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राजमार्ग परियोजनाओं के लिए पर्यावरण मंजूरी लेने की जरूरत नहीं : न्यायालय

केंद्र को मार्ग को राजमार्ग घोषित करने और राजमार्ग के निर्माण के लिए 'पर्यावरण मंजूरी' लेने की जरूरत नहीं है. उच्चतम न्यायालय की न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने यह टिप्पणी की है. पढ़ें विस्तार से...

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प्रतीकात्मक फोटो
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Published : Dec 8, 2020, 10:44 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि किसी भी मार्ग को राजमार्ग घोषित करने और राजमार्ग के निर्माण, उसके रखरखाव तथा संचालन के लिए भूमि अधिग्रहण की मंशा जाहिर करने से पूर्व केंद्र को कानूनों के तहत पहले 'पर्यावरण मंजूरी' लेने की जरूरत नहीं है.

न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने तमिलनाडु में 10,000 करोड़ रुपये की लागत वाली चेन्नै-सलेम आठ लेन हरित राजमार्ग परियोजना की खातिर भूमि अधिग्रहण के लिए जारी अधिसूचना को सही ठहराते हुए अपने फैसले में ये टिप्पणियां कीं.

पीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय के निर्णय की विवेचना करते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग कानून, 1956, राष्ट्रीय राजमार्ग नियम, 1957 और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण कानून, 1988 के संबंधित प्रावधानों पर विचार किया. उच्च न्यायायल ने कहा था कि इस परियोजना के लिए पहले पर्यावरण मंजूरी लेना जरूरी है.

उच्च न्यायालय ने आठ अप्रैल, 2019 को अपने फैसले में नए राजमार्ग के निर्माण के लिए विर्निदिष्ट भूमि के अधिग्रहण के वास्ते राष्ट्रीय राजमार्ग कानून की धारा 3ए(1) के अंतर्गत भूमि अधिग्रहण के लिए जारी अधिसूचनाओं को गैरकानूनी और कानून की नजर में दोषपूर्ण बताया था.

पीठ ने कहा कि इन कानूनों और नियमों में कहीं भी स्पष्ट रूप से प्रावधान नहीं है कि परियोजना के लिए केंद्र सरकार को धारा 2 (2) के अंतर्गत मार्ग के किसी हिस्से को राजमार्ग घोषित करने या 1956 के कानून की धारा 3ए के तहत राजमार्ग के निर्माण, इसके रखरखाव, प्रबंधन या संचालन के लिए भूमि अधिग्रहण अधिसूचना जारी करने से पहले पर्यावरण/वन मंजूरी लेना अनिवार्य है.

इसने कहा कि केंद्र ने 1956 के कानून के तहत नियम बनाए थे और इनमें भी दूर-दूर तक ऐसा संकेत नहीं है कि केंद्र के लिए पर्यावरण या वन कानूनों के तहत पूर्व अनुमति लेना जरूरी है.

पढ़ें-नेशनल हाईवे के टोल फीस में छूट चाहिए तो फास्टैग का करना होगा इस्तेमाल

पीठ ने कहा कि इस अधिसूचना के अनुसार वास्तविक काम शुरू करने या प्रस्तावित परियोजना पर अमल शुरू करने से पहले यह काम करने वाली एजेंसी को पर्यावरण या वन मंजूरी लेनी होगी.

हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उसने पर्यावरण और वन कानूनों के सक्षम प्राधिकारियों द्वारा मंजूरी देने की वैधता या उसके सही होने के मसले पर कोई राय व्यक्त नहीं की है.

पीठ ने कहा कि पर्यावरण और वन कानून के तहत अनुमति देने का मुद्दा उच्च न्यायालय के समक्ष नहीं था और इसलिए प्रभावित व्यक्तियों के लिए उचित फोरम पर यह सवाल उठाने की छूट है.

आठ लेन की 277.3 किलोमीटर लंबी इस महत्वाकांक्षी हरित राजमार्ग परियोजना का मकसद चेन्नै और सलेम के बीच की यात्रा का समय आधा करना अर्थात करीब सवा दो घंटे कम करना है.

