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निर्भया केस: टल सकती है दोषियों की फांसी की तारीख, कल होगी सुनवाई

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Published : Jan 16, 2020, 5:37 PM IST

दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने इस बात के संकेत दिए कि 22 जनवरी को फांसी नहीं हो सकती है. एडिशनल सेशंस जज सतीश अरोड़ा ने कहा कि हम फिलहाल फांसी की तिथि बढ़ा नहीं रहे हैं. हम जेल प्रशासन से रिपोर्ट मांग रहे हैं. उनसे स्टेटस रिपोर्ट मांग रहे हैं.

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निर्भया केस

नई दिल्ली: निर्भया के दोषी मुकेश की डेथ वारंट पर रोक लगाने की मांग पर सुनवाई करते हुए दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने इस बात के संकेत दिए कि 22 जनवरी को फांसी नहीं हो सकती है. एडिशनल सेशंस जज सतीश अरोड़ा ने कहा कि हम फिलहाल फांसी की तिथि बढ़ा नहीं रहे हैं. हम जेल प्रशासन से रिपोर्ट मांग रहे हैं. उनसे स्टेटस रिपोर्ट मांग रहे हैं. उन्होंने कहा कि जेल प्रशासन ने कोर्ट को पूरी जानकारी नहीं दी है. जेल प्रशासन को कोर्ट के सामने पूरी जानकारी रखनी चाहिए थी. कोर्ट ने कल यानि 17 जनवरी को जेल प्रशासन से स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है. इस मामले पर अगली सुनवाई 17 जनवरी को होगी.

फांसी देने के लिए सिर्फ पांच दिन बचे हैं
कोर्ट ने कहा कि दोषी ने दया याचिका लगाई है. 22 जनवरी में सिर्फ पांच दिन बचे हैं. हो सकता है कि राष्ट्रपति एक-दो दिन में दया याचिका खारिज कर दें. उसके बाद ये 14 दिनों का समय मांगेंगे.

डेथ वारंट रद्द करने की मांग
मुकेश की तरफ से वकील वृंदा ग्रोवर ने बहस की शुरुआत करते हुए कहा कि केवल मुकेश की तरफ से अर्जी दाखिल की गई है. अर्जी में डेथ वारंट को रद्द करने की मांग की गई है. वृंदा ग्रोवर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 14 जनवरी को दो बजे क्ययूरेटिव याचिका को खारिज किया और 3 बजे हमने दया याचिका दाखिल कर दी थी. उन्होंने कहा कि कोर्ट का आदेश गलत नहीं था, लेकिन उसके बीच जो परिस्थितियों में बदलाव आया है, उसके आधार पर डेथ वारंट पर रोक की मांग की गई है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया
वृंदा ग्रोवर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के हवाला देते हुए कहा कि कोर्ट के फैसले के मुताबिक 22 जनवरी को फांसी नही दी जा सकती. क्योंकि दया याचिका अभी लंबित है. उन्होंने शत्रुघ्न चौहान के फैसले का उदाहरण दिया. इसीलिए हम निचली अदालत में आये हैं कि डेथ वारंट पर रोक लगाई जाए. वृंदा ग्रोवर ने कहा कि क्यूरेटिव याचिका इसलिए दाखिल नहीं कर पाए, क्योंकि कुछ दस्तावेज हमारे पास नहीं थे.

ये भी पढ़ें: निर्भया केस : टल सकती है दोषियों की फांसी, पटियाला हाउस कोर्ट से मिले संकेत

याचिका खारिज करते समय देरी को आधार नहीं बनाया
वृंदा ग्रोवर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहीं भी अपने फैसले में नहीं कहा कि क्यूरेटिव याचिका को देरी से दाखिल करने के आधार पर खारिज किया गया है. उन्होंने कहा कि मुकेश की तरफ से कहा गया इस मामले में चार लोगों को फांसी दी गई है. ग्रोवर ने कहा कि 18 दिसम्बर को इस मामले में मैं इंगेज हुई, क्या ऐसा कभी कोर्ट को लगा कि मेरी तरफ से देरी हुई?

