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विशेष : नरम रूख अपनाएंगे बाइडेन, भारत पर नहीं पड़ेगा कोई असर

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में अब यह साफ हो चुका है कि जो बाइडेन ही अगले राष्ट्रपति होंगे. निश्चित तौर पर बाइडेन की नीति ट्रंप की तरह नहीं होगी. वह कई मामलों में नरम रूख अपनाएंगे. भारत के साथ रिश्तों पर भी बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा. इस मुद्दे पर अमेरिका में पूर्व राजदूत रह चुकीं मीरा शंकर से बातचीत की है हमारे वरिष्ठ संवाददाता कृष्णानंद त्रिपाठी ने.

पूर्व राजदूत मीरा शंकर से खास बातचीत.
पूर्व राजदूत मीरा शंकर से खास बातचीत.
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Published : Nov 8, 2020, 8:58 AM IST

Updated : Nov 8, 2020, 8:04 PM IST

नई दिल्ली : अब जबकि यह तय हो चुका है कि जो बाइडेन ही अमेरिका के अगले राष्ट्रपति होंगे, एक भारतीय के लिए सबसे बड़ा सवाल यही है कि वह भारत के लिए कितने बेहतर साबित होंगे. राजनयिकों का मानना है कि विदेश मामलों में बाइडेन ट्रंप की अपेक्षा ज्यादा नरम होंगे. वे विदेशी नागरिकों को वीजा देने के मामले में भी सख्त रुख नहीं अपनाएंगे. ट्रंप की वीजा नीति से भारतीयों पर असर पड़ रहा था.

पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के समय अमेरिका में टॉप डिप्लोमेट रह चुकीं मीरा शंकर ने ईटीवी भारत को बताया कि बाइडेन ओबामा की नीति को ही आगे बढ़ाएंगे. वह चीन के आक्रामक रवैए से निपटने के लिए अपने सहयोगियों और इस क्षेत्र में अपने सैन्य बेसों को मजबूत करने पर जोर देंगे.

मीरा शंकर ने कहा, 'मुझे लगता है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत-अमेरिका की रणनीतिक दिशा और मजबूत होगी, क्योंकि यहां पर दोनों के हित समान हैं. चिंता की बात चीन की हठधर्मिता और उसका आक्रामक रवैया है, जिसे हमने लद्दाख में देखा है. यह आगे भी जारी रहेगा.'

रक्षा और सुरक्षा सहयोग पर मीरा शंकर ने कहा कि राष्ट्रपति ओबामा ने ही भारत को प्रमुख रक्षा सहभागी का दर्जा दिया था, जिसे आगे की सरकार ने जारी रखा.

मीरा शंकर ने कहा कि हिलेरी क्लिंटन ने टू प्लस टू यानि विदेश और रक्षा मंत्रियों की दोनों देशों के बीच बातचीत का विचार दिया था. लेकिन तब भारत तैयार नहीं था.

बाइडेन की जीत पर पूर्व राजदूत मीरा शंकर से खास बातचीत

उन्होंने जो बाइडेन की भूमिका पर कहा कि जॉर्ज बुश और मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भारत और अमेरिका के बीच परमाणु समझौते में भी उनकी अहम भूमिका थी.

मार्च 2006 में दोनों देशों के बीच सिविल न्यूक्लियर डील हुई थी. इसके तहत अमेरिकी कंपनियों को भारतीय सिविल न्यूक्लियर सेक्टर में प्रवेश की इजाजत मिल गई थी.

इस डील के समय बाइडेन विदेशी मामलों के लिए बनाई गई कमेटी में थे. तब उन्होंने डेमोक्रेट्स को इसके लिए तैयार करने में अपनी अहम भूमिका निभाई थी.

विजया लक्ष्मी पंडित के बाद अमेरिका में भारत की दूसरी महिला राजदूत रहीं मीरा शंकर ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बाइडेन ट्रंप की तरह एक तरफा निर्णय नहीं लेंगे.

आप कुछ उदाहरण यहां देख सकते हैं. जेनरलाइड्ज सिस्टम ऑफ प्रिफ्ररेंस (जीएसपी) से ट्रंप ने अचानक ही निकलने की घोषणा कर दी थी. इसके तहत भारत को विकासशील देश का दर्जा हासिल था. भारत से निर्यात होने वाले स्टील और अल्युमुनियम पर टैरिफ लगा दी थी. एचवनबी और एलवन वीजा पर सख्ती बरतनी शुरू कर दी थी.

मीरा शंकर ने बताया कि कुल मिलाकर कह सकते हैं कि ट्रंप व्यापार के मामले में बड़े सख्त थे. मुझे लगता है कि बाइडेन दूसरे देशों के साथ मिलकर काम करना चाहेंगे. हालांकि, ये भी सही है कि ट्रंप की संरक्षणवादी नीति पूरी तरह से खत्म नहीं होगी, इसे हटाना उनके लिए मुश्किल होगा.

