ETV Bharat / bharat

ट्रंप दौरा : व्यापार समझौते पर बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं की जा सकती है - भारत अमेरिका रिश्ता

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने पहले भारतीय दौरे पर कुछ दिनों में आने वाले है, और दोनों ही पक्ष कुछ बड़े निर्णय लेने की तरफ काम रहे हैं. इसके साथ महीनों से लटके व्यापार समझौते को भी अमली जामा पहनाने की कोशिशें जारी हैं. इस पर कार्नेगी इंडिया के निदेशक, रुद्र चौधरी से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की. जानें क्या कहते हैं चौधरी...

etv bharat
ट्रंप का भारत दौरा
author img

By

Published : Feb 17, 2020, 8:02 AM IST

Updated : Mar 1, 2020, 2:18 PM IST

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने पहले भारतीय दौरे पर कुछ दिनों में आने वाले है, और दोनों ही पक्ष कुछ बड़े निर्णय लेने की तरफ काम रहे हैं. इसके साथ महीनों से लटके व्यापार समझौते को भी अमली जामा पहनाने की कोशिशें जारी हैं. कार्नेगी इंडिया के निदेशक, रुद्र चौधरी का मानना है कि व्यापार समझौते को दोनों देशों के बीच के संबंधों के लिये अति महत्वपूर्ण नहीं मानना चाहिए.

चौधरी का कहना है कि व्यापार समझौता अभी भी दूर की कौड़ी लगता है और मोदी को व्यापार प्रतिनिधि लाइथिजर से बातचीत और ट्रंप को मनाने के लिये काफी कुछ करना पड़ेगा. वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा ने रुद्र चौधरी से दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों में बदलावों, कश्मीर, सीएए-एनआरसी के साथ साथ चीन के मद्देनजर इंडो-पेसिफिक नीति पर चर्चा की. पढ़ें पूरी खबर...

सवाल - ट्रंप की यात्रा से सबसे अहम बात आपके मुताबिक क्या हो सकती है ? इस यात्रा से क्या उम्मीदें हैं ?

किसी भी अमरीकी राष्ट्रपति का भारत दौरा एक बड़ा मौका होता है. राष्ट्रपति ट्रंप का भारत आकर दिल्ली और अहमदाबाद, जहां वो एक बड़े सार्वजनिक कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे, यहां पर दो दिन बिताना अपने आप में अहम है. कोई भी रिश्ता हो, और खासतौर पर अमरीका के साथ, उसे समय-समय पर मजबूत करते रहने की जरूरत होती है. अमरीका के लिये और खासतौर पर ट्रंप के लिए खुद यहां आकर भारत पर ध्यान देने का यह एक अच्छा मौका है.

सवाल - ट्रंप कुछ समय में चुनावों का सामना करने वाले हैं. क्या आप ट्रंप को अपने कार्यकाल के अंतिम चरण में और ज्यादा मजबूत देख रहे हैं. वहीं कई अन्य राष्ट्रपति अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में औपचारिक ही रह जाते हैं ?

रुद्र चौधरी से खास बातचीत

ट्रंप कोई आम अमरीकी राष्ट्रपति नहीं हैं. क्या वो अपने सबसे अच्छे फार्म मैं हैं ? यह निर्भर करेगा कि वो किस तरह चुनावी लड़ाई लड़ते हैं. अपने महाभियोग की सुनवाई के तुरंत बाद ट्रंप भारत आ रहे हैं. भारत में इस महाभियोग को लेकर मीडिया में ज्यादा कवरेज नहीं थी. यह मान लिया गया था कि सेनेट ट्रंप को क्लीन पास दे देगी और उनके लिये सब ठीक होगा. लेकिन खास बात यह है कि, ट्रंप एक ऐसे राष्ट्रपति बन गए हैं, जिन्हें महाभियोग का सामना करना पड़ा, और यह अंतर्राष्ट्रीय इतिहास में एक बड़ी बात है. महाभियोग के तुरंत बाद विदेश दौरे के लिये भारत को चुनना अपने आप में दिलचस्प है. यह इस बात को भी दर्शाता है कि ट्रंप अपने अंदाज में भारत और प्रधानमंत्री मोदी के बारे में सोचते हैं.

सवाल -लेकिन उन्होंने इससे पहले पीएम मोदी की 'नकल' करने की कोशिश की. इस तरह के आवभाव या बयानों ने नई दिल्ली को असहज किया है. क्या भारत को इसे ट्रंप के व्यक्तित्व का हिस्सा मानकर नजरअंदाज कर देना चाहिये ?