दिल्ली सरकार की भूमिका पर सवाल
ग्रोवर ने दिल्ली सरकार की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्या ये राज्य सरकार की भूमिका नहीं थी कि वो कोर्ट को बताएं ? वृंदा ग्रोवर ने कहा कि दोषी अभी उनके कस्टडी में है, उनकी जिम्मेदारी नहीं बनती. जेल ऑथोरिटी को इसको लेकर कोर्ट को बताना चाहिए था. इन लोगों के मेरे ऊपर छोड़ दिया कि मैं कोर्ट में आऊं.

मुकेश की याचिका का विरोध किया
निर्भया के माता-पिता के वकील ने मुकेश की याचिका का विरोध किया. उन्होंने कहा कि मुकेश की याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, तब कोर्ट ने निर्भया के माता-पिता के वकील को कहा कि आपको भी बहस करने का मौका दिया जाएगा.

'नो इमोशन कैन टेक ओवर लॉ ऑफ द लैंड'
ग्रोवर ने कहा कि 'नो इमोशन कैन टेक ओवर लॉ ऑफ द लैंड'. ग्रोवर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसले में कहा है कि अगर कोई मौत का सजायाफ्ता कैदी भी है, तो उसकी आखिरी सांस तक जीने के अधिकार को बनाए रखा जाना चाहिए. वृंदा ग्रोवर ने कहा कि शत्रुघ्न चौहान फैसले के मुताबिक मुकेश दया याचिका खारिज होने के बाद14 दिन पाने का हकदार है.

ग्रोवर ने कहा कि जेल प्रशासन ने अपनी नोटिस में दोषियों को केवल दया याचिका के बाबत कहा था, क्यूरेटिव याचिका के बारे में नहीं कहा था. जेल मैनुअल में क्यूरेटिव याचिका का जिक्र क्यों नहीं है. ग्रोवर ने कहा कि मेरे अधिकार अभी जीवित हैं. जेल प्रशासन को पता होना चाहिए मेरा अधिकार क्या है? तब कोर्ट ने कहा कि शत्रुघ्न चौहान के फैसले में मुख्य मुद्दा राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका के निपटारे में कई सालों के देरी का था.

'22 जनवरी को फांसी नहीं दी जा सकती है'
वृंदा ग्रोवर ने कहा कि जेल मैनुअल के हिसाब से 22 जनवरी को फांसी नहीं दिया जा सकता. इसको जेल प्रशासन पर नहीं छोड़ा जा सकता, क्योंकि अगर 21 जनवरी को राष्ट्रपति दया याचिका को ठुकराते हैं तो 22 जनवरी को जेल प्रशासन फांसी दे देगा. उन्होंने कहा कि देश में किसी को जीवन लेने का अधिकार नहीं है, केवल "रूल ऑफ़ लॉ " को है.

तिहाड़ जेल प्रशासन सवालों के घेरे में
वृंदा ग्रोवर ने तिहाड़ जेल प्रशासन पर सवाल उठाते हुए कहा कि मुकेश ने तिहाड़ जेल से कुछ जरूरी कागजात मांगे थे. जेल प्रशासन ने हां या ना में जवाब ही नहीं दिया. आखिर जेल प्रशासन किसके इशारे पर काम कर रहा है. वो कानून का सम्मान नहीं कर रहा है. ऐसा व्यक्ति जो कानूनी उपचार ले रहा है, उसे फांसी पर चढ़ाने की तैयारी की जा रही है. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी डेथ वारंट जारी नहीं कर सकता, ये सिर्फ ट्रायल कोर्ट ही कर सकता है.