पूर्व राजनयिक ने बताया कि देखिए, ट्रंप पर दबाव था कि वैश्विकरण से अमेरिका को फायदा नहीं हुआ. नौकरियां कम हुईं. आमदनी घट गई. लेकिन मुझे लगता है कि यह दबाव तो बाइडेन पर भी रहेगा. पर, हां वे पूरी तरह के एकतरफा नहीं होंगे.

नई दिल्ली : अब जबकि यह तय हो चुका है कि जो बाइडेन ही अमेरिका के अगले राष्ट्रपति होंगे, एक भारतीय के लिए सबसे बड़ा सवाल यही है कि वह भारत के लिए कितने बेहतर साबित होंगे. राजनयिकों का मानना है कि विदेश मामलों में बाइडेन ट्रंप की अपेक्षा ज्यादा नरम होंगे. वे विदेशी नागरिकों को वीजा देने के मामले में भी सख्त रुख नहीं अपनाएंगे. ट्रंप की वीजा नीति से भारतीयों पर असर पड़ रहा था.

पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के समय अमेरिका में टॉप डिप्लोमेट रह चुकीं मीरा शंकर ने ईटीवी भारत को बताया कि बाइडेन ओबामा की नीति को ही आगे बढ़ाएंगे. वह चीन के आक्रामक रवैए से निपटने के लिए अपने सहयोगियों और इस क्षेत्र में अपने सैन्य बेसों को मजबूत करने पर जोर देंगे.

मीरा शंकर ने कहा, 'मुझे लगता है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत-अमेरिका की रणनीतिक दिशा और मजबूत होगी, क्योंकि यहां पर दोनों के हित समान हैं. चिंता की बात चीन की हठधर्मिता और उसका आक्रामक रवैया है, जिसे हमने लद्दाख में देखा है. यह आगे भी जारी रहेगा.'

रक्षा और सुरक्षा सहयोग पर मीरा शंकर ने कहा कि राष्ट्रपति ओबामा ने ही भारत को प्रमुख रक्षा सहभागी का दर्जा दिया था, जिसे आगे की सरकार ने जारी रखा.

मीरा शंकर ने कहा कि हिलेरी क्लिंटन ने टू प्लस टू यानि विदेश और रक्षा मंत्रियों की दोनों देशों के बीच बातचीत का विचार दिया था. लेकिन तब भारत तैयार नहीं था.

बाइडेन की जीत पर पूर्व राजदूत मीरा शंकर से खास बातचीत

उन्होंने जो बाइडेन की भूमिका पर कहा कि जॉर्ज बुश और मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भारत और अमेरिका के बीच परमाणु समझौते में भी उनकी अहम भूमिका थी.

मार्च 2006 में दोनों देशों के बीच सिविल न्यूक्लियर डील हुई थी. इसके तहत अमेरिकी कंपनियों को भारतीय सिविल न्यूक्लियर सेक्टर में प्रवेश की इजाजत मिल गई थी.

इस डील के समय बाइडेन विदेशी मामलों के लिए बनाई गई कमेटी में थे. तब उन्होंने डेमोक्रेट्स को इसके लिए तैयार करने में अपनी अहम भूमिका निभाई थी.

विजया लक्ष्मी पंडित के बाद अमेरिका में भारत की दूसरी महिला राजदूत रहीं मीरा शंकर ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बाइडेन ट्रंप की तरह एक तरफा निर्णय नहीं लेंगे.

आप कुछ उदाहरण यहां देख सकते हैं. जेनरलाइड्ज सिस्टम ऑफ प्रिफ्ररेंस (जीएसपी) से ट्रंप ने अचानक ही निकलने की घोषणा कर दी थी. इसके तहत भारत को विकासशील देश का दर्जा हासिल था. भारत से निर्यात होने वाले स्टील और अल्युमुनियम पर टैरिफ लगा दी थी. एचवनबी और एलवन वीजा पर सख्ती बरतनी शुरू कर दी थी.

मीरा शंकर ने बताया कि कुल मिलाकर कह सकते हैं कि ट्रंप व्यापार के मामले में बड़े सख्त थे. मुझे लगता है कि बाइडेन दूसरे देशों के साथ मिलकर काम करना चाहेंगे. हालांकि, ये भी सही है कि ट्रंप की संरक्षणवादी नीति पूरी तरह से खत्म नहीं होगी, इसे हटाना उनके लिए मुश्किल होगा.

पूर्व राजनयिक ने बताया कि देखिए, ट्रंप पर दबाव था कि वैश्विकरण से अमेरिका को फायदा नहीं हुआ. नौकरियां कम हुईं. आमदनी घट गई. लेकिन मुझे लगता है कि यह दबाव तो बाइडेन पर भी रहेगा. पर, हां वे पूरी तरह के एकतरफा नहीं होंगे.

Last Updated : Nov 8, 2020, 8:04 PM IST
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