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निर्भया केस : दया याचिका खारिज होने के खिलाफ दोषी की याचिका पर सुनवाई पूरी, फैसला बुधवार को

निर्भया मामले में दया याचिका खारिज होने के खिलाफ चार दोषियों में एक मुकेश सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है. अदालत में दोषी मुकेश की याचिका पर सुनवाई पूरी हो चुकी है. न्यायालय इस याचिका पर बुधवार को अपना फैसला सुनाएगा.

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सुप्रीम कोर्ट में निर्भया केस
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Published : Jan 28, 2020, 7:43 AM IST

Updated : Feb 28, 2020, 5:46 AM IST

नई दिल्ली : निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में दोषी मुकेश कुमार सिंह की दया याचिका खारिज करने के राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को सुनवाई पूरी कर ली. न्यायालय इस याचिका पर बुधवार को अपनी व्यवस्था देगा.

दिल्ली में 2012 में हुये इस जघन्य अपराध के लिये चार मुजरिमों को अदालत ने मौत की सजा सुनायी थी. इन दोषियों में से एक मुकेश की दया याचिका राष्ट्रपति ने 17 जनवरी को खारिज कर दी थी जिसके खिलाफ इस दोषी ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर रखी है.

न्यायमूर्ति आर भानुमति, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने इस याचिका पर मुकेश कुमार सिंह की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अंजना प्रकाश और केन्द्र की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता की दलीलें सुनने के बाद कहा कि इस पर निर्णय बुधवार को सुनाया जायेगा.

ए पी सिंह

दोषी पवन के वकील ए पी सिंह ने मीडिया को बताया कि अदालत ने सुनवाई पूरी कर ली है. इस मामले में अदालत अब बुधवार को अपना फैसला सुनाएगी. उन्होंने इस मामले में जल्द बाजी करने का आरोप लगाया है. उन्होंने आरोप लगाया कि यह फैसला पूरी तरह से पक्षपात करने वाला था.

सॉलिसिटर जनरल की दलीलें

यौन शोषण पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें अदालत जाने का अधिकार है, लेकिन एक निर्दोष लड़की का बलात्कार किया गया, उसकी आंतों को बाहर निकाला गया, इसके लिए दया की कोई जगह नहीं है. न्याय कोई सुख की सामाग्री नहीं है.

मेहता ने कहा कि उन्हें कभी एकांत में नहीं रखा गया. एकांत कारावास का मतलब है कि बिना किसी सम्पर्क के पूरी तरह अलग हो जाना. सुरक्षा कारणों से उन्हें एक कमरे में लोहे की सलाखों में रखा गया था, जिसमें अन्य बैरक थे. साथ ही अन्य कैदियों के साथ वह भी बाहर आता था और अन्य कैदियों से मिलता था.

उन्होंने कहा कि देरी होना एक तर्क हो सकता है, लेकिन दया देना कभी भी एक तर्क नहीं हो सकता. वह भी इस आधार पर कि जब एक व्यक्ति को मौत की सजा होती है, तो वह हर रोज मरता है. इसके अमानवीय नतीजे हो सकते हैं.

उन्होंने कहा कि जो आवश्यक सामग्री राष्ट्रपति को दी गई, वह पूरी नहीं थी. उन्हें केवल अधिकारियों के पत्र दिए गए थे.

निर्णय लेने में 7 से 8 साल की देरी हुई . अदालत ने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि फांसी को अंजाम देने में कोई भी देरी करना अमानवीय है.

आरोपी ने क्यूरेटिव याचिका दायर करने में देरी की .... वह लगातार यह कहकर देरी करता रहा कि वह क्यूरेटिव और दया याचिका दायर कर रहा है.16 जनवरी को राष्ट्रपति ने क्यूरेटिव याचिका विस्तार से निरक्षण किया और 17 को खारिज कर दी.

पढ़ें- निर्भया मामला: चारों दोषियों के पुतलों को तिहाड़ में फांसी दी गई

मुकेश के वकील की दलीलें
दोषी मुकेश की ओर से दलीलें पेश करते हुए वकील अंजना प्रकाश ने कहा, 'हम सोचते हैं कि यह स्पष्ट रूप से समझा जाना चाहिए कि हम राष्ट्रपति की शक्तियों तक ही सीमित हैं, केस की मेरिट पर नहीं.'

उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति की भूमिका आपराधिक मामले के साक्ष्य की जांच करनी है. इसके बाद उन्हें देखना है कि क्या वह सजा माफी का हकदार है.

वकील अंजना प्रकाश ने कहा कि राष्ट्रपति में निहित शक्तियां एक संवैधानिक कर्तव्य है, यह अनुग्रह या विशेषाधिकार की बात नहीं है. उन्होंने कहा कि इन आधारों पर राष्ट्रपति या राज्यपाल की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है.

बकौल अंजना प्रकाश, 'आदेश ठीक नहीं है और संबंधित सामग्री को बाहर रखा गया है. आदेश में मनमानी (arbitrariness) की गई है. इस मामले में एकांत कारावास और प्रक्रियागत खामियां हैं.

उन्होंने कहा कि प्रक्रियात्मक खामियों के कारण अभियुक्त और उसके परिवार के साथ बहुत अन्याय हुआ है. उन्होंने कहा कि गृह मंत्रालय के पास विस्तृत प्रक्रियाएं हैं, लेकिन इनका पालन नहीं किया गया.

मुकेश की वकील प्रकाश ने कहा कि उन सभी मामलों में जिनमें दया याचिका राष्ट्रपति को हस्तांतरित की जानी है, इसे यथासंभव शीघ्र किया जाना चाहिए. ऐसा करना दोषी को सक्षम बनाता है कि यदि कोई भी नई सामग्री पाई जाती है तो उसकी दया याचिका पर पुनर्विचार करना होगा.

उन्होंने कहा, 'यह तय कानून है कि किसी व्यक्ति को अपने जीवन और स्वतंत्रता से वंचित करना ही काफी कारण है.'

एकांत कारावास दया याचिका खारिज होने के बाद ही हो सकता है, लेकिन हमने देखा है कि दोषियों को एकांत कारावास में रखा गया है. विभिन्न जेल यात्राओं ने इसकी पुष्टि की है और अदालत ने भी यह विचार किया है.

पढ़ें- निर्भया रेपकांड: दोषियों के परिवार वालों को दी गई फांसी की जानकारी

आवश्यक सामग्री जैसे पुलिस रिकॉर्ड, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की कार्यवाही जैसे रिकॉर्ड आदि को राष्ट्रपति को भेजना पड़ता है .... सभी सामग्रियों को नहीं भेजा गया है.

उन्होंने कहा कि इस अदालत ने मौत की सजा को बरकरार रखा है, लेकिन कोर्ट ने किसी भी तरह से प्रक्रियाओं के साथ समझौता करने को नहीं कहा है. दुख के साथ कहना पड़ता है कि निर्भया के दोषियों को कानूनी सहायता 2014 के अंत में दी गई. केस डायरी से भी यही कहानी पता चलती है.

मुकेश के बयानों का जिक्र करते हुए वकील अंजना प्रकाश ने कहा, 'मैं निर्भया की मौत के लिए जिम्मेदार नहीं हूं. मैंने उसके साथ बलात्कार या कुछ भी ऐसा नहीं किया जो उसकी मौत का कारण बना. मेरे डीएनए का मिलान नहीं हुआ. मेरे शरीर पर कोई चोट नहीं मिली.'

मुकेश की वकील ने कहा कि अदालत ने जो निष्कर्ष निकाले हैं वह साक्ष्यों के विपरीत हैं. ट्रायल कोर्ट में भी उसका पक्ष नहीं रखा गया.

इस पर जस्टिस भानुमति ने कहा कि ट्रायल कोर्ट, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने इस पर विचार किया है. उन्होंने पूछा, आप यह कैसे कह सकती हैं कि यहां दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया गया ?

जस्टिस भानुमति के सवाल पर मुकेश की वकील ने कहा कि केस से जुड़ी जरूरी सामग्री और फैसला भी नहीं भेजा गया.

वकील अंजना प्रकाश ने कहा, 'निचली अदालत के रिकॉर्ड नहीं थे. हमने यह मुद्दा उठाया था कि केस डायरी कुछ और थी, चार्जशीट कुछ और थी. केस डायरी नहीं थी.' उन्होंने कहा कि एक ही केस में दो चीजें थीं.

उन्होंने कहा कि न्यायिक फैसला है - जैसा है वैसा ही होता है. जांच करने के लिए इससे स्वतंत्र एक निकाय होना चाहिए.

