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जिम कार्बेट : शौक नहीं शांति के लिए करते थे शिकार, जानें पूरी कहानी

जिम कार्बेट का पूरा नाम जेम्स एडवर्ड कार्बेट था और उनका जन्म नैनीताल में 25 जुलाई 1875 में हुआ था. 1906 में जिम कार्बेट उस समय चर्चा में आए जब उन्हें भारत और नेपाल में सवा चार सौ से ज्यादा लोगों को निवाला बना चुके नरभक्षी बाघ को मारने की चुनौती मिली.वन्य जीवों के संरक्षण की चिंता और जीवों से प्यार के कारण ही 1952 में कुमांऊ स्थित राष्ट्रीय उद्यान का नाम उनके नाम पर यानी जिम कार्बेट नेशनल पार्क रखा गया.

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जिम कार्बेट
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Published : Feb 6, 2020, 6:02 PM IST

Updated : Feb 29, 2020, 10:34 AM IST

देहरादून : आपने प्रायः लोगों पर वन्यजीवों के हमलों की खबरें सुनी होंगी. यह हमले और वन्यजीवों का खौफ कोई नई बात नहीं है. आज हम आपको वन्यजीवों के हमलों से परेशान लोगों की रक्षा के लिए आगे आए एक शिकारी के विषय रोचक जानकारी देंगे. उत्तराखंड राज्य वनों और वन्यजीव संपदा के लिए प्रसिद्ध है. एक समय था जब इस संपदा के लिए उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ती थी. यहां के जंगलों में विचरने वाले बाघ अक्सर नरभक्षी हो जाते थे और लोगों को शिकार बनाने लगते थे. इस समस्या के साथ मानव और वन्यजीवों में संघर्ष बढ़ने लगे. ठीक उसी समय एक शिकारी का नाम चर्चा में आया. यह शिकारी शौक नहीं, बल्कि शांति या लोगों के जीवन रक्षा के लिए बाघों का बहादुरी से मुकाबला कर शिकार करता. इस शिकारी का नाम था जिम कार्बेट.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट.

जिम कार्बेट का पूरा नाम जेम्स एडवर्ड कार्बेट था और उनका जन्म नैनीताल में 25 जुलाई 1875 में हुआ था. 1906 में जिम कार्बेट उस समय चर्चा में आए जब उन्हें भारत और नेपाल में सवा चार सौ से ज्यादा लोगों को निवाला बना चुके नरभक्षी बाघ को मारने की चुनौती मिली.

इस नरभक्षी को मारने से पहले जिम कार्बेट ने सरकार के सामने अपनी शर्तें रखीं, जिन्हें सरकार ने मान लिया. जंगलों में काफी समय नरभक्षी का पता लगाने के बाद आखिर एकदिन उन्होंने बाघिन को गोली का शिकार बनाया और लोगों को आतंक से मुक्ति दिलाई.

आदमखोर के शिकार को आता था बुलावा
इस शिकार के बाद उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई. उन्हें नरभक्षी बाघों से मुक्ति दिलाने के लिए बुलावे आने लगे. वह भी लोगों की मदद के लिए कभी पीछे नहीं रहते. अपनी जान की परवाह किए बिना नरभक्षी बाघों का पीछा करते रहते. वह कई-कई रातें जंगलों में गुजारते.

ऐसे पेड़ों पर सोते जहां बंदर हों, ताकि बाघ के आने पर बंदरों के शोर से उन्हें पता चल सके. नरभक्षी जीवों के शिकार को लेकर अनेक किस्से हैं. उत्तराखंड के लोग आज भी उन्हें याद करते हैं.
कार्बेट बचपन से ही बहुत मेहनती और निडर थे. उन्होंने स्टेशन मास्टरी की, सेना में अधिकारी रहे और अंत में ट्रांसपोर्ट अधिकारी भी बने. उन्होंने मानवाधिकारों के लिए आवाज उठाई. साथ ही संरक्षित जीवों के आंदोलन प्रारंभ किया.

उन्होंने उत्तराखंड के नैनीताल स्थित कालाढूंगी में घर बनाया था, जिसे देखने आज भी पर्यटक आते हैं. जिम कार्बेट को जब भी समय मिलता वह कुमाऊं के वनों में घूमने निकल जाते थे. वह वन्य जीवों को बहुत प्यार करते थे. लोगों का जीवन खतरे में न पड़े इसलिए वह नरभक्षी हो चुके बाघों या अन्य वन्य जीवों का ही शिकार करते थे.

कुमाऊं और गढ़वाल के जंगल उन्हें बहुत प्रिय थे. वन्य जीवों के संरक्षण की चिंता और जीवों से प्यार के कारण ही 1952 में कुमांऊ स्थित राष्ट्रीय उद्यान का नाम उनके नाम पर यानी जिम कार्बेट नेशनल पार्क रखा गया. कार्बेट को जब राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला तो जंलग में शिकार पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई.

