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कोरोना काल में अंतिम संस्कार करना बनी चुनौती, कम पड़ रही जगह

कोरोना से संक्रमित रोगियों और उनके शवों को लेकर बनी नीतियों में समय-समय पर बदलाव होते रहते हैं, जिससे डॉक्टरों, अस्पताल के अधिकारियों और मरीज के परिजनों में भ्रम की स्थिति बनी रहती है. पहले बने नियमों की बात करें, तो उन लोगों के अंतिम संस्कार के लिए शवों को परिजनों को सौंपने की सख्त मनाही थी, जो कोरोना संदिग्ध हैं. वहीं अब मंत्रालय ने इन दिशानिर्देशों में ढील दे दी है. इसके मुताबिक लोगों को परिजनों के शव प्राप्त करने के लिए संक्रमण की पुष्टि वाली रिपोर्ट का इंतजार नहीं करना पड़ेगा.

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क्या कोरोना काल में चुनौती बन रहा अंतिम संस्कार
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Published : Jul 27, 2020, 7:38 PM IST

Updated : Jul 27, 2020, 8:21 PM IST

हैदराबाद : कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण आम जीवन अस्त व्यस्त हो गया है. कोरोना वायरस का आर्थिक और सामाजिक जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ा है. कोरोना वायरस के कारण हो रही मौतों के कारण देश में श्मशान घाट और कब्रिस्तान कम पड़ रहे हैं. आपने इससे पहले कभी देश के श्मशान घाट और कब्रिस्तानों को बोझ तले दबे नहीं देखा होगा. शायद ही किसी ने कभी सोचा होगा कि एक दिन कब्रिस्तानों की इतनी कमी हो जाएगी कि अस्थायी कब्रिस्तान बनाने की जरूरत पड़ेगी. परेशानी यहीं कम नहीं होती है. एक अलग परेशानी यह भी है कि शव को श्मशान घाट तक ले जाने के लिए घंटो इंतजार करना पड़ता है.

ऐसे में सवाल ये कि क्या कोरोना काल में मर रहे लोगों का सम्मानजनक अंतिम संस्कार हो पा रहा है?

कोरोना से संक्रमित रोगियों और उनके शवों को लेकर बनी नीतियों में समय-समय पर बदलाव होते रहते हैं, जिससे डॉक्टरों, अस्पताल के अधिकारियों और मरीज के परिजनों में भ्रम की स्थिति बनी रहती है.

पहले बने नियमों की बात करें, तो उन लोगों के अंतिम संस्कार के लिए शवों को परिजनों को सौंपने की सख्त मनाही थी, जो कोरोना संदिग्ध हैं. वहीं अब मंत्रालय ने इन दिशानिर्देशों में ढील दे दी है. इसके मुताबिक लोगों को परिजनों के शव प्राप्त करने के लिए संक्रमण की पुष्टि वाली रिपोर्ट का इंतजार नहीं करना पड़ेगा.

देश में अलग-अलग राज्यों के हाल-

दिल्ली

राजधानी दिल्ली की अगर बात करें, तो यहां 13 श्मशान घाट और पांच कब्रिस्तान बनाए गए हैं. इनमें से छह श्मशान घाटों को कोरोना रोगियों को समर्पित किया गया है.

तीनों नगर निगमों दक्षिणी दिल्ली, पूर्वी दिल्ली और उत्तरी दिल्ली ने एक संयुक्त बयान जारी किया, जिसमें कहा गया कि कोरोना वायरस के मामलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए प्रतिदिन 95-100 शवों के दाह संस्कार को लेकर कब्रिस्तान की क्षमता बढ़ाई है.

दिल्ली में पांच निर्दिष्ट कोविड संबंधी श्मशान सुविधाओं में से पंजाब बाग ही एकमात्र ऐसी जगह है, जहां जला कर दाह संस्कार करने के अलावा सीएनजी से होने वाले अंतिम संस्कार की सुविधा है. यहां 27 मई से सात जून के बीच कुल 480 दाह संस्कार किए गए, जो प्रतिदिन औसतन 40 थे.

महाराष्ट्र

मुंबई की अगर बात करें, तो यहां 49 शवदाहगृह ऐसे हैं, जो बीएमसी द्वारा चलाए जाते हैं वहीं 20 शवदाहगृह निजी हैं. बीएमसी ने हिंदू शवों को जलाने के लिए 15 अस्थाई सीएनजी प्रक्रिया भी स्थापित की है. इस साल अकेले मई में 115 शवों का अंतिम संस्कार किया गया और इनमें से 89 कोरोना से संक्रमित मरीजों के शव थे.

पश्चिम बंगाल

कोलकाता नगर निगम ने धापा श्मशान में दो अतिरिक्त विद्युत शवदाहगृह बनाने का काम शुरू किया है, जहां कोरोना से मरने वालों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है.

