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पोषण स्कीमः फंड का नहीं हो रहा सही उपयोग, हरियाणा-बंगाल-केरल-पंजाब पिछड़े

नीति आयोग के ये आंकड़े तब और अहम हो जाते हैं जब खुद केंद्र सरकार ने पोषण अभियान में 14 लाख फर्जी लाभार्थियों के होने की बात मानी है. नीति आयोग ने महिलाओँ और बच्चों के लिये योजनाओँ को लागू करने के लिये कर्मचारियों की कमी की तरफ भी इशारा किया है. प्रोजेक्ट निदेशक और महिला सुपरवाइजर जैसे पदों पर अभी भी 25 प्रतिशत पद खाली हैं. मातृ वंदना योजना में जिला और राज्य स्तर पर भी काफी पद खाली हैं. जानिए पोषण स्कीम की वस्तुस्थिति...

प्रतीकात्मक चित्र
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Published : Nov 14, 2019, 11:11 AM IST

सरकारी योजनाओं के सही तरह से लागू न हो पाने के पीछे सबसे बड़ा कारण होता है पैसों की कमी. इसे विडंबना ही कहेंगे कि सरकारी खजाने में पर्याप्त धन होने के बावजूद आधिकारिक उदासीनता के कारण इन योजनाओं को पैसे नहीं मिलते. सरकारी तंत्र का ये पहलू पिछले दिनों सुर्खियों में तब आया, जब महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने राज्य सरकारों को केंद्र सरकार की पोषण अभियान योजना को युद्दस्तर पर लागू करने को कहा. केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी राज्य सरकारों द्वारा इस योजना को लागू न कर पाने के चलते अपनी नाराजगी भी जाहिर कर चुकी हैं. ईरानी की नाराजगी हालात के बारे में काफी कुछ कहती है. पोषण स्कीम राज्यों में केवल खाना पूर्ति के लिये लागू की गई है, और इसमें भी पश्चिम बंगाल, हरियाणा, पंजाब, केरल, ओड़िसा और गोवा जैसे राज्य काफी पीछे हैं. इस योजना के लिये केंद्र सरकार ने 3,769 करोड़ की रकम आवंटित की है. पर अभी तक मात्र 1,058 करोड़ (33 प्रतिशत) ही खर्च किया जा सका है. पश्चिम बंगाल, ओड़िसा और गोवा में तो इस योजना की शुरुआत भी नहीं हो सकी है. पंजाब और कर्नाटक में आवंटित रकम का केवल एक प्रतिशत ही खर्च हो सका है. हरियाणा और केरल में ये संख्या दस प्रतिशत से भी कम है.

केंद्र सरकार से छत्तीस का आंकड़ा रखने वाली पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस सरकार ने तो इस योजना को लागू करने के बारे में कोई कदम ही नहीं उठाया है. राज्य के वित्त मंत्री ससी पांजा का कहना है कि राज्य सरकार की खुद की पोषण योजनाएं इस योजना से कहीं ज्यादा कारगर है, इसलिये इस योजना को फिलहाल तव्वजो नहीं मिली है. बीजेपी शासित गोवा में भी अमूमन ऐसे ही हालात हैं. इस योजना से जुड़ी गोवा सरकार की अधिकारी दीपाली नायक का कहना है कि विभाग के पास कर्मचारियों की कमी के चलते योजना को लागू करने में परेशानियां आ रही हैं. नायक का कहना है कि स्टाफ की कमी के कारण योजना के लिये जमीनी स्तर पर जरूरी सामान की खरीद में खासी देरी हो रही है. वहीं और राज्यों के मुकाबले पंजाब में हालात कुछ बेहतर हैं.

