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तेलंगाना : 'गुंडम बावीजतरा' का बेहद दिलचस्प है इतिहास - जुलूस के पीछे एक दिलचस्प इतिहास

तेलंगाना के संगारेड्डी जिले के एक गांव में खास तरह का जुलूस निकाला जाता है, जिसे 'गुंडम बावीजतरा' कहा जाता है. इस पूरे जुलूस के पीछे एक दिलचस्प इतिहास है. आइए जानते हैं कि पिछले 400 सालों से क्यों निकाला जा रहा है यह खास जुलूस...

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'गुंडम बावीजतरा' का बेहद दिलचस्प है इतिहास
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Published : Dec 30, 2019, 9:57 PM IST

Updated : Dec 30, 2019, 11:00 PM IST

हैदराबाद : आमतौर पर भारत में धार्मिक जुलूस देवी-देवताओं के लिए आयोजित किए जाते हैं, लेकिन तेलंगाना राज्य के संगारेड्डी जिले के एक गांव में पिछले 400 सालों से पानी के कुएं के लिए जुलूस निकाला जा रहा है. संगारेड्डी के गांव में निकाले जा रहे इस जुलूस के पीछे की कहानी बेहद ही दिलचस्प है. इस जुलूस को यहां 'गुंडम बावीजतरा' के नाम से जाना जाता है.

क्या है जतरा का इतिहास
इसका इतिहास जानने के लिए आपको 450 साल पीछे जाना होगा. कई साल पहले रघुनाथ स्वामी और जनकम्मा सदाशिवपत्तनम नाम के संत दम्पती इस गांव में आए थे. ये दोनों शैव मत के नाथ उप परम्परा के अनुयायी थे, जो कि वैदिक अग्नि संस्कार करते थे. कई भक्त ऐसे भी थे, जिन्होंने इनके दिए उपदेशों का पालन करना शुरू कर दिया था.

'गुंडम बावीजतरा' पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट.

संत दम्पती ने त्यागे प्राण
बता दें रघुनाथ स्वामी और जनकम्मा दोनों ने ही अपने प्राण त्याग दिए थे. जैसे ही भक्तों ने देखा कि दम्पती ने प्राण त्याग दिए तो उन्हें बहुत दुख हुआ. जब पांच दिनों बाद भक्त उनकी राख इकट्ठा करने पहुंचे तो उन्हें चिता पर फूल मिले.

भक्तों ने कराया मंदिर निर्माण
भक्तों ने इन फूलों को भगवान का आशीर्वाद मानकर ले लिया और युगल के लिए एक मंदिर का निर्माण करवाया.

कुष्ठ रोगी हुआ ठीक
एक बार कुष्ठ रोग से ग्रसित एक व्यवसायी ने सपना देखा कि अगर वह रघुनाथ और जनकम्मा की समाधि के सामने कुएं से पानी पिएगा, तो वह ठीक हो जाएगा. उन्होंने अपने सपने का पालन किया और उनका कुष्ठ रोग ठीक हो गया.

पढ़ें : धूमधाम से निकाली गई साईं पालकी, आस्था में डूबे नजर आए श्रद्धालु

व्यवसायी ने उसके बाद से कुएं का विस्तार कराया और उसमें एक सीढ़ी का भी निर्माण कराया. तभी से रघुनाथ और जनकम्मा की याद में भक्त कुएं के लिए जुलूस निकाल रहे हैं.

रहस्यमयी है मंदिर
हालांकि बाहर की ओर से सामान्य दिखाई देने वाले इस मंदिर में पीछे की ओर यानी रघुनाथ और जनकम्मा की समाधि के पीछे सुरंग है. यह सुरंग भगवान शिव के मंदिर की ओर जाती है.

400 साल पहले व्यवसायी द्वारा बनाई गई सीढ़ी अब भी बरकरार है. सीढ़ी के प्रत्येक तल पर ध्यान कक्ष हैं.

श्रावण मास में विशेष प्रार्थना
बताते चलें कि भगवान शिव की मूर्ति कुएं के तल पर स्थित है. शिव रात्रि और श्रावण मास के पहले सोमवार के दौरान कुएं से पानी निकाला जाता है और विशेष प्रार्थना की जाती है.

क्या है मान्यता
श्रद्धालुओं का मानना ​​है कि कुएं के पानी से कई बीमारियों का इलाज किया जा सकता है. आसपास के क्षेत्रों के रोगग्रस्त लोग इसी कारण इस मंदिर में आते हैं.

भक्त बनते हैं साक्षी
गुंडम बावीजाथरा हर साल कार्तिक एकादशी से शुरू होता है और दो दिनों के लिए चलता है. कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से भी भक्त जुलूस के साक्षी बनने आते हैं.

हैदराबाद : आमतौर पर भारत में धार्मिक जुलूस देवी-देवताओं के लिए आयोजित किए जाते हैं, लेकिन तेलंगाना राज्य के संगारेड्डी जिले के एक गांव में पिछले 400 सालों से पानी के कुएं के लिए जुलूस निकाला जा रहा है. संगारेड्डी के गांव में निकाले जा रहे इस जुलूस के पीछे की कहानी बेहद ही दिलचस्प है. इस जुलूस को यहां 'गुंडम बावीजतरा' के नाम से जाना जाता है.

