जयपुर : लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच हिंसक झड़प में भारत के 20 सैनिक शहीद हो गए. साथ ही कई सैनिक घायल भी हुए हैं. इस घटना को लेकर पूरे देश में आक्रोश का माहौल है. लेकिन यह पहली बार नहीं है जब चीन ने ऐसी नापाक हिमाकत की है. एलएसी पर जमीनी विवाद को लेकर चीन इससे पहले भी तनाव की स्थितियां पैदा कर चुका है. लेकिन एक समय था, जब देश में 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' के नारे लगाए जाते थे.
जयपुर के फिल्म निर्माता और कलाकार जगन शर्मा ने 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित फिल्म 'भूल ना जाना' बनाई थी. इस फिल्म में चीन द्वारा भारत पर किए गए अत्याचारों को दिखाया गया था. लेकिन उस दौर में इस फिल्म पर बैन लगा दिया गया. इसकी वजह थी, भारत और चीन को लेकर लगने वाले भाई-भाई के नारे.
1972 में सेंसर बोर्ड ने दे दी हरी झंडी
खास बात यह भी है इस फिल्म को साल 1972 में सेंसर बोर्ड ने हरी झंडी भी दे दी थी. इसे बनाने में करीब 10 साल लग गए. लेकिन जब फिल्म बनकर तैयार हुई. तब तक भारत और चीन के संबंध सुधर चुके थे और तब 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' के नारे लगने लगे थे. ऐसे में 1972 में सेंसर बोर्ड से पास की गई इस फिल्म पर विदेश मंत्रालय ने रोक लगा दी थी.
विदेश मंत्रालय ने लगाई रोक
विदेश मंत्रायय का तर्क था कि अगर फिल्म रिलीज हुई तो दोनों देशों के रिश्तों में फिर से खटास आ जाएगी. वरिष्ठ पत्रकार, फिल्म समीक्षक और फिल्म निर्माता जगन शर्मा के पारिवारिक मित्र ईशमधु तलवार ने ईटीवी भारत की खास बातचीत के दौरान यह बातें बताई.
ईशमधु तलवार बताते हैं कि फिल्म 'भूल ना जाना' में तिब्बत में रह रहे दो भारतीय परिवारों की कहानी को दर्शाया गया था. जो चीनी फौजियों के अत्याचार से पीड़ित थे. तलवार के अनुसार जगन शर्मा ना केवल फिल्म के निर्माता थे, बल्कि उन्होंने फिल्म में बतौर मुख्य नायक का किरदार भी निभाया था.
फिल्म को बनाने में लगे थे 10 साल
इस फिल्म में एक दूसरे परिवार की भी कहानी थी. जो एक डॉक्टर का परिवार था. फिल्म में डॉक्टर के किरदार में पिंचू कपूर थे. जिन्होंने जगन शर्मा के बेटे प्रदीप शर्मा उर्फ टूटू के बाल किरदार को भी जीवंत किया था. क्योंकि इस फिल्म को बनाने में 10 साल लग गए थे. इसलिए 10 साल में बाद बालक पिंचू कपूर को ही डॉक्टर का भी रोल दे दिया गया.
बता दें कि प्रदीप शर्मा वही कलाकार हैं, जिन्होंने अभिनेत्री पद्मिनी कोल्हापुरी से शादी की है. प्रदीप शर्मा आज भी तलवार से संपर्क में हैं. ईशमधु तलवार के अनुसार उनकी शर्मा से बात होती रहती है. आज के हालात सालों पहले फिल्म में इस समाज के जरिए बता दिए थे.
ईशमधु तलवार बताते हैं कि उनकी हाल ही में जगन शर्मा के पुत्र प्रदीप शर्मा से फोन पर बात भी हुई, क्योंकि प्रदीप शर्मा का परिवार अब मुंबई में रहता है. लिहाजा उनसे जब इस फिल्म के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि अब तक इस फिल्म का कुछ भी नहीं हो सका.
यह है फेमस डायलॉग
तलवार बताते हैं कि तिब्बत में चीनी फौज के अत्याचारों से त्रस्त अभिनेता जगन शर्मा का एक संवाद था. जिसे इस फिल्म में दर्शाया गया था. इसमें वह कहते हैं कि 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' का नारा केवल एक छलावा है और यह मुल्क हमारे रहने लायक नहीं रह गया है.
फिल्म रोकी... लेकिन गीत में पापुलर
यह फिल्म जो रिलीज तो नहीं हो पाई, लेकिन इसके संगीत और गीत ने जबरदस्त धूम मचाई थी. 70 के दशक में इसके गाने काफी मशहूर हुए थे. दान सिंह के संगीत निर्देशन में गुलजार के लिखे और मुकेश का गया हुआ गीत 'पुकारो मुझे नाम लेकर पुकारो' गीत काफी हिट रहा.
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वहीं 'मेरे हमसफर मेरे हमनवां' और 'गम ए दिल किससे कहूं' जैसे गीतों ने भी धमाल मचा दिया था. इस फिल्म में कई रोमांटिक गाने भी लिखे गए थे. जिनमें 'गोरा गोरा मुखड़ा ये तूने कहां से पाया है' गीत भी काफी मशहूर हुआ. जिसे जोधपुर की रहने वाले अभिनेत्री कमला कच्छावा पर फिल्माया गया था.
जयपुर के थे संगीतगार और गीतकार
वरिष्ठ पत्रकार और समीक्षक ईशमधु तलवार बताते हैं कि संगीतकार दान सिंह और गीतकार हरिराम आचार्य दोनों ही जयपुर के रहने वाले हैं. यह फिल्म तो रिलीज नहीं हो पाई, लेकिन इसका संगीत और गीत काफी मशहूर हुआ. अगर फिल्म रिलीज हो जाती तो जयपुर के इन कलाकारों का नाम काफी ऊंचाइयों तक पहुंच जाता.