व्यापार का मुद्दा कोई हल्का मुद्दा नहीं है. हमारे रिश्तों के सामरिक दायरे में इसे बहुत ज्यादा महत्व देने से हमें बचने की जरूरत है. व्यापार के मसले पर दो बातें हैं. जब ट्रंप राष्ट्रपति बने, तो इससे न केवल अमरीका में लोग हैरान थे, बल्कि बाकी दुनिया के साथ-साथ भारत भी हैरान था. ट्रंप ने चुनावों में वादा किया था कि वो उन देशों से व्यापारिक रिश्तों पर दोबारा विचार करेंगे, जो उनके हिसाब से बेवजह फायदा ले रहे हैं, और कार्यभार संभालते ही उन्होंने ऐसा किया, जिसका असर भारत पर भी दिखा. फिर चाहे वो अल्युमीनियम, इस्पात या जीएसपी हो, सभी ने किसी न किसी तरह से भारत पर असर डाला. व्यापार के मुद्दे पर यह तनाव है. हमें सचेत रहना होगा, कि कहीं हम व्यापार को इस बड़े रिश्ते के लिए बहुत ज्यादा महत्व न दें. एक राष्ट्रपति भारत आ रहे हैं. सच्चाई यह है कि, जिस व्यापार समझौते पर पहुंचने के लिये दोनों पक्ष पिछले 18 महीनों से काम कर रहे हैं, वो शायद न भी हो. इस बात के लिए ट्रंप से ज्यादा जिम्मेदार अमरीका के व्यापार प्रतिनिधि, रोबर्ट लाइथिजर हैं, जो इन मामलों पर एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी साबित हुए हैं.

सवाल - व्यापार के मामले पर वॉशिंगटन की तरफ़ से दबाव दिया जा रहा है. दबाव का सबसे बड़ा तर्क है कि भारत को अपने व्यापार में कमी को खत्म करने की जरूरत है, भारत ने अमरीका से तेल और गैस की खरीद से लेकर रक्षा उपकरणों की खरीदकर इसे कम करने के प्रयास किए हैं. इसके साथ ही ईरान से तेल की खरीद को भी दोबारा पुनर्गठित किया है. आज के रिश्तों में व्यापार कितना बड़ा रोड़ा है ? उद्योग जगत से इन समझौते को लेकर क्या चिंतायें हैं ?

व्यापार समझौते का ज्यादा लेना-देना लाइथजर से है, जिनकी पिछले 30 सालों से इन मामलों पर अपनी राय है. 80-90 के दशकों में सेमीकंडक्टर क्षेत्र में यह प्रतिबंध या कर की थी. लोहा, अल्युमिनियम, कृषि और अन्य क्षेत्रों में जहां अमरीका खुद को नुकसान में देखता है, उसके लिये आज उन सभी जगहों पर प्रतिबंध या कर का सिद्धांत काम करता है. मेरी राय में भारत इस मसले पर एक बड़ा नजरिया रख रहा है. मिसाल के तौर पर अगर आप रिश्तों को व्यापार और सामरिक, या व्यापार और रक्षा में बांटे तो आज के समय में रक्षा क्षेत्र ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है. समस्या यह कि भारत अमरीका रिश्तों का जिक्र होते ही हम रक्षा क्षेत्र में बड़े सौदों और परमाणु करारों की बात करने लगते हैं. भारत अमरीका परमाणु संधि दोबारा नहीं होने जा रही है. इसलिए ऐसे दौरों से पैदा होने वाली उम्मीदों को भी हमें काबू करने की जरूरत है. यह दौरा, व्यापक सामरिक रिश्तों में ठहराव, भरोसा और मजबूती लाने के लिये है. इस बात की संभावनायें प्रबल हैं कि कोई व्यापारिक समझौता नहीं हो, लेकिन इस से इस दौरे कि अहमियत कम नहीं होती है. रक्षा क्षेत्र में आप देखेंगे कि अब बात, नई तकनीक के विकास और भारत-अमरीका के बीच अनुसंधान केंद्र स्थापित करने के बारे में होगी.

सवाल -एलईएमओए जैसे मसलों को लागू करने पर हम कहां खड़े हैं ?

