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गुरु नानक देव की अयोध्या यात्रा हिंदू आस्था का पुख्ता प्रमाण : SC - रंजन गोगोई '

अयोध्या भूमि विवाद पर उच्चतम न्याायलय ने शनिवार को फैसला सुनाया है. न्यायालय ने फैसले में कहा कि भगवान राम की जन्मभूमि के दर्शन के लिए सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव ने अयोध्या यात्रा की थी, जो हिन्दुओं की आस्था और विश्वास को और दृढ़ करता है कि यह स्थल भगवान राम का जन्मस्थान है. जानें विस्तार से

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Published : Nov 10, 2019, 10:32 AM IST

नई दिल्ली : अयोध्या पर ऐतिहासिक फैसले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि भगवान राम की जन्मभूमि के दर्शन के लिए सन 1510-11 में सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव ने अयोध्या की यात्रा की थी, जो हिंदुओं की आस्था और विश्वास को और दृढ़ करता है कि यह स्थल भगवान राम का जन्मस्थान है.

फिलहाल गुरु नानक देव के 550 वें प्रकाशवर्ष पर समारोह आयोजित किए जा रहे हैं.

शीर्ष अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड पर लाये गये जनम साखी में गुरु नानक देवजी की अयोध्या की यात्रा का वर्णन है, जहां उन्होंने भगवान राम के जन्मस्थान का दर्शन किया था.

उच्चतम न्यायालय ने शनिवार को ऐतिहासिक फैसले में एक सदी से अधिक पुराने मामले का पटाक्षेप करते हुए अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया और साथ में व्यवस्था दी कि पवित्र नगरी में मस्जिद के लिए पांच एकड़ जमीन आवंटित की जाए.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने बिना किसी का नाम लेते हुये कहा कि पांच न्यायाधीशों में से एक ने इसके समर्थन में एक अलग से सबूत रिकॉर्ड किया कि विवादित ढांचा हिंदू भक्तों की आस्था और विश्वास के अनुसार भगवान राम का जन्म स्थान है.

संबंधित न्यायाधीश ने अलग से रखे गये सबूतों में कहा कि राम जन्मभूमि की सही जगह की पहचान करने के लिए कोई सामग्री नहीं है, लेकिन राम की जन्मभूमि के दर्शन के लिए गुरु नानक देवजी की अयोध्या यात्रा एक ऐसी घटना है, जिससे पता चलता है कि 1528 ईसवी से पहले भी तीर्थयात्री वहां जा रहे थे.

शीर्ष अदालत में कहा गया था कि बाबरी मस्जिद का निर्माण मुगल सम्राट बाबर ने 1528 में करवाया था.

ये भी पढ़ें : VHP को उम्मीद, राम जन्मभूमि न्यास के डिजाइन से होगा राम मंदिर निर्माण

न्यायाधीश ने कहा, '1510-11 में गुरु नानक देवजी की अयोध्या यात्रा और भगवान राम की जन्मभूमि का दर्शन करना हिंदुओं की आस्था और विश्वास को और दृढ़ करता है.
उन्होंने कहा कि इसलिए, यह माना जा सकता है कि भगवान राम के जन्मस्थान के संबंध में हिंदुओं की जो आस्था और विश्वास वाल्मीकि रामायण और स्कंद पुराण सहित धर्मग्रंथों और पवित्र धार्मिक पुस्तकों से जुड़े हैं, उन्हें आधारहीन नहीं ठहराया जा सकता.

न्यायाधीश ने कहा, इस प्रकार, यह पाया गया है कि 1528 ई. से पहले की अवधि में लिखे गये पर्याप्त ऐसे धार्मिक ग्रंथ हैं, जो राम जन्मभूमि के वर्तमान स्थल को भगवान राम के जन्मस्थान के रूप में मानते हैं, जिससे हिंदुओं की आस्था को मान्यता मिलती है.

न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि विवादित 2.77 एकड़ जमीन अब केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगी, जो इसे सरकार द्वारा बनाए जाने वाले ट्रस्ट को सौंपेंगे.

