हैदराबाद : इंग्लैंड की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा के अनुसार कोरोना के लक्षण तेज बुखार या लगातार खांसी हैं. हालांकि, ज्यादातर मरीजों के मामले में ऐसा हो रहा है, लेकिन कुछ रोगियों में यह लक्षण नहीं दिख रहा है. फिर भी उनमें कोरोना संक्रमण पाया जा रहा है.
हाल के हफ्तों में प्रकाशित कई रिपोर्ट बताते हैं कि इस नए वायरस के कई चेहरे हैं. यह इन्फ्लूएंजा (फ्लू) बीमारी से पूरी तरह से अलग है, जो एक अन्य श्वसन रोग है. इससे कोरोना और भी खतरनाक हो जाता है.
इससे यह भी सवाल उठता है कि कोरोना के लक्षण इतने परिवर्तनशील क्यों होते हैं. अब तक इन्फ्लूएंजा को विभिन्न वायरस के कारण होने वाली बीमारी के रूप में माना जाता है, लेकिन भारत में कोरोना वायरस का लक्षण हमेशा असमान है. कुछ लोगों में संक्रमण का स्पष्ट लक्षण है और कुछ में संक्रमण का लक्षण नहीं दिखता है.
डॉक्टर भी भ्रमित
मिशिगन में सेंट जोसेफ मर्सी हेल्थ सिस्टम के डॉक्टर एंथोनी डिबिनेट ने अमेरिकन जर्नल ऑफ गेस्ट्रोएंट्रोलॉजी को बताया कि उनके पास 71 वर्षीय मरीज आया, जो मार्च में गंभीर दस्त से पीड़ित था. उन्हें यह शिकायत पांच दिनों के लिए थी, लेकिन उसका तापमान सामान्य था और सांस नहीं ले पा रहा था.
मल की जांच में कोई बैक्टीरिया नहीं पाया गया और जीवाणुरोधी प्रभाव भी नहीं देखा गया, लेकिन बीमार होने के नौ दिन बाद महिला ने कफ की शिकायत की.
इसके बाद उसका कोरोना टेस्ट किया गया और वह पॉजिटिव पाई गई. कोरोना नाक के ऊतक और मल दोनों में पाया गया.
अब यह कोई अनोखा मामला नहीं है क्योंकि सांस फूलने की शिकायत से पहले भी, कोरोना के मरीजों में हार्ट अटैक से लेकर किडनी में संक्रमण, मेनिन्जाइटिस जैसे लक्षण देखे जा रहे हैं.
लक्षणों में ऐसा अंतर क्यों है?
कोरोना के लक्षण होने का कोई स्पष्ट संकेत नहीं है, लेकिन इसके बारे में कई सिद्धांत सामने आ रहे हैं.
पहला सिद्धांत :
यूनिवर्सिटी ऑफ आयोवा के इम्यूनोलॉजिस्ट स्टेनली पर्लमैन के अनुसार यह इसलिए हो रहा है क्योंकि यह एक नई बीमारी है और खतरनाक है. इसलिए इसका अध्ययन किया जा रहा है.
यदि समान प्रभाव के साथ सामान्य इन्फ्लूएंजा का अध्ययन किया जाता, तो इसके विभिन्न लक्षण दिखाई देते. उदाहरण के लिए पेट में हल्का संक्रमण.
दूसरा सिद्धांत :
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के वायरोलॉजिस्ट विलियम जेम्स का कहना है कि कोरोना ऊपरी श्वसन प्रणाली में शुरू होता है और फिर फेफड़ों में गहराई से बैठता है. फेफड़े के नसों में और बाहर भी गैस पहुंचाते हैं. ऐसे में वायरस शरीर के अन्य हिस्सों में भी पहुंच जाता है.
तीसरा सिद्धांत :
एक प्रकार का एंजाइम ऐस-2 (एसीई-2) शरीर के कई अंगों में पाया जाता है. एसीई-2 भी एक कोशिका-सतह वाला प्रोटीन है, जिसमें से कोरोना चिपकता है.
यह फेफड़ों के साथ-साथ पेट, किडनी और हृदय में भी पाया जाता है. इसलिए, कोरोना भी इन अंगों में पहुंच रहा है और टिक रहा है.
फेफड़े से संबंधित लक्षण (सांस की तकलीफ, खांसी आदि) दिखाई देने से पहले ही व्यक्ति कोरोना संक्रमित हो रहा है. हालांकि, डॉक्टर अभी भी यह समझने में असमर्थ हैं कि यह वायरस पेट के एसिड में भी कैसे जीवित रह सकता है.