यह एक धीमी प्रक्रिया है. रक्षा क्षेत्र में समन्वय स्थापित करना सबसे जरूरी होता है. 2005 में तब की सरकार ने सामरिक रिश्तों को मज़बूत करने के लिये अगले कदम के तौर पर सबसे जरूरी काम किये थे. यह कदम थे, कानूनों, सिद्धांतों और मानकों में समन्वय स्थापित करना, जिससे भारत और अमरीका अपने बीच के सामरिक रिश्तों को और सुदृढ़ कर सकें. एलईएमओए की बात करें तो अभी और कई सवाल बाकी हैं. वहीं दूसरी तरफ आपने इस मसले पर डीटीटीआई पर बड़े पैमाने पर काम होते देखा है. दोनों पक्ष काम करने के स्टैंडर्ड तरीकों पर साझा रजामंदी हासिल कर चुके हैं. इसलिए रक्षा एक धीमी प्रक्रिया है लेकिन हमें अंधेरी सुरंग के अंत में रोशनी नजर आ रही है.

सवाल -भारत द्वारा रूस से एस-400 की बड़ी खरीद पर क्या सीएएटीएसए की छाया अभी भी है ? क्या यह बातचीत का मुद्दा होगा?

चाहे वो रूस हो, तेल हो या ईरान, यह ऐसे मसले हैं जिन पर भारत सरकार को हमेशा बातचीत करते रहना होगा. मुझे नहीं लगता कि भारतीय पक्ष में इसे कोई भी इसे हल्के में लेता है. हमने अमरीका से रिश्ते निभाने में परिपक्वता दिखाई है. एक देश के तौर पर हम सीएएटीएसए को बाई पास करने में कामयाब रहे हैं, ईरान पर लगे तेल प्रतिबंधों से हमें होने वाले नुकसान को कम से कम रखने में और ईरान, रूस और अमरीका से अपने रिश्तों को कायम रखने में हम सफल रहे हैं. यह केवल मौजूदा समय में मसलों से निपटने की बात नहीं है, बल्कि इतिहास में भी हमने अमरीका की अनिश्चित रवैये को अच्छी तरह से संभाला है. हालांकि मौजूदा समय में वो पहले से कहीं ज्यादा अनिश्चित है. लेकिन मेरा मानना है कि भारत की कोशिश इस दौरे से ज्यादा से ज्यादा हासिल करने और जटिल मसलों से दूर रखने की है.

सवाल - डोकलाम के बाद भारत ने अमरीका से उम्मीद के मुताबिक प्रतिक्रिया न मिलने के कारण चीन और रूस से अपने रिश्तों को नया नजरिया दिया. क्या भारत के लिये आने वाले समय में इससे जटिलताएं पैदा होंगी, क्योंकि अमरीका अफगानिस्तान में पाकिस्तान के समर्थन के लिये उसे खुश रखना चाहता है ?

अगर डोकलाम की बात करें तो मेरी नजर में हमने अमरीका से अपने साथ खड़े होने की उम्मीद नहीं की थी. उस समय के व्हाइट हाउस या स्टेट विभाग के बयान भारत के लिहाज से सही थे. 2017 में जब 100 भारतीय सैनिक और 100 चीनी सैनिक, चीन-भूटान की विवादास्पद जगह पर आमने- सामने थे, ऐसे में भारत अमरीका के बेजा दखल से हालातों को और खराब होते नहीं देख सकता था. मुझे नहीं लगता कि डोकलाम ने भारत अमरीका रिश्तों पर कोई असर डाला है.

दूसरी तरफ अगर पाकिस्तान की बात करें तो, अंतरराष्ट्रीय नेताओं के साथ काम करने के ट्रंप के अपने तरीके हैं. जब इमरान खान अमरीका के दौरे पर गये तो ऐसा लगा कि दो रॉकस्टार्स को समय बिताने का मौका मिला, लेकिन बड़े पैमाने पर पाकिस्तान की खिलाफत कम नहीं हुई है. आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान पर दबाव है. कुछ दिन पहले ही एफएटीएफ के दबाव में पाकिस्तान ने हाफिज सईद को जेल में डालने का फैसला किया है. यह अच्छी खबर है लेकिन हम इससे पहले ऐसी कहानी देख चुके हैं और हमें देखना होगा की जमीन पर क्या होता है? लेकिन इमरान खान के सफल अमरीकी दौरे से पाकिस्तान पर दबाव कम नहीं होगा.

