जयपुर : राजस्थान के किसानों ने पिछले साल टिड्डियों के कारण भारी नुकसान झेला था. लेकिन उन्होंने सरकारी और खुद के संसाधनों को साथ मिलाकर इसका मुकाबला किया और इससे निजात हासिल की. लेकिन विशेषज्ञ इस बार बहुत व्यापक पैमाने पर टिड्डी हमले की आशंका जता रहे हैं.
टिड्डियों के छोटे समूहों के हमले एक माह से चल रहे हैं और यहां चलने वाली आंधियों के कारण यह यहां से काफी आगे तक पहुंच चुकी हैं.
जयपुर कृषि अनुसंधान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक अर्जुन सिंह ने आगाह किया कि टिड्डियों का दल अगले महीने पूर्वी अफ्रीका से भारत और पाकिस्तान की ओर बढ़ सकते हैं. हम दशकों में अब तक के सबसे खराब मरुस्थलीय टिड्डी हमले की स्थिति का सामना कर रहे हैं.
मौजूदा वक्त में टिड्डियों का हमला केन्या, सोमालिया, इथोपिया, दक्षिण ईरान और पाकिस्तान के कई हिस्सों में सबसे अधिक गंभीर है. जून में यह केन्या से इथोपिया के साथ ही सूडान तथा संभवत: पश्चिमी अफ्रीका तक फैलेंगी.
यह अरब सागर को पार करके भारत तथा पाकिस्तान जाएंगी. अफ्रीका में टिड्डियों का प्रजनन हो रहा है, यह जून में भारत आ सकती हैं.
कृषि वैज्ञानिक अर्जुन सिंह ने कहा कि इस बार जो यंग टिड्डियां हैं, वह तेजी से आगे बढ़ रही हैं. एक दिन में 150 से 250 किलोमीटर का सफर कर रही हैं. टिड्डियों का ज्यादा प्रभाव इसलिए बढ़ा, क्योंकि केन्या, सोमालिया, इथोपिया, दक्षिण ईरान और पाकिस्तान के एक हिस्से में डेजर्ट पार्ट है.
यहां तूफान की वजह से भारी बारिश हुई और डेजर्ट में पानी के तालाब बन गए, जिससे इन टिड्डियों को प्रजनन का एक अनुकूल वातावरण मिल गया. जमीन जो होपर्स ढेड़ से दो महीने में अडल्ट हो जाती है और विंडर के हिसाब से मूवमेंट करती हैं.
पिछले दिनों राजस्थान के बाद अब गुजरात में टिड्डी दल हमला कर फसलों को नुकसान पहुंचाया था. टिड्डी दल का यह हमला इस बार ज्यादा खतरनाक माना जा रहा है क्योंकि इससे पहले जब साल 1993 में टिड्डी दल ने फसलों को चौपट किया था तो उस समय अक्टूबर में ठंड की वजह से टिड्डियां मर गई थीं. लेकिन इस बार मौसम बदलाव पर होने के बावजूद टिड्डी दल न केवल सक्रिय हैं. बल्कि उनका हमला और ज्यादा खतरनाक है.
भारत के राजस्थान के कुछ शुष्क जिलों में जून 2019 में टिड्डी दल ने हमला किया था. यह टिड्डी दल पाकिस्तान से आया था. शुरू में अधिकारियों को लगा कि यह सामान्य हमला है, जो दो तीन साल में होता रहता है. लेकिन कुछ समय बाद हमले की गंभीरता समझ में आई और केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के वनस्पति संरक्षण, संगरोध और संग्रह निदेशालय के अधीन काम कर रहे लोकोस्ट (टिड्डी) वार्निंग ऑर्गनाइजेशन (एलडब्ल्यूओ) को सक्रिय किया गया.
अर्जुन सिंह ने कहा कि इसे लेकर पहले ही अंदेशा था कि टिड्डियों का हमला होगा. अगर उन्हें अनुकूल वातावरण मिला तो यानि अगर जून के पहले सप्ताह में मानूसन की बारिश हुई तो अंडे से होपर्स निकलेंगे और उनकी तादात बहुत बड़ी होगी.
टिड्डियों की ब्रीडिंग एरिया भारत नहीं है, इसलिए इसे हम रोक नहीं सकते. यह प्राकृतिक आपदा के रूप में है. इसका सिर्फ और सिर्फ एक ही उपाय है वह हे स्प्रे. स्प्रे के अलावा कोई उपाय नहीं है, कोशिश की जाती है कि टिड्डियों को बढ़ने ना दिया जाए.
डिपार्ट भी टिड्डी के मूवमेंट को देखता है कि वह किस तरफ जा रही हैं. किसान को भी कहा जाता है कि वह अपने पुराने उपाय, जिसमें धूआं करना, बर्तन बजाना, जिसके जरिए टिड्डी फसल पर न बैठे.
विभाग की तरफ से टिड्डी के मूवमेंट को देखकर पहले से जहां वो रात को बैठने वाली हैं, वहां स्प्रे किया जाता है. हालांकि स्प्रे से पूरी तरह नष्ट नहीं होंती. लेकिन 30 से 40 फीसदी टिड्डी मर जाती हैं. बाकी आगे निकल जाती हैं, फिर विभाग उनके मूवमेंट पर नजर रखता है.
खास बात है पिछले दिनों जबी टिड्डी ने राजस्थान में प्रवेश किया तब वह जैसलमेर की तरफ से अरबों की संख्या में आई. बाद में वो टुकड़ियों के रूप में अलग-अलग एरिया में बट गई.
कृषि वैज्ञानिक अर्जुन सिंह बताते हैं कि टिड्डी को पूर्ण रूप से नष्ट करना है तो उसके लिए जो अण्डे हैं, उन्हें डेजर्ट में ही नष्ट करना होगा. एक टिड्डी तीन बार अंडे देती है, एक बार में 80 अंडे देती है. यही अंडे आगे जाकर टिड्डी के रूप में निकल कर आगे आते हैं.
ऐसे में अगर डेजर्ट में ही इन अण्डों को नष्ट कर दिया जाए तो इस टिड्डी पर नियंत्रण पाया जा सकता है. अगर टिड्डी अंडे से टिड्डी के रूम आ गई तो उसे रोकने के प्रयाप्त संसाधन हमारे पास नहीं हैं.