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विशेष लेख : एक जिम्मेदार बजट से आर्थिक मंदी जल्द ठीक नहीं होगी

देश में मौजूदा आर्थिक मंदी से निपटने के केवल दो ही तरीके हैं. एक है खपत बढ़ाना और दूसरा है निवेश से. इस साल के बजट ने दूसरे तरीके को अपनाया है और मेरी समझ में यह सही तरीका है.

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एक जिम्मेदार बजट से आर्थिक मंदी जल्द ठीक नहीं होगी
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Published : Feb 10, 2020, 3:27 PM IST

Updated : Feb 29, 2020, 9:11 PM IST

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन को यह मान लेना चाहिए था कि भारतीय अर्थव्यवस्था मुश्किल दौर से गुजर रही है, और इसके बाद यह बताना चाहिए थे कि इससे निपटने के लिये क्या कदम उठाए जा रहे हैं.

देश में मौजूदा आर्थिक मंदी से निपटने के केवल दो ही तरीके हैं. एक है खपत बढ़ाना और दूसरा है निवेश से. इस साल के बजट ने दूसरे तरीके को अपनाया है और मेरी समझ में यह सही तरीका है.

पहला, खपत का रास्ता, बैंक के जरिए पैसा लोगों के हाथों में पहुंचाएगा. लोग पैसा खर्च करेंगे, उत्पादों का इस्तेमाल करेंगे, और इसी बढ़ती मांग से उद्योगों को रफ्तार मिलेगी, नौकरियों के ज्यादा मौके पैदा होंगे, और ज्यादा खपत होगी. इस चक्र के चलते अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाएगी.

दूसरा तरीका है निवेश का, निवेश से नौकरियां आती है, लोगों की जेबों में पैसा पहुंचता है, वह खर्च करते हैं, उद्योग चलने लगते हैं, जिससे और नौकरियाँ पैदा होती है, और इस चक्र से भी आर्थिक रफ्तार आ सकती है. मेरी प्राथमिकता दूसरा तरीका है क्योंकि इससे संपत्ति बनती है. इस बजट में सड़कों पर, पानी के रास्तों, पेयजल पाइप लाइनों, घर, अस्पताल आदि में निवेश का वादा किया गया है. कुल मिलाकर 103 लाख करोड़ का निवेश किया जायेगा.

एक खोया हुआ मौका
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा खुद की मदद होती, अगर, वो पहले यह बात मान लेती की देश की अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही है, और इसके बाद इससे निपटने की तैयारियों पर बात करतीं. उन्होंने कई नौकरियां पैदा करने वाले कदमों की बात तो कही है, लेकिन अगर वो इनसे पैदा होने वाली नौकरियों का कोई अंदाजन आंकड़ा भी देतीं, तो लोगों के मन में और विश्वास पैदा होता.

हालांकि, बदलाव के बारे में बात करने के लिये बजट ही एक मात्र मौका नहीं है, और सीतारमन ने एक ऐसा ही मौका गंवा दिया. मुश्किल के समय में ही बदलाव किये जाते हैं, जनता बदलावों से आने वाली आंशिक दिक्कतों को झेलने के लिये तैयार रहती है. मिसाल के तौर पर, सीतारमन ने एक ऐसी योजना के बारे में बात की जिससे कृषि उत्पाद को बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी. यह था, खेती की जमीन को लंबे समय के लिये किराए पर देकर अनुबंधित खेती करने का तरीका.

केंद्र सरकार इस कदम की लंबे समय से वकालत कर रही है, लेकिन राज्य सरकारें इस पर धीमी गति से काम कर रही हैं. हम केंद्र सरकार से इस कारगर और जरूरी बदलाव को अमली जामा पहनाने के लिये उठाए जाने वाले कदमों के बारे में जानना चाहते थे. अगर वित्त मंत्री ने बीजेपी की विचारधारा वाले कुछ और बदलावों के बारे में बात की होती, जैसे कि जमीन और मजदूरों के बारे में, तो देश के लोगों में और उत्साह भर जाता.

