नई दिल्ली : नगा समस्या के समाधान के लिए भारत सरकार की ओर से बातचीत कर रहे इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के पूर्व अधिकारी और नगालैंड के वर्तमान राज्यपाल आर.एन. रवि और एनएससीएन के बीच बहुत अधिक मतभेद उभरने के बाद 23 साल से चली आ रही नगा समस्या के हल के लिए बातचीत रुक गई थी. एनएससीएन–आईएम या नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिज्म (ईसाक-मुइवा) मुख्य नगा विद्रोही गुट है जो सरकार से बातचीत कर रहा है.
एनएससीएन–आईएम सहित विभिन्न संगठनों ने रवि को वार्ताकार से हटाने की मांग की है. सात दशक से चली आ रही नगा विद्रोह की समस्या को अब तक छह प्रधानमंत्री झेल चुके हैं और एनएससीएन–आईएम के साथ वर्ष 1997 में जब से वार्ता शुरू हुई है तब से चार वार्ताकार बदले जा चुके हैं. चीजें इतनी अधिक जटिल नहीं हुई रहतीं यदि एनएससीएन–आईएम ने रवि की जगह कोई और वार्ताकार रखने की मांग की तो लोथा ट्राईबल होहो जैसे कुछ नगा संगठनों ने रवि को वार्ताकार बनाए रखने का समर्थन नहीं किया होता. नगा होहो सभी नगा जनजातियों के शीर्ष संगठन नगा काउंसिल का एक शक्तिशाली गुट है.
विभिन्न नगा गुटों के बीच बातचीत के एक जानकार ने ईटीवी भारत को कहा, नगाओं के बीच बांटो और राज करो की एक खतरनाक नीति उन्हें बांटने में काम कर रही है और इसकी बहुत अधिक कीमत चुकानी पड़ सकती है. इस अत्यंत महत्वपूर्ण और नाजुक मोड़ पर या तो प्रधानमंत्री को खुद इस बातचीत की जवाबदेही लेकर हस्तक्षेप करना चाहिए या कोई ऐसा आदमी चाहिए जो सबको स्वीकार्य हो और प्रधानमंत्री की तरह बात सुने’.
एनएससीएन–आईएम ने वार्ताकार रवि की तीखी आलोचना करते हुए आरोप लगाया है कि उन्होंने वर्ष 2015 में सरकार और एनएससीएन–आईएम के बीच करार के जिस फ्रेमवर्क पर हस्ताक्षर हुआ था उसके सर्वाधिक महत्वपूर्ण शब्दों को एकतरफा अपनी तरफ से ही बदल दिया और अभी भी चाहते हैं कि उसे प्रधानमंत्री से स्वीकृति मिल जाए. मंगलवार को जारी अपनी विज्ञप्ति में संगठन ने कहा है,- एनएससीएन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभारी है जिन्होंने ऐतिहासिक फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर करने का मार्गदर्शन और पर्यवेक्षण किया और समारोह को ऊंजा दर्जा दिया. लेकिन उनके प्रतिनिधि रवि ने भरोसे को बहुत कम करने का काम किया है. उनकी भूमिका करार के स्वरूप को अस्वीकार कर देने से कम नहीं है.
एनएससीएन-आईएम की राज्यपाल रवि से नाराजगी ऐसे समय में सामने आई है जब लंबे समय से रुकी वार्ता को लेकर उपजा अवसाद उफान पर है. यहां तक कि खबरों में कहा जा रहा है कि एनएससीएन-आईएम नेताओं का एक वर्ग चीन के युन्नान पहुंचने के लिए भारत और म्यांमार को पार कर चुका है. एनएससीएन-आईएम द इंडो-नगा राजनीतिक वार्ता ने कहा है, 'हासिल को बहुत कुछ किया लेकिन उसका सम्मान बहुत कम हुआ.'
पीएम के प्रति रवि का नजरिया
गौरतलब है कि साल 2018 में एन रवि उप-राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद पर थे. उन्होंने देशभर के पुलिस महानिदेशकों की कॉन्फ्रेंस के बाद आंतरिक सुरक्षा से जुड़े सवाल पर एक बयान में कहा था कि पीएम मोदी अपने पूर्ववर्ती समकक्षों की तुलना में ज्यादा प्रैक्टिकल एप्रोच रखते हैं.
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Deputy NSA RN Ravi says that PM @narendramodi has more practical approach on Internal Security front at the recently concluded #DGPConference; Dy. NSA says that PM Modi’s directions are easy to implement with far less resources pic.twitter.com/2bPR9Q3DCx
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— DD News (@DDNewslive) December 24, 2018
ऐसी भी खबरें आ रही हैं कि कई विद्रोही नेता बहुत सक्रियता से लगे हुए हैं कि असम के उल्फा, मणिपुर के पीएलए और बहुत सारे अन्य विद्रोही संगठन एक साथ मिलकर एक मोर्चा बनाएं. पूर्वी लद्दाख की सीमा पर चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर बनी खतरनाक स्थिति के बीच हो सकता है कि चीन पहले की तरह पूर्वोत्तर के विद्रोही गुटों से बातचीत कर उन्हें और अधिक उकसाने का काम करे. ये विद्रोही गुट अपने मामले में चीन को शामिल करना चाहते हैं. पूर्वोत्तर भारत के अधिकतर विद्रोही गुटों का 80 के दशक में चीन से करीबी जुड़ाव रहा है.
दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास पढ़ाने वाले पूर्वोत्तर भारत के विकास और विद्रोह के विश्लेषक प्रोफेसर कुमार संजय सिंह का कहते हैं- यह देखा गया है कि पूर्वोत्तर के राज्यों में सीएए विरोधी आंदोलन किस तरह से फैला, भूखे और अपमानित प्रवासियों का लौटना और चीनी सेना की गतिविधियां बढ़ना सब कुछ एक क्रम में तेजी से हुआ. नगा और असमी विद्रोही संगठनों के चीन की सीमा पर जुटने आदि की खबरें सब इस तथ्य की सूचक हैं कि पूर्वोत्तर की राजनीति उल्टी दिशा में 1980-1990 के दशक की तरफ जा रही है.
सिंह के अनुसार, सरकार और नगा विद्रोहियों के बीच अभी जारी बातचीत में सबसे बड़ा अवरोध इस बात को समझने को लेकर है कि 'संप्रभुता' का अर्थ क्या है? आधुनिक लोकतंत्र में राजनीति के लिए जगह परिभाषित है, एक ओर शासन की मजबूरियां हैं और दूसरी ओर जनता की आकांक्षाएं हैं. बातचीत के जरिए इन्हें जितना संभव को उतना करीब लाना होगा. लगभग सात दशक पहले शुरू हुए नगा आंदोलन पूरी संप्रभुता (कम्प्लीट सोवरेनिटी) की मांग करता है. हालांकि, मुख्य मांग पर समय के साथ पानी फिर गया है. एनएससीएन (आईएम) को सबसे बड़ा भूमिगत नगा विद्रोही गुट माना जाता है. बताया जाता है कि इसके पास आधुनिक हथियारों से लैस सात हजार से भी अधिक सक्रिय सदस्य हैं.