'ट्रायल कोर्ट डेथ वारंट पर रोक नहीं लगा सकती है'
दिल्ली पुलिस की ओर से वकील राजीव मोहन ने कहा कि अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 413 के तहत कोर्ट को डेथ वारंट जारी करने का अधिकार है. सवाल है कि डेथ वारंट पर रोक कौन लगा सकता है. ट्रायल कोर्ट को डेथ वारंट पर रोक लगाने का अधिकार नहीं है. जेल अधीक्षक को ये अधिकार है कि वो प्रिजन रुल्स के तहत फांसी की तारीख को स्थगित कर सकता है. दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि नियमों के मुताबिक फिलहाल 22 जनवरी को फांसी नहीं हो सकती. पहले राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका पर फैसला आना चाहिए , इसके बाद 14 दिन का वक्त दिया जाना चाहिए. दिल्ली सरकार के वकील ने दोहराया कि 22 जनवरी को फांसी नहीं दी जा सकती. सुनवाई के दौरान तिहाड़ जेल की ओर से वकील इरफान अहमद ने कहा कि हमने राज्य सरकार को दया याचिका के बारे में लिखा था. हम उसका इंतजार कर रहे हैं. जब जवाब मिलेगा तो हम कोर्ट को बताएंगे. उन्होंने कहा कि 7 जनवरी के आदेश पर रोक लगाने की जरुरत नहीं है. जेल प्रशासन ने नियमों का पालन किया है, तब कोर्ट ने कहा कि नियम 840 के मुताबिक सूचना अपूर्ण है. क्योंकि इसमें अनुपालन की कोई रिपोर्ट नहीं है.

7 जनवरी का आदेश जजमेंट नहीं था-कोर्ट
कोर्ट ने कहा कि जब जेल सुपरिटेंडेंट ने हमें लिखा कि दया याचिका लगाई गई है, तो इसका मतलब क्या है ? क्या इसका मतलब ये नहीं है कि कानून के मुताबिक फांसी का समय दिया जाना चाहिए. निर्भया के माता पिता के वकील जितेंद्र कुमार झा ने इसका विरोध किया. उन्होंने कहा कि अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 413 के तहत एक बार कोर्ट ने आदेश दे दिया तो उसे बदला नहीं जा सकता है. 22 जनवरी को ही फांसी होनी चाहिए, तब कोर्ट ने कहा कि ये सही व्याख्या नहीं है. 7 जनवरी का आदेश जजमेंट नहीं था. कोर्ट ने संकेत दिया कि 22 जनवरी की फांसी टल सकती है.

'हाईकोर्ट ने डेथ वारंट पर रोक लगाने से इनकार किया था'
निर्भया के दोषी मुकेश ने डेथ वारंट पर रोक की मांग की है. पिछले 15 जनवरी को दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट से जारी डेथ वारंट पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने याचिकाकर्ता मुकेश को निर्देश दिया कि वो ट्रायल कोर्ट जाकर बताएं कि उनकी दया याचिका अभी लंबित है.

7 जनवरी को डेथ वारंट जारी किया था
पिछले 7 जनवरी को पटियाला हाउस कोर्ट ने डेथ वारंट जारी करते हुए 22 जनवरी को फांसी देने का आदेश दिया था. उसके बाद दोषी मुकेश ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल किया था. पिछले 14 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने मुकेश की क्यूरेटिव पिटीशन को खारिज कर दिया था. उसके बाद मुकेश ने हाईकोर्ट में डेथ वारंट को रोकने के लिए याचिका दायर किया था.

नई दिल्ली: निर्भया के दोषी मुकेश की डेथ वारंट पर रोक लगाने की मांग पर सुनवाई करते हुए दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने इस बात के संकेत दिए कि 22 जनवरी को फांसी नहीं हो सकती है. एडिशनल सेशंस जज सतीश अरोड़ा ने कहा कि हम फिलहाल फांसी की तिथि बढ़ा नहीं रहे हैं. हम जेल प्रशासन से रिपोर्ट मांग रहे हैं. उनसे स्टेटस रिपोर्ट मांग रहे हैं. उन्होंने कहा कि जेल प्रशासन ने कोर्ट को पूरी जानकारी नहीं दी है. जेल प्रशासन को कोर्ट के सामने पूरी जानकारी रखनी चाहिए थी. कोर्ट ने कल यानि 17 जनवरी को जेल प्रशासन से स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है. इस मामले पर अगली सुनवाई 17 जनवरी को होगी.

