नई दिल्ली : कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद अगले आदेश तक कृषि कानूनों को लागू करने पर रोक लगा दी है. साथ ही किसानों से बातचीत करने के लिए चार सदस्यीय एक समिति गठित की है. समिति में कृषि अर्थशास्त्री डॉ अशोक गुलाटी, भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष समेत दो अन्य लोग शामिल हैं.
हलफनामा दायर करे केंद्र
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे ने पूछा, हमारे सामने एक आवेदन है, जो कहता है कि एक प्रतिबंधित संगठन है जो इस विरोध प्रदर्शन में मदद कर रहा है. क्या अटॉर्नी जनरल इसे स्वीकार कर सकते हैं? इस पर अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा, हमने पहले ही कहा है कि खालिस्तानियों का विरोध प्रदर्शनों में हाथ है. सीजेआई ने अटॉर्नी जनरल से कहा, यदि किसी प्रतिबंधित संगठन द्वारा मदद की जा रही है और कोई हमारे सामने यहां आरोप लगा रहा है, तो आपको इसकी पुष्टि करनी होगी. इस सिलसिले में कल तक एक हलफनामा दाखिल करें और इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) का रिकॉर्ड रखें.
समिति पर किसानों की आपत्ति
सुनवाई के दौरान कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिका दायर करने वाले एडवोकेट एमएल शर्मा ने अदालत को बताया कि किसानों का कहना है कि वे अदालत द्वारा गठित किसी भी समिति के समक्ष उपस्थित नहीं होंगे.
समिति बनाना सुप्रीम कोर्ट का अधिकार
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे ने कहा, हम कानूनों की वैधता और विरोध प्रदर्शनों से प्रभावित नागरिकों के जीवन और संपत्ति की रक्षा के बारे में चिंतित हैं. हम अपने अधिकारों के अनुसार समस्या को हल करने की कोशिश कर रहे हैं. हमारे एक अधिकार में से एक है कि हम कानून को निलंबित करें और एक समिति बनाएं. उन्होंने कहा, यह समिति हमारे लिए होगी. आप सभी लोग जो इस मुद्दे को हल करने की कोशिश कर रहे हैं, इस समिति के समक्ष जाएं. यह समिति आदेश पारित नहीं करेगी और ना ही आपको दंडित करेगी. यह केवल हमें एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी.
अनिश्चितकाल तक कर सकते हैं आंदोलन
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, हम एक समिति बना रहे हैं ताकि हमारे पास एक स्पष्ट तस्वीर हो. हम यह तर्क नहीं सुनना चाहते कि किसान समिति समक्ष उपस्थित नहीं होंगे. हम समस्या को हल करना चाहते हैं. यदि आप (किसान) अनिश्चित काल के लिए आंदोलन करना चाहते हैं, तो आप ऐसा कर सकते हैं.
पीएम को वार्ता करने को नहीं कह सकती अदालत
अधिवक्ता एमएल शर्मा ने कहा, किसानों का कहना है कि कई लोग चर्चा के लिए आए, लेकिन प्रधानमंत्री नहीं आए, जिस पर प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे ने कहा, हम प्रधानमंत्री को जाने के लिए नहीं कह सकते. वह इस मामले में पक्षकार नहीं हैं. समिति इस मामले में न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है. हम कानूनों को निलंबित करने की योजना बना रहे हैं लेकिन कानूनों को अनिश्चित काल के लिए निलंबित नहीं किया जा सकता है.
कानूनों का कार्यान्वयन राजनीतिक जीत नहीं
वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे का कहना है कि कानूनों के कार्यान्वयन को राजनीतिक जीत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि इसे विधानों पर व्यक्त चिंताओं की एक गंभीर परीक्षा के रूप में देखा जाना चाहिए.
प्रदर्शन के लिए दिल्ली पुलिस से मांगें अनुमति
प्रधान न्यायाधीश ने कृषि कानूनों पर सुनवाई के दौरान कहा, रामलीला मैदान या अन्य स्थानों पर विरोध प्रदर्शन के लिए किसान दिल्ली पुलिस आयुक्त की अनुमति के लिए आवेदन कर सकते हैं.
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस के उस आवेदन पर नोटिस जारी किया जिसमें गणतंत्र दिवस पर किसानों के विरोध प्रदर्शन में प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली को रोकने की मांग की गई थी.
विवाद के समाधान के लिए समिति
इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने तीन कृषि कानूनों को लेकर किसानों के विरोध प्रदर्शन से निबटने के तरीके पर सोमवार को केंद्र को आड़े हाथों लिया था और कहा कि किसानों के साथ उसकी बातचीत के तरीके से वह बहुत निराश है. न्यायालय ने कहा कि इस विवाद का समाधान खोजने के लिए वह अब एक समिति गठित करेगा.
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पीठ ने सोमवार को तीनों कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के साथ ही किसानों के आंदोलन के दौरान नागरिकों के निर्बाध रूप से आवागमन के अधिकार के मुद्दे उठाने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की थी.
ट्रैक्टर रैली पर रोक की अपील
बता दें कि कृषि मंत्रालय ने उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दायर कर सरकार की तरफ से किसानों के साथ बातचीत के लिए किए गए प्रयासों का उल्लेख किया, वहीं दिल्ली पुलिस की तरफ से न्यायालय में याचिका दायर कर किसानों को 26 जनवरी की प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली या किसी भी तरह के मार्च पर रोक लगाने का आदेश देने का अनुरोध किया.
केंद्र सरकार के रुख पर अदालत की सख्ती
न्यायालय ने किसानों के साथ बातचीत का अभी तक कोई हल नहीं निकलने पर केंद्र को आड़े हाथ लिया था और सारी स्थिति पर घोर निराशा व्यक्त की थी. इसके साथ ही न्यायालय ने यह भी संकेत दिया था कि वह किसी पूर्व प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति गठित कर सकता है जिसमें देश की सभी किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जा सकता है.
न्यायालय ने इस गतिरोध का सर्वमान्य समाधान खोजने के लिए केंद्र सरकार को और समय देने से इनकार करते हुए कहा था कि पहले ही उसे काफी वक्त दिया जा चुका है.