ETV Bharat / bharat

हृदय रोगों से पीड़ित और स्ट्रोक झेल चुके मरीजों को अधिक है कोरोना का जोखिम - दिल को नुकसान

पूरी दुनिया कोरोना वायरस से जुझ रही है. इस वायरस से दुनियाभर में चार लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. इसी बीच न्यूयॉर्क शहर के एक अस्पताल नेटवर्क माउंट सिनाई के शोधकर्ताओं ने पाया है कि ​कोरोना वायरस के मरीज जो अस्पताल में भर्ती उनके बीच मायोकार्डियल इंजरी (दिल को नुकसान) का खतरा ज्यादा है. इससे उनकी मौत भी हो सकती है. विस्तार से पढ़ें पूरी खबर...

etvbharat
कॉन्सेप्ट इमेज.
author img

By

Published : Jun 12, 2020, 6:55 AM IST

हैदराबाद : पूरी दुनिया कोरोना वायरस से जुझ रही है. इस वायरस से दुनियाभर में चार लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. इसी बीच न्यूयॉर्क शहर के एक अस्पताल नेटवर्क माउंट सिनाई के शोधकर्ताओं ने पाया है कि ​कोरोना वायरस के मरीज जो अस्पताल में भर्ती उनके बीच मायोकार्डियल इंजरी (दिल को नुकसान) का खतरा ज्यादा है. इससे उनकी मौत भी हो सकती है. विशेष रूप से एक गंभीर मायोकार्डियल की चोट मौत के जोखिम को तीन गुना कर सकती है. यह बात ऑफ द अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी के जर्नल में कही गई है.

माउंट सिनाई के इकॉन स्कूल ऑफ मेडिसिन के प्रोफेसर अनु लाला ने कहा कि कोरोना वायरस हृदय और रक्त वाहिकाओं को कैसे प्रभावित करता है. इस बारे में कई अटकलें लगाई गई हैं. हमारा अवलोकन अध्ययन इस पर कुछ प्रकाश डालने में मदद कर सकता है. हमने पाया कि कोरोना के साथ अस्पताल में भर्ती होने वाले 36 फीसदी मरीजों में ट्रोपोनिन का स्तर बढ़ा हुआ था, जो हृदय की चोट का प्रतिनिधित्व करता है और मौत का खतरा ज्यादा रहता है.

यह निष्कर्ष चीन और यूरोप से रिपोर्ट के अनुरूप हैं. यह हेल्थकेयर पेशेवरों के लिए महत्वपूर्ण भी हैं. अगर कोरोना पॉजिटिव मरीज आपातकालीन कक्ष में पहुंचते हैं और उनके प्रारंभिक परीक्षण के परिणाम में ट्रोपोनिन का स्तर बढ़ा हुआ हो तो डॉक्टर इन रोगियों को पहले इलाज करें और उन्हें उनका बारीकी से देख-रेख करें.

जांचकर्ताओं की एक टीम ने 27 फरवरी से 12 अप्रैल, 2020 के बीच पांच न्यूयॉर्क शहर के अस्पतालों में भर्ती 3,000 वयस्क कोरोना संक्रमित रोगियों के इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड का विश्लेषण किया. विश्लेषण किए गए रोगियों की औसत आयु 66 थी और लगभग 60 प्रतिशत पुरुष थे. सभी रोगियों में से एक-चौथाई को अफ्रीकी अमेरिकी थे और 27 प्रतिशत स्वयं को हिस्पैनिक या लातीनी के बता रहे थे. तकरीबन 25 फीसदी रोगियों में कोरोनरी धमनी की बीमारी, अलिंद कांपना और दिल की विफलता जैसी बीमारी थी. तकरीबन 25 फीसदी रोगियों में हृदय रोग जोखिम कारक मधुमेह या उच्च रक्तचाप था.

माउंट सिनाई के शोधकर्ताओं ने पाया कि 36 फीसदी अस्पताल में भर्ती कोरोना रोगियों को मायोकार्डियल इंजरी थी.

इस जानकारी को प्राप्त करने के लिए शोधकर्ताओं ने मरीजों के ट्रोपोनिन के स्तर पर ध्यान केंद्रित किया जो हृदय की मांसपेशियों के क्षतिग्रस्त होने पर जारी किए जाते हैं. (उच्च ट्रोपोनिन के स्तर का मतलब हृदय की अधिक क्षति है.) सभी रोगियों में प्रवेश के 24 घंटों के भीतर एक रक्त परीक्षण किया गया था और उन्हें तीन श्रेणियों में बांटा गया था.

  • 64 प्रतिशत सामान्य श्रेणी.
  • 17 फीसदी में सामान्य श्रेणी से थोड़े उच्च श्रेणी में .
  • 19 फीसदी में सामान्य श्रेणी से काफी उच्च श्रेणी में.

