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जानें, क्यों 2021 की शुरुआत में किसान आंदोलन का समाधान चाहती है सरकार - farmers movement

2021 में कई राज्यों में चुनाव हैं, जिनमें मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल और असम हैं. इसके बाद पुदुचेरी, केरल और अन्य राज्यों में भी चुनाव हैं. राज्य के चुनावों में कृषि कानून कहीं ज्वलंत मुद्दा न बन जाए, इसके लिए भी सरकार हर संभव प्रयास कर रही है. पश्चिम बंगाल के चुनाव में विपक्षी दल इस मामले को भाजपा के खिलाफ मुख्य मुद्दा ने बना लें इसलिए भी सरकार 2021 की शुरुआत में ही यह मसला हल करना चाहती है.

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मोदी शाह
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Published : Dec 21, 2020, 8:18 PM IST

नई दिल्ली : कृषि कानूनों के विरोध में 26 दिनों से किसान आंदोलन जारी है, जिसके कारण सरकार पर भी दबाव बढ़ता जा रहा है. सरकार और किसान नेताओं के बीच अब तक हुई वार्ता में कोई सहमति नहीं बन सकी है. सूत्रों की मानें सरकार वर्ष 2021 की शुरुआत में हर हाल में इसका समाधान चाहती है. इसके लिए सरकार ने कुछ केंद्रीय मंत्रियों को किसान नेताओं से बात करने की जिम्मेदारी दी गई है. साथ ही कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के पत्र को भी नौ भाषाओं में अनुवाद कर किसानों तक पहुंचाने की तैयारी है.

2021 में कई राज्यों में चुनाव हैं, जिनमें मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल और असम हैं. इसके बाद पुदुचेरी, केरल और अन्य राज्यों में भी चुनाव हैं. राज्य के चुनावों में कृषि कानून कहीं ज्वलंत मुद्दा न बन जाए, इसके लिए भी सरकार हर संभव प्रयास कर रही है. पश्चिम बंगाल के चुनाव में विपक्षी दल इस मामले को भाजपा के खिलाफ मुख्य मुद्दा ने बना लें इसलिए भी सरकार 2021 की शुरुआत में ही यह मसला हल करना चाहती है.

दरअसल, बंगाल और ऐसे राज्य जहां भाजपा की सरकार नहीं है, वहां पार्टी केंद्र सरकार की उपलब्धियों, योजनाओं और पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव मैदान में उतर रही है. यदि किसानों का मुद्दा हल नहीं होता है तो यह सरकार की छवि पर सवाल उठाएगा. किसानों के मुद्दे पर गृह मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय एक-दूसरे के संपर्क में हैं. साथ ही कुछ ऐसे केंद्रीय मंत्री जिनके रिश्ते किसान नेताओं के साथ अच्छे रहे हैं और जिनकी कृषि क्षेत्र में पैठ रही है उन्हें भी किसान नेताओं से बातचीत की जिम्मेदारी दी गई.

ईटीवी भारत से बात करते हुए भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल का कहना है कि किसानों आंदोलन और कृषि सुधारों को लेकर सरकार बैकफुट पर नहीं है. उन्होंने यह भी दावा किया कि कृषि क्षेत्र के उत्थान और विकास के लिए यह तीनों ही कानून बहुत जरूरी हैं. उनका कहना है कि कुछ दुविधायें किसानों की एपीएमसी और एमएसपी को लेकर हैं, जिन्हें दूर करने को लेकर चर्चा की जा रही है. सरकार स्पष्ट कर चुकी है कि एपीएमसी को डिस्मेंटल नहीं कर रही है बल्कि वैकल्पिक प्रयास किए जा रहे हैं और इसमें कोई छेड़छाड़ नहीं होगी.

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल से बातचीत

किसानों को अगर इससे संबंधित कोई शिकायत है और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर कोई उलझन है तो इस बारे में सरकार सुनने को तैयार है और बदलाव के लिए भी तैयार है. हालांकि एमएसपी के साथ सरकार ने कोई छेड़छाड़ नहीं की है और इसे बदले जाने की कोई मनःस्थिति में सरकार नहीं है. सरकार किसानों की समस्या को समझती है और संविधान के अनुसार ही निर्णय कर रही है.

सत्ताधारी पार्टी भाजपा पहले ही अपने कुछ नेताओं को इस काम में लगा चुकी है. साथ ही पार्टी पूरे देश में अपने राष्ट्रीय महासचिव, प्रदेश अध्यक्षों और कार्यकर्ताओं के माध्यम से प्रेस वार्ता और चौपाल कर कृषि कानूनों के बारे में किसानों को बताकर उन्हें विश्वास में लेने की योजना की शुरुआत कर चुकी है. साथ ही कृषि मंत्री के पत्र को पूर्वोत्तर और दक्षिणी राज्यों की भाषा में अनुवाद करवाया जा रहा है. सरकार बांग्ला, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल जैसे गैर हिंदी राज्यों की भाषा में अनुवाद करवा रही है, इनमें से कुछ राज्यों में आने वाले दिनों में चुनाव भी हैं.