कई सर्वे ये साफ कर चुके हैं कि इस रफ्तार से ये योजनाएं अपने लक्ष्य को पाने में नाकाम रहेंगी. अंतर्राष्ट्रीय मेडिकल जर्नल लैंसेट के सर्वे के मुताबिक, अगर भारत ने इस योजना से जुड़ी कमियों पर काबू नहीं किया तो 2022 तक पोषण अभियान के लक्ष्य को पाने में वो कामयाब नही होगा. सर्वे में पोषण योजना के लक्ष्यों के तौर पर बच्चों में विकास की कमी, कम वजन, जन्म के समय कम वजन, महीलाओं और बच्चों में खून की कमी का जिक्र है. इस बारे में इंडियन मेडिकल कांउसिल की भी कुछ ऐसी ही राय है. भारत में पूरे पोषण से आज भी बच्चे और महिलाएं कोसों दूर हैं, हांलाकि देशभर में बच्चों और गर्भवती महिलाओं को मदद करने वाली कई योजनाएं चल रही हैं. पोषण अभियान योजना की शुरुआत 2018 में ऐसी सभी योजनाओं में समन्वय स्थापित करने के मकसद से हुई थी. इस योजना के जरिये सभी मंत्रालयों के बीच समन्वय बैठाने की कोशिश की जा रही है. इस योजना का मुख्य मकसद, आंगनबाड़ी कार्यक्रम की मदद से 2022 तक कुपोषण से निजाद पाना है. नीति आयोग ने सभी राज्यों के लिये

विकास में कमी को दो प्रतिशत, कद में कमी को दो प्रतिशत, बच्चों, महिलाओं और युवाओं में खून की कमी को तीन प्रतिशत और जन्म के समय कम वजन को दो प्रतिशत सालाना की दर से कम करने का लक्ष्य रखा है.

इसे भी पढे़ं- कितना गंभीर है ट्रंप पर चलने वाला महाभियोग, एक विश्लेषण

नीति आयोग ने देश के 27 जिलों में जो सर्वे किया है उसके अनुसार, 78 प्रतिशत गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं ही आंगनबाड़ी में पंजीकृत हैं, और 46 प्रतिशत को ही पौष्टिक खाना मिल रहा है. प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के मुताबिक महिलाओं को महीने में 25 दिन पौष्टिक खाना मिलना चाहिये, वहीं सर्वे में पाया गया महिलाओं को लक्ष्य से आधे दिन ही पौष्टिक खाना मिल रहा है. केंद्र सरकार ने 2021 तक सभी आंगनबाड़ी केंद्रो को डिजिटल करने का लक्ष्य भी रखा है. इसके आलावा स्मार्ट फोन की मदद से पोषण योजना की जमीनी हालात को सीधे जानने का भी लक्ष्य है.

आंकड़े बताते हैं कि 26 राज्यों के 285 जिलों के 4,84,901 आंगनबाड़ी केंद्र ही डिजिटल तकनीक से जुड़े हैं. केवल 27.6 प्रतिशत केंद्रों में स्मार्ट फोन हैं. देशभर के 14 लाख आंगनबाड़ी केंद्रों में से 35 केंद्रों में ही कद, वजन और विकास नापने के सभी उपकरण हैं. करीब 6.28 लाख स्मार्ट फोन खरीदे जा रहे हैं, इसके अलावा और 4.95 लाख स्मार्ट फोन खरीदने का लक्ष्य है. वहीं पश्चिम बंगाल, पंजाब, और ओड़िसा ने अभी तक एक भी स्मार्ट फोन नहीं खरीदा है. नीति आयोग ने ये भी पाया कि जच्चा बच्चा की स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां सही तरीके से नहीं रिकॉर्ड की जा रही हैं. स्मार्ट फोन का पूरी तरह इस्तेमाल नहीं हो रहा है और रिकॉर्ड किये गए डाटा का सत्यापन भी नहीं हो रहा है. नीति आयोग के ये आंकड़े तब और अहम हो जाते हैं जब खुद केंद्र सरकार ने पोषण अभियान में 14 लाख फर्जी लाभार्थियों के होने की बात मानी है. नीति आयोग ने महिलाओँ और बच्चों के लिये योजनाओँ को लागू करने के लिये कर्मचारियों की कमी की तरफ भी इशारा किया है. प्रोजेक्ट निदेशक और महिला सुपरवाइजर जैसे पदों पर अभी भी 25 प्रतिशत पद खाली हैं. मातृ वंदना योजना में जिला और राज्य स्तर पर भी काफी पद खाली हैं.

