गुवाहाटी : प्रख्यात गायक जुबिन गर्ग ने कहा है कि असम राज्य में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ एक क्रांति शुरू हुई है. लोग इस अनुचित कानून के खिलाफ खड़े हुए हैं और दबाव में झुकेंगे नहीं.
जुबिन गर्ग का असम में काफी सम्मान है और अब वह संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ आंदोलन के सबसे मुखर चेहरों में शामिल हैं.
विरोध प्रदर्शन की शुरुआत से ही 47 वर्षीय गर्ग अपने मुखर भाषणों और भावनात्मक गानों से सुर्खियों में रहे हैं.
जुबिन ने आरोप लगाया कि सरकार संशोधित नागरिकता कानून को लेकर विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर असम में कश्मीर जैसी स्थिति उत्पन्न करना चाहती है.
बॉलीवुड में या अली, सुबह सुबह और जाने क्या चाहे मन बावरा जैसे गाने गा चुके गर्ग ने एक मीडिया हाउस के साथ बातचीत में कहा, 'हमारा आंदोलन शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक रहा है, इसके बावजूद सुरक्षा बलों की कार्रवाई में लोग मारे गए. यह खेदजनक है, लेकिन हम असमी किसी भी दबाव में नहीं झुकेंगे. हम किसी भी कीमत पर सीएए को स्वीकार नहीं करेंगे, उसे जाना होगा.'
उन्होंने असम की स्थिति की तुलना जम्मू-कश्मीर से की, जहां राज्य को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान समाप्त होने के बाद कर्फ्यू लगाया गया था और इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगा दी गई थी.
उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा, 'सरकार हम पर हावी होने का प्रयास कर रही है. असम में कभी भी ऐसा कर्फ्यू नहीं देखा. उसके बाद उन्होंने इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगा दी. यह तानाशाही है. वे असम में वैसी ही स्थिति उत्पन्न करना चाहते हैं, जैसी उन्होंने कश्मीर में की.'
उन्होंने सवाल किया कि क्या लोग मूर्ख हैं और इस सीएए मुद्दे को नहीं समझते. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि लोग इस आंदोलन की 'मुख्य शक्ति हैं.
उन्होंने कहा, 'मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि लोग इसके खिलाफ आ गए हैं और क्रांति अभी शुरू ही हुई है. इस संघर्ष में समाज के सभी वर्ग एकजुट हैं. हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे, असम सरकारी प्राधिकारियों की यह तानाशाही बर्दाश्त नहीं करेगा.'
गुवाहाटी में कर्फ्यू 11 दिसम्बर की शाम को लगाया गया था और इसे मंगलवार सुबह हटा लिया गया था, इंटरनेट सेवाओं पर उसी दिन रोक लगायी गई थी, जिसे शुक्रवार सुबह बहाल कर दिया गया.
गायक एवं सामाजिक कार्यकर्ता ने पिछले वर्ष नागरिकता संशोधन विधेयक पर एक गाना 'राजनीति नोकोरिबा बंधु लिखा था और यह इस आंदोलन का गाना बन गया है.
आल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) या कलाकार समुदाय द्वारा आयोजित विभिन्न प्रदर्शनों में गर्ग ने सार्वजनिक रूप से कानून की निंदा की है. प्रदर्शनकारियों ने इस कानून को संविधान विरोधी, अत्यंत ध्रुवीकरण करने वाला बताने के साथ ही कहा कि यह 1985 के असम समझौते का उल्लंघन करता है.
उन्होंने कहा, 'समझौता स्पष्ट तौर पर कहता है कि 24 मार्च 1971 के बाद आये सभी अवैध प्रवासियों को वापस भेजा जाएगा. असम कोई डस्टबिन नहीं हो सकता जहां राजनीतिक हितों की पूर्ति के वास्ते अवैध प्रवासियों को डाला जाए.'
गायक के अनुसार यह आंदोलन असमी लोगों द्वारा लड़ा जा रहा है और इसमें सभी आस्था या संस्कृति वाले समुदाय शामिल हैं. इसमें असमी बोलने वाले सभी शामिल हुए हैं, जिसमें हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बंगाली, मारवाड़ी, आदिवासी और कई अन्य शामिल हैं.
उन्होंने कहा, 'असम का यह सामाजिक..सांस्कृतिक सौहार्द कुछ ऐसा है, जिसे भाजपा पसंद नहीं करती, इसलिए सीएए के जरिये वे राज्य में हिन्दू..मुस्लिम या असमी..बंगाली का द्विवर्ण बनाना चाहते हैं.'
पढ़ें- दिल्ली में युवाओं ने सीएए के समर्थन में किया देश भक्ति गीतों के साथ प्रदर्शन
गर्ग ने कहा कि असम को 2021 में राज्य चुनाव से पहले एक राजनीतिक विकल्प की जरूरत है.
उन्होंने कहा, 'हमें अब भाजपा की कोई जरूरत नहीं है, असम गण परिषद या कांग्रेस की भी नहीं. हमें एक नयी पार्टी चाहिए. हमने इस पर बातचीत भी शुरू कर दी है और अगले वर्ष तक हमारे पास इस दिशा में कुछ ठोस होगा.'