कोरोना महामारी के बीच खाड़ी देशों में अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल, अलगाव और संगरोध सुविधाओं की रिपोर्ट ने क्षेत्र में बड़े भारतीय प्रवासी कार्य बल की दुर्दशा के बारे में चिंताएं बढ़ा दीं हैं. खाड़ी देशों में 90 लाख में से 30 लाख काम करने वाले भारतीय प्रवासी मजदूर सिर्फ संयुक्त अरब अमीरात में हैं, जिसने आने वाले दिनों में अन्य देशों समेत भारत को उन्हें वापस बुलाने के लिए कहा हैं. इस मुद्दे को केरल (जो प्रवासी कार्यबल का अधिकांश हिस्सा खाड़ी में भेजता है) के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने भी प्रधानमंत्री मोदी को लिखे गए अपने पत्र में उठाया है.
वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा ने संयुक्त अरब अमीरात में पूर्व भारतीय राजदूत और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओडीएफ) के पूर्व भारतीय राजदूत, नवदीप सूरी से बात की, जो खाड़ी में चल रहे संकट, नौकरियों का जाना और भारत में आने वाली मुद्रा का नुकसान और इसके संभावित प्रभाव के विषय पर थीं.
सेवानिवृत्त राजनयिक नवदीप सूरी को लगता है कि यह अभी भी मानवीय संकट नहीं है, जहां खाड़ी से लाखों लोगों की वापसी जिसका समाधान हो. साथ ही उन्होंने कहा कि इसमें घबराहट की कोई बात नहीं है. सूरी ने कहा कि कोरोना वायरस से पहले आर्थिक मंदी आ गई थी और जी-20 जैसे समूह को इस महामारी से सामूहिक रूप से लड़ने के प्रस्तावों को क्रियान्वित करने से पहले बहुत कुछ और करना होगा. पूर्व दूत ने कहा कि दो पवित्र मस्जिदों वाले सउदी अरब सहित इस्लामिक देश इस बात पर कड़ी नजर रख रहे हैं कि हज समेत सभी धार्मिक सभाओं या जमावड़ों को किन बदलावों की आवश्यकता हो सकती है.
एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सबक आज के कई अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों पर लागू होते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह चीनी प्रभाव के तहत आत्मसमर्पण न करें. उनका यह भी कहना है कि भारत में आपूर्ति श्रृंखला बाधाओं को दूर करके सामान्य आर्थिक स्थिति की बहाली के लिए एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में शुरू करना होगा. पढ़ें पूरा साक्षात्कार...
प्रश्न- खाड़ी में प्रवासी मजदूरों के साथ लंबे समय से स्वास्थ्य देखभाल के मुद्दे रहे हैं. अब उन्हें इस महामारी के रूप में किस तरह के मानवीय संकट का सामना करना पड़ रहा है?
उत्तर- विभिन्न खाड़ी देशों, चाहे वह सऊदी हो या अमीरात में अलग-अलग प्रणालियां हैं. मुझे किसी भी रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण मानवीय आपदा या संकट है. एक आध मामले हो सकते हैं. अब तक अधिकांश सरकारें कह रही हैं कि वह अपेक्षित स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. वह स्पष्ट रूप से चाहते हैं कि जो लोग फंसे हुए हैं या जिनकी नौकरियां चली गईं हैं वह अपने देशों में लौट जाएं, लेकिन यह मुद्दा अमुख्य है. एक आर्थिक स्थिति है, साथ ही एक स्वास्थ्य संकट है और खाड़ी इससे अछूता नहीं रह गया है.
प्रश्न- केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने प्रधानमंत्री मोदी को इस बारे में लिखा था. रिपोर्ट के अनुसार नर्स, छोटे व्यवसायी, मजदूर बड़ी संख्या में संक्रमित हुए हैं. अधिकांश प्रवासियों ने भारत से सस्ती दवाओं को मंगाकर जमा कर लिया है. इस बड़े आभाव से निपटने के लिए भारत सरकार कैसे कदम उठा सकती है?