मुकेश की वकील ने कहा कि राष्ट्रपति न्यायालय से अलग तरीके से कार्य कर सकता है. वह उल्लंघन या संशोधन नहीं करता है. उन्होंने मुकेश के बयानों का हवाला देते हुए कहा, 'मुझे 23 वर्षीय युवती के साथ बलात्कार के लिए मौत की सजा सुनाई गई. लेकिन क्या मुझे भी बलात्कार की सजा दी गई ? पहले दिन से ही लगातार पीटा गया. अक्षय के साथ जबरन यौन संबंध बनाने को मजबूर किया गया.'

मुकेश की वकील ने पूछा कि मेडिकल रिकॉर्ड्स कहां हैं. उन्होंने कहा, याचिकाकर्ता ने विवरण प्रस्तुत करते हुए अदालत में हलफनामा दाखिल किया था, लेकिन न्यायाधीशों ने विचार नहीं किया. दोषियों के हालात पर उन्होंने कहा, वे खा नहीं सकते, सो नहीं सकते ... डॉक्टर से मिली दवाओं से भी मदद नहीं मिली है.

मुकेश की वकील ने एक अन्य आरोपी राम सिंह की मौत मामले में जांच की अपील की. उन्होंने कहा कि उसके हाथ में 95 फीसदी डिसेबिलिटी थी, ऐसे में वह खुद को फांसी कैसे लगा सकता है.

पूर्व जेलर सुनील गुप्ता की किताब, 'ब्लैक वारंट' में लिखा गया है कि राम सिंह की हत्या की गई थी. मुकेश की वकील ने कहा, 'वे जानते हैं कि राम सिंह को किसने मारा.' उन्होंने पूछा कि क्या उसके साथ जो हुआ, उससे सार्वजनिक चेतना पर कोई फर्क नहीं पड़ा ?

मुकेश की वकील ने कहा, यदि साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया जाता है तो ट्रायल कोर्ट कैसे स्वीकार करेगा कि अभियुक्त ने अपराध किया है.

बकौल वकील अंजना प्रकाश, समाचार वेबसाइट्स पहले से ही इस खबर को फ्लैश कर रही थीं, कि दिल्ली सरकार ने दोषियों की याचिका अस्वीकार कर उपराज्यपाल को भेज दिया है. उपराज्यपाल ने 15 जनवरी को इसे गृह मंत्रालय को भेजा.

पढ़ें- 1 फरवरी को निर्भया के दरिंदों को जरूर होगी फांसी: निर्भया की मां

मुकेश की वकील ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि राष्ट्रपति सिर्फ इस पर हस्ताक्षर करने वाले थे. उन्होंने दोपहर के भोजन के पहले ही हस्ताक्षर कर दिया. यह कहा जा रहा है कि हम देरी कर रहे हैं. आज 28 जनवरी है, फांसी की तारीख एक फरवरी है. इससे पहले मामले को नए सिरे से तय किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि केवल तिहाड़ जेल प्रशासन ने आरटीआई और राष्ट्रपति को जवाब दिया. गृह मंत्रालय ने जवाब नहीं दिया.

कौन-कौन से जजों की पीठ में हो रही सुनवाई
बता दें, न्यायमूर्ति आर भानुमति, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ मुकेश कुमार सिंह की इस याचिका पर सुनवाई कर रही है.

गौरतलब है कि निर्भया कांड में मौत की सजा मिलने वाले दोषियों में से एक मुकेश कुमार सिंह की दया याचिका राष्ट्रपति ने 17 जनवरी को खारिज की थी. इसके बाद ही अदालत ने चारों मुजरिमों को एक फरवरी को मृत्यु होने तक फांसी पर लटकाने के लिए आवश्यक वारंट जारी किया था.

इससे पहले, सोमवार को प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की पीठ के समक्ष मुकेश की याचिका का उल्लेख किया गया था. इस पर पीठ ने कहा था, 'यदि किसी व्यक्ति को फांसी पर लटकाया जाना है तो इससे ज्यादा महत्वपूर्ण मामला कुछ और नहीं हो सकता.'

पीठ ने कहा था कि यदि किसी व्यक्ति को एक फरवरी को फांसी दी जानी है तो न्यायालय के लिए यह एक सर्वोच्च प्राथमिकता का मामला है. पीठ ने सिंह के वकील को मामलों के उल्लेख के लिए नियुक्त अधिकारी के पास जाने के लिए कहा था क्योंकि फांसी देने की तारीख एक फरवरी निर्धारित है.