ये भी पढ़ें : आडवाणी, रथ यात्रा, लालू और एक गिरफ्तारी, जिससे BJP को हुआ लाभ

पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट बनाया जाना चाहिए.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मत फैसला दिया और कहा कि हिन्दुओं का यह विश्वास निर्विवाद है कि संबंधित स्थल पर ही भगवान राम का जन्म हुआ था तथा वह प्रतीकात्मक रूप से भूमि के मालिक हैं.

नई दिल्ली : अयोध्या पर ऐतिहासिक फैसले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि भगवान राम की जन्मभूमि के दर्शन के लिए सन 1510-11 में सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव ने अयोध्या की यात्रा की थी, जो हिंदुओं की आस्था और विश्वास को और दृढ़ करता है कि यह स्थल भगवान राम का जन्मस्थान है.

फिलहाल गुरु नानक देव के 550 वें प्रकाशवर्ष पर समारोह आयोजित किए जा रहे हैं.

शीर्ष अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड पर लाये गये जनम साखी में गुरु नानक देवजी की अयोध्या की यात्रा का वर्णन है, जहां उन्होंने भगवान राम के जन्मस्थान का दर्शन किया था.

उच्चतम न्यायालय ने शनिवार को ऐतिहासिक फैसले में एक सदी से अधिक पुराने मामले का पटाक्षेप करते हुए अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया और साथ में व्यवस्था दी कि पवित्र नगरी में मस्जिद के लिए पांच एकड़ जमीन आवंटित की जाए.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने बिना किसी का नाम लेते हुये कहा कि पांच न्यायाधीशों में से एक ने इसके समर्थन में एक अलग से सबूत रिकॉर्ड किया कि विवादित ढांचा हिंदू भक्तों की आस्था और विश्वास के अनुसार भगवान राम का जन्म स्थान है.

संबंधित न्यायाधीश ने अलग से रखे गये सबूतों में कहा कि राम जन्मभूमि की सही जगह की पहचान करने के लिए कोई सामग्री नहीं है, लेकिन राम की जन्मभूमि के दर्शन के लिए गुरु नानक देवजी की अयोध्या यात्रा एक ऐसी घटना है, जिससे पता चलता है कि 1528 ईसवी से पहले भी तीर्थयात्री वहां जा रहे थे.

शीर्ष अदालत में कहा गया था कि बाबरी मस्जिद का निर्माण मुगल सम्राट बाबर ने 1528 में करवाया था.

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न्यायाधीश ने कहा, '1510-11 में गुरु नानक देवजी की अयोध्या यात्रा और भगवान राम की जन्मभूमि का दर्शन करना हिंदुओं की आस्था और विश्वास को और दृढ़ करता है.
उन्होंने कहा कि इसलिए, यह माना जा सकता है कि भगवान राम के जन्मस्थान के संबंध में हिंदुओं की जो आस्था और विश्वास वाल्मीकि रामायण और स्कंद पुराण सहित धर्मग्रंथों और पवित्र धार्मिक पुस्तकों से जुड़े हैं, उन्हें आधारहीन नहीं ठहराया जा सकता.

न्यायाधीश ने कहा, इस प्रकार, यह पाया गया है कि 1528 ई. से पहले की अवधि में लिखे गये पर्याप्त ऐसे धार्मिक ग्रंथ हैं, जो राम जन्मभूमि के वर्तमान स्थल को भगवान राम के जन्मस्थान के रूप में मानते हैं, जिससे हिंदुओं की आस्था को मान्यता मिलती है.

न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि विवादित 2.77 एकड़ जमीन अब केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगी, जो इसे सरकार द्वारा बनाए जाने वाले ट्रस्ट को सौंपेंगे.

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पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट बनाया जाना चाहिए.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मत फैसला दिया और कहा कि हिन्दुओं का यह विश्वास निर्विवाद है कि संबंधित स्थल पर ही भगवान राम का जन्म हुआ था तथा वह प्रतीकात्मक रूप से भूमि के मालिक हैं.

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