उत्तर- मेरा सुझाव है कि हम अपने राजदूतों और कौंसल जनरलों से बात करें और यह सुनिश्चित करें कि वह सक्रिय रूप से अपनी सक्षमता के अनुसार सर्वोत्तम संभव सहायता प्रदान करें. उन्होंने सामुदायिक संगठनों के साथ नेटवर्क स्थापित किया है, जो मेजबान सरकारों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. वहां भारतियों की संख्या बहुत बड़ी है. मुख्य रूप से यह मेजबान देशों और उन नियोक्ताओं की जिम्मेदारी हैं जिनके पास ये लोग काम कर रहे हैं. जब भी कोई दूतावासों से सम्बंधित मुद्दा आएगा, वहां सहायता अवश्य की जाएगी और मेरी समझ के अनुसार, वह हर तरह से मदद पहुंचाने के लिए 24 घंटे काम कर रहें हैं.
प्रश्न- संयुक्त अरब अमीरात ने कहा है कि खाड़ी देशों में मौजूद अपने नागरिकों को वापस लेने में अनिच्छुक देशों पर सख्त प्रतिबंध लगाएंगे. यह भविष्य के द्विपक्षीय संबंधों को कैसे प्रभावित करेगा? भारत कब तक खाड़ी से अपने नागरिकों को नहीं निकालेगा?
उत्तर- कृपया करके संयुक्त अरब अमीरात की सरकार ने क्या और किस संदर्भ में कहा है, इसकी सटीक भाषा पर एक नजर डालिए. हमारा दूतावास सरकार के साथ नियमित रूप से संपर्क में है और दिल्ली के लिए महत्वपूर्ण हो सकने वाले किसी भी मुद्दे को फौरन साझा किया जायेगा. ये जरूरी है कि हम भारतियों के उस छोटे समूह जो कि वीसा की समय सीमा समाप्त होने की वजह से या टूरिस्ट वीसा की अवधि समाप्त हो जाने के कारण संयुक्त अरब अमीरात में फंसे हैं और जो बड़ा समूह जो वहां कार्य वीसा लेकर आया किसी और श्रेणी के वीसा के साथ हैं, उनके बीच का अंतर समझें. एक छोटा समूह है जो अधिक दबाव बना रहा है. यहां तक कि केरल के मुख्यमंत्री ने भी अपने पत्र में उन अपेक्षाकृत कम संख्या वाले व्यक्तियों का जिक्र किया है, जो वास्तव में उन लाखों भारतीयों में से नहीं हैं, जो खाड़ी में हैं.
प्रश्न- रिपोर्ट कहती है कि कई मजदूरों को बंद कर दिए गए है, उन्हें नौकरियों से निकाल दिया गया है और भीड़ भरे इलाकों में फंसे हुए हैं. क्या ऐसी स्थिति उनके लिए खतरे पैदा नहीं कर रही है?
उत्तर- वहां 90 लाख से अधिक भारतीय हैं- जो कि एक बड़े महानगर का आकार है. एक औसत विमान 180 लोगों को ला सकता है. अब आप गणित करके और मुझे बताईए कि एक लाख लोगों को वापस लाने के लिए कितनी उड़ानों की आवश्यकता होगी? आप उन्हें संगरोध में कहां रखेंगे? क्या हमें यकीन है कि खाड़ी में वर्तमान में प्रचलित वायरस है. भारत में हमारे यहां मौजूद कोरोना वायरस के समान ही है. उनको वहां से निकालने से पहले हमें सारे हालात पर गौर करना होगा.
