नई दिल्ली : कृषि सुधार कानून के मुद्दे पर केंद्र सरकार जहां एक ओर आंदोलनरत किसान संगठनों के साथ बातचीत शुरू कर गतिरोध खत्म करने का प्रस्ताव भेज रही है, वहीं दूसरी तरफ तीन कृषि कानूनों के समर्थन में देश के अलग-अलग हिस्सों से किसान संगठनों को सरकार के पक्ष में लाने का काम भी लगातार जारी है. आज दिल्ली के राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान परिषद में दस से ज्यादा कृषक समूह और किसान संगठनों ने मोदी सरकार के तीन कृषि सुधार कानूनों का समर्थन किया.
यह कार्यक्रम भारतीय कृषक समाज द्वारा आयोजित किया गया था, जिसमें देश के अलग-अलग हिस्सों से संगठन पहुंचे थे. कार्यक्रम में किसानों को संबोधित करते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एक बार फिर कृषि कानूनों की मजबूत वकालत की और स्पष्ट संकेत दिया कि सरकार इन कानूनों को वापस लेने पर कोई चर्चा नहीं करेगी.
आंदोलनरत संयुक्त किसान मोर्चा आवश्यक वस्तु अधिनियम में लाए गए बदलाव के सख्त खिलाफ हैं, लेकिन इस पर बात करते हुए कृषि मंत्री ने कहा कि आज देश में पैदावार कहीं ज्यादा है, जिसके कारण सरकार जो अनाज की खरीद करती है उसके भंडारण में 22 हजार करोड़ रुपये का खर्च आता है. 37% उत्पादन प्रतिवर्ष बर्बाद हो जाता है, जिसका कोई लाभ नहीं होता. इसलिए सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह इस तरह की नीतियां लाए, जिससे कृषि क्षेत्र में भी निजी निवेश पहुंचे और किसानों को इसका लाभ मिले.
केंद्रीय मंत्री तोमर ने कहा कि किसानों को मंडी और इंस्पेक्टर राज के शोषण से बचाने के उद्देश्य से ये कृषि सुधार कानून लाए गए हैं और ये सुधार आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता हैं.
कृषि कानूनों के विरोध पर एक बार फिर कृषि मंत्री ने कहा कि किसानों के कंधे का इस्तेमाल कर कुछ विरोधी तत्व अपने राजनीतिक मंसूबे को पूरे करने का असफल प्रयास कर रहे हैं.
कृषि मंत्री के बयान से स्पष्ट है कि सरकार तीनों कृषि कानूनों पर पीछे हटने को बिल्कुल तैयार नहीं है, जबकि आंदोलनरत किसान मोर्चा द्वारा 26 दिसंबर को सरकार को भेजे गए वार्ता के प्रस्ताव में यह एजेंडा के रूप में रखा गया था.
आज सरकार की ओर से कृषि मंत्रालय के सचिव संजय अग्रवाल ने किसान मोर्चा को पत्र के जवाब में 30 दिसंबर को विज्ञान भवन में बैठक का न्योता भेजा है, लेकिन सरकार द्वारा भेजे गए पत्र में भी किसानों द्वारा प्रस्तावित एजेंडा पर कोई चर्चा नहीं है. सरकार द्वारा आज भेजे पत्र में कहा गया है कि वह प्रासंगिक मुद्दों के तर्कपूर्ण समाधान के लिए प्रतिबद्ध है.
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अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने सरकार के पत्र पर प्रतिक्रिया देते हुए जारी व्यक्तव्य में कहा है कि सरकार ने उनके प्रस्तावित एजेंडा को स्वीकार नहीं किया है और शब्दों से खेल रही है. इससे स्पष्ट होता है कि सरकार उनकी समस्या का हल नहीं करेगी.
संयुक्त किसान मोर्चा बैठक के बाद लेगी निर्णय
संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल राष्ट्रीय किसान महासंघ के प्रवक्ता अभिमन्यु कोहार ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि किसानों की तरफ से बातचीत का रास्ता हमेशा खुला रहा है, लेकिन सरकार को हमने 29 दिसंबर को बातचीत के लिए प्रस्ताव भेजा था. सरकार की तरफ से एक दिन देर कर 30 दिसंबर को दोपहर बाद का समय दिया गया है. इसके साथ ही सरकार ने किसान मोर्चा द्वारा प्रस्तावित एजेंडा पर चर्चा करने की कोई स्पष्ट बात अपने पत्र में नहीं की है.
उन्होंने कहा कि सरकार के पत्र पर संयुक्त किसान मोर्चा के सभी प्रतिनिधि चर्चा कर रहे हैं और आधिकारिक निर्णय लेंगे, लेकिन एक बात स्पष्ट है कि सरकार उनकी मांगों को लेकर गंभीर नहीं दिख रही है.
दिल्ली के बॉर्डर पर किसान संगठनों का आंदोलन पिछले एक महीने से जारी है और संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार के साथ वार्ता के प्रस्ताव के साथ ही आगे के कार्यक्रमों की भी घोषणा भी कर दी है. 30 दिसंबर को सरकार ने किसान मोर्चा को वार्ता के लिए आमंत्रित किया है और इसी दिन संयुक्त किसान मोर्चा ने सिंघु में ट्रैक्टर रैली की घोषणा की है, जिसमें एक हजार से ज्यादा ट्रैक्टर शामिल होंगे.