सवाल - अमरीकी कांग्रेस में कश्मीर को लेकर एक प्रस्ताव पेश हुआ है. ट्रंप की करीबी लिंडसे ग्राहम समेत चार अमरीकी सेनेटर ने पोंपियो को कश्मीर, सीएए और एनआरसी पर पत्र लिखा है. क्या भारत कांग्रेस के अंदरुनी फैसलों को प्रभावित कर सकेगा और क्या यह मुद्दा इस दौरे में उठेगा ?

अमरीका में भारतीय दूतावास और हमारी राजनयिक मशीनरी लगातार कांग्रेस से संपर्क में रहती है. सोशल मीडिया पर दिखने वाले मतभेदों के बावजूद ज्यादातर मसलों पर भारतीय अधिकारियों और कांग्रेस के बीच सेहतमंद माहौल रहता है. क्या समय अलग है ? हां, इस समय अमरीकी कांग्रेस में भारत के मौजूदा हालातों को लेकर कई सवाल हैं. कई बार इसमें भारत के अंदरूनी हालातों को ध्यान में रखा जाता है और कई बार नहीं. क्या यह मोदी-ट्रंप के बीच बातचीत का बड़ा मुद्दा बनेगा ? मेरे ख्याल से नहीं. इस मामले को विदेश विभाग और अधिकारियों के कार्यक्षेत्र में छोड़ दिया जायेगा. ट्रंप के बर्ताव में अनिश्चितता को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि वो इस बारे में मोदी से जिक्र करें. यह ट्रंप के लिये घरेलू मैदान में कारगर हो सकता है. अगर वो मोदी से कुछ कहते हैं तो मुझे नहीं लगता कि इसमें कोई परेशानी है. वो भारत किसी एजेंडे से नहीं आ रहे हैं. लिंडसे ग्राहम और तीन अन्य सेनेटरों का लिखा एक पत्र, मोदी-ट्रंप की बातचीत पर असर नहीं डाल सकता है.

सवाल - सामरिक पहलू से हटकर लोगों से लोगों के बीच के जुड़ाव की बात करते हैं. ट्रंप ने इम्मीग्रेशन रिफॉर्म के बारे में बातें कही है और भारत की एच1बी वीजा को लेकर चिंतायें हैं. आज हालात क्या हैं ?

यह एक असल मुद्दा है. इम्मीग्रेशन को लेकर यह ट्रंप की काल्पनिक आलोचना नहीं है. इसने भारतीयों को काफी नुकसान पहुंचाया है. एच1बी वीजा में अनिश्चितता ने हजारों लोगों को परेशानी में डाला है. भारतीय पक्ष इसे काफी गंभीरता से लेता है. लेकिन मेरा मानना है कि यह ऐसे मुद्दे हैं जो किसी न किसी तरह से पहले भी टकराव का कारण रहे है. इसे अफसरशाही के स्तर पर छोड़ देना चाहिये. इस दौरे से रिश्तों को मजबूती मिलने वाली है. मुझे उम्मीद है कि भारत सरकार लाइथिजर के मनाकर, ट्रंप को दोबारा दोनों देशों के बीच व्यापार समझौते पर सोचने के लिये तैयार कर सकेगी.

सवाल -इंडो-पैसेफिक में भारत के लिहाज से अमरीकी नजरिये में किस तरह का बदलाव आया है ?

यह दोनों तरफ से काम करता है. यह मसला भारत और अमरीका दोनों की हिस्सेदारी का है. अमरीका इस बात को ज्यादा से ज्यादा समझता आ रहा है. पिछले कुछ सालों में इस मामले में भारतीय राजनयिकों ने अच्छा काम किया है. इंडो-पैसिफिक अब अमरीका के रणनीति के नक्शे में नहीं है. अब यह इंडो या भारतीय रणनीति के नक्शे का हिस्सा है. हम इस नक्शे की दशा दिशा को समझने की कोशिश कर रहे हैं. यह समझना जरूरी है कि क्या यह वाणिज्य, और आर्थिक जुड़ाव के बारे में है या फिर यह इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में वर्चस्व के लिये चार या पांच सैन्य ताकतों का साथ देने के बारे में है. इंडो-पैसेफिक के अलावा भी हमने क्वाड में काफी ऊर्जा देखी है. आपने पहले चीन के बारे में सवाल किया था. मेरा मानना है कि भारत, चीन के साथ सामरिक द्विपक्षीय रिश्तों और अन्य रिश्तों को सधी गति पर रखता है. सामरिक नजर से, मसला क्वाड और इंडो-पैसेफिक है. कूटनीतिक पहलू पर गतिवर्धक द्विपक्षीय है और दबाव चारों ओर से है.