भारत सरकार इस मुद्दे पर सही है कि आप जहां पर हैं, बेहतर है कि वहीं रहें और आपके स्थान पर हर संभव सहायता पहुंचाने का काम हम सुनिश्चित करेंगे. अपने नागरिकों की देखभाल करने के मामले में पड़ोसी देशों और अन्य की तुलना में भारत का बेहतर इतिहास रहा है, संयुक्त अरब अमीरात में सेवा करने के बाद मैं आपको बता सकता हूं कि हमारे पास सामुदायिक संगठनों का एक उत्कृष्ट नेटवर्क है. हां ऐसे लोग होंगे जो बेरोजगार हैं. वहां आर्थिक मंदी का दौर चल रहा है, जो कोरोना वायरस से पहले से है.
हमने ऐसी परिस्थितियों को पहले भी संभाला है, जहां कंपनियां श्रमिकों को निकाल देतीं थीं और फिर आपको उनके लिए नौकरियों की तलाश करनी होती है या वापस घर भेजने के इंतजाम करने होते हैं या फिर दो नौकरियों के अन्राल में उनकी देखभाल की व्यवस्था करनी होती है. हमारा मिशन हमेशा इन परिस्थितियों के लिए तैयार रहता है लेकिन हम जो नहीं करना चाहते हैं वह घबराहट और हताशा की भावना पैदा करना है. यह किसी की भी मदद नहीं करता है.
प्रश्न- आय और नौकरियों के नुकसान के साथ, भारत द्वारा खाड़ी सहयोग परिषद से प्राप्त होने वाले विशाल प्रेषणों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर- निश्चित रूप से प्रभाव पड़ेगा. विशेष रूप से खाड़ी सहयोग परिषद और केरल के बीच एक बहुत करीबी संबंध है, साथ ही उन श्रमिकों से भी हैं जो बिहार, यूपी, तेलंगाना और अन्य स्थानों से गए हैं. पिछले साल केवल संयुक्त अरब अमीरात से प्रेषण 17 बिलियन अमरीकी डॉलर के बराबर था. और एक पूरे खाड़ी से प्रेषण 50 बिलियन अमरीकी डॉलर के करीब था- जोकि भारत के सकल घरेलु उत्पाद का लगभग दो प्रतिशत है. इसलिए ऐसी संभावना है कि नौकरियां जाएंगी और लोगों को वापस आना पड़ सकता है. यह स्पष्ट रूप से प्रेषण को प्रभावित करेगा. लेकिन जो हम भारत के भीतर देख रहे हैं यह उससे अलग नहीं है. क्या हम यह नहीं देख रहे हैं कि जब प्रवासी श्रमिकों ने दिल्ली और मुंबई में नौकरी छोड़कर अपने गांवों में वापस चले गए हैं. प्रेषण का यह स्रोत भी सूख गया है. यह तबाही का एक तार्किक आर्थिक परिणाम है, जो हम दुनियाभर में देख रहे हैं.
प्रश्न- हमने कई बहुपक्षीय पहल देखी हैं - संकट को कम करने के लिए आप जी20 प्रस्तावों को कैसे देखते हैं? वह कितने कार्यान्वयन योग्य हैं?
उत्तर- इन चीजों को वास्तव में जमीन पर लागू करने से पहले बहुत अधिक काम करने की आवश्यकता है. इस बिंदु पर जबकि अंतर्राष्ट्रीय समन्वय की दिशा में कुछ प्रयास हैं, वास्तविकता यह है कि अधिकांश देश राष्ट्रीय प्रयासों पर निर्भर हैं.
प्रश्न- डब्ल्यूएचओ महामारी से निपटने के लिए आलोचना के घेरे में आ गया है, जबकि प्रकोप में चीन की भूमिका पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं. क्या आपको लगता है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को डब्ल्यूएचओ और चीन की जवाबदेही तय करनी चाहिए?
उत्तर- इसमें कोई संदेह नहीं है कि जब आप समय रेखा को देखते हैं तो ऐसा लगता है कि चीन ने डब्ल्यूएचओ के मौजूदा नेतृत्व पर अपनी बात मनवाने के लिए एक असंगत प्रभाव का इस्तेमाल किया गया है. चीनी नवंबर 2019 की शुरुआत में ही जानते थे कि समस्या है. दिसंबर में चीनी मीडिया में ऐसी खबरें आई थीं कि मानव संचरण के मामले थे जिनसे वे चिंतित थे. लोग इसके बारे में लिख रहे थे. फिर भी इस साल 12 जनवरी तक चीन और डब्ल्यूएचओ कह रहे थे कि यह स्पष्ट नहीं है कि कोई मानव संचरण हुआ है या नहीं. उड़ानें जारी थीं.
