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'AFSPA लगाकर सरकार कर रही पूर्वोत्तर के लोगों के साथ भेदभाव'

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Published : Apr 24, 2019, 5:12 PM IST

Updated : Apr 24, 2019, 6:37 PM IST

AFSPA से उत्तर पूर्वी राज्यों में खासी नाराजगी है. वे हमेशा से इसे हटाने की मांग करते आए हैं. आइये जानते हैं इस पर विशेषज्ञ की राय क्या है.

गृह मंत्री राजनाथ सिंह (फाइल फोटो)

नई दिल्ली: केंद्र की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के खिलाफ विशेषज्ञों ने पूर्वोत्तर राज्यों से विवादास्पद सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) को रद्द करने का सुझाव दिया है. RRAG निदेशक सुहास चकमा ने इस पर ईटीवी से बातचीत की और AFSPA को हटाने की बात कही.

बुधवार को राइट्स एंड रिक्स एनालिसिस ग्रुप (RRAG) के निदेशक सुहास चकमा ने कहा, 'पूर्वोत्तर में कोई उग्रवाद नहीं है. अगर गवर्नमेंट त्रिपुरा से AFSPA को वापस ले सकती है, तो वे इसे अन्य पूर्वोत्तर राज्यों से क्यों नहीं हटा सकते.'

RRAG एक ह्यूमन राइट्स वॉचडोग है.

उत्तरपूर्वी राज्यों के संगठन हमेशा से ही AFSPA को निरस्त करने की मांग उठाते रहते हैं. AFSPA कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए सशस्त्र बलों को बिना वारंट के किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने और किसी भी घर या वाहन की तलाशी लेने की विशेष शक्ति देता है.

AFSPA कानून केवल उन्हीं क्षेत्रों में लगाया जाता है, जो कि अशांत क्षेत्र घोषित किये गए हों. इस कानून के लागू होने के बाद ही वहां सेना या सशस्त्र बल भेजे जाते हैं.

ईटीवी भारत से बातचीत करते सुहास चकमा.

सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (AFSPA) की जरूरत उपद्रवग्रस्त पूर्वोत्तर में सेना को कार्यवाही में मदद के लिए 11 सितंबर 1958 को पारित किया गया था. जब 1989 के आस पास जम्मू कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने लगा तो 1990 में इसे वहां भी लागू कर दिया गया था. AFSPA अभी भी देश के इन राज्यों में लागू है. ये राज्य हैं; नागालैंड, असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्से.

AFSPA को मेघालय और त्रिपुरा से हटा लिया गया है.

बता दें, आयरन लेडी के रूप में जानी जाने वाली इरोम चानू शर्मिला ने भी AFSPA को रद्द करने की मांग करते हुए 16 साल का उपवास किया था.

सुहास चकमा ने कहा, 'यदि केंद्र पूर्वोत्तर राज्यों के साथ पूरी तरह से जुड़ना चाहता है, तो उन्हें NE से इस अधिनियम को रद्द करने के मुद्दे पर सोचना चाहिए.'

केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने हालांकि कई मौकों पर कहा है कि पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवाद में भारी कमी आई है.

RRAG निदेशक ने कहा, 'AFSPA को निरस्त किया जाना चाहिए. कानून के शासन द्वारा शासित एक लोकतांत्रिक देश में इसका कोई स्थान नहीं है. AFSPA को जीवित रखकर सरकार अभी भी पूर्वोत्तर के लोगों को अलग-थलग कर रही है.'

नई दिल्ली: केंद्र की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के खिलाफ विशेषज्ञों ने पूर्वोत्तर राज्यों से विवादास्पद सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) को रद्द करने का सुझाव दिया है. RRAG निदेशक सुहास चकमा ने इस पर ईटीवी से बातचीत की और AFSPA को हटाने की बात कही.