हमें इन तथ्यों को समझने की जरूरत है और सवाल करना चाहिये कि ये योजनाएं किस तरह से बिना किसी कमी के लागू की जा सकती हैं. सबसे पहले फंड के इस्तेमाल न होने पर अंकुश लगाने की जरूरत है, इसके लिये जन जागरूकता बढाने की जरूरत है. अगर हम ये कर सके तो हम पौष्टिक खाने को उसके सही हकदार तक पहुंचाने में कामयाब होंगे. अगर हम लक्ष्य को सही समय में पाना चाहते हैं तो पोषण अभियान में काम की गति को बढ़ाना होगा. ये बात तय है कि अगर आने वाली पीढ़ी कुपोषण से ग्रस्त रही तो एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण नहीं हो सकेगा.

सरकारी योजनाओं के सही तरह से लागू न हो पाने के पीछे सबसे बड़ा कारण होता है पैसों की कमी. इसे विडंबना ही कहेंगे कि सरकारी खजाने में पर्याप्त धन होने के बावजूद आधिकारिक उदासीनता के कारण इन योजनाओं को पैसे नहीं मिलते. सरकारी तंत्र का ये पहलू पिछले दिनों सुर्खियों में तब आया, जब महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने राज्य सरकारों को केंद्र सरकार की पोषण अभियान योजना को युद्दस्तर पर लागू करने को कहा. केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी राज्य सरकारों द्वारा इस योजना को लागू न कर पाने के चलते अपनी नाराजगी भी जाहिर कर चुकी हैं. ईरानी की नाराजगी हालात के बारे में काफी कुछ कहती है. पोषण स्कीम राज्यों में केवल खाना पूर्ति के लिये लागू की गई है, और इसमें भी पश्चिम बंगाल, हरियाणा, पंजाब, केरल, ओड़िसा और गोवा जैसे राज्य काफी पीछे हैं. इस योजना के लिये केंद्र सरकार ने 3,769 करोड़ की रकम आवंटित की है. पर अभी तक मात्र 1,058 करोड़ (33 प्रतिशत) ही खर्च किया जा सका है. पश्चिम बंगाल, ओड़िसा और गोवा में तो इस योजना की शुरुआत भी नहीं हो सकी है. पंजाब और कर्नाटक में आवंटित रकम का केवल एक प्रतिशत ही खर्च हो सका है. हरियाणा और केरल में ये संख्या दस प्रतिशत से भी कम है.

केंद्र सरकार से छत्तीस का आंकड़ा रखने वाली पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस सरकार ने तो इस योजना को लागू करने के बारे में कोई कदम ही नहीं उठाया है. राज्य के वित्त मंत्री ससी पांजा का कहना है कि राज्य सरकार की खुद की पोषण योजनाएं इस योजना से कहीं ज्यादा कारगर है, इसलिये इस योजना को फिलहाल तव्वजो नहीं मिली है. बीजेपी शासित गोवा में भी अमूमन ऐसे ही हालात हैं. इस योजना से जुड़ी गोवा सरकार की अधिकारी दीपाली नायक का कहना है कि विभाग के पास कर्मचारियों की कमी के चलते योजना को लागू करने में परेशानियां आ रही हैं. नायक का कहना है कि स्टाफ की कमी के कारण योजना के लिये जमीनी स्तर पर जरूरी सामान की खरीद में खासी देरी हो रही है. वहीं और राज्यों के मुकाबले पंजाब में हालात कुछ बेहतर हैं.

कई सर्वे ये साफ कर चुके हैं कि इस रफ्तार से ये योजनाएं अपने लक्ष्य को पाने में नाकाम रहेंगी. अंतर्राष्ट्रीय मेडिकल जर्नल लैंसेट के सर्वे के मुताबिक, अगर भारत ने इस योजना से जुड़ी कमियों पर काबू नहीं किया तो 2022 तक पोषण अभियान के लक्ष्य को पाने में वो कामयाब नही होगा. सर्वे में पोषण योजना के लक्ष्यों के तौर पर बच्चों में विकास की कमी, कम वजन, जन्म के समय कम वजन, महीलाओं और बच्चों में खून की कमी का जिक्र है. इस बारे में इंडियन मेडिकल कांउसिल की भी कुछ ऐसी ही राय है. भारत में पूरे पोषण से आज भी बच्चे और महिलाएं कोसों दूर हैं, हांलाकि देशभर में बच्चों और गर्भवती महिलाओं को मदद करने वाली कई योजनाएं चल रही हैं. पोषण अभियान योजना की शुरुआत 2018 में ऐसी सभी योजनाओं में समन्वय स्थापित करने के मकसद से हुई थी. इस योजना के जरिये सभी मंत्रालयों के बीच समन्वय बैठाने की कोशिश की जा रही है. इस योजना का मुख्य मकसद, आंगनबाड़ी कार्यक्रम की मदद से 2022 तक कुपोषण से निजाद पाना है. नीति आयोग ने सभी राज्यों के लिये