मेरी सबसे बड़ी निराशा
इस बजट से मेरी सबसे बड़ी निराशा यह रही, कि इसमे संरक्षणवाद और, आयात प्रतिस्थापन की वापसी के बारे में कुछ नहीं कहा गया. आर्थिक सर्वे ने निर्यात पर आधारित बजट की उम्मीद जगाई थी. सर्वे में इस बात पर जोर दिया गया था कि भारत को विश्व की व्यवस्थाओं में अपनी भागीदारी बढ़ाने की जरूरत है और साथ ही यह भी कहा गया था कि 'मेक इन इंडिया' का नाम बदलकर ' असेंबल इन इंडिया' कर देना चाहिये. यह इस तरह के बदलावों को करने के लिये सही समय है क्योंकि चीन की दिक्कतों के चलते विश्व में परिस्थितियां बदल रही हैं.

इस बजट से लोगों को कर में कमी आने की भी उम्मीद थी, लेकिन, कई चीजों पर कर बढ़ा दिए गए. अगर इतिहास को देखें तो यह साफ है कि, केवल घरेलू बाजार पर ध्यान देकर कोई भी देश तरक्की नहीं कर पाया है. इस सरकार की सबसे बड़ी विफलताओं में निर्यात शामिल है, और इस कारण से ही नौकरियों के भी ज्यादा अवसर पैदा नहीं हो सके हैं. पिछले सात सालों से भारत का निर्यात जस का तस है वहीं, इसी दौरान वियतनाम के निर्यात में 300% का इजाफा आया है.

फिर भी यह एक वास्तविक बजट है
बजट 2020 आर्थिक मंदी से वापसी में तेजी नहीं लाएगा. हालांकि, यह एक वास्तविक बजट है. कोई बड़ा प्रोत्साहन देने के लिये ज्यादा राजस्व की गुंजाइश नहीं थी. ऐसी किसी छूट को न देकर वित्त मंत्री ने समझदारी दिखाई है. 2008 की आर्थिक मंदी के दौरान दी गई ऐसी ही छूट के विपरीत असर हमें बाद में देखने को मिले थे. मोटे तौर पर वित्त मंत्री ने खर्च पर काबू कर और जीडीपी में 10% के इजाफे को रखकर सही कदम उठाया है.

अंत में इस बजट के कुछ पहलुओं पर नजर डालते हैं- मेरे पसंदीदा, 1) नालों की इंसानों द्वारा सफाई पर रोक के लिये प्रतिबद्धता ; 2) कंपनी कानून में बदलाव कर कई मामलों को आपराधिक दायरे से बाहर लाना ; 3) कर देने वालों के लिये एक चार्टर बनाकर करदाताओं को परेशानी से बचाना. अगर मोदी सरकार यह कर पाती है तो यह किसी जीत के समान होगा.

गुरचरण दास

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन को यह मान लेना चाहिए था कि भारतीय अर्थव्यवस्था मुश्किल दौर से गुजर रही है, और इसके बाद यह बताना चाहिए थे कि इससे निपटने के लिये क्या कदम उठाए जा रहे हैं.

देश में मौजूदा आर्थिक मंदी से निपटने के केवल दो ही तरीके हैं. एक है खपत बढ़ाना और दूसरा है निवेश से. इस साल के बजट ने दूसरे तरीके को अपनाया है और मेरी समझ में यह सही तरीका है.

पहला, खपत का रास्ता, बैंक के जरिए पैसा लोगों के हाथों में पहुंचाएगा. लोग पैसा खर्च करेंगे, उत्पादों का इस्तेमाल करेंगे, और इसी बढ़ती मांग से उद्योगों को रफ्तार मिलेगी, नौकरियों के ज्यादा मौके पैदा होंगे, और ज्यादा खपत होगी. इस चक्र के चलते अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाएगी.