फांसी देने के लिए सिर्फ पांच दिन बचे हैं
कोर्ट ने कहा कि दोषी ने दया याचिका लगाई है. 22 जनवरी में सिर्फ पांच दिन बचे हैं. हो सकता है कि राष्ट्रपति एक-दो दिन में दया याचिका खारिज कर दें. उसके बाद ये 14 दिनों का समय मांगेंगे.

डेथ वारंट रद्द करने की मांग
मुकेश की तरफ से वकील वृंदा ग्रोवर ने बहस की शुरुआत करते हुए कहा कि केवल मुकेश की तरफ से अर्जी दाखिल की गई है. अर्जी में डेथ वारंट को रद्द करने की मांग की गई है. वृंदा ग्रोवर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 14 जनवरी को दो बजे क्ययूरेटिव याचिका को खारिज किया और 3 बजे हमने दया याचिका दाखिल कर दी थी. उन्होंने कहा कि कोर्ट का आदेश गलत नहीं था, लेकिन उसके बीच जो परिस्थितियों में बदलाव आया है, उसके आधार पर डेथ वारंट पर रोक की मांग की गई है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया
वृंदा ग्रोवर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के हवाला देते हुए कहा कि कोर्ट के फैसले के मुताबिक 22 जनवरी को फांसी नही दी जा सकती. क्योंकि दया याचिका अभी लंबित है. उन्होंने शत्रुघ्न चौहान के फैसले का उदाहरण दिया. इसीलिए हम निचली अदालत में आये हैं कि डेथ वारंट पर रोक लगाई जाए. वृंदा ग्रोवर ने कहा कि क्यूरेटिव याचिका इसलिए दाखिल नहीं कर पाए, क्योंकि कुछ दस्तावेज हमारे पास नहीं थे.

ये भी पढ़ें: निर्भया केस : टल सकती है दोषियों की फांसी, पटियाला हाउस कोर्ट से मिले संकेत

याचिका खारिज करते समय देरी को आधार नहीं बनाया
वृंदा ग्रोवर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहीं भी अपने फैसले में नहीं कहा कि क्यूरेटिव याचिका को देरी से दाखिल करने के आधार पर खारिज किया गया है. उन्होंने कहा कि मुकेश की तरफ से कहा गया इस मामले में चार लोगों को फांसी दी गई है. ग्रोवर ने कहा कि 18 दिसम्बर को इस मामले में मैं इंगेज हुई, क्या ऐसा कभी कोर्ट को लगा कि मेरी तरफ से देरी हुई?

दिल्ली सरकार की भूमिका पर सवाल
ग्रोवर ने दिल्ली सरकार की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्या ये राज्य सरकार की भूमिका नहीं थी कि वो कोर्ट को बताएं ? वृंदा ग्रोवर ने कहा कि दोषी अभी उनके कस्टडी में है, उनकी जिम्मेदारी नहीं बनती. जेल ऑथोरिटी को इसको लेकर कोर्ट को बताना चाहिए था. इन लोगों के मेरे ऊपर छोड़ दिया कि मैं कोर्ट में आऊं.

मुकेश की याचिका का विरोध किया
निर्भया के माता-पिता के वकील ने मुकेश की याचिका का विरोध किया. उन्होंने कहा कि मुकेश की याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, तब कोर्ट ने निर्भया के माता-पिता के वकील को कहा कि आपको भी बहस करने का मौका दिया जाएगा.

'नो इमोशन कैन टेक ओवर लॉ ऑफ द लैंड'
ग्रोवर ने कहा कि 'नो इमोशन कैन टेक ओवर लॉ ऑफ द लैंड'. ग्रोवर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसले में कहा है कि अगर कोई मौत का सजायाफ्ता कैदी भी है, तो उसकी आखिरी सांस तक जीने के अधिकार को बनाए रखा जाना चाहिए. वृंदा ग्रोवर ने कहा कि शत्रुघ्न चौहान फैसले के मुताबिक मुकेश दया याचिका खारिज होने के बाद14 दिन पाने का हकदार है.