क्या है जतरा का इतिहास
इसका इतिहास जानने के लिए आपको 450 साल पीछे जाना होगा. कई साल पहले रघुनाथ स्वामी और जनकम्मा सदाशिवपत्तनम नाम के संत दम्पती इस गांव में आए थे. ये दोनों शैव मत के नाथ उप परम्परा के अनुयायी थे, जो कि वैदिक अग्नि संस्कार करते थे. कई भक्त ऐसे भी थे, जिन्होंने इनके दिए उपदेशों का पालन करना शुरू कर दिया था.

'गुंडम बावीजतरा' पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट.

संत दम्पती ने त्यागे प्राण
बता दें रघुनाथ स्वामी और जनकम्मा दोनों ने ही अपने प्राण त्याग दिए थे. जैसे ही भक्तों ने देखा कि दम्पती ने प्राण त्याग दिए तो उन्हें बहुत दुख हुआ. जब पांच दिनों बाद भक्त उनकी राख इकट्ठा करने पहुंचे तो उन्हें चिता पर फूल मिले.

भक्तों ने कराया मंदिर निर्माण
भक्तों ने इन फूलों को भगवान का आशीर्वाद मानकर ले लिया और युगल के लिए एक मंदिर का निर्माण करवाया.

कुष्ठ रोगी हुआ ठीक
एक बार कुष्ठ रोग से ग्रसित एक व्यवसायी ने सपना देखा कि अगर वह रघुनाथ और जनकम्मा की समाधि के सामने कुएं से पानी पिएगा, तो वह ठीक हो जाएगा. उन्होंने अपने सपने का पालन किया और उनका कुष्ठ रोग ठीक हो गया.

पढ़ें : धूमधाम से निकाली गई साईं पालकी, आस्था में डूबे नजर आए श्रद्धालु

व्यवसायी ने उसके बाद से कुएं का विस्तार कराया और उसमें एक सीढ़ी का भी निर्माण कराया. तभी से रघुनाथ और जनकम्मा की याद में भक्त कुएं के लिए जुलूस निकाल रहे हैं.

रहस्यमयी है मंदिर
हालांकि बाहर की ओर से सामान्य दिखाई देने वाले इस मंदिर में पीछे की ओर यानी रघुनाथ और जनकम्मा की समाधि के पीछे सुरंग है. यह सुरंग भगवान शिव के मंदिर की ओर जाती है.

400 साल पहले व्यवसायी द्वारा बनाई गई सीढ़ी अब भी बरकरार है. सीढ़ी के प्रत्येक तल पर ध्यान कक्ष हैं.

श्रावण मास में विशेष प्रार्थना
बताते चलें कि भगवान शिव की मूर्ति कुएं के तल पर स्थित है. शिव रात्रि और श्रावण मास के पहले सोमवार के दौरान कुएं से पानी निकाला जाता है और विशेष प्रार्थना की जाती है.

क्या है मान्यता
श्रद्धालुओं का मानना ​​है कि कुएं के पानी से कई बीमारियों का इलाज किया जा सकता है. आसपास के क्षेत्रों के रोगग्रस्त लोग इसी कारण इस मंदिर में आते हैं.

भक्त बनते हैं साक्षी
गुंडम बावीजाथरा हर साल कार्तिक एकादशी से शुरू होता है और दो दिनों के लिए चलता है. कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से भी भक्त जुलूस के साक्षी बनने आते हैं.

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GUNDAM BAVI JATHARA



In India, religious processions are usually held for gods and goddesses. But in this village, the procession is being held for a water well for the past 400 years. Read on to know more about this village in Sangareddy district.



In order to know about the Gundam BaviJathara, one must go 450 years back into history. Long ago, Raghunatha Swamy and Janakamma came to the village of SadasivaPattanam. They were the followers of Natha sub-tradition of Saivism. They used to perform the Vedic fire rituals. Several devotees started following the couple’s preaching. Both Raghunatha Swamy and Janakamma renounced their lives by going into Samadhi. As the devotees watched, the couple lied down on the funeral pyre and burnt themselves. When the devotees came to collect the ashes after 5 days, they found flowers on the pyre. Taking it as an omen from the God, they built a temple for the couple. Once, a businessman affected by leprosy dreamt that he would be cured if he drank water from the well opposite the graves of Ragunatha and Janakamma. He followed his dream and his leprosy got cured. The businessman then enlarged the well and constructed a stairway into the water. From then on, devotees have been taking out processions for the well in the memory of Raghunatha and Janakamma.



Though the temple appears simple on the outside, it has a tunnel like construction from behind the graves of Raghunatha and Janakamma. The tunnel leads to the temple of Lord Siva. The stairway which was built by the businessman 400 years ago still remains intact. There are meditation rooms on each floor of the stairway. The deity of Lord Siva is at the bottom of the well. During Siva Ratri and the first Monday of Sravana Masam, the water will be drained out and special prayers are held for the deity. The devotees believe that the well’s water can cure many diseases. Diseased people from surrounding areas come to this temple for the same reason. The Gundam BaviJathara starts every year on Karthika Ekadasi and goes on for 2 days. Devotees from Karnataka and Andhra Pradesh also come to witness the procession. The locals said that the well brimmed with water in the past but due to receding underground water levels, the well water levels have also decreased in the recent times.


Conclusion:
Last Updated : Dec 30, 2019, 11:00 PM IST
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