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नेपाल की सीमा पर नवनिर्मित सड़क से चीन को हो सकता है फायदा : विशेषज्ञ

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Published : Oct 8, 2020, 12:24 PM IST

भारत-नेपाल सीमा विवाद के बाद नेपाल ने चीन की सीमा के पास 87 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण किया है. यह सड़क चंगरू और टिंकर को जोड़ती है. यह सड़क मांग पर नेपालियों को भारतीय क्षेत्र का उपयोग रोकने के लिए बनाई गई है. जिससे विशेषज्ञों ने संभावना जताई है कि चंगरू, टिंकर को जोड़ने वाली नेपाल की नवनिर्मित सड़क से चीन को ज्यााद लाभ हो सकता है. इसकी मदद से चीन नेपाल के रास्ते भारत की सीमा के करीब आ जाएगा.

expert on  Changru Tinker road
भारत नेपाल और चीन

नई दिल्ली : कालापानी क्षेत्र को लेकर भारत और नेपाल के बीच चल रहे सीमा विवाद के बीच नेपाल ने चीन की सीमा के पास 87 किलोमीटर लंबी सड़क बनाई है जो चंगरू और टिंकर को जोड़ती है. माना जाता है कि यह टिंकर के उस पार स्थित चीन सीमा तक बेहतर पहुंच सुनिश्चित करेगी. विशेषज्ञों का कहना है कि चीन नेपाल के इस नई सड़क बनाने से लाभान्वित होगा क्योंकि चीन भारतीय सीमा के करीब आ जाएगा.

ईटीवी से बात करते हुए भारत के पूर्व राजदूत जेके त्रिपाठी ने कहा कि यह माना जा सकता है कि सड़क से नेपाल में चीनियों की आवाजाही सुगम हो जाएगी, लेकिन इसके विपरीत नहीं. इस वजह से कि नेपाल से चीन जाने वाले नेपालियों से कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन चीनियों का नेपाल में आने का मतलब भूटान और सिक्किम के लिए खतरा बन सकता है. उन्होंने आगे कहा कि चीनियों की पैंतरेबाजी का भारत पर प्रभाव पड़ेगा, लेकिन हम नहीं जानते कि चीन की सड़क परियोजना में क्या गूढ़ रहस्य है वास्तव में, नेपाल की तुलना में यह मार्ग चीन को अधिक लाभान्वित करने वाला है, क्योंकि सड़क मार्ग से चीन नेपाल के भीतर गहराई से संपर्क कर सकता है और भारतीय सेनाओं के साथ-साथ भूटान की सेना के लिए भी खतरा पैदा कर सकता है. उन्होंने दोहराया कि पैदल यात्रियों के लिए 550 मीटर सड़क रणनीतिक रूप से नेपाल की तुलना में चीन के लिए अधिक महत्वपूर्ण होगी क्योंकि इस तरह एक बार चीन यदि नेपाल में घुस आया तो चीन भारतीय सीमा के नजदीक आ सकता है और सिक्किम सीमा या भूटानी सीमा या उत्तराखंड सीमा के लिए खतरा पैदा कर सकता है. इससे भारत के लिए मुश्किल होगी. उन्होंने कहा कि रणनीति के मुताबिक चीन ने सड़क बनाने के लिए नेपाल पर दबाव डाला होगा.

नेपाल को लेकर 1959 से अन्वेषण करने वाले भारतीय सेना के जनरल अशोक के. मेहता ने कहा कि नेपाल एक संप्रभु स्वतंत्र देश है. उसने सीमा के प्रत्येक तरफ और कालापानी के करीब दुर्गम क्षेत्रों में सड़क बनाई है. पहले नेपालियों को भारत की सीमा में आना पड़ता था उसके बाद वह अपने गांवों की ओर जा पाते थे. अब नेपाल सेना ने जो सड़क बनाई है उससे उनकी यात्रा कम हो जाएगी.

नेपाल काफी समय से इस सड़क को बना रहा था, यह सड़क रातों रात नहीं बनी है. यह नेपाली लोगों की मांग पर और नेपालियों को भारतीय क्षेत्र का उपयोग रोकने के लिए बनाई गई है. अतिशयोक्ति की कोई जरूरत नहीं है कि चीन नेपाल के साथ क्या करना चाहता है ? मुझे नहीं लगता कि पहले से मौजूद सीमा विवाद का रोड को लेकर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.

इससे पहले छंगरू और टिंकर के 200 नेपाली परिवार भारतीय सीमा क्षेत्र धारचूला से होकर जाते थे. चीन की सीमा पर स्थित आखिरी गांव छंगरू और टिंकर को जोड़ने वाली सड़क की लागत 1.80 करोड़ रुपए है. गौरतलब है कि महाकाली नदी में बहुत अधिक पानी होने की वजह से यह मार्ग 40 साल पहले बंद हो गया था. इसके परिणामस्वरूप छंगरू और टिंकर क्षेत्र के लोगों को उनके गांवों से अन्य स्थानों पर जाने के लिए भारत पर निर्भर रहना पड़ता था.

पढ़ें - उत्तराखंड : नेपाल ने चीन सीमा तक किया तैयार पैदल मार्ग

इस सड़क को जल्दी यह ध्यान में रखकर बनाया गया है कि नेपाली नागरिकों की भारतीय सड़कों पर निर्भरता कम करनी है. दोनों देशों के बीच सीमा विवाद के बावजूद चियालेख सड़क के उद्घाटन के बाद भारत ने लॉकडाउन के दौरान छंगुरू और टिंकर के ग्रामीणों को उदारतापूर्वक भारत से होकर जाने की अनुमति दी. टिंकर और छंगरू गांवों में रहने वाले लोग नवंबर से अप्रैल तक निचली घाटियों में चले जाते हैं और मई से अक्टूबर तक ऊपरी इलाकों में चले आते हैं. छंगरू में रहने वाले 90 परिवार और टिंकर के 60 परिवार इस रास्ते पर निर्भर हैं. नेपाल सरकार की ओर से मई में लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा स्थित भारतीय क्षेत्रों को शामिल करते हुए नेपाल का नया नक्शा जारी करने के बाद सीमा मुद्दे से जुड़ा तनाव दोनों देशों के बीच सामने आया था.