मुकेश कुमार सिंह की सुधारात्मक याचिका शीर्ष अदालत में खारिज होने के बाद उसने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर की थी. न्यायालय ने एक अन्य दोषी अक्षय कुमार की सुधारात्मक याचिका भी खारिज कर दी थी.

इस मामले में दो अन्य दोषियों - पवन गुप्ता और विनय कुमार शर्मा ने अभी तक शीर्ष अदालत में सुधारात्मक याचिका दायर नहीं की है.

23 वर्षीय निर्भया से दक्षिण दिल्ली में चलती बस में 16-17 दिसंबर, 2012 की रात छह व्यक्तियों ने सामूहिक बलात्कार के बाद उसे बुरी तरह जख्मी हालत में सड़क पर फेंक दिया था. निर्भया का बाद में 29 दिसंबर को सिंगापुर के एक अस्पताल में निधन हो गया था.

इस जघन्य अपराध के मुख्य आरोपी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में कथित रूप से आत्महत्या कर ली थी जबकि एक अन्य आरोपी नाबालिग था, जिसे तीन साल के लिए सुधार गृह में रखा गया था.

नई दिल्ली : निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में दोषी मुकेश कुमार सिंह की दया याचिका खारिज करने के राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को सुनवाई पूरी कर ली. न्यायालय इस याचिका पर बुधवार को अपनी व्यवस्था देगा.

दिल्ली में 2012 में हुये इस जघन्य अपराध के लिये चार मुजरिमों को अदालत ने मौत की सजा सुनायी थी. इन दोषियों में से एक मुकेश की दया याचिका राष्ट्रपति ने 17 जनवरी को खारिज कर दी थी जिसके खिलाफ इस दोषी ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर रखी है.

न्यायमूर्ति आर भानुमति, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने इस याचिका पर मुकेश कुमार सिंह की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अंजना प्रकाश और केन्द्र की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता की दलीलें सुनने के बाद कहा कि इस पर निर्णय बुधवार को सुनाया जायेगा.

ए पी सिंह

दोषी पवन के वकील ए पी सिंह ने मीडिया को बताया कि अदालत ने सुनवाई पूरी कर ली है. इस मामले में अदालत अब बुधवार को अपना फैसला सुनाएगी. उन्होंने इस मामले में जल्द बाजी करने का आरोप लगाया है. उन्होंने आरोप लगाया कि यह फैसला पूरी तरह से पक्षपात करने वाला था.

सॉलिसिटर जनरल की दलीलें

यौन शोषण पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें अदालत जाने का अधिकार है, लेकिन एक निर्दोष लड़की का बलात्कार किया गया, उसकी आंतों को बाहर निकाला गया, इसके लिए दया की कोई जगह नहीं है. न्याय कोई सुख की सामाग्री नहीं है.

मेहता ने कहा कि उन्हें कभी एकांत में नहीं रखा गया. एकांत कारावास का मतलब है कि बिना किसी सम्पर्क के पूरी तरह अलग हो जाना. सुरक्षा कारणों से उन्हें एक कमरे में लोहे की सलाखों में रखा गया था, जिसमें अन्य बैरक थे. साथ ही अन्य कैदियों के साथ वह भी बाहर आता था और अन्य कैदियों से मिलता था.

उन्होंने कहा कि देरी होना एक तर्क हो सकता है, लेकिन दया देना कभी भी एक तर्क नहीं हो सकता. वह भी इस आधार पर कि जब एक व्यक्ति को मौत की सजा होती है, तो वह हर रोज मरता है. इसके अमानवीय नतीजे हो सकते हैं.

उन्होंने कहा कि जो आवश्यक सामग्री राष्ट्रपति को दी गई, वह पूरी नहीं थी. उन्हें केवल अधिकारियों के पत्र दिए गए थे.

निर्णय लेने में 7 से 8 साल की देरी हुई . अदालत ने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि फांसी को अंजाम देने में कोई भी देरी करना अमानवीय है.

आरोपी ने क्यूरेटिव याचिका दायर करने में देरी की .... वह लगातार यह कहकर देरी करता रहा कि वह क्यूरेटिव और दया याचिका दायर कर रहा है.16 जनवरी को राष्ट्रपति ने क्यूरेटिव याचिका विस्तार से निरक्षण किया और 17 को खारिज कर दी.