उच्च ट्रोपोनिन का स्तर उन रोगियों में अधिक था जो 70 वर्ष से अधिक उम्र के थे और जिन्हें पहले से मधुमेह, उच्च रक्तचाप, अलिंद फिब्रिलेशन, कोरोनरी धमनी रोग और हृदयाघात संबंधी बीमारियां थीं.

उन्होंने अस्पताल में प्रवेश के समय उम्र, लिंग, शरीर द्रव्यमान सूचकांक, हृदय रोग का इतिहास, दवा और बीमारी सहित कारकों के समायोजन के बाद मृत्यु के जुड़े जोखिम का विश्लेषण किया.

उन्होंने पाया कि मायोकार्डियल के रोगियों को अस्पताल से छुट्टी की संभावना कम थी और सामान्य स्तर के रोगियों की तुलना में मृत्यु का खतरा 75 फीसदी अधिक था.

सामान्य स्तर वाले लोगों की तुलना में अधिक ट्रोपोनिन सांद्रता वाले मरीज मृत्यु के तीन गुना अधिक जोखिम से जुड़े थे.

इसके अतिरिक्त हृदय रोग, मधुमेह और उच्च रक्तचाप सहित प्रासंगिक कारकों के लिए समायोजन करते समय ट्रोपोनिन स्वतंत्र रूप से मृत्यु के जोखिम से जुड़ा था.

डॉ. लाला ने कहा कि अध्ययन से पता चला है कि कोरोना संक्रमित से रोगी अस्पताल में भर्ती है, उनके बीच मायोकार्डियल की चोट आम है, लेकिन अधिक बार हल्के होते हैं .

उन्होंने कहा कि निम्न स्तर के बावजूद हृदय की चोट की छोटी मात्रा में भी मृत्यु एक स्पष्ट जोखिम से जोड़ा जा सकता है. वहीं हृदय रोग से पहले से पीड़ित कोरोना रोगियों में हृदय रोग न पीड़ित कोरोना मरीजों की तुलना में हृयदाघात का खतरा अधिक रहता है.

डॉ. लाला ने कहा कि कोरोना रोगियों में मायोकार्डियल की चोट अकसर होती है, लेकिन सवाल यह है कि एटिओलॉजी क्या है? क्या यह मायोकार्डियम में वायरस के प्रत्यक्ष प्रभाव से होता है या यह साइटोकिन के बढ़ने का अप्रत्यक्ष प्रभाव मायोकार्डियम में भी होता है या एक प्रकोगुलेंट कोरोनरी थ्रोम्बोटिक इस्किमिया का कारण बनता है? यह ऐसे प्रश्न हैं, जिन्हें भविष्य के अध्ययन में संबोधित करने की आवश्यकता है.

हैदराबाद : पूरी दुनिया कोरोना वायरस से जुझ रही है. इस वायरस से दुनियाभर में चार लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. इसी बीच न्यूयॉर्क शहर के एक अस्पताल नेटवर्क माउंट सिनाई के शोधकर्ताओं ने पाया है कि ​कोरोना वायरस के मरीज जो अस्पताल में भर्ती उनके बीच मायोकार्डियल इंजरी (दिल को नुकसान) का खतरा ज्यादा है. इससे उनकी मौत भी हो सकती है. विशेष रूप से एक गंभीर मायोकार्डियल की चोट मौत के जोखिम को तीन गुना कर सकती है. यह बात ऑफ द अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी के जर्नल में कही गई है.

माउंट सिनाई के इकॉन स्कूल ऑफ मेडिसिन के प्रोफेसर अनु लाला ने कहा कि कोरोना वायरस हृदय और रक्त वाहिकाओं को कैसे प्रभावित करता है. इस बारे में कई अटकलें लगाई गई हैं. हमारा अवलोकन अध्ययन इस पर कुछ प्रकाश डालने में मदद कर सकता है. हमने पाया कि कोरोना के साथ अस्पताल में भर्ती होने वाले 36 फीसदी मरीजों में ट्रोपोनिन का स्तर बढ़ा हुआ था, जो हृदय की चोट का प्रतिनिधित्व करता है और मौत का खतरा ज्यादा रहता है.

यह निष्कर्ष चीन और यूरोप से रिपोर्ट के अनुरूप हैं. यह हेल्थकेयर पेशेवरों के लिए महत्वपूर्ण भी हैं. अगर कोरोना पॉजिटिव मरीज आपातकालीन कक्ष में पहुंचते हैं और उनके प्रारंभिक परीक्षण के परिणाम में ट्रोपोनिन का स्तर बढ़ा हुआ हो तो डॉक्टर इन रोगियों को पहले इलाज करें और उन्हें उनका बारीकी से देख-रेख करें.