विकास में कमी को दो प्रतिशत, कद में कमी को दो प्रतिशत, बच्चों, महिलाओं और युवाओं में खून की कमी को तीन प्रतिशत और जन्म के समय कम वजन को दो प्रतिशत सालाना की दर से कम करने का लक्ष्य रखा है.

इसे भी पढे़ं- कितना गंभीर है ट्रंप पर चलने वाला महाभियोग, एक विश्लेषण

नीति आयोग ने देश के 27 जिलों में जो सर्वे किया है उसके अनुसार, 78 प्रतिशत गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं ही आंगनबाड़ी में पंजीकृत हैं, और 46 प्रतिशत को ही पौष्टिक खाना मिल रहा है. प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के मुताबिक महिलाओं को महीने में 25 दिन पौष्टिक खाना मिलना चाहिये, वहीं सर्वे में पाया गया महिलाओं को लक्ष्य से आधे दिन ही पौष्टिक खाना मिल रहा है. केंद्र सरकार ने 2021 तक सभी आंगनबाड़ी केंद्रो को डिजिटल करने का लक्ष्य भी रखा है. इसके आलावा स्मार्ट फोन की मदद से पोषण योजना की जमीनी हालात को सीधे जानने का भी लक्ष्य है.

आंकड़े बताते हैं कि 26 राज्यों के 285 जिलों के 4,84,901 आंगनबाड़ी केंद्र ही डिजिटल तकनीक से जुड़े हैं. केवल 27.6 प्रतिशत केंद्रों में स्मार्ट फोन हैं. देशभर के 14 लाख आंगनबाड़ी केंद्रों में से 35 केंद्रों में ही कद, वजन और विकास नापने के सभी उपकरण हैं. करीब 6.28 लाख स्मार्ट फोन खरीदे जा रहे हैं, इसके अलावा और 4.95 लाख स्मार्ट फोन खरीदने का लक्ष्य है. वहीं पश्चिम बंगाल, पंजाब, और ओड़िसा ने अभी तक एक भी स्मार्ट फोन नहीं खरीदा है. नीति आयोग ने ये भी पाया कि जच्चा बच्चा की स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां सही तरीके से नहीं रिकॉर्ड की जा रही हैं. स्मार्ट फोन का पूरी तरह इस्तेमाल नहीं हो रहा है और रिकॉर्ड किये गए डाटा का सत्यापन भी नहीं हो रहा है. नीति आयोग के ये आंकड़े तब और अहम हो जाते हैं जब खुद केंद्र सरकार ने पोषण अभियान में 14 लाख फर्जी लाभार्थियों के होने की बात मानी है. नीति आयोग ने महिलाओँ और बच्चों के लिये योजनाओँ को लागू करने के लिये कर्मचारियों की कमी की तरफ भी इशारा किया है. प्रोजेक्ट निदेशक और महिला सुपरवाइजर जैसे पदों पर अभी भी 25 प्रतिशत पद खाली हैं. मातृ वंदना योजना में जिला और राज्य स्तर पर भी काफी पद खाली हैं.

हमें इन तथ्यों को समझने की जरूरत है और सवाल करना चाहिये कि ये योजनाएं किस तरह से बिना किसी कमी के लागू की जा सकती हैं. सबसे पहले फंड के इस्तेमाल न होने पर अंकुश लगाने की जरूरत है, इसके लिये जन जागरूकता बढाने की जरूरत है. अगर हम ये कर सके तो हम पौष्टिक खाने को उसके सही हकदार तक पहुंचाने में कामयाब होंगे. अगर हम लक्ष्य को सही समय में पाना चाहते हैं तो पोषण अभियान में काम की गति को बढ़ाना होगा. ये बात तय है कि अगर आने वाली पीढ़ी कुपोषण से ग्रस्त रही तो एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण नहीं हो सकेगा.