इसके लिए जिम कार्बेट ने काफी प्रयास किए थे. उन्हें इसका श्रेय भी दिया जाता है. 1949 में जिम कार्बेट अपनी बहन के साथ केन्या चले गए और वहीं बस गए थे. केन्या में ही में जिम कार्बेट का देहान्त हो गया. निधन से पूर्व जिम कार्बेट ने भारत के वनों पर कई पुस्तकें लिखीं.

इससे न सिर्फ लोगों को वन्यजीवों के विषय में जानने का अवसर मिला, बल्कि भारत के वनों की ख्याति देश-दुनिया तक पहुंची. वन्यजीवों के व्यवहार को लेकर उनका अध्ययन बेजोड़ था.

देश का पहला राष्ट्रीय उद्यान बना कार्बेट
कार्बेट नेशनल पार्क हिमालय की तलहटी और रामगंगा नदी के किनारे उत्तराखंड के रामनगर जिले में स्थित है. यह पार्क वन्य जीवों के साथ ही वन संपदा से भरपूर है. इसी कारण यहां देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों का तांता लगा रहता है. बता दें कि टाइगर रिजर्व कार्बेट नेशनल पार्क को देश का पहला और सबसे प्रतिष्ठित राष्ट्रीय उद्यान होने का गौरव प्राप्त है

. इस पार्क को वर्ष 1936 में हैली नेशनल पार्क के रुप में स्थापित किया गया था. 1974 में जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क प्रतिष्ठित वन्यजीव संरक्षण अभियान द्वारा प्रोजेक्ट टाइगर को लांच करने के लिए चुना गया. यह पार्क बाघों का प्राकृतिक आवास माना जाता है. यही कारण है कि यहां बाघों की आबादी बहुत अधिक है.

सैलानियों के लिए हैं विशेष प्रबंध
कार्बेट नेशनल पार्क में पर्यटकों के भ्रमण का समय नवंबर से मई तक होता है. इस मौसम में ट्रैवल एजेंसियां कार्बेट नेशनल पार्क में सैलानियों को घुमाने का प्रबंध करती हैं. कुमाऊं विकास निगम भी प्रति शुक्रवार को दिल्ली से कार्बेट नेशनल पार्क तक पर्यटकों को ले जाने के लिए संचालित भ्रमणों (कंडकटेड टूर्स) का आयोजन करता है.

कुमाऊं विकास निगम की बसों में अनुभवी गाइड होते हैं, जो पशुओं के विषय में जानकारी देने के साथ उनके व्यवहार के विषय में बताते हैं. लगभग 520 वर्ग किलो मीटर क्षेत्र में फैले इस उद्यान में जैव विविधता देखते ही बनती है. यहां रॉयल बंगाल टाइगर, हाथी, जंगली बिल्ली, हिरण आदि आसानी से देख सकते हैं. आप यहां वन्यजीव को करीब से देखने के लिए जीप सफारी का भी आनंद ले सकते हैं.

देहरादून : आपने प्रायः लोगों पर वन्यजीवों के हमलों की खबरें सुनी होंगी. यह हमले और वन्यजीवों का खौफ कोई नई बात नहीं है. आज हम आपको वन्यजीवों के हमलों से परेशान लोगों की रक्षा के लिए आगे आए एक शिकारी के विषय रोचक जानकारी देंगे. उत्तराखंड राज्य वनों और वन्यजीव संपदा के लिए प्रसिद्ध है. एक समय था जब इस संपदा के लिए उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ती थी. यहां के जंगलों में विचरने वाले बाघ अक्सर नरभक्षी हो जाते थे और लोगों को शिकार बनाने लगते थे. इस समस्या के साथ मानव और वन्यजीवों में संघर्ष बढ़ने लगे. ठीक उसी समय एक शिकारी का नाम चर्चा में आया. यह शिकारी शौक नहीं, बल्कि शांति या लोगों के जीवन रक्षा के लिए बाघों का बहादुरी से मुकाबला कर शिकार करता. इस शिकारी का नाम था जिम कार्बेट.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट.

जिम कार्बेट का पूरा नाम जेम्स एडवर्ड कार्बेट था और उनका जन्म नैनीताल में 25 जुलाई 1875 में हुआ था. 1906 में जिम कार्बेट उस समय चर्चा में आए जब उन्हें भारत और नेपाल में सवा चार सौ से ज्यादा लोगों को निवाला बना चुके नरभक्षी बाघ को मारने की चुनौती मिली.

इस नरभक्षी को मारने से पहले जिम कार्बेट ने सरकार के सामने अपनी शर्तें रखीं, जिन्हें सरकार ने मान लिया. जंगलों में काफी समय नरभक्षी का पता लगाने के बाद आखिर एकदिन उन्होंने बाघिन को गोली का शिकार बनाया और लोगों को आतंक से मुक्ति दिलाई.