जांचकर्ताओं की एक टीम ने 27 फरवरी से 12 अप्रैल, 2020 के बीच पांच न्यूयॉर्क शहर के अस्पतालों में भर्ती 3,000 वयस्क कोरोना संक्रमित रोगियों के इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड का विश्लेषण किया. विश्लेषण किए गए रोगियों की औसत आयु 66 थी और लगभग 60 प्रतिशत पुरुष थे. सभी रोगियों में से एक-चौथाई को अफ्रीकी अमेरिकी थे और 27 प्रतिशत स्वयं को हिस्पैनिक या लातीनी के बता रहे थे. तकरीबन 25 फीसदी रोगियों में कोरोनरी धमनी की बीमारी, अलिंद कांपना और दिल की विफलता जैसी बीमारी थी. तकरीबन 25 फीसदी रोगियों में हृदय रोग जोखिम कारक मधुमेह या उच्च रक्तचाप था.

माउंट सिनाई के शोधकर्ताओं ने पाया कि 36 फीसदी अस्पताल में भर्ती कोरोना रोगियों को मायोकार्डियल इंजरी थी.

इस जानकारी को प्राप्त करने के लिए शोधकर्ताओं ने मरीजों के ट्रोपोनिन के स्तर पर ध्यान केंद्रित किया जो हृदय की मांसपेशियों के क्षतिग्रस्त होने पर जारी किए जाते हैं. (उच्च ट्रोपोनिन के स्तर का मतलब हृदय की अधिक क्षति है.) सभी रोगियों में प्रवेश के 24 घंटों के भीतर एक रक्त परीक्षण किया गया था और उन्हें तीन श्रेणियों में बांटा गया था.

  • 64 प्रतिशत सामान्य श्रेणी.
  • 17 फीसदी में सामान्य श्रेणी से थोड़े उच्च श्रेणी में .
  • 19 फीसदी में सामान्य श्रेणी से काफी उच्च श्रेणी में.

उच्च ट्रोपोनिन का स्तर उन रोगियों में अधिक था जो 70 वर्ष से अधिक उम्र के थे और जिन्हें पहले से मधुमेह, उच्च रक्तचाप, अलिंद फिब्रिलेशन, कोरोनरी धमनी रोग और हृदयाघात संबंधी बीमारियां थीं.

उन्होंने अस्पताल में प्रवेश के समय उम्र, लिंग, शरीर द्रव्यमान सूचकांक, हृदय रोग का इतिहास, दवा और बीमारी सहित कारकों के समायोजन के बाद मृत्यु के जुड़े जोखिम का विश्लेषण किया.

उन्होंने पाया कि मायोकार्डियल के रोगियों को अस्पताल से छुट्टी की संभावना कम थी और सामान्य स्तर के रोगियों की तुलना में मृत्यु का खतरा 75 फीसदी अधिक था.

सामान्य स्तर वाले लोगों की तुलना में अधिक ट्रोपोनिन सांद्रता वाले मरीज मृत्यु के तीन गुना अधिक जोखिम से जुड़े थे.

इसके अतिरिक्त हृदय रोग, मधुमेह और उच्च रक्तचाप सहित प्रासंगिक कारकों के लिए समायोजन करते समय ट्रोपोनिन स्वतंत्र रूप से मृत्यु के जोखिम से जुड़ा था.

डॉ. लाला ने कहा कि अध्ययन से पता चला है कि कोरोना संक्रमित से रोगी अस्पताल में भर्ती है, उनके बीच मायोकार्डियल की चोट आम है, लेकिन अधिक बार हल्के होते हैं .

उन्होंने कहा कि निम्न स्तर के बावजूद हृदय की चोट की छोटी मात्रा में भी मृत्यु एक स्पष्ट जोखिम से जोड़ा जा सकता है. वहीं हृदय रोग से पहले से पीड़ित कोरोना रोगियों में हृदय रोग न पीड़ित कोरोना मरीजों की तुलना में हृयदाघात का खतरा अधिक रहता है.

डॉ. लाला ने कहा कि कोरोना रोगियों में मायोकार्डियल की चोट अकसर होती है, लेकिन सवाल यह है कि एटिओलॉजी क्या है? क्या यह मायोकार्डियम में वायरस के प्रत्यक्ष प्रभाव से होता है या यह साइटोकिन के बढ़ने का अप्रत्यक्ष प्रभाव मायोकार्डियम में भी होता है या एक प्रकोगुलेंट कोरोनरी थ्रोम्बोटिक इस्किमिया का कारण बनता है? यह ऐसे प्रश्न हैं, जिन्हें भविष्य के अध्ययन में संबोधित करने की आवश्यकता है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.