हमें इसे दो भागों में देखना चाहिए. डब्ल्यूएचओ एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जो आज भी विभिन्न सलाह, चेतावनियों आदि के समन्वय में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. और जिस तरह से डब्ल्यूएचओ के नेतृत्व ने इस खास समय पर काम किया है. इस के पाठ केवल डब्ल्यूएचओ तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों को भी सीखने की जरुरत है क्योंकि आप देख सकते हैं कि चीनी कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों पर नियंत्रण करने की कोशिश कर रहे हैं. हम निश्चित रूप से प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को, चीनी विशेषताओं के अनुकूल नहीं देखना चाहते हैं.
प्रश्न- खाड़ी में सेवा करने के बाद आपको लगता है कि कोविड-19 और उसके बाद निपटने के लिए हज जैसी बड़ी प्रक्रिया में बदलाव करना पड़ेगा?
उत्तर- सऊदी, मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों के द्वारा शुरुआती दौर में ही जरूरी कदम उठा लिए और कहा गया कि मस्जिदों में शुक्रवार की प्रार्थना सभाओं को भी अनुमति नहीं दी जाएगी. उन्होंने अजान को बदल दिया और जहां कहा जाता था कि ‘नमाज पढ़ने आइये’, उसकी जगह कहा जाने लगा कि ‘घर पर रहिये और नमाज पढ़िए.’ चाहे उमराह हो या हज फिलहाल सख्ती से उनपर प्रतिबंध लगा दिया गया है. ये कहने के बावजूद हज कई वर्षों से चली आ रही प्रथा है. हज जो एक सालाना होने वाली प्रथा है, जिसको युद्ध के दौरान भी कभी नहीं रोका गया. तो अगर सऊदी इस साल हज का आयोजन नहीं करने का फैसला लेते हैं तो यह एक बड़ी घटना होगी जिसका फैसला वह बहुत सोच-समझकर लेंगे.
प्रश्न- वह कौन से प्रमुख आर्थिक क्षेत्र हैं, जहां सरकार को आने वाले महीनों में ध्यान केंद्रित करना चाहिए?
उत्तर- प्रधानमंत्री ने कहा है कि ‘जान भी चाहिए और जहान भी चाहिए’. उनके भाषण में संकेत थे कि 20 अप्रैल से आप कुछ हद तक संतुलन बहाल होते देख सकते हैं. तालाबंदी हुई है लेकिन आर्थिक गतिविधियों के क्षेत्रों में उत्तरोत्तर वृद्धि होगी. मुझे लगता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रकृति के कारण यह महत्वपूर्ण है और क्योंकि बहुत सारे लोग हैं जो दैनिक मजदूरी पर पूरी तरह निर्भर हैं. उनके लिए आर्थिक जीविका महत्वपूर्ण है. यह एक ऐसी चुनौती है जो हर दिन उच्चतम स्तर पर सरकार को उलझा रही है. लेकिन हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता होगी कि आपूर्ति श्रृंखला की कुछ अड़चनों को दूर किया जाना चाहिए जैसे कि ट्रक वाले अपने गांव या बंदरगाहों पर वापस जा सकें. अर्थव्यवस्था एक जीवित जीव की तरह है, यह एक शरीर की तरह है. यदि एक भाग ठीक से काम नहीं करता है, तो शेष शरीर भी प्रभावित होगा. यह आपूर्ति श्रृंखला मुद्दे वास्तव में अर्थव्यवस्था में कुछ हद तक सामान्य स्थिति की बहाली के लिए महत्वपूर्ण हैं.