नई दिल्ली: किसान आंदोलन का मंगलवार को 27वां दिन है. केंद्र सरकार और किसानों के आंदोलन से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री कैलाश चौधरी ने आईएएनएस से खुल कर बात की.
सवाल: किसानों के आंदोलन का कोई सकारात्मक हल अभी तक सरकार क्यों नहीं निकाल पाई है?
जवाब: हमें विश्वास है कि जल्दी ही सरकार और किसान संगठनों के बीच फिर से वार्ता होगी और समाधान निकलेगा. हमारा मानना है कि विपक्षी पार्टियों की ओर से राजनीतिक फायदे के उद्देश्य से किसानों के बीच गलत तरीके से डर फैलाया जा रहा है, जिसे दूर करने का केंद्र सरकार पूरा प्रयास कर रही है.
सवाल: सरकार कृषि कानूनों में संशोधन के लिए क्या तैयार है? एमएसपी और एपीएमसी को लेकर सरकार की क्या स्पष्ट राय है?
जवाब: जो एक्ट है उसका भाव अभी भी किसानों के हित के अनुरूप है. कुछ मुद्दे थे जिन पर किसानों को शंका थी. उसके निवारण का प्रयास किया है. सरकार का उद्देश्य किसानों को उपज का ज्यादा से ज्यादा मूल्य मिले, इसके लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ाने का था. अभी मंडी में लाइसेंसी व्यापारी ही खरीदता था. अब सभी लोग खरीद कर सकते हैं. प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी तो किसानों को ज्यादा लाभ भी मिलेगा.
सवाल: जैसा विपक्ष का कहना है कि इस कानून से सरकारी खरीद कम होने की आशंका है, जिससे मंडियों के समाप्त होने की आशंका है, इस पर सरकार का क्या पक्ष है?
जवाब: यदि किसानों के मन में कुछ शंका है तो उसका निवारण करना सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन यह डर केवल राजनीतिक रोटियां सेकने वाले लोगों की ओर से पैदा किया गया है. कॉन्ट्रैक्ट फामिर्ंग कई राज्यों में हो रही है, लेकिन अभी तक किसी की जमीन नहीं गई है. जो कानून बनाए गए हैं वह किसानों को पर्याप्त सुरक्षा देते हैं.
सवाल: किसानों और कॉपोर्रेट के बीच क्या सरकार का कोई रोल रहने वाला है?
जवाब: सरकार की जिम्मेदारी इस देश के करोड़ों किसानों के लिए है. कृषि सुधार कानूनों का समर्थन करने वालों की तुलना में आपत्ति जताने वालों की संख्या बहुत ही कम है. इसीलिए सरकार पूरे देश को ध्यान में रखकर कानून बनाती है. किसी के कहने या न कहने से कानून बनता या बिगड़ता नहीं है. लोकतंत्र में जनता संसद को कानून बनाने का अधिकार देती है और सरकार का दायित्व है कि वह जनता के हित के लिए कानून बनाए. फिर भी हम किसान हितों के लिए सौहार्दपूर्ण ढंग से हर संभव समाधान की कोशिश कर रहे हैं. पूरी उम्मीद है कि अवश्य ही कोई बीच का रास्ता निकलेगा.
सवाल: किसानों और सरकार के बीच वार्ता किस स्तर पर पहुंच चुकी है, आपको क्या लगता है कब तक समाधान निकलेगा?
जवाब: किसानों के साथ जल्दी ही दोबारा वार्ता शुरू होगी. सरकार तैयार है. वे लोग भी बात कर रहे हैं. हम जल्दी ही समाधान तक पहुंचेंगे, जो वास्तविक किसान प्रतिनिधि हैं वो आगे बढ़ कर फैसला लेंगे और यह गतिरोध समाप्त होगा. पहले भी किसान ही आए थे और किसान ही हैं, मान कर बात कर रहे हैं. अभी वार्ता अंतिम दौर में नहीं पहुंची है. मुझे लगता है किसान यूनियन के लोग समझेंगे और जल्दी ही आंदोलन छोड़कर वार्ता के रास्ते पर आएंगे.
सवाल: न्यायालय के इस मामले में आने को आप किस तरह देखते हैं?
जवाब: माननीय न्यायालय का हम सब पूरा सम्मान करते हैं. न्यायालय ने उचित ही टिप्पणी की है कि सरकार और किसान संगठनों को मिलकर वार्ता के टेबल पर कोई सर्वमान्य समाधान खोजना चाहिए. सरकार भी पहले दिन से ही यही बात कह रही है. लोकतंत्र में शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन का अधिकार है, लेकिन उससे दूसरे नागरिकों की परेशानी को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए. दिल्ली जैसे शहर को ज्यादा दिन तक बंधक बनाकर नहीं रखा जा सकता, इसीलिए किसान कानूनों को पूरी तरह वापस लेने की जिद छोड़ेंगे और सरकार भी किसानों की कुछ शंकाओं के समाधान के लिए संशोधन को तैयार है.
सवाल: आप किसानों से सरकार की तरफ से क्या कहना चाहेंगे?
जवाब: हमारे प्रधानमंत्री मोदीजी ने अन्नदाताओं से जो अपील की है, मैं भी वही बात दोहराना चाहूंगा कि जिनकी राजनीतिक जमीन खिसक गई है, आज वो किसानों को डरा रहे हैं कि उनकी जमीन चली जाएगी. जो कांग्रेस और विपक्ष के लोग आज किसानों के लिए घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं, उन्होंने आठ साल तक स्वामीनाथन रिपोर्ट को दबाए रखा. इन्होंने किसानों पर खर्च नहीं किया, लेकिन मोदी सरकार ने किसानों को डेढ़ गुना एमएसपी दिया. राजस्थान में भी चुनाव के वक्त राहुल गांधी जी ने 10 दिन तक की गिनती बोलकर सरकार में आने के बाद कर्ज माफ करने की बात कही, लेकिन नहीं किया. कांग्रेस कभी भी छोटे किसानों के बारे में नहीं सोचती हैं.किसानों को इस बात को समझना चाहिए कि जो प्रधानमंत्री मोदी किसानों के लिए सम्मान निधि जैसी योजना लेकर आए, वे अन्नदाता का अहित कभी सोच भी नहीं सकते.