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अलग से लॉ टेस्ट आयोजित करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में गुहार - former nlsui vc moves to sc against its decision of conducting nlat

बेंगलुरु के नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटी (एनएलएसयूआई) के पूर्व कुलपति प्रोफेसर आर वेंकट राव ने अलग से प्रवेश परीक्षा आयोजित करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई है. पढ़ें पूरी खबर...

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Sep 8, 2020, 10:01 PM IST

नई दिल्ली : बेंगलुरु के नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटी (एनएलएसयूआई) के पूर्व कुलपति प्रोफेसर आर वेंकट राव ने सीएलएटी में देरी के कारण अलग से प्रवेश परीक्षा नेशनल लॉ एप्टीट्यूड टेस्ट प्रवेश (एनएलएटी) आयोजित करने के विश्वविद्यालय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है.

उन्होंने दावा किया है कि यह निर्णय निराधार है और विश्वविद्यालय के पास ऐसा करने का अधिकार नहीं है. यह एनएलएसयूआई को उत्कृष्टता का केंद्र बनाने की बजाए बहिष्कार का केंद्र बना देगा.

28 सितम्बर को होने वाली सीएलएटी परीक्षा में देरी के कारण विश्वविद्यालय एनएलएटी के माध्यम से अपनी वैकल्पिक प्रवेश परीक्षा 12 सितम्बर को आयोजित कर रहा है.

प्रोफेसर का तर्क है कि प्रक्रिया के लिए आवेदन केवल 3 सितंबर से आमंत्रित किए गए थे ताकि छात्रों को आवेदन करने के लिए बहुत कम समय मिले. इसके अलावा परीक्षा को ऑनलाइन आयोजित किया जाना है, जो छात्रों को अपनी तकनीकी सुविधाओं की व्यवस्था करने के लिए और अधिक दबाव देगा.

कुछ छात्रों ने उच्च न्यायालय में एक याचिका भी दायर की है.

नई दिल्ली : बेंगलुरु के नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटी (एनएलएसयूआई) के पूर्व कुलपति प्रोफेसर आर वेंकट राव ने सीएलएटी में देरी के कारण अलग से प्रवेश परीक्षा नेशनल लॉ एप्टीट्यूड टेस्ट प्रवेश (एनएलएटी) आयोजित करने के विश्वविद्यालय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है.

उन्होंने दावा किया है कि यह निर्णय निराधार है और विश्वविद्यालय के पास ऐसा करने का अधिकार नहीं है. यह एनएलएसयूआई को उत्कृष्टता का केंद्र बनाने की बजाए बहिष्कार का केंद्र बना देगा.

28 सितम्बर को होने वाली सीएलएटी परीक्षा में देरी के कारण विश्वविद्यालय एनएलएटी के माध्यम से अपनी वैकल्पिक प्रवेश परीक्षा 12 सितम्बर को आयोजित कर रहा है.

प्रोफेसर का तर्क है कि प्रक्रिया के लिए आवेदन केवल 3 सितंबर से आमंत्रित किए गए थे ताकि छात्रों को आवेदन करने के लिए बहुत कम समय मिले. इसके अलावा परीक्षा को ऑनलाइन आयोजित किया जाना है, जो छात्रों को अपनी तकनीकी सुविधाओं की व्यवस्था करने के लिए और अधिक दबाव देगा.

कुछ छात्रों ने उच्च न्यायालय में एक याचिका भी दायर की है.

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