पढ़ें- निर्भया मामला: चारों दोषियों के पुतलों को तिहाड़ में फांसी दी गई

मुकेश के वकील की दलीलें
दोषी मुकेश की ओर से दलीलें पेश करते हुए वकील अंजना प्रकाश ने कहा, 'हम सोचते हैं कि यह स्पष्ट रूप से समझा जाना चाहिए कि हम राष्ट्रपति की शक्तियों तक ही सीमित हैं, केस की मेरिट पर नहीं.'

उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति की भूमिका आपराधिक मामले के साक्ष्य की जांच करनी है. इसके बाद उन्हें देखना है कि क्या वह सजा माफी का हकदार है.

वकील अंजना प्रकाश ने कहा कि राष्ट्रपति में निहित शक्तियां एक संवैधानिक कर्तव्य है, यह अनुग्रह या विशेषाधिकार की बात नहीं है. उन्होंने कहा कि इन आधारों पर राष्ट्रपति या राज्यपाल की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है.

बकौल अंजना प्रकाश, 'आदेश ठीक नहीं है और संबंधित सामग्री को बाहर रखा गया है. आदेश में मनमानी (arbitrariness) की गई है. इस मामले में एकांत कारावास और प्रक्रियागत खामियां हैं.

उन्होंने कहा कि प्रक्रियात्मक खामियों के कारण अभियुक्त और उसके परिवार के साथ बहुत अन्याय हुआ है. उन्होंने कहा कि गृह मंत्रालय के पास विस्तृत प्रक्रियाएं हैं, लेकिन इनका पालन नहीं किया गया.

मुकेश की वकील प्रकाश ने कहा कि उन सभी मामलों में जिनमें दया याचिका राष्ट्रपति को हस्तांतरित की जानी है, इसे यथासंभव शीघ्र किया जाना चाहिए. ऐसा करना दोषी को सक्षम बनाता है कि यदि कोई भी नई सामग्री पाई जाती है तो उसकी दया याचिका पर पुनर्विचार करना होगा.

उन्होंने कहा, 'यह तय कानून है कि किसी व्यक्ति को अपने जीवन और स्वतंत्रता से वंचित करना ही काफी कारण है.'

एकांत कारावास दया याचिका खारिज होने के बाद ही हो सकता है, लेकिन हमने देखा है कि दोषियों को एकांत कारावास में रखा गया है. विभिन्न जेल यात्राओं ने इसकी पुष्टि की है और अदालत ने भी यह विचार किया है.

पढ़ें- निर्भया रेपकांड: दोषियों के परिवार वालों को दी गई फांसी की जानकारी

आवश्यक सामग्री जैसे पुलिस रिकॉर्ड, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की कार्यवाही जैसे रिकॉर्ड आदि को राष्ट्रपति को भेजना पड़ता है .... सभी सामग्रियों को नहीं भेजा गया है.

उन्होंने कहा कि इस अदालत ने मौत की सजा को बरकरार रखा है, लेकिन कोर्ट ने किसी भी तरह से प्रक्रियाओं के साथ समझौता करने को नहीं कहा है. दुख के साथ कहना पड़ता है कि निर्भया के दोषियों को कानूनी सहायता 2014 के अंत में दी गई. केस डायरी से भी यही कहानी पता चलती है.

मुकेश के बयानों का जिक्र करते हुए वकील अंजना प्रकाश ने कहा, 'मैं निर्भया की मौत के लिए जिम्मेदार नहीं हूं. मैंने उसके साथ बलात्कार या कुछ भी ऐसा नहीं किया जो उसकी मौत का कारण बना. मेरे डीएनए का मिलान नहीं हुआ. मेरे शरीर पर कोई चोट नहीं मिली.'

मुकेश की वकील ने कहा कि अदालत ने जो निष्कर्ष निकाले हैं वह साक्ष्यों के विपरीत हैं. ट्रायल कोर्ट में भी उसका पक्ष नहीं रखा गया.

इस पर जस्टिस भानुमति ने कहा कि ट्रायल कोर्ट, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने इस पर विचार किया है. उन्होंने पूछा, आप यह कैसे कह सकती हैं कि यहां दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया गया ?

जस्टिस भानुमति के सवाल पर मुकेश की वकील ने कहा कि केस से जुड़ी जरूरी सामग्री और फैसला भी नहीं भेजा गया.

वकील अंजना प्रकाश ने कहा, 'निचली अदालत के रिकॉर्ड नहीं थे. हमने यह मुद्दा उठाया था कि केस डायरी कुछ और थी, चार्जशीट कुछ और थी. केस डायरी नहीं थी.' उन्होंने कहा कि एक ही केस में दो चीजें थीं.