सवाल -आम दावा यह है कि क्वाड का मकसद चीन को शामिल या बाहर रखने के लिये नही है?

लेकिन वो ऐसा करता है और हमें इसे समझने की जरूरत है.

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने पहले भारतीय दौरे पर कुछ दिनों में आने वाले है, और दोनों ही पक्ष कुछ बड़े निर्णय लेने की तरफ काम रहे हैं. इसके साथ महीनों से लटके व्यापार समझौते को भी अमली जामा पहनाने की कोशिशें जारी हैं. कार्नेगी इंडिया के निदेशक, रुद्र चौधरी का मानना है कि व्यापार समझौते को दोनों देशों के बीच के संबंधों के लिये अति महत्वपूर्ण नहीं मानना चाहिए.

चौधरी का कहना है कि व्यापार समझौता अभी भी दूर की कौड़ी लगता है और मोदी को व्यापार प्रतिनिधि लाइथिजर से बातचीत और ट्रंप को मनाने के लिये काफी कुछ करना पड़ेगा. वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा ने रुद्र चौधरी से दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों में बदलावों, कश्मीर, सीएए-एनआरसी के साथ साथ चीन के मद्देनजर इंडो-पेसिफिक नीति पर चर्चा की. पढ़ें पूरी खबर...

सवाल - ट्रंप की यात्रा से सबसे अहम बात आपके मुताबिक क्या हो सकती है ? इस यात्रा से क्या उम्मीदें हैं ?

किसी भी अमरीकी राष्ट्रपति का भारत दौरा एक बड़ा मौका होता है. राष्ट्रपति ट्रंप का भारत आकर दिल्ली और अहमदाबाद, जहां वो एक बड़े सार्वजनिक कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे, यहां पर दो दिन बिताना अपने आप में अहम है. कोई भी रिश्ता हो, और खासतौर पर अमरीका के साथ, उसे समय-समय पर मजबूत करते रहने की जरूरत होती है. अमरीका के लिये और खासतौर पर ट्रंप के लिए खुद यहां आकर भारत पर ध्यान देने का यह एक अच्छा मौका है.

सवाल - ट्रंप कुछ समय में चुनावों का सामना करने वाले हैं. क्या आप ट्रंप को अपने कार्यकाल के अंतिम चरण में और ज्यादा मजबूत देख रहे हैं. वहीं कई अन्य राष्ट्रपति अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में औपचारिक ही रह जाते हैं ?

रुद्र चौधरी से खास बातचीत

ट्रंप कोई आम अमरीकी राष्ट्रपति नहीं हैं. क्या वो अपने सबसे अच्छे फार्म मैं हैं ? यह निर्भर करेगा कि वो किस तरह चुनावी लड़ाई लड़ते हैं. अपने महाभियोग की सुनवाई के तुरंत बाद ट्रंप भारत आ रहे हैं. भारत में इस महाभियोग को लेकर मीडिया में ज्यादा कवरेज नहीं थी. यह मान लिया गया था कि सेनेट ट्रंप को क्लीन पास दे देगी और उनके लिये सब ठीक होगा. लेकिन खास बात यह है कि, ट्रंप एक ऐसे राष्ट्रपति बन गए हैं, जिन्हें महाभियोग का सामना करना पड़ा, और यह अंतर्राष्ट्रीय इतिहास में एक बड़ी बात है. महाभियोग के तुरंत बाद विदेश दौरे के लिये भारत को चुनना अपने आप में दिलचस्प है. यह इस बात को भी दर्शाता है कि ट्रंप अपने अंदाज में भारत और प्रधानमंत्री मोदी के बारे में सोचते हैं.

सवाल -लेकिन उन्होंने इससे पहले पीएम मोदी की 'नकल' करने की कोशिश की. इस तरह के आवभाव या बयानों ने नई दिल्ली को असहज किया है. क्या भारत को इसे ट्रंप के व्यक्तित्व का हिस्सा मानकर नजरअंदाज कर देना चाहिये ?