ग्रोवर ने कहा कि जेल प्रशासन ने अपनी नोटिस में दोषियों को केवल दया याचिका के बाबत कहा था, क्यूरेटिव याचिका के बारे में नहीं कहा था. जेल मैनुअल में क्यूरेटिव याचिका का जिक्र क्यों नहीं है. ग्रोवर ने कहा कि मेरे अधिकार अभी जीवित हैं. जेल प्रशासन को पता होना चाहिए मेरा अधिकार क्या है? तब कोर्ट ने कहा कि शत्रुघ्न चौहान के फैसले में मुख्य मुद्दा राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका के निपटारे में कई सालों के देरी का था.

'22 जनवरी को फांसी नहीं दी जा सकती है'
वृंदा ग्रोवर ने कहा कि जेल मैनुअल के हिसाब से 22 जनवरी को फांसी नहीं दिया जा सकता. इसको जेल प्रशासन पर नहीं छोड़ा जा सकता, क्योंकि अगर 21 जनवरी को राष्ट्रपति दया याचिका को ठुकराते हैं तो 22 जनवरी को जेल प्रशासन फांसी दे देगा. उन्होंने कहा कि देश में किसी को जीवन लेने का अधिकार नहीं है, केवल "रूल ऑफ़ लॉ " को है.

तिहाड़ जेल प्रशासन सवालों के घेरे में
वृंदा ग्रोवर ने तिहाड़ जेल प्रशासन पर सवाल उठाते हुए कहा कि मुकेश ने तिहाड़ जेल से कुछ जरूरी कागजात मांगे थे. जेल प्रशासन ने हां या ना में जवाब ही नहीं दिया. आखिर जेल प्रशासन किसके इशारे पर काम कर रहा है. वो कानून का सम्मान नहीं कर रहा है. ऐसा व्यक्ति जो कानूनी उपचार ले रहा है, उसे फांसी पर चढ़ाने की तैयारी की जा रही है. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी डेथ वारंट जारी नहीं कर सकता, ये सिर्फ ट्रायल कोर्ट ही कर सकता है.

'ट्रायल कोर्ट डेथ वारंट पर रोक नहीं लगा सकती है'
दिल्ली पुलिस की ओर से वकील राजीव मोहन ने कहा कि अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 413 के तहत कोर्ट को डेथ वारंट जारी करने का अधिकार है. सवाल है कि डेथ वारंट पर रोक कौन लगा सकता है. ट्रायल कोर्ट को डेथ वारंट पर रोक लगाने का अधिकार नहीं है. जेल अधीक्षक को ये अधिकार है कि वो प्रिजन रुल्स के तहत फांसी की तारीख को स्थगित कर सकता है. दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि नियमों के मुताबिक फिलहाल 22 जनवरी को फांसी नहीं हो सकती. पहले राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका पर फैसला आना चाहिए , इसके बाद 14 दिन का वक्त दिया जाना चाहिए. दिल्ली सरकार के वकील ने दोहराया कि 22 जनवरी को फांसी नहीं दी जा सकती. सुनवाई के दौरान तिहाड़ जेल की ओर से वकील इरफान अहमद ने कहा कि हमने राज्य सरकार को दया याचिका के बारे में लिखा था. हम उसका इंतजार कर रहे हैं. जब जवाब मिलेगा तो हम कोर्ट को बताएंगे. उन्होंने कहा कि 7 जनवरी के आदेश पर रोक लगाने की जरुरत नहीं है. जेल प्रशासन ने नियमों का पालन किया है, तब कोर्ट ने कहा कि नियम 840 के मुताबिक सूचना अपूर्ण है. क्योंकि इसमें अनुपालन की कोई रिपोर्ट नहीं है.