उन्होंने कहा कि न्यायिक फैसला है - जैसा है वैसा ही होता है. जांच करने के लिए इससे स्वतंत्र एक निकाय होना चाहिए.

मुकेश की वकील ने कहा कि राष्ट्रपति न्यायालय से अलग तरीके से कार्य कर सकता है. वह उल्लंघन या संशोधन नहीं करता है. उन्होंने मुकेश के बयानों का हवाला देते हुए कहा, 'मुझे 23 वर्षीय युवती के साथ बलात्कार के लिए मौत की सजा सुनाई गई. लेकिन क्या मुझे भी बलात्कार की सजा दी गई ? पहले दिन से ही लगातार पीटा गया. अक्षय के साथ जबरन यौन संबंध बनाने को मजबूर किया गया.'

मुकेश की वकील ने पूछा कि मेडिकल रिकॉर्ड्स कहां हैं. उन्होंने कहा, याचिकाकर्ता ने विवरण प्रस्तुत करते हुए अदालत में हलफनामा दाखिल किया था, लेकिन न्यायाधीशों ने विचार नहीं किया. दोषियों के हालात पर उन्होंने कहा, वे खा नहीं सकते, सो नहीं सकते ... डॉक्टर से मिली दवाओं से भी मदद नहीं मिली है.

मुकेश की वकील ने एक अन्य आरोपी राम सिंह की मौत मामले में जांच की अपील की. उन्होंने कहा कि उसके हाथ में 95 फीसदी डिसेबिलिटी थी, ऐसे में वह खुद को फांसी कैसे लगा सकता है.

पूर्व जेलर सुनील गुप्ता की किताब, 'ब्लैक वारंट' में लिखा गया है कि राम सिंह की हत्या की गई थी. मुकेश की वकील ने कहा, 'वे जानते हैं कि राम सिंह को किसने मारा.' उन्होंने पूछा कि क्या उसके साथ जो हुआ, उससे सार्वजनिक चेतना पर कोई फर्क नहीं पड़ा ?

मुकेश की वकील ने कहा, यदि साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया जाता है तो ट्रायल कोर्ट कैसे स्वीकार करेगा कि अभियुक्त ने अपराध किया है.

बकौल वकील अंजना प्रकाश, समाचार वेबसाइट्स पहले से ही इस खबर को फ्लैश कर रही थीं, कि दिल्ली सरकार ने दोषियों की याचिका अस्वीकार कर उपराज्यपाल को भेज दिया है. उपराज्यपाल ने 15 जनवरी को इसे गृह मंत्रालय को भेजा.

पढ़ें- 1 फरवरी को निर्भया के दरिंदों को जरूर होगी फांसी: निर्भया की मां

मुकेश की वकील ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि राष्ट्रपति सिर्फ इस पर हस्ताक्षर करने वाले थे. उन्होंने दोपहर के भोजन के पहले ही हस्ताक्षर कर दिया. यह कहा जा रहा है कि हम देरी कर रहे हैं. आज 28 जनवरी है, फांसी की तारीख एक फरवरी है. इससे पहले मामले को नए सिरे से तय किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि केवल तिहाड़ जेल प्रशासन ने आरटीआई और राष्ट्रपति को जवाब दिया. गृह मंत्रालय ने जवाब नहीं दिया.

कौन-कौन से जजों की पीठ में हो रही सुनवाई
बता दें, न्यायमूर्ति आर भानुमति, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ मुकेश कुमार सिंह की इस याचिका पर सुनवाई कर रही है.

गौरतलब है कि निर्भया कांड में मौत की सजा मिलने वाले दोषियों में से एक मुकेश कुमार सिंह की दया याचिका राष्ट्रपति ने 17 जनवरी को खारिज की थी. इसके बाद ही अदालत ने चारों मुजरिमों को एक फरवरी को मृत्यु होने तक फांसी पर लटकाने के लिए आवश्यक वारंट जारी किया था.

इससे पहले, सोमवार को प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की पीठ के समक्ष मुकेश की याचिका का उल्लेख किया गया था. इस पर पीठ ने कहा था, 'यदि किसी व्यक्ति को फांसी पर लटकाया जाना है तो इससे ज्यादा महत्वपूर्ण मामला कुछ और नहीं हो सकता.'