व्यापार का मुद्दा कोई हल्का मुद्दा नहीं है. हमारे रिश्तों के सामरिक दायरे में इसे बहुत ज्यादा महत्व देने से हमें बचने की जरूरत है. व्यापार के मसले पर दो बातें हैं. जब ट्रंप राष्ट्रपति बने, तो इससे न केवल अमरीका में लोग हैरान थे, बल्कि बाकी दुनिया के साथ-साथ भारत भी हैरान था. ट्रंप ने चुनावों में वादा किया था कि वो उन देशों से व्यापारिक रिश्तों पर दोबारा विचार करेंगे, जो उनके हिसाब से बेवजह फायदा ले रहे हैं, और कार्यभार संभालते ही उन्होंने ऐसा किया, जिसका असर भारत पर भी दिखा. फिर चाहे वो अल्युमीनियम, इस्पात या जीएसपी हो, सभी ने किसी न किसी तरह से भारत पर असर डाला. व्यापार के मुद्दे पर यह तनाव है. हमें सचेत रहना होगा, कि कहीं हम व्यापार को इस बड़े रिश्ते के लिए बहुत ज्यादा महत्व न दें. एक राष्ट्रपति भारत आ रहे हैं. सच्चाई यह है कि, जिस व्यापार समझौते पर पहुंचने के लिये दोनों पक्ष पिछले 18 महीनों से काम कर रहे हैं, वो शायद न भी हो. इस बात के लिए ट्रंप से ज्यादा जिम्मेदार अमरीका के व्यापार प्रतिनिधि, रोबर्ट लाइथिजर हैं, जो इन मामलों पर एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी साबित हुए हैं.

सवाल - व्यापार के मामले पर वॉशिंगटन की तरफ़ से दबाव दिया जा रहा है. दबाव का सबसे बड़ा तर्क है कि भारत को अपने व्यापार में कमी को खत्म करने की जरूरत है, भारत ने अमरीका से तेल और गैस की खरीद से लेकर रक्षा उपकरणों की खरीदकर इसे कम करने के प्रयास किए हैं. इसके साथ ही ईरान से तेल की खरीद को भी दोबारा पुनर्गठित किया है. आज के रिश्तों में व्यापार कितना बड़ा रोड़ा है ? उद्योग जगत से इन समझौते को लेकर क्या चिंतायें हैं ?

व्यापार समझौते का ज्यादा लेना-देना लाइथजर से है, जिनकी पिछले 30 सालों से इन मामलों पर अपनी राय है. 80-90 के दशकों में सेमीकंडक्टर क्षेत्र में यह प्रतिबंध या कर की थी. लोहा, अल्युमिनियम, कृषि और अन्य क्षेत्रों में जहां अमरीका खुद को नुकसान में देखता है, उसके लिये आज उन सभी जगहों पर प्रतिबंध या कर का सिद्धांत काम करता है. मेरी राय में भारत इस मसले पर एक बड़ा नजरिया रख रहा है. मिसाल के तौर पर अगर आप रिश्तों को व्यापार और सामरिक, या व्यापार और रक्षा में बांटे तो आज के समय में रक्षा क्षेत्र ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है. समस्या यह कि भारत अमरीका रिश्तों का जिक्र होते ही हम रक्षा क्षेत्र में बड़े सौदों और परमाणु करारों की बात करने लगते हैं. भारत अमरीका परमाणु संधि दोबारा नहीं होने जा रही है. इसलिए ऐसे दौरों से पैदा होने वाली उम्मीदों को भी हमें काबू करने की जरूरत है. यह दौरा, व्यापक सामरिक रिश्तों में ठहराव, भरोसा और मजबूती लाने के लिये है. इस बात की संभावनायें प्रबल हैं कि कोई व्यापारिक समझौता नहीं हो, लेकिन इस से इस दौरे कि अहमियत कम नहीं होती है. रक्षा क्षेत्र में आप देखेंगे कि अब बात, नई तकनीक के विकास और भारत-अमरीका के बीच अनुसंधान केंद्र स्थापित करने के बारे में होगी.

सवाल -एलईएमओए जैसे मसलों को लागू करने पर हम कहां खड़े हैं ?

यह एक धीमी प्रक्रिया है. रक्षा क्षेत्र में समन्वय स्थापित करना सबसे जरूरी होता है. 2005 में तब की सरकार ने सामरिक रिश्तों को मज़बूत करने के लिये अगले कदम के तौर पर सबसे जरूरी काम किये थे. यह कदम थे, कानूनों, सिद्धांतों और मानकों में समन्वय स्थापित करना, जिससे भारत और अमरीका अपने बीच के सामरिक रिश्तों को और सुदृढ़ कर सकें. एलईएमओए की बात करें तो अभी और कई सवाल बाकी हैं. वहीं दूसरी तरफ आपने इस मसले पर डीटीटीआई पर बड़े पैमाने पर काम होते देखा है. दोनों पक्ष काम करने के स्टैंडर्ड तरीकों पर साझा रजामंदी हासिल कर चुके हैं. इसलिए रक्षा एक धीमी प्रक्रिया है लेकिन हमें अंधेरी सुरंग के अंत में रोशनी नजर आ रही है.