दूसरा तरीका है निवेश का, निवेश से नौकरियां आती है, लोगों की जेबों में पैसा पहुंचता है, वह खर्च करते हैं, उद्योग चलने लगते हैं, जिससे और नौकरियाँ पैदा होती है, और इस चक्र से भी आर्थिक रफ्तार आ सकती है. मेरी प्राथमिकता दूसरा तरीका है क्योंकि इससे संपत्ति बनती है. इस बजट में सड़कों पर, पानी के रास्तों, पेयजल पाइप लाइनों, घर, अस्पताल आदि में निवेश का वादा किया गया है. कुल मिलाकर 103 लाख करोड़ का निवेश किया जायेगा.

एक खोया हुआ मौका
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा खुद की मदद होती, अगर, वो पहले यह बात मान लेती की देश की अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही है, और इसके बाद इससे निपटने की तैयारियों पर बात करतीं. उन्होंने कई नौकरियां पैदा करने वाले कदमों की बात तो कही है, लेकिन अगर वो इनसे पैदा होने वाली नौकरियों का कोई अंदाजन आंकड़ा भी देतीं, तो लोगों के मन में और विश्वास पैदा होता.

हालांकि, बदलाव के बारे में बात करने के लिये बजट ही एक मात्र मौका नहीं है, और सीतारमन ने एक ऐसा ही मौका गंवा दिया. मुश्किल के समय में ही बदलाव किये जाते हैं, जनता बदलावों से आने वाली आंशिक दिक्कतों को झेलने के लिये तैयार रहती है. मिसाल के तौर पर, सीतारमन ने एक ऐसी योजना के बारे में बात की जिससे कृषि उत्पाद को बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी. यह था, खेती की जमीन को लंबे समय के लिये किराए पर देकर अनुबंधित खेती करने का तरीका.

केंद्र सरकार इस कदम की लंबे समय से वकालत कर रही है, लेकिन राज्य सरकारें इस पर धीमी गति से काम कर रही हैं. हम केंद्र सरकार से इस कारगर और जरूरी बदलाव को अमली जामा पहनाने के लिये उठाए जाने वाले कदमों के बारे में जानना चाहते थे. अगर वित्त मंत्री ने बीजेपी की विचारधारा वाले कुछ और बदलावों के बारे में बात की होती, जैसे कि जमीन और मजदूरों के बारे में, तो देश के लोगों में और उत्साह भर जाता.

मेरी सबसे बड़ी निराशा
इस बजट से मेरी सबसे बड़ी निराशा यह रही, कि इसमे संरक्षणवाद और, आयात प्रतिस्थापन की वापसी के बारे में कुछ नहीं कहा गया. आर्थिक सर्वे ने निर्यात पर आधारित बजट की उम्मीद जगाई थी. सर्वे में इस बात पर जोर दिया गया था कि भारत को विश्व की व्यवस्थाओं में अपनी भागीदारी बढ़ाने की जरूरत है और साथ ही यह भी कहा गया था कि 'मेक इन इंडिया' का नाम बदलकर ' असेंबल इन इंडिया' कर देना चाहिये. यह इस तरह के बदलावों को करने के लिये सही समय है क्योंकि चीन की दिक्कतों के चलते विश्व में परिस्थितियां बदल रही हैं.

इस बजट से लोगों को कर में कमी आने की भी उम्मीद थी, लेकिन, कई चीजों पर कर बढ़ा दिए गए. अगर इतिहास को देखें तो यह साफ है कि, केवल घरेलू बाजार पर ध्यान देकर कोई भी देश तरक्की नहीं कर पाया है. इस सरकार की सबसे बड़ी विफलताओं में निर्यात शामिल है, और इस कारण से ही नौकरियों के भी ज्यादा अवसर पैदा नहीं हो सके हैं. पिछले सात सालों से भारत का निर्यात जस का तस है वहीं, इसी दौरान वियतनाम के निर्यात में 300% का इजाफा आया है.