कोलकाता नगर निगम ने शहर में कोरोना नेगेटिव लोगों के अंतिम संस्कार के लिए तीन श्मशान अलग से भी आरक्षित किए हुए हैं.

कर्नाटक

कर्नाटक सरकार ने उन लोगों के लिए श्मशान का शुल्क माफ कर दिया है, जिनकी मौत कोरोना संक्रमण के कारण हुई है.

भीड़भाड़ को रोकने के लिए बीबीएमपी ने सुबह नौ बजे से रात आट बजे तक काम करने के लिए विद्युत शवदाहगृह का समय बढ़ाया था.

तकनीकी अंतिम संस्कार

मशीनें पारंपरिक तरीकों की जगह ले रहीं हैं. हिंदू परंपराओं के अनुसार मृतकों को परिवार के सदस्यों और पुजारियों द्वारा कुछ अनुष्ठानों से पहले लकड़ी पर जलाया जा सकता है. हालांकि कोविड-19 ने इसे बदल दिया है.

श्मशान पर काम करने वाले लोग इन अनुष्ठानों को बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन बढ़ते बोझ ने पूरी प्रक्रिया को बदलकर रख दिया है.

अब इन परंपराओं की जगह विद्युत शवदाहगृहों ने ले ली है. गिने-चुने रिश्तेदारों के साथ श्मशान कार्यकर्ता खुद शवों का अंतिम संस्कार करने के लिए मजबूर हैं.

ठीक इसी तरह इस्लाम धर्म की परंपराओं के अनुसार, मृत लोगों के लिए कब्र खोदी जाती है. लेकिन कोरोना के दौर में कब्र खोदने की बजाय अर्थमूवर का काम किया जा रहा है.

समय पर दफनाने के लिए, कब्रिस्तान के कर्मचारी कब्र खोदने के लिए मशीनों का उपयोग कर रहे हैं, जो कार्य को पूरा करने में कुछ मिनट लगते हैं.

कई बार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पूजा आयोजित की जाती है.

परेशानियां :

  • कब्रिस्तानों और श्मशान में काम करने वालों को पीपीई किट नहीं दी जाती है.
  • महामारी फैलने या परिवहन मुद्दों के कारण कर्मचारियों की कमी.
  • कोविड -19 के कारण मृत्यु के मामलों में शवों के लिए पर्याप्त स्थान की कमी लगातार बढ़ती जा रही है.
  • उचित सुरक्षा के बिना बड़ी संख्या में अंतिम संस्कार में भाग लेने वाले रिश्तेदार आगे कोरोना संक्रमण बढ़ा सकते हैं.
  • मृतक के दाह संस्कार के लिए लंबी प्रतीक्षा रेखा.
  • लोगों में जागरूकता की कमी के कारण भय उत्पन्न होता है.

हैदराबाद : कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण आम जीवन अस्त व्यस्त हो गया है. कोरोना वायरस का आर्थिक और सामाजिक जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ा है. कोरोना वायरस के कारण हो रही मौतों के कारण देश में श्मशान घाट और कब्रिस्तान कम पड़ रहे हैं. आपने इससे पहले कभी देश के श्मशान घाट और कब्रिस्तानों को बोझ तले दबे नहीं देखा होगा. शायद ही किसी ने कभी सोचा होगा कि एक दिन कब्रिस्तानों की इतनी कमी हो जाएगी कि अस्थायी कब्रिस्तान बनाने की जरूरत पड़ेगी. परेशानी यहीं कम नहीं होती है. एक अलग परेशानी यह भी है कि शव को श्मशान घाट तक ले जाने के लिए घंटो इंतजार करना पड़ता है.

ऐसे में सवाल ये कि क्या कोरोना काल में मर रहे लोगों का सम्मानजनक अंतिम संस्कार हो पा रहा है?

कोरोना से संक्रमित रोगियों और उनके शवों को लेकर बनी नीतियों में समय-समय पर बदलाव होते रहते हैं, जिससे डॉक्टरों, अस्पताल के अधिकारियों और मरीज के परिजनों में भ्रम की स्थिति बनी रहती है.

पहले बने नियमों की बात करें, तो उन लोगों के अंतिम संस्कार के लिए शवों को परिजनों को सौंपने की सख्त मनाही थी, जो कोरोना संदिग्ध हैं. वहीं अब मंत्रालय ने इन दिशानिर्देशों में ढील दे दी है. इसके मुताबिक लोगों को परिजनों के शव प्राप्त करने के लिए संक्रमण की पुष्टि वाली रिपोर्ट का इंतजार नहीं करना पड़ेगा.