सवाल -भारत द्वारा रूस से एस-400 की बड़ी खरीद पर क्या सीएएटीएसए की छाया अभी भी है ? क्या यह बातचीत का मुद्दा होगा?

चाहे वो रूस हो, तेल हो या ईरान, यह ऐसे मसले हैं जिन पर भारत सरकार को हमेशा बातचीत करते रहना होगा. मुझे नहीं लगता कि भारतीय पक्ष में इसे कोई भी इसे हल्के में लेता है. हमने अमरीका से रिश्ते निभाने में परिपक्वता दिखाई है. एक देश के तौर पर हम सीएएटीएसए को बाई पास करने में कामयाब रहे हैं, ईरान पर लगे तेल प्रतिबंधों से हमें होने वाले नुकसान को कम से कम रखने में और ईरान, रूस और अमरीका से अपने रिश्तों को कायम रखने में हम सफल रहे हैं. यह केवल मौजूदा समय में मसलों से निपटने की बात नहीं है, बल्कि इतिहास में भी हमने अमरीका की अनिश्चित रवैये को अच्छी तरह से संभाला है. हालांकि मौजूदा समय में वो पहले से कहीं ज्यादा अनिश्चित है. लेकिन मेरा मानना है कि भारत की कोशिश इस दौरे से ज्यादा से ज्यादा हासिल करने और जटिल मसलों से दूर रखने की है.

सवाल - डोकलाम के बाद भारत ने अमरीका से उम्मीद के मुताबिक प्रतिक्रिया न मिलने के कारण चीन और रूस से अपने रिश्तों को नया नजरिया दिया. क्या भारत के लिये आने वाले समय में इससे जटिलताएं पैदा होंगी, क्योंकि अमरीका अफगानिस्तान में पाकिस्तान के समर्थन के लिये उसे खुश रखना चाहता है ?

अगर डोकलाम की बात करें तो मेरी नजर में हमने अमरीका से अपने साथ खड़े होने की उम्मीद नहीं की थी. उस समय के व्हाइट हाउस या स्टेट विभाग के बयान भारत के लिहाज से सही थे. 2017 में जब 100 भारतीय सैनिक और 100 चीनी सैनिक, चीन-भूटान की विवादास्पद जगह पर आमने- सामने थे, ऐसे में भारत अमरीका के बेजा दखल से हालातों को और खराब होते नहीं देख सकता था. मुझे नहीं लगता कि डोकलाम ने भारत अमरीका रिश्तों पर कोई असर डाला है.

दूसरी तरफ अगर पाकिस्तान की बात करें तो, अंतरराष्ट्रीय नेताओं के साथ काम करने के ट्रंप के अपने तरीके हैं. जब इमरान खान अमरीका के दौरे पर गये तो ऐसा लगा कि दो रॉकस्टार्स को समय बिताने का मौका मिला, लेकिन बड़े पैमाने पर पाकिस्तान की खिलाफत कम नहीं हुई है. आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान पर दबाव है. कुछ दिन पहले ही एफएटीएफ के दबाव में पाकिस्तान ने हाफिज सईद को जेल में डालने का फैसला किया है. यह अच्छी खबर है लेकिन हम इससे पहले ऐसी कहानी देख चुके हैं और हमें देखना होगा की जमीन पर क्या होता है? लेकिन इमरान खान के सफल अमरीकी दौरे से पाकिस्तान पर दबाव कम नहीं होगा.

सवाल - अमरीकी कांग्रेस में कश्मीर को लेकर एक प्रस्ताव पेश हुआ है. ट्रंप की करीबी लिंडसे ग्राहम समेत चार अमरीकी सेनेटर ने पोंपियो को कश्मीर, सीएए और एनआरसी पर पत्र लिखा है. क्या भारत कांग्रेस के अंदरुनी फैसलों को प्रभावित कर सकेगा और क्या यह मुद्दा इस दौरे में उठेगा ?