नई दिल्ली : कालापानी क्षेत्र को लेकर भारत और नेपाल के बीच चल रहे सीमा विवाद के बीच नेपाल ने चीन की सीमा के पास 87 किलोमीटर लंबी सड़क बनाई है जो चंगरू और टिंकर को जोड़ती है. माना जाता है कि यह टिंकर के उस पार स्थित चीन सीमा तक बेहतर पहुंच सुनिश्चित करेगी. विशेषज्ञों का कहना है कि चीन नेपाल के इस नई सड़क बनाने से लाभान्वित होगा क्योंकि चीन भारतीय सीमा के करीब आ जाएगा.

ईटीवी से बात करते हुए भारत के पूर्व राजदूत जेके त्रिपाठी ने कहा कि यह माना जा सकता है कि सड़क से नेपाल में चीनियों की आवाजाही सुगम हो जाएगी, लेकिन इसके विपरीत नहीं. इस वजह से कि नेपाल से चीन जाने वाले नेपालियों से कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन चीनियों का नेपाल में आने का मतलब भूटान और सिक्किम के लिए खतरा बन सकता है. उन्होंने आगे कहा कि चीनियों की पैंतरेबाजी का भारत पर प्रभाव पड़ेगा, लेकिन हम नहीं जानते कि चीन की सड़क परियोजना में क्या गूढ़ रहस्य है वास्तव में, नेपाल की तुलना में यह मार्ग चीन को अधिक लाभान्वित करने वाला है, क्योंकि सड़क मार्ग से चीन नेपाल के भीतर गहराई से संपर्क कर सकता है और भारतीय सेनाओं के साथ-साथ भूटान की सेना के लिए भी खतरा पैदा कर सकता है. उन्होंने दोहराया कि पैदल यात्रियों के लिए 550 मीटर सड़क रणनीतिक रूप से नेपाल की तुलना में चीन के लिए अधिक महत्वपूर्ण होगी क्योंकि इस तरह एक बार चीन यदि नेपाल में घुस आया तो चीन भारतीय सीमा के नजदीक आ सकता है और सिक्किम सीमा या भूटानी सीमा या उत्तराखंड सीमा के लिए खतरा पैदा कर सकता है. इससे भारत के लिए मुश्किल होगी. उन्होंने कहा कि रणनीति के मुताबिक चीन ने सड़क बनाने के लिए नेपाल पर दबाव डाला होगा.

नेपाल को लेकर 1959 से अन्वेषण करने वाले भारतीय सेना के जनरल अशोक के. मेहता ने कहा कि नेपाल एक संप्रभु स्वतंत्र देश है. उसने सीमा के प्रत्येक तरफ और कालापानी के करीब दुर्गम क्षेत्रों में सड़क बनाई है. पहले नेपालियों को भारत की सीमा में आना पड़ता था उसके बाद वह अपने गांवों की ओर जा पाते थे. अब नेपाल सेना ने जो सड़क बनाई है उससे उनकी यात्रा कम हो जाएगी.

नेपाल काफी समय से इस सड़क को बना रहा था, यह सड़क रातों रात नहीं बनी है. यह नेपाली लोगों की मांग पर और नेपालियों को भारतीय क्षेत्र का उपयोग रोकने के लिए बनाई गई है. अतिशयोक्ति की कोई जरूरत नहीं है कि चीन नेपाल के साथ क्या करना चाहता है ? मुझे नहीं लगता कि पहले से मौजूद सीमा विवाद का रोड को लेकर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.

इससे पहले छंगरू और टिंकर के 200 नेपाली परिवार भारतीय सीमा क्षेत्र धारचूला से होकर जाते थे. चीन की सीमा पर स्थित आखिरी गांव छंगरू और टिंकर को जोड़ने वाली सड़क की लागत 1.80 करोड़ रुपए है. गौरतलब है कि महाकाली नदी में बहुत अधिक पानी होने की वजह से यह मार्ग 40 साल पहले बंद हो गया था. इसके परिणामस्वरूप छंगरू और टिंकर क्षेत्र के लोगों को उनके गांवों से अन्य स्थानों पर जाने के लिए भारत पर निर्भर रहना पड़ता था.

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इस सड़क को जल्दी यह ध्यान में रखकर बनाया गया है कि नेपाली नागरिकों की भारतीय सड़कों पर निर्भरता कम करनी है. दोनों देशों के बीच सीमा विवाद के बावजूद चियालेख सड़क के उद्घाटन के बाद भारत ने लॉकडाउन के दौरान छंगुरू और टिंकर के ग्रामीणों को उदारतापूर्वक भारत से होकर जाने की अनुमति दी. टिंकर और छंगरू गांवों में रहने वाले लोग नवंबर से अप्रैल तक निचली घाटियों में चले जाते हैं और मई से अक्टूबर तक ऊपरी इलाकों में चले आते हैं. छंगरू में रहने वाले 90 परिवार और टिंकर के 60 परिवार इस रास्ते पर निर्भर हैं. नेपाल सरकार की ओर से मई में लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा स्थित भारतीय क्षेत्रों को शामिल करते हुए नेपाल का नया नक्शा जारी करने के बाद सीमा मुद्दे से जुड़ा तनाव दोनों देशों के बीच सामने आया था.

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