7 जनवरी का आदेश जजमेंट नहीं था-कोर्ट
कोर्ट ने कहा कि जब जेल सुपरिटेंडेंट ने हमें लिखा कि दया याचिका लगाई गई है, तो इसका मतलब क्या है ? क्या इसका मतलब ये नहीं है कि कानून के मुताबिक फांसी का समय दिया जाना चाहिए. निर्भया के माता पिता के वकील जितेंद्र कुमार झा ने इसका विरोध किया. उन्होंने कहा कि अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 413 के तहत एक बार कोर्ट ने आदेश दे दिया तो उसे बदला नहीं जा सकता है. 22 जनवरी को ही फांसी होनी चाहिए, तब कोर्ट ने कहा कि ये सही व्याख्या नहीं है. 7 जनवरी का आदेश जजमेंट नहीं था. कोर्ट ने संकेत दिया कि 22 जनवरी की फांसी टल सकती है.

'हाईकोर्ट ने डेथ वारंट पर रोक लगाने से इनकार किया था'
निर्भया के दोषी मुकेश ने डेथ वारंट पर रोक की मांग की है. पिछले 15 जनवरी को दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट से जारी डेथ वारंट पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने याचिकाकर्ता मुकेश को निर्देश दिया कि वो ट्रायल कोर्ट जाकर बताएं कि उनकी दया याचिका अभी लंबित है.

7 जनवरी को डेथ वारंट जारी किया था
पिछले 7 जनवरी को पटियाला हाउस कोर्ट ने डेथ वारंट जारी करते हुए 22 जनवरी को फांसी देने का आदेश दिया था. उसके बाद दोषी मुकेश ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल किया था. पिछले 14 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने मुकेश की क्यूरेटिव पिटीशन को खारिज कर दिया था. उसके बाद मुकेश ने हाईकोर्ट में डेथ वारंट को रोकने के लिए याचिका दायर किया था.

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नई दिल्ली। निर्भया के दोषी मुकेश की डेथ वारंट पर रोक लगाने की मांग पर सुनवाई करते हुए दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने इस बात के संकेत दिए कि 22 जनवरी को फांसी नहीं हो सकती है । एडिशनल सेशंस जज सतीश अरोड़ा ने कहा कि हम फिलहाल फांसी की तिथि बढ़ा नहीं रहे हैं। हम जेल प्रशासन से रिपोर्ट मांग रहे हैं। उनसे स्टेटस रिपोर्ट मांग रहे हैं। जेल प्रशासन ने कोर्ट को पूरी जानकारी नहीं दी है। जेल प्रशासन को कोर्ट के सामने पूरी जानकारी रखनी चाहिए थी। कोर्ट ने कल यानि 17 जनवरी को जेल प्रशासन से स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। इस मामले पर अगली सुनवाई 17 जनवरी को होगी।



Body:फांसी देने के लिए सिर्फ पांच दिन बचे हैं
कोर्ट ने कहा कि दोषी ने दया याचिका लगाई है। 22 जनवरी में सिर्फ पांच दिन बचे हैं। हो सकता है कि राष्ट्रपति एक-दो दिन में दया याचिका खारिज कर दें। उसके बाद ये 14 दिनों का समय मांगेंगे।