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पोषण स्कीमः फंड का नहीं हो रहा सही उपयोग, हरियाणा-बंगाल-केरल-पंजाब पिछड़े

सरकारी योजनाओं के सही तरह से लागू न हो पाने के पीछे सबसे बड़ा कारण होता है पैसों की कमी. इसे विडंबना ही कहेंगे कि सरकारी खजाने में पर्याप्त धन होने के बावजूद आधिकारिक उदासीनता के कारण इन योजनाओं को पैसे नहीं मिलते. सरकारी तंत्र का ये पहलू पिछले दिनों सुर्खियों में तब आया, जब महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने राज्य सरकारों को केंद्र सरकार की पोषण अभियान योजना को युद्दस्तर पर लागू करने को कहा. केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी राज्य सरकारों द्वारा इस योजना को लागू न कर पाने के चलते अपनी नाराजगी भी जाहिर कर चुकी हैं. ईरानी की नाराजगी हालात के बारे में काफी कुछ कहती है. पोषण स्कीम राज्यों में केवल खाना पूर्ति के लिये लागू की गई है, और इसमें भी पश्चिम बंगाल, हरियाणा, पंजाब, केरल, ओड़िसा और गोवा जैसे राज्य काफी पीछे हैं. इस योजना के लिये केंद्र सरकार ने 3,769 करोड़ की रकम आवंटित की है. पर अभी तक मात्र 1,058 करोड़ (33 प्रतिशत) ही खर्च किया जा सका है. पश्चिम बंगाल, ओड़िसा और गोवा में तो इस योजना की शुरुआत भी नहीं हो सकी है. पंजाब और कर्नाटक में आवंटित रकम का केवल एक प्रतिशत ही खर्च हो सका है. हरियाणा और केरल में ये संख्या दस प्रतिशत से भी कम है.



केंद्र सरकार से छत्तीस का आंकड़ा रखने वाली पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस सरकार ने तो इस योजना को लागू करने के बारे में कोई कदम ही नहीं उठाया है. राज्य के वित्त मंत्री ससी पांजा का कहना है कि राज्य सरकार की खुद की पोषण योजनाएं इस योजना से कहीं ज्यादा कारगर है, इसलिये इस योजना को फिलहाल तव्वजो नहीं मिली है. बीजेपी शासित गोवा में भी अमूमन ऐसे ही हालात हैं. इस योजना से जुड़ी गोवा सरकार की अधिकारी दीपाली नायक का कहना है कि विभाग के पास कर्मचारियों की कमी के चलते योजना को लागू करने में परेशानियां आ रही हैं. नायक का कहना है कि स्टाफ की कमी के कारण योजना के लिये जमीनी स्तर पर जरूरी सामान की खरीद में खासी देरी हो रही है. वहीं और राज्यों के मुकाबले पंजाब में हालात कुछ बेहतर हैं.



कई सर्वे ये साफ कर चुके हैं कि इस रफ्तार से ये योजनाएं अपने लक्ष्य को पाने में नाकाम रहेंगी. अंतर्राष्ट्रीय मेडिकल जर्नल लैंसेट के सर्वे के मुताबिक, अगर भारत ने इस योजना से जुड़ी कमियों पर काबू नहीं किया तो 2022 तक पोषण अभियान के लक्ष्य को पाने में वो कामयाब नही होगा. सर्वे में पोषण योजना के लक्ष्यों के तौर पर बच्चों में विकास की कमी, कम वजन, जन्म के समय कम वजन, महीलाओं और बच्चों में खून की कमी का जिक्र है. इस बारे में इंडियन मेडिकल कांउसिल की भी कुछ ऐसी ही राय है. भारत में पूरे पोषण से आज भी बच्चे और महिलाएं कोसों दूर हैं, हांलाकि देशभर में बच्चों और गर्भवती महिलाओं को मदद करने वाली कई योजनाएं चल रही हैं. पोषण अभियान योजना की शुरुआत 2018 में ऐसी सभी योजनाओं में समन्वय स्थापित करने के मकसद से हुई थी. इस योजना के जरिये सभी मंत्रालयों के बीच समन्वय बैठाने की कोशिश की जा रही है. इस योजना का मुख्य मकसद, आंगनबाड़ी कार्यक्रम की मदद से 2022 तक कुपोषण से निजाद पाना है. नीति आयोग ने सभी राज्यों के लिये