बुधवार को राइट्स एंड रिक्स एनालिसिस ग्रुप (RRAG) के निदेशक सुहास चकमा ने कहा, 'पूर्वोत्तर में कोई उग्रवाद नहीं है. अगर गवर्नमेंट त्रिपुरा से AFSPA को वापस ले सकती है, तो वे इसे अन्य पूर्वोत्तर राज्यों से क्यों नहीं हटा सकते.'

RRAG एक ह्यूमन राइट्स वॉचडोग है.

उत्तरपूर्वी राज्यों के संगठन हमेशा से ही AFSPA को निरस्त करने की मांग उठाते रहते हैं. AFSPA कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए सशस्त्र बलों को बिना वारंट के किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने और किसी भी घर या वाहन की तलाशी लेने की विशेष शक्ति देता है.

AFSPA कानून केवल उन्हीं क्षेत्रों में लगाया जाता है, जो कि अशांत क्षेत्र घोषित किये गए हों. इस कानून के लागू होने के बाद ही वहां सेना या सशस्त्र बल भेजे जाते हैं.

ईटीवी भारत से बातचीत करते सुहास चकमा.

सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (AFSPA) की जरूरत उपद्रवग्रस्त पूर्वोत्तर में सेना को कार्यवाही में मदद के लिए 11 सितंबर 1958 को पारित किया गया था. जब 1989 के आस पास जम्मू कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने लगा तो 1990 में इसे वहां भी लागू कर दिया गया था. AFSPA अभी भी देश के इन राज्यों में लागू है. ये राज्य हैं; नागालैंड, असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्से.

AFSPA को मेघालय और त्रिपुरा से हटा लिया गया है.

बता दें, आयरन लेडी के रूप में जानी जाने वाली इरोम चानू शर्मिला ने भी AFSPA को रद्द करने की मांग करते हुए 16 साल का उपवास किया था.

सुहास चकमा ने कहा, 'यदि केंद्र पूर्वोत्तर राज्यों के साथ पूरी तरह से जुड़ना चाहता है, तो उन्हें NE से इस अधिनियम को रद्द करने के मुद्दे पर सोचना चाहिए.'

केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने हालांकि कई मौकों पर कहा है कि पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवाद में भारी कमी आई है.

RRAG निदेशक ने कहा, 'AFSPA को निरस्त किया जाना चाहिए. कानून के शासन द्वारा शासित एक लोकतांत्रिक देश में इसका कोई स्थान नहीं है. AFSPA को जीवित रखकर सरकार अभी भी पूर्वोत्तर के लोगों को अलग-थलग कर रही है.'

Intro:New Delhi: Against the backdrop of Centre's Act East policy, experts has suggested to repeal the controversial Armed Forces Special Powers Act (AFSPA) from the northeastern states.


Body:"There is no insurgency in northeast. If Governmnet can withdraw AFSPA from Tripura, why can't they repeal it from other northeastern states," said Suhas Chakma, Director of Rights and Risks Analysis Group (RRAG) on Wednesday.

The RRAG is a human rights watchdog and work in conflict areas.

Organisations in northeastern states keep raising their demands for repealing AFSPA from this landlocked region.

The AFSPA gives special power to the armed forces to arrest and grill any person without a warrant in order to maintain law and order.

Under AFSPA the army has the authority to prohibit a gathering of five or more people in an area, can use force or even fire after giving due warning.

The Act came into force on September 11, 1958.

The AFSPA is on force in Nagaland, Assam, Manipur, and in some parts of Arunachal Pradesh.

AFSPA has been withdrawn from Meghalaya and Tripura.

In fact, Irom Chanu Sharmila, known as Iron Lady also did a 16 years of fasting demanding repeal of AFSPA.

"If Centre wants to fully connect with the northeastern states, they should think over the issue of repealing this Act from NE," said Chakma.

The Union Home Minister Rajnath Singh, however, on several occasions has said that insurgency in the northeastern states had come down drastically.


Conclusion:"AFSPA should be repealled. It has no place in a democratic country governed by rule of law...by keeping AFSPA alive government is still alienating the people of Northeast," said the RRAG director.

end.
Last Updated : Apr 24, 2019, 6:37 PM IST
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