हैदराबाद : आमतौर पर भारत में धार्मिक जुलूस देवी-देवताओं के लिए आयोजित किए जाते हैं, लेकिन तेलंगाना राज्य के संगारेड्डी जिले के एक गांव में पिछले 400 सालों से पानी के कुएं के लिए जुलूस निकाला जा रहा है. संगारेड्डी के गांव में निकाले जा रहे इस जुलूस के पीछे की कहानी बेहद ही दिलचस्प है. इस जुलूस को यहां 'गुंडम बावीजतरा' के नाम से जाना जाता है.
क्या है जतरा का इतिहास
इसका इतिहास जानने के लिए आपको 450 साल पीछे जाना होगा. कई साल पहले रघुनाथ स्वामी और जनकम्मा सदाशिवपत्तनम नाम के संत दम्पती इस गांव में आए थे. ये दोनों शैव मत के नाथ उप परम्परा के अनुयायी थे, जो कि वैदिक अग्नि संस्कार करते थे. कई भक्त ऐसे भी थे, जिन्होंने इनके दिए उपदेशों का पालन करना शुरू कर दिया था.
संत दम्पती ने त्यागे प्राण
बता दें रघुनाथ स्वामी और जनकम्मा दोनों ने ही अपने प्राण त्याग दिए थे. जैसे ही भक्तों ने देखा कि दम्पती ने प्राण त्याग दिए तो उन्हें बहुत दुख हुआ. जब पांच दिनों बाद भक्त उनकी राख इकट्ठा करने पहुंचे तो उन्हें चिता पर फूल मिले.
भक्तों ने कराया मंदिर निर्माण
भक्तों ने इन फूलों को भगवान का आशीर्वाद मानकर ले लिया और युगल के लिए एक मंदिर का निर्माण करवाया.
कुष्ठ रोगी हुआ ठीक
एक बार कुष्ठ रोग से ग्रसित एक व्यवसायी ने सपना देखा कि अगर वह रघुनाथ और जनकम्मा की समाधि के सामने कुएं से पानी पिएगा, तो वह ठीक हो जाएगा. उन्होंने अपने सपने का पालन किया और उनका कुष्ठ रोग ठीक हो गया.
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व्यवसायी ने उसके बाद से कुएं का विस्तार कराया और उसमें एक सीढ़ी का भी निर्माण कराया. तभी से रघुनाथ और जनकम्मा की याद में भक्त कुएं के लिए जुलूस निकाल रहे हैं.
रहस्यमयी है मंदिर
हालांकि बाहर की ओर से सामान्य दिखाई देने वाले इस मंदिर में पीछे की ओर यानी रघुनाथ और जनकम्मा की समाधि के पीछे सुरंग है. यह सुरंग भगवान शिव के मंदिर की ओर जाती है.
400 साल पहले व्यवसायी द्वारा बनाई गई सीढ़ी अब भी बरकरार है. सीढ़ी के प्रत्येक तल पर ध्यान कक्ष हैं.
श्रावण मास में विशेष प्रार्थना
बताते चलें कि भगवान शिव की मूर्ति कुएं के तल पर स्थित है. शिव रात्रि और श्रावण मास के पहले सोमवार के दौरान कुएं से पानी निकाला जाता है और विशेष प्रार्थना की जाती है.
क्या है मान्यता
श्रद्धालुओं का मानना है कि कुएं के पानी से कई बीमारियों का इलाज किया जा सकता है. आसपास के क्षेत्रों के रोगग्रस्त लोग इसी कारण इस मंदिर में आते हैं.
भक्त बनते हैं साक्षी
गुंडम बावीजाथरा हर साल कार्तिक एकादशी से शुरू होता है और दो दिनों के लिए चलता है. कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से भी भक्त जुलूस के साक्षी बनने आते हैं.