हालांकि, इस परियोजना का कुछ किसानों सहित स्थानीय लोगों का एक वर्ग विरोध कर रहा है क्योंकि उन्हें अपनी भूमि चली जाने का डर है. दूसरी ओर, पर्यावरणविद भी वृक्षों की कटाई का विरोध कर रहे हैं. यह परियोजना आरक्षित वन और नदियों से होकर गुजरती है.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि किसी भी मार्ग को राजमार्ग घोषित करने और राजमार्ग के निर्माण, उसके रखरखाव तथा संचालन के लिए भूमि अधिग्रहण की मंशा जाहिर करने से पूर्व केंद्र को कानूनों के तहत पहले 'पर्यावरण मंजूरी' लेने की जरूरत नहीं है.

न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने तमिलनाडु में 10,000 करोड़ रुपये की लागत वाली चेन्नै-सलेम आठ लेन हरित राजमार्ग परियोजना की खातिर भूमि अधिग्रहण के लिए जारी अधिसूचना को सही ठहराते हुए अपने फैसले में ये टिप्पणियां कीं.

पीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय के निर्णय की विवेचना करते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग कानून, 1956, राष्ट्रीय राजमार्ग नियम, 1957 और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण कानून, 1988 के संबंधित प्रावधानों पर विचार किया. उच्च न्यायायल ने कहा था कि इस परियोजना के लिए पहले पर्यावरण मंजूरी लेना जरूरी है.

उच्च न्यायालय ने आठ अप्रैल, 2019 को अपने फैसले में नए राजमार्ग के निर्माण के लिए विर्निदिष्ट भूमि के अधिग्रहण के वास्ते राष्ट्रीय राजमार्ग कानून की धारा 3ए(1) के अंतर्गत भूमि अधिग्रहण के लिए जारी अधिसूचनाओं को गैरकानूनी और कानून की नजर में दोषपूर्ण बताया था.

पीठ ने कहा कि इन कानूनों और नियमों में कहीं भी स्पष्ट रूप से प्रावधान नहीं है कि परियोजना के लिए केंद्र सरकार को धारा 2 (2) के अंतर्गत मार्ग के किसी हिस्से को राजमार्ग घोषित करने या 1956 के कानून की धारा 3ए के तहत राजमार्ग के निर्माण, इसके रखरखाव, प्रबंधन या संचालन के लिए भूमि अधिग्रहण अधिसूचना जारी करने से पहले पर्यावरण/वन मंजूरी लेना अनिवार्य है.

इसने कहा कि केंद्र ने 1956 के कानून के तहत नियम बनाए थे और इनमें भी दूर-दूर तक ऐसा संकेत नहीं है कि केंद्र के लिए पर्यावरण या वन कानूनों के तहत पूर्व अनुमति लेना जरूरी है.

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पीठ ने कहा कि इस अधिसूचना के अनुसार वास्तविक काम शुरू करने या प्रस्तावित परियोजना पर अमल शुरू करने से पहले यह काम करने वाली एजेंसी को पर्यावरण या वन मंजूरी लेनी होगी.

हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उसने पर्यावरण और वन कानूनों के सक्षम प्राधिकारियों द्वारा मंजूरी देने की वैधता या उसके सही होने के मसले पर कोई राय व्यक्त नहीं की है.

पीठ ने कहा कि पर्यावरण और वन कानून के तहत अनुमति देने का मुद्दा उच्च न्यायालय के समक्ष नहीं था और इसलिए प्रभावित व्यक्तियों के लिए उचित फोरम पर यह सवाल उठाने की छूट है.

आठ लेन की 277.3 किलोमीटर लंबी इस महत्वाकांक्षी हरित राजमार्ग परियोजना का मकसद चेन्नै और सलेम के बीच की यात्रा का समय आधा करना अर्थात करीब सवा दो घंटे कम करना है.

हालांकि, इस परियोजना का कुछ किसानों सहित स्थानीय लोगों का एक वर्ग विरोध कर रहा है क्योंकि उन्हें अपनी भूमि चली जाने का डर है. दूसरी ओर, पर्यावरणविद भी वृक्षों की कटाई का विरोध कर रहे हैं. यह परियोजना आरक्षित वन और नदियों से होकर गुजरती है.

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