फिर भी यह एक वास्तविक बजट है
बजट 2020 आर्थिक मंदी से वापसी में तेजी नहीं लाएगा. हालांकि, यह एक वास्तविक बजट है. कोई बड़ा प्रोत्साहन देने के लिये ज्यादा राजस्व की गुंजाइश नहीं थी. ऐसी किसी छूट को न देकर वित्त मंत्री ने समझदारी दिखाई है. 2008 की आर्थिक मंदी के दौरान दी गई ऐसी ही छूट के विपरीत असर हमें बाद में देखने को मिले थे. मोटे तौर पर वित्त मंत्री ने खर्च पर काबू कर और जीडीपी में 10% के इजाफे को रखकर सही कदम उठाया है.

अंत में इस बजट के कुछ पहलुओं पर नजर डालते हैं- मेरे पसंदीदा, 1) नालों की इंसानों द्वारा सफाई पर रोक के लिये प्रतिबद्धता ; 2) कंपनी कानून में बदलाव कर कई मामलों को आपराधिक दायरे से बाहर लाना ; 3) कर देने वालों के लिये एक चार्टर बनाकर करदाताओं को परेशानी से बचाना. अगर मोदी सरकार यह कर पाती है तो यह किसी जीत के समान होगा.

गुरचरण दास

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गुरचरण दास

 



एक जिम्मेदार बजट से आर्थिक मंदी जल्द ठीक नहीं होगी 



वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन को यह मान लेना चाहिये था कि भारतीय अर्थव्यवस्था मुश्किल दौर से गुजर रही है, औऱ इसके बाद यह बताना चाहिये थे कि इससे निपटने के लिये क्या कदम उठाये जा रहे हैं.



देश में मौजूदा आर्थिक मंदी से निपटने के केवल दो ही तरीक़े हैं. एक है खपत बढ़ाना और दूसरा है निवेश से. इस साल के बजट ने दूसरे तरीक़े को अपनाया है और मेरी समझ में यह सही तरीक़ा है. 



पहला, खपत का रास्ता, बैंक के ज़रिये पैसा लोगों के हाथों में पहुंचायेगा. लोग पैसा खर्च करेंगे, उत्पादों का इस्तेमाल करेंगे, और इसी बढ़ती माँग से उद्योगों को रफ़्तार मिलेगी, नौकरियों के ज़्यादा मौक़े पैदा होंगे, और ज़्यादा खपत होगी. इस चक्र के चलते अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जायेगी. 

दूसरा तरीक़ा है निवेश का, निवेश से नौकरियाँ आती है, लोगों की जेबों में पैसा पहुँचता है, वह खर्च करते हैं, उद्योग चलने लगते हैं, जिससे और नौकरियाँ पैदा होती है, और इस चक्र से भी आर्थिक रफ़्तार आ सकती है. मेरी प्राथमिकता दूसरा तरीक़ा है क्योंकि इससे संपत्ति बनती है. इस बजट में सड़कों पर, पानी के रास्तों, पेयजल पाइप लाइनों, घर, अस्पताल आदि में निवेश का वादा किया गया है. कुल मिलाकर 103 लाख करोड़ का निवेश किया जायेगा. 

 

एक खोया हुआ मौका 



वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा ख़ुद की मदद होती, अगर, वो पहले यह बात मान लेती की देश की अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही है, और इसके बाद इससे निपटने की तैयारियों पर बात करतीं. उन्होंने कई नौकरियाँ पैदा करने वाले कदमों की बात तो कही है, लेकिन अगर वो इनसे पैदा होने वाली नौकरियों का कोई अंदाज़न आँकड़ा भी देतीं, तो लोगों के मन में और विश्वास पैदा होता. 

