सामाजिक असमानता जैसे कई विकास के मुद्दों पर काम किया है. उनका मानना है कि केंद्र और राज्यों की मुख्य जिम्मेदारी प्रवासी श्रमिकों को खाद्य और वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करना है.

ड्रेज वर्तमान में दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में मानद प्रोफेसर और रांची विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग में विजिटिंग प्रोफेसर हैं. उन्होंने गरीबों को खाद्यान्न वितरित करने, सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत करने और रोजगार गारंटी योजनाओं को लागू करने जैसे कई उपाय सुझाए हैं.

जीन ड्रेज ने ईटीवी भारत के विशेष संवाददाता एमएल नरसिम्हा रेड्डी के साथ अपने साक्षात्कार में प्रवासी श्रमिकों से संबंधित कई मुद्दों पर बातचीत की.

सवाल - लॉकडाउन के बाद भारत में खाद्य संकट का प्रभाव कब तक दिख सकता है?

जवाब - सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) काफी हद तक भूख को रोक सकती है. तीन महीने के लिए खाद्यान्न सब्सिडी वाले अनाज को दोगुना करने का केंद्र का निर्णय एक अच्छा कदम है, लेकिन 50 करोड़ से ज्यादा लोग पीडीएस के बाहर हैं. इसमें से ज्यादातर गरीब हैं. इस महामारी के बीच इनमें से अधिकांश गरीबी रेखा से नीचे जा सकते हैं. झारखंड में बिना राशन कार्ड के हजारों गरीब हैं.

खाद्य संकट की मात्रा को निर्धारित करना मुश्किल है, लेकिन हम एक महत्वपूर्ण मोड़ की ओर जा रहे हैं. इसे दूर करने के लिए इन सभी परिवारों को पीडीएस के तहत शामिल किया जाना चाहिए. भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के पास भारी मात्रा में खाद्य भंडार है. सरकार को इन खाद्यान्नों को तुरंत जारी करना चाहिए.

सवाल - क्या केंद्र और राज्य सरकारें प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक उपाय कर रही हैं?

जवाब - राज्य सरकारों द्वारा किए गए पुनर्वास गतिविधियों का समर्थन करके केंद्र और भी बहुत बेहतर कर सकता है. केंद्र राज्यों को खाद्य स्टॉक की आपूर्ति करे और गैर-राशन कार्ड धारकों को भी खाद्यान्न वितरित करे. राजस्व में गिरावट आई है, इसलिए केंद्र सरकार को राज्यों को वित्तीय सहायता बढ़ानी चाहिए. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को समन्वय करना चाहिए.

पीडीएस, पेंशन, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा योजनाएं गरीबों को मौजूदा संकट से उबारने में मदद करेंगी. सार्वजनिक रसोई स्थापित करने और लाभार्थियों के खातों में धन हस्तांतरित करने जैसी कल्याणकारी गतिविधियां सहायक होंगी. मौजूदा कल्याणकारी योजनाओं को अधिक प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिए.

सवाल - क्या आधुनिक भारत में खाद्य संकट इतना गंभीर है?

जवाब - आजादी से पहले भारत ने बंगाल के अकाल को देखा. जो अभी हम देख रहे हैं, उससे कहीं ज्यादा खराब था. उसके बाद अकाल के परिणामस्वरूप भोजन की कमी के कुछ और उदाहरण सामने आए हैं. साल 1966-67 के दौरान हमने बिहार का सूखा देखा. स्वतंत्रता के बाद वर्तमान खाद्य संकट सबसे बुरा है.

सवाल - प्रवासी श्रमिकों के पलायन से निपटने में सरकार की अक्षमता के पीछे क्या कारण है?

जवाब - आमतौर पर प्रवासी श्रमिकों के प्रति सरकारों का कठोर रवैया होता है. इस बार टीवी और इंटरनेट के जरिए सभी ने सरकार के रवैया को देखा. पिछले कुछ हफ्तों में केंद्र और राज्य प्रवासी श्रमिकों के साथ अपने व्यवहार में क्रूर थे. सरकार की तरफ से काम और भोजन की मदद न मिलने के कारण श्रमिकों ने अपने घरों तक पहुंचने के लिए हजारों किलोमीटर का सफर पैदल ही तय कर डाला. यह गरीबों के प्रति हमारे दृष्टिकोण को दर्शाता है. इस संकट में उनकी मदद करने के बजाए हमने उन्हें रसातल में धकेल दिया है.

सवाल - क्या भारत गंभीर पोषण संकट का सामना करने जा रहा है?

जवाब - निश्चित रूप से.. भारत में कुपोषित आबादी का प्रतिशत सबसे अधिक है. अधिकांश लोगों को कल्याणकारी योजनाओं और पीडीएस के बावजूद भूख से कोई सुरक्षा नहीं है. पेट भरा होना पोषण के लिए एकमात्र मानदंड नहीं है. अच्छे पोषण में उचित आहार व्यवस्था, स्वच्छ भोजन और पानी शामिल हैं. भारतीय गरीबों की इनमें से किसी तक भी पहुंच नहीं है. वर्तमान लॉकडाउन ने केवल उनके संकटों को बढ़ाया है. सरकार से वित्तीय सहायता के बिना उनकी स्थिति बदतर हो सकती है.

सवाल - आने वाले दिनों में राज्यों को प्रवासी श्रमिकों के मुद्दों पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए? क्या कोई प्रयास चल रहा है?

जवाब - गरीब राज्यों, विशेष रूप से पूर्वोत्तर भारत में अधिक सहायता की आवश्यकता है. वह गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गए हैं. सस्ते पूर्वोत्तर श्रामिकों से कंपनियों को लाभ हुआ है, लेकिन संकट के समय में श्रमिकों को छोड़ दिया. केंद्र के समर्थन के बिना यह राज्य अपने श्रमिकों की मदद नहीं कर सकते. वास्तव में केंद्र को प्रवासी श्रमिकों की मदद करने के लिए अधिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए.

सवाल - राज्य सरकारों को श्रमिकों की कमी हो सकती है, क्योंकि ज्यादार श्रामिक अपने गांव लौट चुके हैं, जो जल्द वापस नहीं आएंगे. इस पर आप क्या कहेंगे?

जवाब - प्रवासी मजदूर एक दिन वापस आएंगे. कुछ अवधि के लिए वह अपने मूल स्थानों के करीब काम कर सकते हैं. बिहार और झारखंड राज्यों में श्रम के अधिशेष के कारण श्रमिकों के वेतन में गिरावट देखी जा सकती है. उद्योगों के मालिक इस स्थिति का अनुचित लाभ उठा सकते हैं. हमने पहले ही कुछ राज्यों को श्रम कानूनों में बदलाव करते देखा है. रोजगार के अवसरों की कमी और खाद्य संकट ने श्रमिकों को गंभीर परिस्थितियों में धकेल दिया है, उन्हें बदले हुए श्रम कानूनों के खिलाफ बोलने से रोक दिया है.

Last Updated : May 25, 2020, 12:27 AM IST
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