डेथ वारंट रद्द करने की मांग
मुकेश की तरफ से वकील वृंदा ग्रोवर ने बहस की शुरुआत करते हुए कहा कि केवल मुकेश की तरफ से अर्जी दाखिल की गई है। अर्जी में डेथ वारंट को रद्द करने की मांग की गई है। वृंदा ग्रोवर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 14  जनवरी  को दो बजे क्ययुरेटिव याचिका को खारिज किया और 3 बजे हमने दया याचिका दाखिल कर दी थी। उन्होंने कहा कि कोर्ट का आदेश गलत नहीं था। लेकिन उसके बीच जो परिस्थितियों में बदलाव आया है उसके आधार पर डैथ वारंट पर रोक की मांग की गई है। 
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया
वृंदा ग्रोवर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के हवाला देते हुए कहा कि कोर्ट के फैसले के मुताबिक 22 जनवरी को फांसी नही दी जा सकती। क्योंकि दया याचिका अभी लंबित है। उन्होंने शत्रुघ्न चौहान के फैसले का उदाहरण दिया। इसीलिए हम निचली अदालत में आये हैं कि डेथ वारंट पर रोक लगाई जाए। वृंदा ग्रोवर ने कहा कि क्युरेटिव याचिका इस लिए दाखिल नहीं कर पाए क्योंकि कुछ दस्तावेज हमारे पास नहीं थे । 
याचिका खारिज करते समय देरी को आधार नहीं बनाया
वृंदा ग्रोवर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहीं भी अपने फैसले में नहीं कहा कि क्युरेटिव याचिका को देरी से दाखिल करने के आधार पर खारिज किया गया है। उन्होंने कहा कि मुकेश की तरफ से कहा गया इस मामले में चार लोगों को फांसी दी गई है। ग्रोवर ने कहा कि 18 दिसम्बर को इस मामले में मैं इंगेज हुई,क्या ऐसा कभी कोर्ट को लगा कि मेरी तरफ से देरी हुई?
दिल्ली सरकार की भूमिका पर सवाल
ग्रोवर ने दिल्ली सरकार की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्या ये राज्य सरकार की भूमिका नही थी कि वो कोर्ट को बताएं ? वृंदा ग्रोवर ने कहा कि दोषी अभी उनके कस्टडी में है, उनकी जिम्मेदारी नहीं बनती। जेल ऑथोरिटी को इसको लेकर कोर्ट को बताना चाहिये था।इन लोगों के मेरे ऊपर छोड़ दिया कि मैं कोर्ट में आऊं। 
मुकेश की याचिका का विरोध किया
निर्भया के माता-पिता के वकील ने मुकेश की याचिका का विरोध किया। उन्होंने कहा कि मुकेश की याचिका सुनवाई योग्य नहीं हैं। तब कोर्ट ने निर्भया के माता-पिता के वकील को कहा कि आपको भी बहस करने का मौका दिया जाएगा, ग्रोवर के बहस करने के बाद।
नो इमोशन कैन टेक ओवर लॉ ऑफ द लैंड
ग्रोवर ने कहा कि "नो इमोशन कैन टेक ओवर लॉ ऑफ द लैंड” । ग्रोवर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसले में कहा है कि अगर कोई मौत का सजायाफ्ता कैदी भी है तो उसकी आखिरी सांस तक जीने के अधिकार को बनाए रखा जाना चाहिए । वृंदा ग्रोवर ने कहा कि शत्रुघ्न चौहान फैसले के मुताबिक मुकेश दया याचिका खारिज होने के बाद14 दिन पाने का हकदार है।
ग्रोवर ने कहा कि जेल प्रशासन ने अपनी नोटिस में दोषियों को केवल दया याचिका के बाबत कहा था, क्युरेटिव याचिका के बारे में नहीं। जेल मैनुअल में क्युरेटिव याचिका का जिक्र क्यों नहीं है । ग्रोवर ने कहा कि मेरे अधिकार अभी जीवित हैं। जेल प्रशासन को पता होना चाहिए मेरा अधिकार क्या हैं ? तब कोर्ट ने कहा कि शत्रुघ्न चौहान के फैसले में मुख्य मुद्दा राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका के निपटारे में कई सालों के देरी का था।
22 जनवरी को फांसी नहीं दी जा सकती है
वृंदा ग्रोवर ने कहा कि जेल मैनुअल के हिसाब से 22 जनवरी को फांसी नही दिया जा सकता। इसको जेल प्रशासन पर नही छोड़ा जा सकता क्योंकि अगर21 जनवरी को राष्ट्रपति दया याचिका को ठुकराते हैं तो 22 जनवरी को जेल प्रशासन फांसी दे देगा। उन्होंने कहा कि देश में किसी ऑथोरिटी को जीवन लेने का अधिकार नही है केवल "रूल ऑफ़ लॉ " को है।