विकास में कमी को दो प्रतिशत, कद में कमी को दो प्रतिशत, बच्चों, महिलाओं और युवाओं में खून की कमी को तीन प्रतिशत और जन्म के समय कम वजन को दो प्रतिशत सालाना की दर से कम करने का लक्ष्य रखा है.

नीति आयोग ने देश के 27 जिलों में जो सर्वे किया है उसके अनुसार, 78 प्रतिशत गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं ही आंगनबाड़ी में पंजीकृत हैं, और 46 प्रतिशत को ही पौष्टिक खाना मिल रहा है. प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के मुताबिक महिलाओं को महीने में 25 दिन पौष्टिक खाना मिलना चाहिये, वहीं सर्वे में पाया गया महिलाओं को लक्ष्य से आधे दिन ही पौष्टिक खाना मिल रहा है. केंद्र सरकार ने 2021 तक सभी आंगनबाड़ी केंद्रो को डिजिटल करने का लक्ष्य भी रखा है. इसके आलावा स्मार्ट फोन की मदद से पोषण योजना की जमीनी हालात को सीधे जानने का भी लक्ष्य है.

आंकड़े बताते हैं कि 26 राज्यों के 285 जिलों के 4,84,901 आंगनबाड़ी केंद्र ही डिजिटल तकनीक से जुड़े हैं. केवल 27.6 प्रतिशत केंद्रों में स्मार्ट फोन हैं. देशभर के 14 लाख आंगनबाड़ी केंद्रों में से 35 केंद्रों में ही कद, वजन और विकास नापने के सभी उपकरण हैं. करीब 6.28 लाख स्मार्ट फोन खरीदे जा रहे हैं, इसके अलावा और 4.95 लाख स्मार्ट फोन खरीदने का लक्ष्य है. वहीं पश्चिम बंगाल, पंजाब, और ओड़िसा ने अभी तक एक भी स्मार्ट फोन नहीं खरीदा है. नीति आयोग ने ये भी पाया कि जच्चा बच्चा की स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां सही तरीके से नहीं रिकॉर्ड की जा रही हैं. स्मार्ट फोन का पूरी तरह इस्तेमाल नहीं हो रहा है और रिकॉर्ड किये गए डाटा का सत्यापन भी नहीं हो रहा है. नीति आयोग के ये आंकड़े तब और अहम हो जाते हैं जब खुद केंद्र सरकार ने पोषण अभियान में 14 लाख फर्जी लाभार्थियों के होने की बात मानी है. नीति आयोग ने महिलाओँ और बच्चों के लिये योजनाओँ को लागू करने के लिये कर्मचारियों की कमी की तरफ भी इशारा किया है. प्रोजेक्ट निदेशक और महिला सुपरवाइजर जैसे पदों पर अभी भी 25 प्रतिशत पद खाली हैं. मातृ वंदना योजना में जिला और राज्य स्तर पर भी काफी पद खाली हैं.



हमें इन तथ्यों को समझने की जरूरत है और सवाल करना चाहिये कि ये योजनाएं किस तरह से बिना किसी कमी के लागू की जा सकती हैं. सबसे पहले फंड के इस्तेमाल न होने पर अंकुश लगाने की जरूरत है, इसके लिये जन जागरूकता बढाने की जरूरत है. अगर हम ये कर सके तो हम पौष्टिक खाने को उसके सही हकदार तक पहुंचाने में कामयाब होंगे. अगर हम लक्ष्य को सही समय में पाना चाहते हैं तो पोषण अभियान में काम की गति को बढ़ाना होगा. ये बात तय है कि अगर आने वाली पीढ़ी कुपोषण से ग्रस्त रही तो एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण नहीं हो सकेगा. 


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