ईटीवी भारत संवाददाता

यह भी पढ़ें- किसान आंदोलन : एक और अन्नदाता ने की आत्महत्या की कोशिश, भूख हड़ताल जारी

किसान दिल्ली-पंजाब की सिंघु बॉर्डर पर कृषि कानूनों के विरोध में काफी दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं. उनका कहना है कि अगर सरकार यह कानून वापस नहीं लेती तो वे यह आंदोलन एक साल तक भी जारी रखेंगे.

नई दिल्ली : कृषि कानूनों के विरोध में 26 दिनों से किसान आंदोलन जारी है, जिसके कारण सरकार पर भी दबाव बढ़ता जा रहा है. सरकार और किसान नेताओं के बीच अब तक हुई वार्ता में कोई सहमति नहीं बन सकी है. सूत्रों की मानें सरकार वर्ष 2021 की शुरुआत में हर हाल में इसका समाधान चाहती है. इसके लिए सरकार ने कुछ केंद्रीय मंत्रियों को किसान नेताओं से बात करने की जिम्मेदारी दी गई है. साथ ही कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के पत्र को भी नौ भाषाओं में अनुवाद कर किसानों तक पहुंचाने की तैयारी है.

2021 में कई राज्यों में चुनाव हैं, जिनमें मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल और असम हैं. इसके बाद पुदुचेरी, केरल और अन्य राज्यों में भी चुनाव हैं. राज्य के चुनावों में कृषि कानून कहीं ज्वलंत मुद्दा न बन जाए, इसके लिए भी सरकार हर संभव प्रयास कर रही है. पश्चिम बंगाल के चुनाव में विपक्षी दल इस मामले को भाजपा के खिलाफ मुख्य मुद्दा ने बना लें इसलिए भी सरकार 2021 की शुरुआत में ही यह मसला हल करना चाहती है.

दरअसल, बंगाल और ऐसे राज्य जहां भाजपा की सरकार नहीं है, वहां पार्टी केंद्र सरकार की उपलब्धियों, योजनाओं और पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव मैदान में उतर रही है. यदि किसानों का मुद्दा हल नहीं होता है तो यह सरकार की छवि पर सवाल उठाएगा. किसानों के मुद्दे पर गृह मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय एक-दूसरे के संपर्क में हैं. साथ ही कुछ ऐसे केंद्रीय मंत्री जिनके रिश्ते किसान नेताओं के साथ अच्छे रहे हैं और जिनकी कृषि क्षेत्र में पैठ रही है उन्हें भी किसान नेताओं से बातचीत की जिम्मेदारी दी गई.

ईटीवी भारत से बात करते हुए भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल का कहना है कि किसानों आंदोलन और कृषि सुधारों को लेकर सरकार बैकफुट पर नहीं है. उन्होंने यह भी दावा किया कि कृषि क्षेत्र के उत्थान और विकास के लिए यह तीनों ही कानून बहुत जरूरी हैं. उनका कहना है कि कुछ दुविधायें किसानों की एपीएमसी और एमएसपी को लेकर हैं, जिन्हें दूर करने को लेकर चर्चा की जा रही है. सरकार स्पष्ट कर चुकी है कि एपीएमसी को डिस्मेंटल नहीं कर रही है बल्कि वैकल्पिक प्रयास किए जा रहे हैं और इसमें कोई छेड़छाड़ नहीं होगी.

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल से बातचीत

किसानों को अगर इससे संबंधित कोई शिकायत है और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर कोई उलझन है तो इस बारे में सरकार सुनने को तैयार है और बदलाव के लिए भी तैयार है. हालांकि एमएसपी के साथ सरकार ने कोई छेड़छाड़ नहीं की है और इसे बदले जाने की कोई मनःस्थिति में सरकार नहीं है. सरकार किसानों की समस्या को समझती है और संविधान के अनुसार ही निर्णय कर रही है.

सत्ताधारी पार्टी भाजपा पहले ही अपने कुछ नेताओं को इस काम में लगा चुकी है. साथ ही पार्टी पूरे देश में अपने राष्ट्रीय महासचिव, प्रदेश अध्यक्षों और कार्यकर्ताओं के माध्यम से प्रेस वार्ता और चौपाल कर कृषि कानूनों के बारे में किसानों को बताकर उन्हें विश्वास में लेने की योजना की शुरुआत कर चुकी है. साथ ही कृषि मंत्री के पत्र को पूर्वोत्तर और दक्षिणी राज्यों की भाषा में अनुवाद करवाया जा रहा है. सरकार बांग्ला, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल जैसे गैर हिंदी राज्यों की भाषा में अनुवाद करवा रही है, इनमें से कुछ राज्यों में आने वाले दिनों में चुनाव भी हैं.

ईटीवी भारत संवाददाता

यह भी पढ़ें- किसान आंदोलन : एक और अन्नदाता ने की आत्महत्या की कोशिश, भूख हड़ताल जारी

किसान दिल्ली-पंजाब की सिंघु बॉर्डर पर कृषि कानूनों के विरोध में काफी दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं. उनका कहना है कि अगर सरकार यह कानून वापस नहीं लेती तो वे यह आंदोलन एक साल तक भी जारी रखेंगे.

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