तिहाड़ जेल प्रशासन सवालों के घेरे में
वृंदा ग्रोवर ने तिहाड़ जेल प्रशासन पर सवाल उठाते हुए कहा कि मुकेश ने तिहाड़ जेल से कुछ जरूरी कागजात मांगे , जेल प्रशासन ने हां या ना में जवाब ही नहीं दिया। आखिर जेल प्रशासन किसके इशारे पर काम कर रहा है । वो कानून का सम्मान नहीं कर रहा है। ऐसा व्यक्ति जो कानूनी उपचार ले रहा है उसे फांसी पर चढाने की तैयारी की जा रही है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी डेथ वारंट जारी नहीं कर सकता ये सिर्फ ट्रायल कोर्ट ही कर सकता है।
ट्रायल कोर्ट डेथ वारंट पर रोक नहीं लगा सकती है
दिल्ली पुलिस की ओर से वकील राजीव मोहन ने कहा कि अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 413 के तहत कोर्ट को डेथ वारंट जारी करने का अधिकार है। सवाल है कि डेथ वारंट पर रोक कौन लगा सकता है। ट्रायल कोर्ट को डेथ वारंट पर रोक लगाने का अधिकार नहीं है। जेल अधीक्षक को ये अधिकार है कि वो प्रिजन रुल्स के तहत फांसी की तारीख को स्थगित कर सकता है। दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि नियमों के मुताबिक फिलहाल 22जनवरी को फांसी नहीं हो सकती। पहले राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका पर फैसला आना चाहिए , इसके बाद 14 दिन का वक्त दिया जाना चाहिए। दिल्ली सरकार के वकील ने दोहराया कि 22 जनवरी को फांसी नहीं दी जा सकती।
राज्य सरकार को दया याचिका के बारे में लिखा था-तिहाड़ जेल
सुनवाई के दौरान तिहाड़ जेल की ओर से वकील इरफान अहमद ने कहा कि हमने राज्य सरकार को दया याचिका के बारे में लिखा था। हम उसका इंतजार कर रहे हें। जब जवाब मिलेगा तो हम कोर्ट को बताएंगे। उन्होंने कहा कि 7 जनवरी के आदेश पर रोक लगाने की जरुरत नहीं है। जेल प्रशासन ने नियमों का पालन किया है। तब कोर्ट ने कहा कि नियम 840 के मुताबिक सूचना अपूर्ण है क्योंकि इसमें अनुपालन की कोई रिपोर्ट नहीं है।
7 जनवरी का आदेश जजमेंट नहीं था-कोर्ट
कोर्ट ने कहा कि जब जेल सुपरिटेंडेंट ने हमे लिखा कि दया याचिका लगाई गई है तो इसका मतलब क्या है ? क्या इसका मतलब ये नहीं है कि कानून के मुताबिक फांसी का समय दिया जाना चाहिए । निर्भया के माता पिता के वकील जितेंद्र कुमार झा ने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 413 के तहत एक बार कोर्ट ने आदेश दे दिया तो उसे बदला नहीं जा सकता है। 22 जनवरी को ही फांसी होनी चाहिये। तब कोर्ट ने कहा कि ये सही व्याख्या नहीं है। 7 जनवरी का आदेश जजमेंट नहीं था। कोर्ट ने संकेत दिया 22 जनवरी की फांसी टल सकती है।
हाईकोर्ट ने डेथ वारंट पर रोक लगाने से इनकार किया था
निर्भया के दोषी मुकेश ने डेथ वारंट पर रोक की मांग की है। पिछले 15 जनवरी को दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट से जारी डेथ वारंट पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता मुकेश को निर्देश दिया कि वो ट्रायल कोर्ट जाकर बताएं कि उनकी दया याचिका अभी लंबित है।


Conclusion:7 जनवरी को डेथ वारंट जारी किया था
पिछले 7 जनवरी को पटियाला हाउस कोर्ट ने डेथ वारंट जारी करते हुए 22 जनवरी को फांसी देने का आदेश दिया था। उसके बाद दोषी मुकेश ने सुप्रीम कोर्ट में क्युरेटिव पिटीशन दाखिल किया था। पिछले 14 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने मुकेश की क्युरेटिव पिटीशन खारिज कर दिया था। उसके बाद मुकेश ने हाईकोर्ट में डेथ वारंट को रोकने के लिए याचिका दायर किया था।
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