आदमखोर के शिकार को आता था बुलावा
इस शिकार के बाद उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई. उन्हें नरभक्षी बाघों से मुक्ति दिलाने के लिए बुलावे आने लगे. वह भी लोगों की मदद के लिए कभी पीछे नहीं रहते. अपनी जान की परवाह किए बिना नरभक्षी बाघों का पीछा करते रहते. वह कई-कई रातें जंगलों में गुजारते.

ऐसे पेड़ों पर सोते जहां बंदर हों, ताकि बाघ के आने पर बंदरों के शोर से उन्हें पता चल सके. नरभक्षी जीवों के शिकार को लेकर अनेक किस्से हैं. उत्तराखंड के लोग आज भी उन्हें याद करते हैं.
कार्बेट बचपन से ही बहुत मेहनती और निडर थे. उन्होंने स्टेशन मास्टरी की, सेना में अधिकारी रहे और अंत में ट्रांसपोर्ट अधिकारी भी बने. उन्होंने मानवाधिकारों के लिए आवाज उठाई. साथ ही संरक्षित जीवों के आंदोलन प्रारंभ किया.

उन्होंने उत्तराखंड के नैनीताल स्थित कालाढूंगी में घर बनाया था, जिसे देखने आज भी पर्यटक आते हैं. जिम कार्बेट को जब भी समय मिलता वह कुमाऊं के वनों में घूमने निकल जाते थे. वह वन्य जीवों को बहुत प्यार करते थे. लोगों का जीवन खतरे में न पड़े इसलिए वह नरभक्षी हो चुके बाघों या अन्य वन्य जीवों का ही शिकार करते थे.

कुमाऊं और गढ़वाल के जंगल उन्हें बहुत प्रिय थे. वन्य जीवों के संरक्षण की चिंता और जीवों से प्यार के कारण ही 1952 में कुमांऊ स्थित राष्ट्रीय उद्यान का नाम उनके नाम पर यानी जिम कार्बेट नेशनल पार्क रखा गया. कार्बेट को जब राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला तो जंलग में शिकार पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई.

इसके लिए जिम कार्बेट ने काफी प्रयास किए थे. उन्हें इसका श्रेय भी दिया जाता है. 1949 में जिम कार्बेट अपनी बहन के साथ केन्या चले गए और वहीं बस गए थे. केन्या में ही में जिम कार्बेट का देहान्त हो गया. निधन से पूर्व जिम कार्बेट ने भारत के वनों पर कई पुस्तकें लिखीं.

इससे न सिर्फ लोगों को वन्यजीवों के विषय में जानने का अवसर मिला, बल्कि भारत के वनों की ख्याति देश-दुनिया तक पहुंची. वन्यजीवों के व्यवहार को लेकर उनका अध्ययन बेजोड़ था.

देश का पहला राष्ट्रीय उद्यान बना कार्बेट
कार्बेट नेशनल पार्क हिमालय की तलहटी और रामगंगा नदी के किनारे उत्तराखंड के रामनगर जिले में स्थित है. यह पार्क वन्य जीवों के साथ ही वन संपदा से भरपूर है. इसी कारण यहां देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों का तांता लगा रहता है. बता दें कि टाइगर रिजर्व कार्बेट नेशनल पार्क को देश का पहला और सबसे प्रतिष्ठित राष्ट्रीय उद्यान होने का गौरव प्राप्त है

. इस पार्क को वर्ष 1936 में हैली नेशनल पार्क के रुप में स्थापित किया गया था. 1974 में जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क प्रतिष्ठित वन्यजीव संरक्षण अभियान द्वारा प्रोजेक्ट टाइगर को लांच करने के लिए चुना गया. यह पार्क बाघों का प्राकृतिक आवास माना जाता है. यही कारण है कि यहां बाघों की आबादी बहुत अधिक है.

सैलानियों के लिए हैं विशेष प्रबंध
कार्बेट नेशनल पार्क में पर्यटकों के भ्रमण का समय नवंबर से मई तक होता है. इस मौसम में ट्रैवल एजेंसियां कार्बेट नेशनल पार्क में सैलानियों को घुमाने का प्रबंध करती हैं. कुमाऊं विकास निगम भी प्रति शुक्रवार को दिल्ली से कार्बेट नेशनल पार्क तक पर्यटकों को ले जाने के लिए संचालित भ्रमणों (कंडकटेड टूर्स) का आयोजन करता है.

कुमाऊं विकास निगम की बसों में अनुभवी गाइड होते हैं, जो पशुओं के विषय में जानकारी देने के साथ उनके व्यवहार के विषय में बताते हैं. लगभग 520 वर्ग किलो मीटर क्षेत्र में फैले इस उद्यान में जैव विविधता देखते ही बनती है. यहां रॉयल बंगाल टाइगर, हाथी, जंगली बिल्ली, हिरण आदि आसानी से देख सकते हैं. आप यहां वन्यजीव को करीब से देखने के लिए जीप सफारी का भी आनंद ले सकते हैं.

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Last Updated : Feb 29, 2020, 10:34 AM IST
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