पीठ ने कहा था कि यदि किसी व्यक्ति को एक फरवरी को फांसी दी जानी है तो न्यायालय के लिए यह एक सर्वोच्च प्राथमिकता का मामला है. पीठ ने सिंह के वकील को मामलों के उल्लेख के लिए नियुक्त अधिकारी के पास जाने के लिए कहा था क्योंकि फांसी देने की तारीख एक फरवरी निर्धारित है.

मुकेश कुमार सिंह की सुधारात्मक याचिका शीर्ष अदालत में खारिज होने के बाद उसने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर की थी. न्यायालय ने एक अन्य दोषी अक्षय कुमार की सुधारात्मक याचिका भी खारिज कर दी थी.

इस मामले में दो अन्य दोषियों - पवन गुप्ता और विनय कुमार शर्मा ने अभी तक शीर्ष अदालत में सुधारात्मक याचिका दायर नहीं की है.

23 वर्षीय निर्भया से दक्षिण दिल्ली में चलती बस में 16-17 दिसंबर, 2012 की रात छह व्यक्तियों ने सामूहिक बलात्कार के बाद उसे बुरी तरह जख्मी हालत में सड़क पर फेंक दिया था. निर्भया का बाद में 29 दिसंबर को सिंगापुर के एक अस्पताल में निधन हो गया था.

इस जघन्य अपराध के मुख्य आरोपी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में कथित रूप से आत्महत्या कर ली थी जबकि एक अन्य आरोपी नाबालिग था, जिसे तीन साल के लिए सुधार गृह में रखा गया था.

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निर्भया मामला: दया याचिका खारिज होने के खिलाफ एक दोषी की याचिका पर न्यायालय सुनवाई करेगा



नयी दिल्ली, 27 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में मौत की सजा पाये मुकेश कुमार सिंह की दया याचिका अस्वीकार करने के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर मंगलवार को सुनवाई करेगा.



न्यायमूर्ति आर भानुमति, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ मुकेश कुमार सिंह की इस याचिका पर मंगलवार को अपराह्न 12.30 बजे सुनवाई करेगी.



निर्भया कांड में मौत की सजा पाने वाले दोषियों में से एक मुकेश कुमार सिंह की दया याचिका राष्ट्रपति ने 17 जनवरी को खारिज की थी. इसके बाद ही अदालत ने चारों मुजरिमों को एक फरवरी को मृत्यु होने तक फांसी पर लटकाने के लिये आवश्यक वारंट जारी किया था.



इससे पहले, सोमवार को प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की पीठ के समक्ष मुकेश की याचिका का उल्लेख किया गया था. इस पर पीठ ने कहा था, ‘‘यदि किसी व्यक्ति को फांसी पर लटकाया जाना है तो इससे ज्यादा महत्वपूर्ण मामला कुछ और नहीं हो सकता.’’



पीठ ने कहा था कि यदि किसी व्यक्ति को एक फरवरी को फांसी दी जानी है तो न्यायालय के लिये यह एक सर्वोच्च प्राथमिकता का मामला है. पीठ ने सिंह के वकील को मामलों के उल्लेख के लिये नियुक्त अधिकारी के पास जाने के लिये कहा था क्योंकि फांसी देने की तारीख एक फरवरी निर्धारित है.



मुकेश कुमार सिंह की सुधारात्मक याचिका शीर्ष अदालत में खारिज होने के बाद उसने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर की थी. न्यायालय ने एक अन्य दोषी अक्षय कुमार की सुधारात्मक याचिका भी खारिज कर दी थी.



इस मामले में दो अन्य दोषियों - पवन गुप्ता और विनय कुमार शर्मा ने अभी तक शीर्ष अदालत में सुधारात्मक याचिका दायर नही की है.



23 वर्षीय निर्भया से दक्षिण दिल्ली में चलती बस में 16-17 दिसंबर, 2012 की रात छह व्यक्तियों ने सामूहिक बलात्कार के बाद उसे बुरी तरह जख्मी हालत में सड़क पर फेंक दिया था. निर्भया का बाद में 29 दिसंबर को सिंगापुर के एक अस्पताल में निधन हो गया था.



इस जघन्य अपराध के मुख्य आरोपी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में कथित रूप से आत्महत्या कर ली थी जबकि अन्य आरोपी नाबालिग था जिसे तीन साल के लिये सुधार गृह में रखा गया था.


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Last Updated : Feb 28, 2020, 5:46 AM IST
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