अमरीका में भारतीय दूतावास और हमारी राजनयिक मशीनरी लगातार कांग्रेस से संपर्क में रहती है. सोशल मीडिया पर दिखने वाले मतभेदों के बावजूद ज्यादातर मसलों पर भारतीय अधिकारियों और कांग्रेस के बीच सेहतमंद माहौल रहता है. क्या समय अलग है ? हां, इस समय अमरीकी कांग्रेस में भारत के मौजूदा हालातों को लेकर कई सवाल हैं. कई बार इसमें भारत के अंदरूनी हालातों को ध्यान में रखा जाता है और कई बार नहीं. क्या यह मोदी-ट्रंप के बीच बातचीत का बड़ा मुद्दा बनेगा ? मेरे ख्याल से नहीं. इस मामले को विदेश विभाग और अधिकारियों के कार्यक्षेत्र में छोड़ दिया जायेगा. ट्रंप के बर्ताव में अनिश्चितता को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि वो इस बारे में मोदी से जिक्र करें. यह ट्रंप के लिये घरेलू मैदान में कारगर हो सकता है. अगर वो मोदी से कुछ कहते हैं तो मुझे नहीं लगता कि इसमें कोई परेशानी है. वो भारत किसी एजेंडे से नहीं आ रहे हैं. लिंडसे ग्राहम और तीन अन्य सेनेटरों का लिखा एक पत्र, मोदी-ट्रंप की बातचीत पर असर नहीं डाल सकता है.

सवाल - सामरिक पहलू से हटकर लोगों से लोगों के बीच के जुड़ाव की बात करते हैं. ट्रंप ने इम्मीग्रेशन रिफॉर्म के बारे में बातें कही है और भारत की एच1बी वीजा को लेकर चिंतायें हैं. आज हालात क्या हैं ?

यह एक असल मुद्दा है. इम्मीग्रेशन को लेकर यह ट्रंप की काल्पनिक आलोचना नहीं है. इसने भारतीयों को काफी नुकसान पहुंचाया है. एच1बी वीजा में अनिश्चितता ने हजारों लोगों को परेशानी में डाला है. भारतीय पक्ष इसे काफी गंभीरता से लेता है. लेकिन मेरा मानना है कि यह ऐसे मुद्दे हैं जो किसी न किसी तरह से पहले भी टकराव का कारण रहे है. इसे अफसरशाही के स्तर पर छोड़ देना चाहिये. इस दौरे से रिश्तों को मजबूती मिलने वाली है. मुझे उम्मीद है कि भारत सरकार लाइथिजर के मनाकर, ट्रंप को दोबारा दोनों देशों के बीच व्यापार समझौते पर सोचने के लिये तैयार कर सकेगी.

सवाल -इंडो-पैसेफिक में भारत के लिहाज से अमरीकी नजरिये में किस तरह का बदलाव आया है ?

यह दोनों तरफ से काम करता है. यह मसला भारत और अमरीका दोनों की हिस्सेदारी का है. अमरीका इस बात को ज्यादा से ज्यादा समझता आ रहा है. पिछले कुछ सालों में इस मामले में भारतीय राजनयिकों ने अच्छा काम किया है. इंडो-पैसिफिक अब अमरीका के रणनीति के नक्शे में नहीं है. अब यह इंडो या भारतीय रणनीति के नक्शे का हिस्सा है. हम इस नक्शे की दशा दिशा को समझने की कोशिश कर रहे हैं. यह समझना जरूरी है कि क्या यह वाणिज्य, और आर्थिक जुड़ाव के बारे में है या फिर यह इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में वर्चस्व के लिये चार या पांच सैन्य ताकतों का साथ देने के बारे में है. इंडो-पैसेफिक के अलावा भी हमने क्वाड में काफी ऊर्जा देखी है. आपने पहले चीन के बारे में सवाल किया था. मेरा मानना है कि भारत, चीन के साथ सामरिक द्विपक्षीय रिश्तों और अन्य रिश्तों को सधी गति पर रखता है. सामरिक नजर से, मसला क्वाड और इंडो-पैसेफिक है. कूटनीतिक पहलू पर गतिवर्धक द्विपक्षीय है और दबाव चारों ओर से है.

सवाल -आम दावा यह है कि क्वाड का मकसद चीन को शामिल या बाहर रखने के लिये नही है?

लेकिन वो ऐसा करता है और हमें इसे समझने की जरूरत है.

Last Updated : Mar 1, 2020, 2:18 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.