हालाँकि, बदलाव के बारे में बात करने के लिये बजट ही एक मात्र मौक़ा नहीं है, और सीतारमन ने एक ऐसा ही मौक़ा गंवा दिया. मुश्किल के समय में ही बदलाव किये जाते हैं, जनता बदलावों से आने वाली आंशिक दिक़्क़तों को झेलने के लिये तैयार रहती है. मिसाल के तौर पर, सीतारमन ने एक ऐसी योजना के बारे में बात की जिससे कृषि उत्पाद को बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी. यह था, खेती की ज़मीन को लंबे समय के लिये किराये पर देकर अनुबंधित खेती करने का तरीक़ा.  केंद्र सरकार इस कदम की लंबे समय से वकालत कर रही है, लेकिन राज्य सरकारें इस पर धीमी गति से काम कर रही हैं. हम केंद्र सरकार से इस कारगर और ज़रूरी बदलाव को अमली जामा पहनाने के लिये उठाये जाने वाले कदमों के बारे में जानना चाहते थे. अगर वित्त मंत्री ने बीजेपी की विचारधारा वाले कुछ और बदलावों के बारे में बात की होती, जैसे कि ज़मीन और मज़दूरों के बारे में, तो देश के लोगों में और उत्साह भर जाता.  

 



मेरी सबसे बड़ी निराशा

इस बजट से मेरी सबसे बड़ी निराशा यह रही, कि इसमे संरक्षणवाद और, आयात प्रतिस्थापन की वापसी के बारे में कुछ नहीं कहा गया. आर्थिक सर्वे ने निर्यात पर आधारित बजट की उम्मीद जगाई थी. सर्वे में इस बात पर ज़ोर दिया गया था कि भारत को विश्व की व्यवस्थाओं में अपनी भागीदारी बढ़ाने की ज़रूरत है और साथ ही यह भी कहा गया था कि 'मेक इन इंडिया' का नाम बदलकर ' असेंबल इन इंडिया' कर देना चाहिये. यह इस तरह के बदलावों को करने के लिये सही समय है क्योंकि चीन की दिक़्क़तों के चलते विश्व में परिस्थितियाँ बदल रही हैं. इस बजट से लोगों को कर में कमी आने की भी उम्मीद थी, लेकिन, कई चीजों पर कर बढ़ा दिये गये. अगर इतिहास को देखें तो यह साफ़ है कि, केवल घरेलू बाज़ार पर ध्यान देकर कोई भी देश तरक़्क़ी नहीं कर पाया है. इस सरकार की सबसे बड़ी विफलताओं में निर्यात शामिल है, और इस कारण से ही नौकरियों के भी ज़्यादा अवसर पैदा नहीं हो सके हैं. पिछले सात सालों से भारत का निर्यात जस का तस है वहीं, इसी दौरान वियतनाम के निर्यात में 300% का इज़ाफ़ा आया है.        



फिर भी यह एक वास्तविक बजट है 



बजट 2020 आर्थिक मंदी से वापसी में तेज़ी नहीं लायेगा. हालाँकि, यह एक वास्तविक बजट है. कोई बड़ा प्रोत्साहन देने के लिये ज़्यादा राजस्व की गुंजाइश नहीं थी. ऐसी किसी छूट को न देकर वित्त मंत्री ने समझदारी दिखाई है. 2008 की आर्थिक मंदी के दौरान दी गई ऐसी ही छूट के विपरीत असर हमें बाद में देखने को मिले थे. मोटे तौर पर वित्त मंत्री ने खर्च पर क़ाबू कर और जीडीपी में 10% के इज़ाफ़े को रखकर सही कदम उठाया है.  

अंत में इस बजट के कुछ पहलुओं पर नज़र डालते हैं- मेरे पसंदीदा, 1) नालों की इंसानों द्वारा सफ़ाई पर रोक के लिये प्रतिबद्धता ; 2) कंपनी क़ानून में बदलाव कर कई मामलों को आपराधिक दायरे से बाहर लाना ; 3) कर देने वालों के लिये एक चार्टर बनाकर करदाताओं को परेशानी से बचाना. अगर मोदी सरकार यह कर पाती है तो यह किसी जीत के समान होगा. 


Conclusion:
Last Updated : Feb 29, 2020, 9:11 PM IST
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