दावणगेरे: शिवमोग्गा जिले के शिकारीपुरा तालुका के गामा गाँव की निवासी सुशीलम्मा, जो पिछले चार वर्षों से हिमाचल प्रदेश के कुल्लू मनाली के कलात में रह रही थीं, आखिरकार अपने घर लौट आई हैं. Etv Bharat ने सुशीलम्मा पर पहली रिपोर्ट प्रकाशित की, जो भाषा की समस्याओं से पीड़ित और वह मानसिक रूप से अक्षम थी, कुल्लू मनाली सेंटर फॉर मेंटल कम्फर्ट में उनको रखा गया था.
पहले बार में यह पहचान लिया गया था कि सुशीलम्मा कर्नाटक की रहने वाली हैं. रिपोर्ट के बाद, दावणगेरे जिले के कमिशनर शिवमूर्ति ने मामले को गंभीरता से लिया और आखिरकार सुशीलाम्मा को वापस लाने में सफल रहे.
अलग-अलग वातावरण, अनजानी भाषा, भोजन और संस्कृति ने सुशीलम्मा की स्थिति को और जटिल बना दिया था. इस समय तक हिमाचल की एक सामाजिक कार्यकर्ता सुनीला शर्मा ने Etv Bharat Hyderabad से संपर्क किया, फिर वह दावणगेरे के जिला आयुक्त शिवमूर्ति के पास पहुँची.
कहानियों की श्रृंखला के प्रकाशन के बाद दिव्यांग और वरिष्ठ नागरिक सशक्तिकरण के जिला कार्यालय की , कर्नाटक सरकार ने अपने एक कर्मचारी को मनाली भेजकर सुशीलाम्मा से मिलने और उनके बारे में कुछ और विवरण एकत्र करने के लिए कहा.
अब सुशीलाम्मा को अस्थायी रूप से दावणगेरे में महिलाओं के लिए घर में भर्ती कराया गया.
महिला की कहानी:
शादी के 11 साल बाद सुशीलम्मा को उनके पति ने छोड़ दिया. उसका एक महिला के साथ संबंध भी था. इससे सुशीलम्मा की मानसिक बीमारी कुछ और गंभीर हो गई. पति के छोड़ने के बाद उदास होकर वह अनजाने में हिमाचल प्रदेश पहुँच गईं और वहां उन्हें आदर्श मानसिक स्वास्थ्य केंद्र में आश्रय मिला.
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कठिन उपचार:
मानसिक स्वास्थ्य दिशानिर्देशों के अनुसार, हर मरीज को जब जरूरत हो काउंसलिंग के तहत जाना चाहिए और परामर्श मरीजों की मातृभाषा में ही होना चाहिए. करनाटक से होने के कारण सुशीलाम्मा भाषा के न समझ पाने की वजह से काउंसलिंग के लिए नहीं जा सकती थीं. इसी दिशा-निर्देश में यह भी कहा गया है कि मानसिक रूप से अक्षम मरीजों का इलाज उनके गृह शहर में होना चाहिए.
शिमला कई वर्षों से मानसिक रूप से अक्षम रोगियों के लिए आश्रय रहा है. यहां गैर सरकारी संगठन रोगियों के लिए आश्रय प्रदान कराते हैं. देश के विभिन्न हिस्सों के मरीजों को यहां आश्रय मिलाता है.
मानसिक रूप से बीमार मरीजों की काउंसलिंग उनकी मातृभाषा में होनी चाहिए ताकि जिसके लिए उनका अपने राज्य में वापस लाया जाना बहुत जरिरी है. जानकारी के अनुसार आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और कई और राज्यों के बिमार लोगों वहां शरण मिली है.
कुछ मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रेन शिमला तक पहुँचने का सबसे आसान तरीका है. कुछ माता-पिता जो रोगियों से बहुत पीड़ित थे उन्हें ट्रेन के माध्यम से भेजते हैं.