देश में अलग-अलग राज्यों के हाल-

दिल्ली

राजधानी दिल्ली की अगर बात करें, तो यहां 13 श्मशान घाट और पांच कब्रिस्तान बनाए गए हैं. इनमें से छह श्मशान घाटों को कोरोना रोगियों को समर्पित किया गया है.

तीनों नगर निगमों दक्षिणी दिल्ली, पूर्वी दिल्ली और उत्तरी दिल्ली ने एक संयुक्त बयान जारी किया, जिसमें कहा गया कि कोरोना वायरस के मामलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए प्रतिदिन 95-100 शवों के दाह संस्कार को लेकर कब्रिस्तान की क्षमता बढ़ाई है.

दिल्ली में पांच निर्दिष्ट कोविड संबंधी श्मशान सुविधाओं में से पंजाब बाग ही एकमात्र ऐसी जगह है, जहां जला कर दाह संस्कार करने के अलावा सीएनजी से होने वाले अंतिम संस्कार की सुविधा है. यहां 27 मई से सात जून के बीच कुल 480 दाह संस्कार किए गए, जो प्रतिदिन औसतन 40 थे.

महाराष्ट्र

मुंबई की अगर बात करें, तो यहां 49 शवदाहगृह ऐसे हैं, जो बीएमसी द्वारा चलाए जाते हैं वहीं 20 शवदाहगृह निजी हैं. बीएमसी ने हिंदू शवों को जलाने के लिए 15 अस्थाई सीएनजी प्रक्रिया भी स्थापित की है. इस साल अकेले मई में 115 शवों का अंतिम संस्कार किया गया और इनमें से 89 कोरोना से संक्रमित मरीजों के शव थे.

पश्चिम बंगाल

कोलकाता नगर निगम ने धापा श्मशान में दो अतिरिक्त विद्युत शवदाहगृह बनाने का काम शुरू किया है, जहां कोरोना से मरने वालों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है.

कोलकाता नगर निगम ने शहर में कोरोना नेगेटिव लोगों के अंतिम संस्कार के लिए तीन श्मशान अलग से भी आरक्षित किए हुए हैं.

कर्नाटक

कर्नाटक सरकार ने उन लोगों के लिए श्मशान का शुल्क माफ कर दिया है, जिनकी मौत कोरोना संक्रमण के कारण हुई है.

भीड़भाड़ को रोकने के लिए बीबीएमपी ने सुबह नौ बजे से रात आट बजे तक काम करने के लिए विद्युत शवदाहगृह का समय बढ़ाया था.

तकनीकी अंतिम संस्कार

मशीनें पारंपरिक तरीकों की जगह ले रहीं हैं. हिंदू परंपराओं के अनुसार मृतकों को परिवार के सदस्यों और पुजारियों द्वारा कुछ अनुष्ठानों से पहले लकड़ी पर जलाया जा सकता है. हालांकि कोविड-19 ने इसे बदल दिया है.

श्मशान पर काम करने वाले लोग इन अनुष्ठानों को बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन बढ़ते बोझ ने पूरी प्रक्रिया को बदलकर रख दिया है.

अब इन परंपराओं की जगह विद्युत शवदाहगृहों ने ले ली है. गिने-चुने रिश्तेदारों के साथ श्मशान कार्यकर्ता खुद शवों का अंतिम संस्कार करने के लिए मजबूर हैं.

ठीक इसी तरह इस्लाम धर्म की परंपराओं के अनुसार, मृत लोगों के लिए कब्र खोदी जाती है. लेकिन कोरोना के दौर में कब्र खोदने की बजाय अर्थमूवर का काम किया जा रहा है.

समय पर दफनाने के लिए, कब्रिस्तान के कर्मचारी कब्र खोदने के लिए मशीनों का उपयोग कर रहे हैं, जो कार्य को पूरा करने में कुछ मिनट लगते हैं.

कई बार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पूजा आयोजित की जाती है.

परेशानियां :

  • कब्रिस्तानों और श्मशान में काम करने वालों को पीपीई किट नहीं दी जाती है.
  • महामारी फैलने या परिवहन मुद्दों के कारण कर्मचारियों की कमी.
  • कोविड -19 के कारण मृत्यु के मामलों में शवों के लिए पर्याप्त स्थान की कमी लगातार बढ़ती जा रही है.
  • उचित सुरक्षा के बिना बड़ी संख्या में अंतिम संस्कार में भाग लेने वाले रिश्तेदार आगे कोरोना संक्रमण बढ़ा सकते हैं.
  • मृतक के दाह संस्कार के लिए लंबी प्रतीक्षा रेखा.
  • लोगों में जागरूकता की कमी के कारण भय उत्पन्न होता है.
Last Updated : Jul 27, 2020, 8:21 PM IST
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